
विनोद तकियावाला
धन्य-धन्य है वह धरा है,जहाँ पतित पावनी गंगा युग युगातरों से र्निमल, निश्चल धारा बह रही है,तो वही दूसरी ओर पवर्तराज हिमालय देश के दुशमनों से रक्षा करने के अपना कर्त्तव्य निर्वाह करने को सैदव तत्पर है।ऐसी पवित्र पावन भारत भुमि में जन्म लेने के मानव को तरसते है।बड़भागी है हम और आप जो जन्म भुमि को भारत माता कहकर पुकारते है।यहाँ के पवित्र कण कण भगवान का वास है,तो हर कंकर में शंकर की दिव्य उपस्थित की झलक दिखती है।इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हमारे धर्मशास्त्रों व वेद उपनिषदों में उल्लेख मिलता है।तभी तो इस पवित्र धरा पर कई स्वयं राम, कृष्ण,नानक, बुद्ध, महाबीर,कबीर,आदि ऋषि-मुनियों,संत-महापुरुषों ना केवल जन्म लिया बल्कि इस पवित्र भुमि अपनी तपोस्थली बनाते हुए सम्पूर्ण श्रृष्टि का जनकल्याण किया है।इसका स्वंय साक्षी बनने का विगत दिनो मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर मंदिर के दिव्य दर्शन के दौरान अपने मीडिया मित्रों के संग स्वर्णिम पल का सुःखद आनंद मिला,वे भी सावन के पवित्र माह में स्वयं कालो के महाकाल सद्गुरु का,ऐसा मैने अक्सर कहते हुए सुना है कि जब आप के पुण्य प्रताप एकत्रित होते है,स्वंय प्रभु ही आप को किसी न किसी को माध्यम बनाकर आप को दर्शन देते है।मेरे साथ भी कुछ ऐसे ही हुआ है।मेरे पास एक फोन आया कि भाई साहब महाकाल का दर्शन करना चाहेगें आप,अचानक बिना सवाल किये मै कहा क्यूँ नही सदाशिव सदगुरू का दर्शन वे भी सावन के पवित्र माह में।आप का धन्यवाद भाई साहब।आज मै आप सभी कालों के महाकाल अथार्त महाकालेश्वर मंदिर के दिव्य दर्शन के बारे में बता रहे है।यूँ तो यह हमारी नेशनल मीडिया यात्रा थी,हम सभी एक अधिकृत अधिकारी के कुशल नेतृत्व में दिल्ली से इन्दौर हवाई मार्ग से पहुँच गए,जहाँ रानी अहिल्यावाई हवाई अड्डे के बाहर हम सभी का औपचारिक परिचय व स्वागत के सड़क मार्ग से विश्राम स्थल पर पहुँचे,जहाँ हमने दोपहर का भोजन का आनंद लेने के बाद इन्दौर से हमारी मीडिया टीम के कारवाँ अपने कर्मक्षेत्र ताजपुर रेलवें पर पहुंचे गए।सर्वविदित रहे कि यहाँ भारतीय रेलवे द्वारा इस स्टेशन पर पायलेट प्रोजेक्ट के अर्न्तगत ड्रायटेट ड्राईव लाकिंग सिस्टम परियोजना के प्रयोग के लिए किया गया ।यहाँ हमें रेलवे के नवीन तकनीकीयों की बारिक को परियोजना के सम्बन्धित अधिकारी से समझते हुए यहाँ के अन्यस्थानीय अधिकारीयों व कर्मचारियों के संग चाय की चुस्कियों का आनंद लेते हुए उनके नए व पुरानें कार्य प्रणाली जैसे रेल फाटक ‘लॉक सिस्टम, रेल आगमन-प्रस्थान की सुचना,हरी झंडी आदि कायों को नजदीक से देखने का मौका मिला।इसमें रेलवे की नई सुरक्षा प्रणाली,रेलगाड़ी अभी किस स्टेशन पर से गुजर रही-पहुँचने वाली आदि सुचनाएँ कन्ट्रोल रूम में लगे हुए मॉनिटर पर देखा।आज के पूर्व र्निधारित कार्य से निवृत होकर यहाँ से सभी मीडिया मित्र अपने चेहरों पर थकान की लकीरें सिमट हुए हमारा काफिला ताजपुर से इन्दौर के लिए वापसी के लिए रवाना हुई।तभी मेरी कार में हमारे सह यात्री सुश्री रानी सिंह “राजपुत ” व विभागीय अधिकारी जिसका नाम घनशयाम सिंह यादव जी,जो काफी ही शांत स्वाभाव व एकसुलझें व अनुभवी अधिकारी से अच्छे व्यक्ति है।उन्होंने हमदोनों की चेहरे की थकान को भापते हुए कहा कि आपलोग अभी ही थक गए हो,अभी तो आपको महाकाल के दर्शन भी कराने है।’ तभी मेरे मुँह हाँ ,मुझेआप नें वादा किया है।शुक्रिया साहब आपक ,तभी तपाक से रानी मैडम बोली कि क्या हमलोगों यहाँ से महा कालेश्वर मंदिर का दर्शन करनें जायेंगे।मंदिर दर्शन के नाम से हम तीनों की आज थकान दुर हो गई।तभी मैने हाँ,मैने तो अपने लिए भारतीय वस्त्र भी लाये है। जिसे धारण कर हमअपने सद्गुरु शंकर अर्थात कालों के महाकाल, महाकालेश्वर का दिव्य मंदिर दर्शन करने जायेंगे।क्या आप को नही चलना है क्या।तपाक से रानी मैडम ने हम दोनों इंगित करते हुए कहा कि क्यों नही हम जायेंगे ‘ हम जायेंगे ‘ – – लेकिन आपलोग स्वार्थी हो।जब आप को पता था विनोद सर कि प्रेस कवरेज के बाद हम सभी को बाबा महाकालेश्वर का दर्शन करने मंदिर जाने वाले है तो आप ने हमें क्यो नही बतलाया!अगर मुझे भी पता होता तो हम भी भारतीय वस्त्र व परिधान अपने संग ले कर आते।अपने आराध्य भगवान भोलेनाथ के दिव्य ज्योति स्वरूप महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन करते।मै आप से बहुत ही नाराज हूँ।आपको इसके लिए पैलेन्टी लगेगी।क्यूँ सर।इस पर दोनों सहयात्री इस पर एकमत थें। मैने वस्तुस्थित व मैडम की मनोस्थित को भापते हुए बड़े ही चालाकी व चुतराई से काम लेते हुए कहा कि बाँस आपके आदेश का अरक्षण पालन होगा।किन्तु मेरे पास तो आप का चलन्त-फिरन्त यंत्र सम्पर्क अंक अर्थात मोबाईल न०तो था नही ,अभी भी नही है।इतने में हम तीनों के आज थकान दुर हो गई। मैआपको बताना भुल गए कि हमारी इस मात्रा 8 कारों का काफिला था।जिसमें मेरे कार का न०2 था चुँकि मेरे वाली कार में अधिकृत अधिकारी व कार का चालक जो कि गुजरात का रहने वाला व स्थानीय जगह की बारिको से चिर परिचत था तथा कार न ० -3 में ट्रेफिक किलयर करने हेतू साईरन थी।जो हमारे कार के आगे व शेष 6 कारें पीछे पीछे चल रही था।शाम के समय हम उजैन्न के मंदिर प्रांगन में पहुँच गए।मंदिर प्रागण प्रोटोकाल के अनुसार सभी कारें पार्किंग स्थल पर खड़ी करें ,इस के पूर्व मैने अपने आराध्य सद्गुरु देव द्वारा आर्शीवाद स्वरूप मिले गेरुवा बस्त्र घोती व कुत्ता धारण करते ही मुझे सन 2000 में इस दिव्य प्रांगन मे सद्गुरु देव माँ के दिव्य सान्धिय व सामीप्य बिताये यादे ताजी हो गई।जब स्वयं गुरुदेव -गुरु माँ जी ने इसी मंदिर परिसर में अपने शिवहस्त हाथों से तिलक लगाते हुए विशेषआर्शीवाद दिये थे।तभी मैने हाँ यहाँ के दर्शन के लिए मैने बिना सवाल जबाब अपनी सहमति दे दी यें मंदिर के प्रांगन में साधना के क्रम में सुःखद अनुभुति मिली।आप को बता दे कि महाकालेश्वर का यह प्राचीन व पौराणिक मन्दिरभारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक प्राचीन दिव्य शिव मंदिर है,जिसका अपना ऐतिहासिक व पौराणिक महत्व है। जिसका स्पष्ट उल्लेख हमारे पुराणों व धर्मग्रंथों में मिलता है। इस यात्रा के हमारे सहयात्री व रेलवे अधिकारी घनश्याम जी के अनुसार यहाँ पर दूषण नामक एक राक्षस ने अवंती (उज्जैन का प्राचीन नाम)के निवासियों को हमेशा ही परेशान किया करते थे। यहाँ के संत ऋषियो नें अपनी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न कर राक्षषों से त्राण दिलाने हेतु प्रार्थना किया था। परिणाम स्वय स्वयं सद्गुरू शिव अपने भक्तों की रक्षा हेतु स्वंय लिंगम से प्रकट होकर दुष्ट राक्षस को ना हराया बल्कि महाकालेश्वर के रूप में यहाँ निवास किया।यह पवित्र क्षिप्रा नदी के शांत तट पर बसा एक ऐसा तीर्थ स्थल है जहाँ समय रुका हुआ लगता है, हर पत्थर में भक्ति की गुँज गूंजती है, जहाँ भगवान शिव की दिव्य उपस्थिति अपने सभी भक्तों को स्वंय आशीर्वाद देती है।जो भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और अध्यात्म की विरासत का प्रमाण है।उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर के ऐतिहासिक महत्व के संगआध्यात्मिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए सदियों से भक्त भगवान शिव की पूजा करने के लिए यहाँ आते रहे हैं,खास तौर पर इस मंदिर में,जो अन्य मंदिरों से अलग है क्योंकि यह हिंदू परंपरा के अनुसार अपने देवताओं के सम्मान के लिए सबसे पवित्र निवासों में से एक के रूप में नामित बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है।इस स्थल पर भगवान महाकालेश्वर के नाम से जानी जाने वाली प्रभावशाली मूर्ति है।गर्भगृह में स्थित लिंगम को स्वयंभू(स्वयं प्रकट) माना जाता है।भक्तों का मानना है कि मंदिर में जाने और भगवान महाकालेश्वर की पूजा करने से व्यक्ति की आत्मा शुद्ध हो सकती है शाम की श्रृंगार आरती मे लिंग को फूलों,आभूषणों और विभिन्न श्रृंगार से सजाया जाता है।राजा मांधाता से जुड़ी है।महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन का इतिहास हिंदू धर्म के सात पवित्र शहरों में से एक,उज्जैन की जीवंत कला से जुड़ा हुआ है।इस भव्य मंदिर की उत्पत्ति प्राचीन काल में हुई थी,जो इसे भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से एक बनाता है।एक किंवदंतियों के अनुसार भगवान शिव ने अपने भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए स्वयं उज्जैन में “महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग”(प्रकाश का लिंग)के रूप में निवास करना चुना था।लिंगम को “स्वयंभू” के रूप में जाना जाता है,जिसका अर्थ है स्वयं प्रकट होना,जो इसकी दिव्य प्रकृति को रेखांकित करता है।ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव के परम भक्त रावण ने पवित्र लिंगम को लंका ले जाने का प्रयास किया था।इस प्रक्रिया में, भगवान शिव ने उसके प्रयासों को विफल करने के लिए लिंगम को कुचल दिया,जिससे उसके टुकड़े रह गए।माना जाता है कि ये टुकड़े “महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग” बन गए और मंदिर में स्थापित हैं।एक अन्य पौराणिक कथा श्रीखर नामक एक किसान की कहानी बताती है,जिसने गाय को पानी पिलाते समय अनजाने में लिंगम के रूप में भगवान शिव की पूजा कर ली थी।उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर, भगवान शिव उसके सामने प्रकट हुए और उसे वरदान दिया।श्रीखर ने अनुरोध किया कि भगवान उज्जैन में ज्योतिर्लिंग के रूप में निवास करें, ताकि शहर और उसके लोगों को अपनी दिव्य उपस्थिति व आर्शीर्वाद दे सकें।महाकालेश्वर मंदिर में भस्म की आरती का विशेष महत्व है।जो सुबह4:00बजे-6:00बजे,दोपहर10:30-11:00बजे,शाम7:00-7:30बजे भस्म आरती मन्दिर के अनुष्ठान में भाग लेने का सौभाग्य मिलता है। मंदिर में दिव्य दर्शन के साक्षी बनते हुए हम रात्रि विश्राम के लिए रवाना हो गए। अपने संग अविस्मरणनीय यादे सिमट कर । अगर आप भी यहाँ महाकालेश्वर मंदिर का दर्शन करना चाहते है तो आप सपरिवार आ कर दर्शन लाभ कर करते है। जय महाकाल ।