
सुनील कुमार महला
हाल ही में बुधवार 30 जुलाई 2025 को नासा(अमेरिका)और भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो(भारत) के संयुक्त तत्वावधान में विश्व का सबसे महंगा और अत्याधुनिक उपग्रह ‘निसार’, जो कि एक ‘लो अर्थ ऑर्बिट (एलईओ) सैटेलाइट’ है, को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से शाम 5:40 बजे प्रक्षेपित करके, जो कि 2,392-2800 किलो वज़नी(एसयूवी के आकार का) है, को नासा-इसरो द्वारा सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में स्थापित किया गया है। वास्तव में, यह अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत और अमेरिका की एक बड़ी और संयुक्त सफलता मानी जा रही है। पाठकों को बताता चलूं कि नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर राडार या ‘निसार मिशन’ दोहरी आवृत्ति(डबल फ्रीक्वेंसी) वाले सिंथेटिक एपर्चर रडार उपग्रह को विकसित करने और लॉन्च करने के लिए नासा और इसरो के बीच एक संयुक्त परियोजना(ज्वाइंट प्रोजेक्ट) है। ‘निसार’ का पूरा नाम-‘नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार’ है।13,000 करोड़ रुपये (1.5 बिलियन डॉलर) की लागत वाले इस मिशन में इसरो का योगदान 788 करोड़ रुपये है। ग़ौरतलब है कि ‘निसार मिशन’ एक्सिअम-4 मिशन के तुरंत बाद लॉन्च किया गया है, जिसमें पहली बार कोई भारतीय अंतरिक्ष यात्री अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन गया था। इसे जीएसएलवी-एस16 रॉकेट के ज़रिए लॉन्च किया गया है। इस मिशन की अवधि की यदि हम यहां बात करें तो इसकी अवधि 3 साल है, लेकिन ईंधन और स्थिरता के आधार पर यह 5 साल तक भी चल सकता है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार यदि हम यहां ‘निसार’ की डेटा मात्रा की बात करें तो, हर दिन 80 टेराबाइट डेटा, यानी 150 हार्ड ड्राइव (512 जीबी) जितनी इसकी डेटा क्षमता है। इसमें जो एंटीना लगा है वह 12 मीटर का तारों का मेश एंटीना है, जिसे ‘नासा’ के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी (जेपीएल) ने बनाया है। उल्लेखनीय है कि यह ‘नासा’ द्वारा किसी उपग्रह के लिए बनाया गया, अब तक का सबसे बड़ा/विशालकाय एंटीना है। जानकारी के अनुसार यह लॉन्च के बाद खुलता है और रडार सिग्नल भेजने-प्राप्त करने में मदद करता है।और यदि हम इसकी(निसार) पावर की बात करें तो इसमें पावर 6,500 वाट बिजली है, जो कि इसे बड़े सोलर पैनल से मिलेगी। ‘निसार’ उपग्रह में इस्तेमाल होने वाली स्वीप-एसएआर तकनीक, इसे एक साथ बड़े क्षेत्र को हाई-रिजॉल्यूशन में स्कैन करने की ताकत देती है।यह रडार सिग्नल भेजता है और उनके वापस आने पर तस्वीरें बनाता है।उपलब्ध जानकारी के अनुसार ‘निसार’ उपग्रह नीले ग्रह धरती की हर हलचल पर बाज जैसी तीक्ष्ण और पैनी नज़र रखेगा और इसका फायदा समस्त मानवजाति को मिलेगा। गौरतलब है कि ‘निसार मिशन’ पृथ्वी का ‘एमआरआई स्कैनर’ है, जो भूकंप, सुनामी, भूस्खलन और बाढ़ जैसी विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं की पहले से ही चेतावनी दे देगा। यह सैटेलाइट(उपग्रह ) दोहरे रडार सिस्टम, हर मौसम में काम करने की क्षमता, और सेंटीमीटर स्तर की सटीकता के साथ पृथ्वी की सतह को स्कैन करेगा। यह धरती की सतह की इतनी बारीक तस्वीरें ले सकता है कि सेंटीमीटर तक के छोटे से छोटे बदलाव भी आसानी के साथ पकड़ लेता है। दूसरे शब्दों में कहें तो ‘निसार’ एक सेंटीमीटर के दायरे की सटीक फोटो खींचने और उसे धरती पर भेजने में सक्षम है। वास्तव में, यह पृथ्वी पर भूमि और बर्फ का 3डी व्यू मुहैया कराएगा। उपलब्ध जानकारी के अनुसार यह दुनिया का पहला ऐसा सैटेलाइट है जो दोहरी रडार फ्रीक्वेंसी (नासा का एल-बैंड और इसरो का एस-बैंड) का इस्तेमाल करके पृथ्वी की सतह(धरातल) को स्कैन करेगा।नासा का एल-बैंड (24 सेमी तरंगदैर्ध्य) घने जंगल, बर्फ और मिट्टी के नीचे की गतिविधियों जैसे भूकंप और ज्वालामुखी का आसानी से पता लगा सकता है। वहीं दूसरी ओर, इसरो का एस-बैंड सतह की छोटी-छोटी चीजों, जैसे फसलों की संरचना, बर्फ की परतें और मिट्टी की नमी आदि को मापने में माहिर है। वास्तव में, ये दोनों रडार(एल और एस बैंड) मिलकर 5-10 मीटर की सटीकता के साथ तस्वीरें लेते हैं और 242 किमी चौड़े क्षेत्र को कवर करते हैं। पाठकों को बताता चलूं कि जहां पर एक आम सैटेलाइट ऑप्टिकल कैमरों से लैस होता है, तथा वह घने बादलों और रात के समय में तस्वीरें लेने या यूं कहें कि काम करने में सक्षम नहीं होता है, वहीं ‘निसार’ के रडार किसी भी मौसम में, प्रतिकूल परिस्थितियों में भी बादलों, धुएं और जंगलों आदि को भेदकर दिन-रात कभी भी काम कर सकने की अभूतपूर्व क्षमताएं रखतें हैं। जानकारी के अनुसार ‘निसार’ सैटेलाइट हर 12 दिन में पृथ्वी और बर्फीली सतह को स्कैन करेगा, और औसतन हर 6 दिन में डेटा उपलब्ध कराएगा। यह सूर्य-समकालिक कक्षा (747 किमी ऊंचाई, 98.4° झुकाव) में रहेगा, जिससे इसे लगातार रोशनी मिलेगी और यह ठीक से काम करता रहेगा। दूसरे शब्दों में कहें तो, इस ‘लो अर्थ ऑर्बिट सैटेलाइट'(निसार) को पृथ्वी से 747 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थापित किया जाएगा। यह सैटेलाइट ‘सन-सिंक्रोनस पोलर ऑर्बिट’ में भेजा गया है, यानी यह पृथ्वी के एक ही हिस्से से नियमित अंतराल पर गुज़रेगा, जिससे वह सतह पर होने वाले बदलावों को देख सकेगा और उसकी मैपिंग कर सकेगा। यहां यह कहना ग़लत नहीं होगा कि इसके(निसार सैटेलाइट) दोहरे रडार, इसके हर मौसम में काम करने की क्षमता और मुफ्त डेटा नीति इसे अनोखा बनाती है।सच तो यह है कि भारत के लिए यह आपदा प्रबंधन, कृषि और जल प्रबंधन में गेम-चेंजर साबित होगा। दरअसल,यह सैटेलाइट(निसार) सटीकता से धरती की सतह पर जमी बर्फ़ से लेकर उसके ज़मीनी हिस्से, ईकोसिस्टम में बदलाव, समंदर के जलस्तर में बदलाव और ग्राउंड वाटर लेवल से जुड़े आंकड़े जमा करेगा। यह बाढ़ नदियों के जलस्तर को मापकर बाढ़ का समय पर अलर्ट देगा और धरती पर आने वाले तूफानों की भी मानिटरिंग करेगा। इतना ही नहीं,यह जलवायु परिवर्तन, कृषि और जंगल के साथ ही साथ तटीय निगरानी, और बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे कि बांधों, पुलों, और अन्य ढांचों पर भी अपनी पैनी नज़र रखेगा और जानकारी उपलब्ध कराएगा। पाठक जानते होंगे कि हाल ही में 30 जुलाई 2025 को ही रूस के कामचटका प्रायद्वीप के पास ओखोट्स्क सागर में 8.8 तीव्रता का भूकंप आया था, जिसने 12 देशों—रूस, जापान, हवाई, कैलिफोर्निया, अलास्का, सोलोमन द्वीप, चिली, इक्वाडोर, पेरू, फिलीपींस, गुआम और न्यूजीलैंड में सुनामी का खतरा पैदा किया। इस भूकंप की ताकत हिरोशिमा जैसे 9,000-14,000 परमाणु बमों के बराबर थी। कुरील द्वीपों में 5 मीटर ऊंची लहरें आईं। फुकुशिमा, जापान में लोग 2011 की सुनामी की याद से आज भी खौफ खाते हैं। वास्तव में, मनुष्य को ऐसी आपदाओं की पहले से खबर मिलना बहुत जरूरी है, ताकि आपदाओं का पहले से ही प्रबंधन किया जा सके और जान-माल की सुरक्षा की जा सके। यही काम अब अमेरिका और भारत का ‘निसार’ सैटेलाइट करेगा। प्राकृतिक भूकंप और सुनामी जैसी आपदाओं की संभावना के पूर्व अनुमान से आपदा प्रबंधन को तेज और सटीक बनाया जा सकता है, जिससे जान-माल का नुकसान कम हो सकेगा। दूसरे शब्दों में कहें तो, इसरो और नासा के संयुक्त मिशन से मिले आंकड़े न सिर्फ़ इन दोनों देशों बल्कि पूरी दुनिया को आपदाओं से निपटने और तैयारी करने में मदद करेंगे। हाल फिलहाल, यही कहूंगा कि उपग्रह ‘निसार’ (नासा इसरो सिंथेटिक अपर्चर राडार) के सफल प्रक्षेपण के साथ ही दुनिया की दो अंतरिक्ष महाशक्तियों इसरो और नासा के बीच संयुक्त अंतरिक्ष अन्वेषण के एक नए युग का आरंभ हुआ है। कहना चाहूंगा कि ‘निसार’ के प्रक्षेपण के साथ ही इसरो और नासा ने अंतरिक्ष क्षेत्र में परस्पर सहयोग की एक मजबूत नींव रखी है। वास्तव में, अंतरिक्ष अन्वेषण में अंतरराष्ट्रीय सहयोग कई मायनों में लाभदायक है। पाठकों को बताता चलूं कि इसरो-नासा संबंधों की शुरुआत चंद्रयान-1 मिशन से हुई थी। चंद्रयान-1 मिशन में हम नासा के दो पेलोड ले गए थे, जिसके परिणाम बेहद सफल रहे थे। एक प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक में छपी एक खबर के अनुसार, ‘नासा के पास जेपीएल जैसी कई प्रयोगशालाएं हैं। ये प्रयोगशालाएं स्वतंत्र रूप से काम करती है। इन्हें खुद ही परियोजनाओं का प्रस्ताव रखने और जरूरत पड़ने पर अंतरराष्ट्रीय साझेदार चुनने की आजादी है।’ यहां पाठकों को बताता चलूं कि जेपीएल का मतलब जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी है, जो कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (कैल्टेक) द्वारा संचालित एक अमेरिकी संघीय अनुसंधान और विकास केंद्र है। यह नासा के लिए एक प्रमुख केंद्र है, जो रोबोटिक अंतरिक्ष अन्वेषण, ग्रहों की खोज, और पृथ्वी विज्ञान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत, भविष्य में अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की योजना बना रहा है। ऐसे समय में नासा के साथ सहयोग भारत के अंतरिक्ष स्टेशन में साझेदारी का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।