
सुनील कुमार महला
पर्यावरण, हमारे धरती के पारिस्थितिकी तंत्र से लेकर मनुष्य जीवन हो या जीव-जंतु, वनस्पतियां हों या हमारी कृषि; प्लास्टिक सभी के लिए एक बहुत बड़ा और गंभीर खतरा है। आज के इस आधुनिक युग में दिन-प्रतिदिन प्लास्टिक और इससे बनीं चीजों का उपयोग लगातार बढ़ता ही चला जा रहा है,जो अत्यंत चिंताजनक है। विश्व की लगातार बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण, अपर्याप्त अपशिष्ट प्रबंधन, इसमें लागत कम होने, हल्का, टिकाऊ और आसानी से इस्तेमाल होने वाले उत्पाद होने के कारण और प्लास्टिक की बहुमुखी प्रतिभा वे प्रमुख कारण हैं, जिनके कारण प्लास्टिक का उपयोग नीले ग्रह धरती पर बढ़ता चला जा रहा है।पैकेजिंग, निर्माण, और इलेक्ट्रॉनिक्स में प्लास्टिक का बहुत प्रयोग आज हो रहा है। दूसरे शब्दों में यह कहना ग़लत नहीं होगा कि एकल-उपयोग(सिंगल यूजर) वाले प्लास्टिक उत्पादों, जैसे कि पैकेजिंग और बैग, का व्यापक उपयोग भी प्लास्टिक कचरे में वृद्धि का एक प्रमुख कारण है। आज उपभोक्तावाद में काफी वृद्धि हुई है, और इसके कारण प्लास्टिक कचरा बढ़ रहा है।प्लास्टिक का उपयोग उद्योगों में इसके स्थायित्व, कम वजन, और कम लागत के कारण किया जाता है। इतना ही नहीं,प्लास्टिक कचरे का पुनर्चक्रण(रिसाइक्लिंग) एक काफी जटिल प्रक्रिया है, और कई बार प्लास्टिक को ठीक से पुनर्चक्रित नहीं किया जाता है, जिससे यह हमारे पर्यावरण में जमा हो जाता है।यह भी एक कड़वा सच है कि प्लास्टिक ने ऑटोमोटिव पार्ट्स और चिकित्सा उपकरणों तक, विभिन्न क्षेत्रों में क्रांति ला दी है, लेकिन इससे इतर प्लास्टिक का पर्यावरणीय स्वास्थ्य, मानव स्वास्थ्य और जलवायु पर गंभीर प्रभाव पड़ता है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। प्लास्टिक की बड़ी तस्वीर की यदि हम यहां पर बात करें तो लगातार बढ़ती प्लास्टिक खपत ने हमारे द्वारा प्रति वर्ष उत्पादित प्लास्टिक की मात्रा को लगभग दोगुना कर दिया है, जो साल 2000 में 234 मिलियन टन से बढ़कर साल 2019 में 460 मिलियन टन हो गया है। आंकड़े बताते हैं कि वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में प्लास्टिक का योगदान 3.4% है। मानव जाति द्वारा अब तक निर्मित सभी प्लास्टिक का लगभग 80% अभी भी पर्यावरण और लैंडफिल में मौजूद है तथा समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण से प्रभावित 17% प्रजातियाँ अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ की संकटग्रस्त प्रजातियों की लाल सूची में हैं। इतना ही नहीं,हमारे फेफड़ों और रक्त तक में प्लास्टिक पाया गया है।बहरहाल, यहां पाठकों को बताता चलूं कि हाल ही में वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक से होने वाले खतरों को लेकर नई चेतावनी जारी की है। उनके मुताबिक, दुनिया में फैला प्लास्टिक कचरा बचपन से लेकर बुढ़ापे तक बीमारियों का कारण बन रहा है। लैंसेट ने प्लास्टिक उत्पादन और उससे होने वाले प्रदूषण पर रिपोर्ट जारी की है। इसके अनुसार, 1950 के बाद से दुनिया में प्लास्टिक का उत्पादन 200 गुना से ज्यादा बढ़ा है और अगले 35 साल में यानी कि वर्ष 2060 तक यह उत्पादन लगभग तीन गुना बढ़कर एक अरब टन प्रति वर्ष से ज्यादा होने के आसार हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि प्लास्टिक के कारण सालाना 1.5 ट्रिलियन डॉलर से अधिक के स्वास्थ्य संबंधी आर्थिक नुकसान उठाने पड़ रहे हैं। द लैंसेट की एक समीक्षा रिपोर्ट में यह कहा गया कि प्लास्टिक उत्पादन में भारी वृद्धि से प्लास्टिक प्रदूषण तेजी से बढ़ा है।अभी लगभग 8 अरब टन प्लास्टिक से पूरी धरती प्रदूषित हो रही है, और इनकी मौजूदगी माउंट एवरेस्ट की चोटी से लेकर गहरी समुद्री खाई तक है।वैज्ञानिकों ने यह बताया कि प्लास्टिक उत्पादन के दौरान होने वाले उत्सर्जन से पीएम 2.5 कणों की अधिकता बढ़ती है, जो प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है। बहरहाल, यदि हम यहां पर भारत की बात करें तो भारत दुनिया में प्लास्टिक कचरा उत्पादन में विश्व का एक अग्रणी देश है, और वैश्विक प्लास्टिक कचरे के लगभग 20% हिस्से के लिए जिम्मेदार है।हालांकि, यह बात अलग है कि भारत प्लास्टिक का सबसे बड़ा उत्पादक नहीं है, लेकिन प्लास्टिक कचरा उत्पादन में इसका स्थान शीर्ष पर है। ब्रिटेन के लीड्स विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के अनुसार दुनिया में भारत हर साल 1.02 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा पैदा करता है, वास्तव में यह बहुत ही गंभीर और संवेदनशील है।एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के बाद सबसे अधिक प्लास्टिक प्रदूषण नाइजीरिया और इंडोनेशिया फैलाते हैं। चीन प्लास्टिक प्रदूषण के मामले में दुनिया भर में चौथे स्थान पर है। अन्य शीर्ष प्लास्टिक प्रदूषक पाकिस्तान, बांग्लादेश, रूस और ब्राजील हैं। अध्ययन के आंकड़ों के अनुसार, ये आठ देश दुनिया के आधे से अधिक प्लास्टिक प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं। आंकड़े यह भी बताते हैं कि चीन प्लास्टिक का सबसे बड़ा उत्पादक है। एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में प्लास्टिक उत्पादन 1950 में 2 मिलियन टन से बढ़कर 2022 में 475 मिलियन टन हो गया है। वहीं अगले 25 साल में 800 मीट्रिक टन और 2060 तक 12 गीगाटन तक बढ़ने का अनुमान है। बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि हमारे देश में लगभग 57 फीसदी प्लास्टिक कचरे को खुले में जलाया जाता है, तथा 43 फीसदी लैंडफिल में जाता है। रिपोर्ट बताती है कि भारत में प्लास्टिक उत्सर्जन की दर हर साल 0.10 मीट्रिक टन से एक मीट्रिक टन के बीच है। अंत में यही कहूंगा कि प्लास्टिक प्रदूषण कम करने के लिए हमें समय रहते आवश्यक और जरूरी कदम उठाने होंगे, अन्यथा इसके गंभीर परिणाम मानवजाति को भुगतने पड़ेंगे और इसके लिए हमें हमारी आने वाली पीढ़ियां कोसेंगी।यह ठीक है कि प्लास्टिक ने आधुनिक जीवन में क्रांति ला दी है, लेकिन धरती से प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिए हमें सिंगल-यूज प्लास्टिक (जैसे प्लास्टिक बैग, बोतलें, और स्ट्रॉ) आदि के उपयोग को कम करना होगा। पुन: प्रयोज्य उत्पादों का उपयोग करना होगा, और प्लास्टिक कचरे का पुनर्चक्रण(रिसाइक्लिंग) करना महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, प्लास्टिक के विकल्पों का उपयोग करना,चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना और प्लास्टिक प्रदूषण के बारे में जागरूकता फैलाना भी बहुत आवश्यक है।