
प्रमोद शर्मा
नई दिल्ली : उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़** ने सोमवार को राजनीतिक दलों के बीच सौहार्द और आपसी सम्मान की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि “मैं देश के राजनीतिक परिदृश्य के सभी लोगों से अपील करता हूँ — कृपया एक-दूसरे का सम्मान करें। कृपया टीवी या अन्य माध्यमों पर एक-दूसरे के नेताओं के खिलाफ अनुचित भाषा का प्रयोग न करें। यह संस्कृति हमारी सभ्यतागत परंपरा का हिस्सा नहीं है। हमें अपनी भाषा को लेकर सतर्क रहना चाहिए… व्यक्तिगत हमलों से बचिए। मैं सभी राजनेताओं से अपील करता हूँ — एक-दूसरे को गलत नामों से पुकारना बंद करें। जब विभिन्न दलों के लोग वरिष्ठ नेताओं के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, तो इससे हमारी संस्कृति को नुकसान होता है।
राज्यसभा इंटर्नशिप प्रोग्राम (RSIP) के आठवें बैच के उद्घाटन समारोह को उपराष्ट्रपति श्री धनखड़ ने आज उपराष्ट्रपति निवास में संबोधित करते हुए कहा:
“राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए, विकास के मुद्दों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए, देश की प्रगति के मुद्दों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए, राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रीय चिंता के मुद्दों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। और ऐसा तभी संभव होगा जब भारत वैश्विक मंच पर गर्व से खड़ा हो। हमारी अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा बहुत ऊँची है। भारत को बाहरी ताकतों से संचालित किया जा सकता है — यह विचार ही हमारी संप्रभुता के खिलाफ है। हम एक संप्रभु राष्ट्र हैं। फिर हमारा राजनीतिक एजेंडा उन ताकतों द्वारा क्यों तय हो, जो भारत के विरोध में हैं? **हमारा एजेंडा हमारे दुश्मनों से प्रभावित क्यों हो?
आगामी मानसून सत्र में सार्थक चर्चा की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए श्री धनखड़ ने कहा: “हमें लचीला रहना चाहिए। हमें अपने दृष्टिकोण पर विश्वास होना चाहिए, लेकिन साथ ही हमें दूसरे के दृष्टिकोण का सम्मान भी करना चाहिए। अगर हम मान लें कि सिर्फ हम ही सही हैं और बाकी सब गलत — तो यह न लोकतंत्र है, न हमारी संस्कृति। यह अहंकार है। यह घमंड है। हमें अपने अहंकार पर नियंत्रण रखना चाहिए। हमें अपनी अभिमान की भावना पर नियंत्रण रखना चाहिए। हमें यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि दूसरा व्यक्ति अलग राय क्यों रखता है — यही हमारी संस्कृति है। भारत को ऐतिहासिक रूप से किस लिए जाना जाता है? वाद–संवाद, चर्चा, बहस और मंथन के लिए।
आजकल संसद में यह सब दिखाई नहीं देता। मुझे लगता है कि आगामी सत्र महत्वपूर्ण होगा। मुझे पूरी उम्मीद है कि उसमें सार्थक और गंभीर विचार-विमर्श होगा, जो भारत को और ऊँचाइयों तक ले जाएगा। यह नहीं कहा जा सकता कि सब कुछ ठीक है। हम कभी ऐसे समय में नहीं रहेंगे जब सब कुछ पूर्ण हो। हमेशा किसी न किसी क्षेत्र में कुछ कमियाँ रहेंगी। और हमेशा सुधार की गुंजाइश रहती है। अगर कोई किसी चीज़ को सुधारने के लिए सुझाव देता है, तो वह आलोचना नहीं है, वह निंदा नहीं है — वह केवल आगे के विकास के लिए एक सुझाव है। इसलिए मैं सभी राजनीतिक दलों से अपील करता हूँ कि रचनात्मक राजनीति में भाग लें। और जब मैं ऐसा कहता हूँ, तो मैं सभी दलों से अपील करता हूँ — सत्ता पक्ष से भी, और विपक्ष से भी।