
अजय कुमार
समाजवादी पार्टी के प्रमुख और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, प्रदेश की राजनीति में एक प्रमुख चेहरा हैं। पार्टी की ताकत का एक प्रमुख आधार उसका पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूला है। अखिलेश ने इस रणनीति को 2024 के लोकसभा चुनावों में प्रभावी ढंग से लागू किया, जहां उन्होंने गैर-यादव ओबीसी, दलित और मुस्लिम मतदाताओं को एकजुट करने में सफलता हासिल की। इस रणनीति ने उन्हें उत्तर प्रदेश में 37 लोकसभा सीटें दिलाईं, जो उनकी अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है। गैर-यादव ओबीसी समुदायों, जैसे कुर्मी, राजभर, और लोधी, को टिकट देकर उन्होंने सामाजिक समीकरण को संतुलित करने की कोशिश की। उदाहरण के लिए, कुर्मी और पटेल समुदायों को 10 टिकट दिए गए, जिनमें से सात पर जीत हासिल हुई। यह दर्शाता है कि अखिलेश ने गैर-यादव ओबीसी वोट बैंक को साधने में सफलता पाई है। इस रणनीति को और मजबूत करने के लिए, अखिलेश ने छोटे-मझोले नेताओं को पार्टी में शामिल किया, जैसे महेंद्र राजभर, जिनका प्रभाव घोसी, बलिया, और गाजीपुर जैसे क्षेत्रों में है। इस तरह की सामाजिक इंजीनियरिंग 2027 में भी उनके लिए महत्वपूर्ण होगी।
उधर, दलित वोट बैंक को आकर्षित करना अखिलेश की रणनीति का एक और महत्वपूर्ण हिस्सा है। समाजवादी पार्टी ने परंपरागत रूप से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के दलित वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की है। इसके लिए उन्होंने 2021 में समाजवादी बाबा साहेब वाहिनी का गठन किया, जिसका नेतृत्व बसपा से आए मिठाई लाल भारती को सौंपा गया। यह कदम दलित मतदाताओं, खासकर गैर-जाटव दलितों, को अपनी ओर खींचने की रणनीति का हिस्सा था। अखिलेश ने आंबेडकर जयंती जैसे अवसरों का उपयोग कर संदेश दिया कि उनकी पार्टी संविधान और सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्ध है। 2024 के चुनावों में इस रणनीति का असर दिखा, जब दलित प्रत्याशियों को टिकट देकर सपा ने बसपा के वोट बैंक में सेंध लगाई। उदाहरण के लिए, इंद्रजीत सरोज जैसे नेताओं को पार्टी में शामिल कर और उन्हें प्रमुख जिम्मेदारियां देकर अखिलेश ने दलित समुदाय को यह संदेश दिया कि उनकी पार्टी उनके हितों की रक्षा कर सकती है।
अखिलेश की रणनीति का एक और आयाम गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों और अन्य सामाजिक समूहों को जोड़ना है। उन्होंने ब्राह्मण और क्षत्रिय समुदायों को साधने की कोशिश की है। 2025 में महाराणा प्रताप जयंती के अवसर पर अखिलेश ने क्षत्रिय नेताओं के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस की और उनके बलिदान को याद किया। इसी तरह, ब्राह्मण नेताओं के साथ बैठक कर उन्होंने संदेश दिया कि उनकी पार्टी केवल एक विशेष समुदाय तक सीमित नहीं है। 2024 के लोकसभा चुनावों में सपा ने चार ब्राह्मण और एक भूमिहार प्रत्याशी को टिकट दिया, जिनमें से कुछ ने जीत हासिल की। यह दर्शाता है कि अखिलेश ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ और सामाजिक समावेश की रणनीति को अपनाकर अपने वोट बैंक का विस्तार कर रहे हैं।
महिलाओं और युवाओं को आकर्षित करना भी अखिलेश की रणनीति का हिस्सा रहा है। उनके शासनकाल में शुरू की गई 1090 महिलाओं की हेल्पलाइन और कामधेनु योजना जैसी पहले महिलाओं और ग्रामीण मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए थीं। इसके अलावा, अखिलेश ने डिजिटल और सोशल मीडिया का उपयोग कर युवा मतदाताओं को जोड़ने की कोशिश की है। उनकी सक्रिय ऑनलाइन उपस्थिति और सोशल मीडिया पर त्वरित प्रतिक्रियाएं युवाओं में उनकी छवि को मजबूत करती हैं। वे सामाजिक मुद्दों, जैसे बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ अनन्या यादव जैसे मामलों में समर्थन देकर, सामाजिक न्याय के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हैं।
कांग्रेस और अन्य दलों के साथ गठबंधन की रणनीति भी अखिलेश के लिए महत्वपूर्ण है। हालांकि, 2024 के उपचुनावों में उन्होंने कांग्रेस को सीटें देने में सावधानी बरती, ताकि उनकी पार्टी का सेक्युलर आधार कमजोर न हो। यह दर्शाता है कि अखिलेश अपनी पार्टी को उत्तर प्रदेश में सेक्युलर राजनीति का प्रमुख चेहरा बनाए रखना चाहते हैं। इसके साथ ही, वे छोटे दलों और नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कर रहे हैं, ताकि स्थानीय स्तर पर प्रभाव बढ़ाया जा सके।
हालांकि, अखिलेश के सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं। कुछ मुस्लिम नेताओं, जैसे मौलाना शहाबुद्दीन, ने उन पर मुस्लिम समस्याओं को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया है। इसके अलावा, बसपा और अन्य दल उनके वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं। फिर भी, अखिलेश की रणनीति का केंद्र पीडीए फॉर्मूला है, जिसे वे और मजबूत करने में जुटे हैं। गैर-यादव ओबीसी, दलित, ब्राह्मण, क्षत्रिय, और युवा-महिला मतदाताओं को जोड़कर वे एक व्यापक सामाजिक गठबंधन बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। अखिलेश की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि वे इन विभिन्न समुदायों के बीच संतुलन कैसे बनाते हैं। उनकी रणनीति में सामाजिक समावेश, क्षेत्रीय विकास, और डिजिटल उपस्थिति का मिश्रण है, जो उन्हें 2027 के चुनावों में एक मजबूत दावेदार बना सकता है।