
अजय कुमार
संसद का मानसून सत्र 21 जुलाई से शुरू होने वाला है और उससे ठीक पहले कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक की एक महत्वपूर्ण बैठक 19 जुलाई की शाम सात बजे ऑनलाइन होने जा रही है। यह बैठक इसलिए खास है क्योंकि विपक्ष इस बार संसद के भीतर मोदी सरकार को घेरने के लिए पूरी ताकत झोंकने की तैयारी में है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने इस बैठक का आयोजन किया है और इसके लिए कई विपक्षी दलों के बड़े नेताओं को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये जोड़ा जा रहा है ताकि संसद में साझा रणनीति बनाई जा सके। इस बैठक में डीएमके, समाजवादी पार्टी, शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट), राजद, झामुमो, आईयूएमएल और वाम दल जैसे गठबंधन के अहम दल तो शामिल हो रहे हैं लेकिन आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस की दूरी ने इस एकता पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।
आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने हाल ही में साफ कहा कि अब उनकी पार्टी इंडिया ब्लॉक का हिस्सा नहीं है। उनका कहना है कि यह गठबंधन लोकसभा चुनाव तक ही सीमित था और अब पार्टी संसद के भीतर अपने मुद्दे खुद उठाएगी। दरअसल आप दिल्ली और पंजाब जैसे राज्यों में कांग्रेस के खिलाफ सीधी लड़ाई लड़ती रही है। लोकसभा चुनाव में सीट बंटवारे को लेकर खींचतान ने दोनों दलों के बीच अविश्वास बढ़ाया। अब दिल्ली की सियासत में केंद्र सरकार से टकराव और सीबीआई-ईडी जैसी एजेंसियों की कार्रवाई के बीच आप को लगता है कि उसे अपनी स्वतंत्र सियासी पहचान बनाए रखना जरूरी है। यही वजह है कि पार्टी ने इंडिया ब्लॉक से आधिकारिक तौर पर दूरी बना ली है। आप की गैरमौजूदगी विपक्षी खेमे के लिए बड़ा झटका है क्योंकि दिल्ली और पंजाब जैसे राज्यों में वह मजबूत स्थिति में है और संसद के भीतर उसकी आवाज अक्सर मुखर रही है।
वहीं तृणमूल कांग्रेस ने बैठक में न आने के लिए कोलकाता के 21 जुलाई के वार्षिक जलसे का बहाना दिया है। यह जलसा 1993 में वाम मोर्चा सरकार के वक्त पुलिस फायरिंग में मारे गए टीएमसी कार्यकर्ताओं की याद में होता है। लेकिन अंदरखाने खबर ये भी है कि टीएमसी का असली मकसद पश्चिम बंगाल की राजनीति में अपनी अलग पहचान को बचाए रखना है। ममता बनर्जी अच्छी तरह जानती हैं कि बंगाल में कांग्रेस और वाम दल उनके प्रतिद्वंदी हैं। ऐसे में बार-बार मंच साझा करने से उनके कार्यकर्ताओं में भ्रम पैदा होगा। ममता बनर्जी की राजनीति हमेशा से ये रही है कि वो राष्ट्रीय स्तर पर मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी खेमे के साथ खड़ी दिखें लेकिन बंगाल में अपनी लड़ाई कांग्रेस और लेफ्ट से अलग ही रखें। यही वजह है कि उनकी पार्टी कई बार विपक्षी मंच से दूरी भी बना लेती है। कहा जा रहा है कि अंतिम वक्त पर ममता बनर्जी या उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी डिजिटल बैठक में शामिल हो सकते हैं लेकिन यह अब तक पूरी तरह पक्का नहीं है।
उधर कांग्रेस की पूरी कोशिश है कि विपक्ष के ज्यादातर दल एक सुर में संसद में सरकार को घेरने के लिए तैयार रहें। राहुल गांधी ने खुद कई विपक्षी नेताओं से फोन पर बात की है और केसी वेणुगोपाल ने भी राज्यों के नेताओं को भरोसे में लेने की कोशिश की है ताकि मीटिंग में कोई बड़ा दल न छूटे। पहले यह बैठक दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के आवास पर होनी थी लेकिन कई नेताओं ने कम समय में दिल्ली आने में असमर्थता जताई तो इसका फॉर्मेट बदलकर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग कर दिया गया। इससे ज्यादा से ज्यादा नेताओं को जोड़ने में आसानी होगी।
शिवसेना-यूबीटी के नेता उद्धव ठाकरे ने भी संकेत दिया है कि अगर जरूरत पड़ी तो वो दिल्ली आ सकते हैं। बताया जा रहा है कि केसी वेणुगोपाल का फोन आया था और उद्धव ठाकरे इसमें पूरी रुचि ले रहे हैं। वहीं समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से ही जुड़ेंगे। राजद के तेजस्वी यादव भी शामिल होंगे और झारखंड से झामुमो के नेता भी बैठक में अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित करेंगे। आईयूएमएल और वामपंथी दल भी बैठक में मौजूद रहेंगे।
मौजूदा सियासी हालात में इंडिया ब्लॉक के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि संसद के भीतर एकजुट रहकर सरकार को कैसे घेरा जाए। राहुल गांधी और कांग्रेस की योजना है कि ऑपरेशन सिंदूर से लेकर बिहार में मतदाता सूची में हेरफेर जैसे मुद्दों को लेकर संसद में सरकार से तीखे सवाल पूछे जाएं। इसके अलावा विपक्षी खेमे को उम्मीद है कि संसद के बाहर भी इन मुद्दों को उठाकर सरकार को घेरा जा सकता है ताकि आम जनता के बीच सरकार की जवाबदेही को लेकर दबाव बढ़ाया जा सके।
हालांकि विपक्षी एकता की सबसे कमजोर कड़ी यही है कि जिन दलों ने गठबंधन बनाया है वो अलग-अलग राज्यों में एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हैं। ममता बनर्जी और अखिलेश यादव जैसे नेता अपने-अपने राज्यों में कांग्रेस को उखाड़ने की कोशिश में लगे रहते हैं लेकिन राष्ट्रीय मंच पर इन्हें कांग्रेस की छतरी तले खड़े रहना पड़ता है। यही मजबूरी विपक्ष की सबसे बड़ी कमजोरी बनकर सामने आती है।
आप की गैरमौजूदगी और टीएमसी की झिझक यह दिखा रही है कि इंडिया ब्लॉक की एकजुटता पूरी तरह भरोसेमंद नहीं है। अगर संसद में सरकार ने इन दरारों को और बड़ा कर दिया तो विपक्ष का साझा हमला कमजोर पड़ सकता है। फिर भी कांग्रेस को भरोसा है कि जितनी भी दल शामिल होंगे, वो संसद में एक सुर में सरकार से जवाब मांगेंगे। विपक्ष की पूरी रणनीति यही है कि संसद के भीतर हंगामा कर सरकार को जवाब देने पर मजबूर किया जाए।
बीते लोकसभा चुनाव में इंडिया ब्लॉक ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया था लेकिन उसके बाद हरियाणा जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली हार और कुछ सहयोगी दलों की नाराजगी ने गठबंधन को झटका दिया है। शरद पवार की एनसीपी भी कई बार कांग्रेस की लाइन से अलग खड़ी नजर आई है। ऑपरेशन सिंदूर पर संसद का विशेष सत्र बुलाने की कांग्रेस की मांग का शरद पवार ने विरोध किया था। बाद में भले ही समाजवादी पार्टी और टीएमसी ने विशेष सत्र की मांग वाले पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए लेकिन शरद पवार और आप इससे दूर रहे। इससे भी विपक्ष की साझा रणनीति पर सवाल उठते हैं।
अब सबकी नजरें इस बात पर हैं कि शनिवार की बैठक से क्या संदेश निकलता है और क्या ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी आखिरी वक्त पर शामिल होते हैं या नहीं। अगर टीएमसी भी पूरी तरह से दूरी बना लेती है तो संसद में विपक्ष की एकजुटता का दावा कमजोर हो जाएगा। वहीं बीजेपी इस दरार को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। फिलहाल कांग्रेस को भरोसा है कि संसद के अंदर राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में विपक्ष एकजुट होकर सरकार को घेरने में कामयाब होगा लेकिन यह कितना कारगर होगा, इसका फैसला संसद के हंगामेदार मानसून सत्र में ही होगा।