
प्रीति पांडेय
बिहार की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है। विधानसभा चुनाव से पहले आरजेडी नेता और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने बड़ा बयान देकर सबका ध्यान खींचा हैm। तेजस्वी ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि अगर मतदाता सूची से नामों को मनमाने ढंग से हटाने का सिलसिला जारी रहा, तो महागठबंधन चुनाव का बहिष्कार करने पर विचार कर सकता है।
तेजस्वी यादव का साफ कहना है – “जब लोकतंत्र में जनता का वोट ही नहीं रहेगा, तो चुनाव का कोई मतलब नहीं बचता। जब पहले से ही बेईमानी तय है, तो हम चुनाव में हिस्सा क्यों लें?”
वोटर लिस्ट की सफाई या साजिश?
फिलहाल बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के तहत मतदाता सूची को अपडेट किया जा रहा है। चुनाव आयोग का कहना है कि यह एक नियमित प्रक्रिया है ताकि सूची को शुद्ध किया जा सके। लेकिन विपक्ष का आरोप है कि इस प्रक्रिया के नाम पर लाखों लोगों के नाम बिना सूचना के काट दिए गए हैं, और यह सब चुनाव को प्रभावित करने के लिए किया जा रहा है।
तेजस्वी ने यह भी आशंका जताई कि इस बहाने लोगों की नागरिकता तक पर सवाल खड़े किए जा सकते हैं, जो पूरी तरह से अनुचित है।
सत्ताधारी पक्ष का पलटवार
तेजस्वी यादव के इस बयान पर केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने तीखा पलटवार किया। उन्होंने कहा, “तेजस्वी यादव को अब हार सामने दिख रही है, इसलिए वह मैदान से ही भागने की तैयारी कर रहे हैं। जब जालसाज़ी पकड़ी जाती है तो बहिष्कार का बहाना बनाया जाता है।”
क्या बहिष्कार से रुक जाएगा चुनाव?
इस सवाल का सीधा उत्तर है – नहीं।
भारत का चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है जिसे संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत निर्वाचन प्रक्रिया को पूरी निष्पक्षता से संचालित करने की शक्ति मिली हुई है। अगर कोई दल या गठबंधन चुनाव में हिस्सा नहीं लेता, तब भी चुनाव अपने निर्धारित समय पर होंगे।
यह पहले भी देखा गया है कि यदि सिर्फ एक दल भी चुनाव लड़ता है या सिर्फ स्वतंत्र उम्मीदवार होते हैं, तब भी चुनाव होते हैं और परिणाम घोषित किए जाते हैं।
फिर असर क्या होगा?
राजनीतिक रूप से: विपक्ष की गैरमौजूदगी से सत्तारूढ़ दल को एकतरफा मैदान मिल सकता है। लेकिन यह लोकतंत्र की आत्मा पर चोट होगी, क्योंकि चुनाव सिर्फ जीतने का माध्यम नहीं, जनता की भागीदारी और विकल्प का उत्सव होते हैं।
जनमानस पर: आम मतदाता के बीच भ्रम और अविश्वास की स्थिति बन सकती है। इससे वोटिंग प्रतिशत पर असर पड़ेगा और लोगों में यह धारणा बन सकती है कि चुनाव निष्पक्ष नहीं हो रहे।
क्या यह दबाव की राजनीति है?
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो तेजस्वी यादव का यह बयान चुनाव आयोग और सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति भी हो सकती है। वे चाहते हैं कि आयोग पारदर्शिता बरते, नामों की सही जांच हो और मतदाता सूची की प्रक्रिया निष्पक्ष हो। इसके जरिए वे जनता को यह संदेश देना चाहते हैं कि हम लोकतंत्र की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं।
तेजस्वी यादव का यह बयान बिहार की राजनीति में हलचल जरूर पैदा कर रहा है, लेकिन चुनाव प्रक्रिया को इससे रोका नहीं जा सकता। अगर महागठबंधन चुनाव से अलग होता है, तो चुनाव तो होंगे, लेकिन उनमें वह लोकतांत्रिक प्रतिस्पर्धा नहीं रह जाएगी, जो किसी स्वस्थ लोकतंत्र की पहचान होती है। अब देखना यह होगा कि तेजस्वी यादव और उनके सहयोगी दल क्या अंतिम निर्णय लेते हैं – बहिष्कार या मुकाबला?