प्रभुनाथ शुक्ल
जिंदगी में सात फेरों का सपना हर युवा देखता है। विवाह जीवन की आत्मअनुभूति और आनंद है। विवाह सृष्टि संरचना का मूल आधार भी है। हर युवा बग्गी में सवार होकर ससुराल जाना चाहता है। युवतियां भी सपनों के राजकुमार के संग सात फेरे लेने को बेताब दिखती हैं। दुनिया के हर युवा का सपना होता है कि उसे एक सुंदर पत्नी और एक अच्छा पति मिले। लेकिन क्या बदलते परिवेश में यह सब बदल रहा है। बदलती परिस्थितियों का प्रभाव क्या युवाओं के जीवन पर पड़ रहा है। अगर यह सच है तो आने वाले भविष्य के लिए यह संकेत अच्छे नहीं हैं। भारत सरकार के सांख्यिकी विभाग की तरफ से जारी की गई एक सर्वें रिपोर्ट में युवाओं से जुड़े कुछ तथ्य चौंकाने वाले हैं। रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि देश की युवापीढ़ी में विवाह को लेकर रुचि घट रहीं है। आज का युवा अविवाहित रहना पसंद करता है। वह बंधन मुक्त जीवन जीने का आनंद लेना चाहता है। आखिर ऐसा क्यों।
भारत में विवाह योग्य अविवाहित युवाओं की आबादी 23 फीसदी तक पहुंच गयी है। इस सर्वे में बताया गया है कि जिनकी उम्र 15 से 29 साल की है वह अविवाहित हैं।जबकि साल 2011 में यह आंकड़ा 17.2 फीसदी पर था। साल 2014 में घोषित युवा नीति में 15 से 29 साल के मध्य के लोगों को युवा माना गया है। भारत में ऐसे युवाओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है जो अविवाहित रहना पसंद करते हैं। साल 2011 में इस प्रकार के पुरुष 20.8 प्रतिशत रहे जबकि 2019 में बढ़कर 26.1 फीसद हो गए। यह दशा सिर्फ पुरुषों कि नहीं महिलाओं में भी बढ़ रहीं है। यह बेहद चिंता का विषय है। साल 2011 में अविवाहित महिलाओं की आबादी 13.5 फीसद थीं जो साल 2019 में पढ़ कर तकरीबन 20 फिसदी हो गई। हमारी हमारी सामाजिक व्यवस्था के लिए या बेहद चिंतनीय पहलू है। ऐसे हालात में सामाजिक संतुलन बिगड़ सकता है।
सर्वे रिपोर्ट में कुछ और चौंकाने वाले खुलासे आए हैं। जिसमें कहा गया है कि साल 2036 तक भारत में यह स्थति और बिगड़ेगी। वर्ष 1991 में देश में 22. 27 करोड़ युवा आबादी रहीं जो साल 2011 में बढ़कर 33.34 करोड़ हो गई। साल 2021 तक 37.14 करोड़ होने की उम्मीद जताई गयी थी। हालांकि यह भी आशंका प्रगट की गयी है कि साल 2036 तक यह 34.55 फीसदी पर पहुंच जाएगी। भारत की एक सैकड़ा आबादी में सिर्फ 23 युवा होंगे जबकि 15 बुजुर्ग होंगे। वर्तमान समय में यह स्थित 27 युवा और 10 बुजुर्गों की है। सबसे अधिक जम्मू कश्मीर में अविवाहित युवकों की संख्या बढ़ रहीं है। साल 2019 में जम्मू कश्मीर में सबसे कम युवाओं ने शादी की। इसके बाद उत्तर प्रदेश,दिल्ली और पंजाब में इस तरह के हालात हैं। जबकि हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, केरल तमिलनाडु और मध्य प्रदेश में हालात ठीक हैं। यहाँ अविवाहित युवाओं की संख्या बेहद कम है।
सर्वे में एक सुखद बात सामने आयी है कि कम उम्र में होने वाली शादियों में गिरावट दर्ज की गयी है। नाबालिग उम्र में होने वाली शादियों में 50 फिसदी की कमी आयी है। इसी तरह कम उम्र में मां बनने के मामले में भी कमी देखी गई है। साल 2005-06 के बीच किशोरावस्था में गर्भधारण करने वाली किशोरियों की संख्या 16 प्रतिशत रहीं जबकि साल 2019-2021 के बीच घट कर यह सात फीसदी पर आ गयी। शिक्षा के प्रचार और प्रभाव की वजह से महिलाओं में शादी की उम्र भी तेजी से वृद्धि दिखती है।साल 2019-21 में 25 से 29 उम्र वाली महिलाओं का विवाह 20 साल की उम्र में हुआ। यह संपूर्ण विवाह 52 फीसदी से भी अधिक है। जबकि इसी साल 25 के उम्र वाले 43 फीसदी पुरुषों ने अपनी शादी रचायी। वहीं महिलाओं यह संख्या तकरीबन 83 प्रतिशत थी। महिलाओं में इस बदलाव के मुख्य वजह शिक्षा का बढ़ता असर माना जा रहा है। क्योंकि जब समाज शिक्षित होगा तो उसके विचारों में बदलाव आएगा और वह बदलती परिस्थितियों में अपने को खुद समायोजित कर सकती हैं।समाज को बदलने में महिलाओं की विशेष भूमिका है।
प्रश्न यह है कि भारत जैसे सामाजिक संरचना वाले देश के लिए क्या यह संकेत अच्छे हैं। जब युवा जोड़े शादी नहीं करेंगे तो हमें एक कुशल और युवा आबादी कहाँ से मिलेगी। इसका असर दूरगामी होगा। कौशल विकास में कमी आएगी। समाज में वृद्धों की संख्या तेजी से बढ़ेगी। कार्यशील जनसंख्या में बेहद कमी हो जाएगी। अकुशल मानव श्रम के अभाव में पूंजी निवेश पर भी पूरा प्रभाव पड़ेगा। आने वाले दिनों में हमारी अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है जिसका खामियाजा पूरी आबादी को भुगतना पड़ेगा। हालांकि रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया है कि अविवाहित युवाओं की संख्या क्यों बढ़ रही है। इसके मूल कारण क्या है। क्यों युवा शादी नहीं करना चाह रहा है।सरकार के सामने जब यह तथ्य आए हैं तो सरकार को भी इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। इस विषय पर रिपोर्ट तैयार करनी चाहिए कि भारत का युवा वैवाहिक संबंधों से छुटकारा क्यों पाना चाहता है।
देश में बेरोजगारी तेजी से बढ़ रहीं है। मध्यमवर्गीय परिवारों की क्रय शक्ति कम हो रहीं है। अर्थव्यवस्था में गिरावट का प्रभाव पूरी तरह सामान्य परिवारों पर देखा जा सकता है। मध्यवर्गीय परिवारों की सारी उम्मीद युवाओं पर रहती है। लेकिन आज के परिवेश में मध्यमवर्गीय परिवार का युवा बेरोजगार है उसके लिए कोई रोजी-रोजगार उपलब्ध नहीं है। उसकी आर्थिक गतिविधियां ठप हैं। आर्थिक स्वावलंबन इसकी मुख्य वजह हो सकती है। बदले परिवेश और वातावरण का प्रभाव युवाओं की मानसिक स्थितियों पर भी पड़ रहा है। इसके अलावा दूसरे सामाजिक कारण भी हैं जिसकी वजह आज का युवा परेशान एवं दिग्भ्रमित है। सरकार को इस विषय पर रिपोर्ट तैयार करानी चाहिए। वक्त रहते युवाओं की मानसिकता में बदलाव लाना चाहिए। अगर यह स्थिति नहीं बदली तो आने वाला भविष्य हमारे लिए विषम स्थिति खड़ा करेगा।