जंगल, हमारे पर्यावरण और पारिस्थितिकी की जीवन रेखा हैं -हाथी

Forests are the lifeline of our environment and ecology – Elephants.

सुनील कुमार महला

प्रत्येक वर्ष 12 अगस्त को विश्व हाथी दिवस(वर्ल्ड एलिफेंट डे), मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य हमारे पारिस्थितिकी तंत्र(इको सिस्टम)में हाथियों के महत्त्व को स्वीकार करना है। वास्तव में,वनों में एशियाई(भारतीय)और अफ्रीकी हाथियों की स्थिति के संबंध में जागरूकता लाने के लिये 2012 से यह दिवस प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार एक कैनेडियन फिल्ममेकर पेट्रिसिया सिम्स और एचएम क्वीन सिरिकिट ने अन्य संरंक्षणकारियों के साथ मिलकर इस दिन को मनाने का प्रस्ताव दिया था। उन्होंने इंसानों द्वारा जंगल काटकर हाथियों के आवास को नष्ट करने, उनके इलाकों में घुसपैठ करने और उनका शिकार करने के खिलाफ आवाज उठाई थी, और तभी से इस दिन को मनाने की शुरुआत की गई। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि वर्ष 2012 में पेट्रीसिया सिम्स ने ‘वर्ल्ड एलीफेंट सोसाइटी’ नामक एक संगठन की स्थापना की थी। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज बढ़ते शहरीकरण, बढ़ती आबादी, विकास, औधोगिकीकरण, शहरीकरण के कारण पहले जितने वन नहीं रह गये हैं और वनों की अंधाधुंध कटाई की जा रही है।सच तो यह है कि मानव विकास के नाम पर हाथियों के अधिवासों को छीनता चला जा रहा है। सड़क,पुल निर्माण, सुरंग निर्माण, औधोगिक गतिविधियों के कारण हाथियों के आवास छिन रहे हैं, और उन्हें छोटे क्षेत्र में सिमट कर रहना पड़ता है।जलवायु परिवर्तन के कारण भी हाथियों को खाना और पानी खोजने में काफी परेशानी होती है, जिसका असर उनकी सेहत पर पड़ता है। यहां यह भी कहना ग़लत नहीं होगा कि हाथियों के लिए सबसे बड़ा खतरा पर्यटन और मनोरंजन उद्योग से है।सर्कस और विभिन्न हाथी शो में हाथियों को अप्राकृतिक गतिविधियों जैसे कि,शोरगुल और डरावने माहौल के बीच अपने पिछले पैरों पर खड़ा होने के लिए, उनकी सवारी करने के लिए मजबूर किया जाता है। व्यावसायिक उपक्रमों के कारण हाथियों को कम उम्र से ही पीड़ा और भय का सामना करना पड़ता है, ताकि वे आज्ञाकारी बन सकें।सरल शब्दों में कहें तो पालतू हाथियों को आज क्रूरता और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है,उनसे खूब काम लिया जाता है लेकिन उस एवज में उनको भरपूर भोजन नहीं दिया जाता है। बहरहाल पाठकों को बताता चलूं कि मनुष्यों और हाथियों के बीच टकराव को मानव-हाथी संघर्ष (एचईसी) कहा जाता है, जो मुख्य रूप से अधिवास को लेकर होता है तथा सरकारों, संरक्षणवादियों और जंगली जानवरों के करीब रहने वाले लोगों के लिये देश भर में एक प्रमुख चिंता का विषय है।आज भी हाथी दांत, मांस व दवा बनाने के लिए हाथियों का अवैध शिकार किया जाता है, और एक अनुमान के मुताबिक शिकारी अभी भी हर साल लगभग 20,000 हाथियों को उनके दांतों के लिए मार देते हैं। बहरहाल, पाठकों को बताता चलूं कि भूमि पर विशालतम जानवर हाथी है, और मूल रूप से इसकी तीन प्रजातियाँ पायी जाती हैं – अफ्रीकी जंगली हाथी (मुख्य संकेंद्रण पश्चिमी अफ्रीका), अफ्रीकी सवाना हाथी (मुख्य संकेंद्रण दक्षिण-मध्य अफ्रीकी सवाना क्षेत्र) और एशियाई हाथी (दक्षिणी व दक्षिण-पूर्वी एशिया)।यदि हम यहां पर अफ्रीकी जंगली हाथियों की बात करें तो आईयूसीएन की रेड लिस्ट के अनुसार ये गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं तथा एशियाई और अफ्रीकी सवाना हाथी लुप्तप्राय श्रेणी में पहुंच चुके हैं। एक समय था जब अफ्रीका से लेकर दक्षिण-पूर्वी एशिया तक लगभग हर स्थान पर हाथी पाये जाते थे, किंतु पिछले करीब 100 वर्षों में इनकी संख्या में अविश्वसनीय कमी आयी है, और कई स्थानों से तो ये पूर्णतः समाप्त हो गये हैं। बहरहाल, यहां पाठकों को बताता चलूं कि विश्व हाथी दिवस 2024 की थीम-‘ प्रागैतिहासिक सौंदर्य, धार्मिक प्रासंगिकता और पर्यावरणीय महत्त्व को मूर्त रूप देना’ रखी गई थी तथा विश्व हाथी दिवस 2025 की थीम ‘मातृसत्ताएँ और यादें’ रखी गई है।यह इस बात का प्रतीक है कि हाथी समूहों की अगुवाई करने वाली मेट्रिआर्क (घरेलू झुंड की सामूहिक नेतृत्व करने वाली वृद्ध महिला हाथी) और उनकी गहरी स्मृति को सम्मानित किया जाए। बहरहाल ,यदि हम यहां पर आंकड़ों की बात करें तो वर्ष 2017 की जनगणना के अनुसार भारत दुनिया की लगभग 60% एशियाई हाथियों की आबादी का आवास स्थान है। 2017 की गणना के अनुसार, भारत में लगभग 29,964 जंगली हाथी थे। नवीनतम 2022–23 की डीएनए विश्लेषण आधारित गणना में यह संख्या 15,887 आंकी गई है, जो लगभग 20% की कमी दर्शाती है—हालांकि इस आंकड़े में पूर्वोत्तर राज्यों को शामिल नहीं किया गया है। अन्य आंकड़े बताते हैं कि पिछले 75 वर्षों में हाथियों की आबादी में 50% की कमी आई है।वर्तमान जनसंख्या अनुमान से संकेत मिलता है कि विश्व में लगभग 50,000-60000 एशियाई हाथी हैं। पाठक जानते हैं कि भारतीय संस्कृति और हिन्दू धर्म में हाथी को शक्ति, बुद्धि, वैभव, शुभता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है, जो भगवान गणेश जी से संबद्ध तथा इंद्र देव (ऐरावत) का वाहन माना जाता है तथा फेंगशुई में भी हाथी को सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। न केवल भारतीय संस्कृति, बल्कि विश्व की तमाम संस्कृतियों, पौराणिक दंत कथाओं में हाथी को विशेष महत्व दिया गया है। वास्तव में, हाथियों का पर्यावरणीय और सांस्कृतिक महत्व है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि पारिस्थितिकी (इकोलॉजी) में इन्हें ‘की-स्टोन प्रजाति या अंब्रेला प्रजाति का दर्जा दिया जाता है, अर्थात अपने पारितंत्र में ये वह प्रजाति हैं जो संख्या में बहुत कम होने के बाद भी पारितंत्र की सेहत पर अति निर्णायक प्रभाव डालती हैं तथा पारितंत्र के बहुत से प्राणियों का अस्तित्व इन्हीं पर निर्भर करता है। इसी कारण इन्हें ‘फ्लैगशिप प्रजाति’ भी कहा जाता है, जिनका संरक्षण करना अत्यावश्यक है। दरअसल, ये जैव-विविधता को बढ़ावा देते हैं। हाथियों की परागण क्रिया और वन क्षेत्र में वृद्धि में भी अहम भूमिका होती है, क्यों कि ये वनों में वृक्षों, लताओं, पत्तियों आदि से घर्षण क्रिया करते हुये चलते हैं जिसके कारण विभिन्न प्रकार के छोटे-बड़े पौधों के बीज व परागकण उनके शरीर से चिपक जाते हैं। हाथी किसी अन्य स्थान पर जब जाते हैं तब ये बीज व परागकण वहाँ पर छिटक जाते हैं जिससे नये पौधों का विकास होता है।हाथी जंगल में आहार ग्रहण करते समय बहुत सारी पत्तियाँ, नर्म टहनियां, फल-फूल आदि पदार्थ जमीन पर गिराकर जंगल के छोटे जंतुओं का पोषण करते हैं।हाथियों का मल त्याग – सूक्ष्म जीवों हेतु वरदान है, क्यों कि हाथी अपच सामग्री को अपने शरीर(पेट) से बाहर निकाल कर असंख्य सूक्ष्म जीवों के लिये भोजन उपलब्ध कराते हैं। इतना ही नहीं, हाथियों द्वारा बड़ी मात्रा में ठोस व तरल अपशिष्ट का उत्सर्जन वनीय मृदा की उर्वरता में बढ़ोत्तरी करता है। जंगल में विशाल प्राणी होने के कारण ये वनों में रास्तों के निर्माण और धरती पर सूर्य के प्रकाश की व्यवस्था करने में भी सहायक सिद्ध होते हैं। हाथियों द्वारा जल स्रोत का निर्माण(वॉटर होल्स ) जंगल के विभिन्न प्राणियों, जीव-जंतुओं के लिए जीवन रेखा का काम करता है।हाथी सवाना परितंत्र की विशिष्टता को भी बनाए रखने में मददगार हैं। इतना ही नहीं, कार्बन कैप्चर व जलवायु परिवर्तन का सामना करने में हाथियों की भूमिका किसी से छिपी नहीं है। कहना ग़लत नहीं होगा कि हाथियों द्वारा दूरस्थ स्थान तक परागण करने और इस प्रकार वन क्षेत्रफल में वृद्धि के कारण भी प्रदूषण कम करने और कार्बन कैप्चर बढ़ाने में मदद मिलती है। आज हाथियों पर अनेक प्रकार के खतरे निरंतर मंडरा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि एशियाई हाथियों (भारतीय) को आवास की कमी, मानव-हाथी संघर्ष और अवैध शिकार(मांस, हाथीदांत , दवा बनाने हेतु) के कारण आईयूसीएन रेड लिस्ट में लुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत किया गया है। हालांकि हमारे देश में हाथियों के संरक्षण और संवर्धन हेतु अनेकानेक प्रयास किए जा रहे हैं। मसलन, प्रोजेक्ट एलिफेंट(1992) के तहत पूरे देश में 33 हाथी अभयारण्यों का गठन हुआ है—जिसका क्षेत्रफल लगभग 80,778 वर्ग किलोमीटर है।भारत में 138 हाथी गलियारे (कोरिडोर) चिन्हित किए गए हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों में हाथियों की सुरक्षित आवाजाही सुनिश्चित करने में सहायक हैं।सच तो यह है कि हमारे देश में हाथियों के संरक्षण के लिए कानूनी, प्रशासनिक, तकनीकी और सामाजिक स्तरों पर उपाय किए गए हैं। पाठकों को बताता चलूं कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 – हाथियों को अनुसूची-I में रखा गया है, जिससे उन्हें सर्वोच्च संरक्षण का दर्जा प्राप्त है। लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन यानी कि सीआईटीईएस का भारत सदस्य है,जिससे हाथी दांत एवं हाथी उत्पादों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर प्रतिबंध लागू है। हाथियों के लिए आवास और गलियारा संरक्षण किया गया है। आज जिम कॉर्बेट, काजीरंगा, पेरियार, बांदीपुर, सत्यमंगलम आदि संरक्षित क्षेत्र हाथियों के लिए सुरक्षित आवास प्रदान करते हैं।इको रेस्टोरेशन(वनस्पति की पुनः रोपाई, जल स्रोत बहाली) की जा रही है।सेंसर, ड्रोन, और एस एम एस अलर्ट द्वारा ग्रामीणों को हाथियों की निकटता की सूचना मिल रही है।खेतों के चारों ओर बिजली या मधुमक्खी के छत्तों वाली बाड़ लगाकर हाथियों को सुरक्षित दूरी पर रखा जा रहा है। इतना ही नहीं, हाथियों से होने वाले नुकसान का त्वरित मुआवज़ा प्रदान किया जा रहा है, जिससे फायदा यह हुआ है कि इससे मानव-हाथी संघर्ष में अभूतपूर्व कमी आई है।आज पालतू हाथियों के उपयोग (जुलूस, पर्यटन, लकड़ी ढोना) पर कड़े स्वास्थ्य और कल्याण मानक स्थापित हैं। हाथी पुनर्वास केंद्र बनाए गए हैं। मसलन, घायल, बीमार, या बूढ़े हाथियों के लिए देखभाल केंद्र (जैसे केरला का कोडानाड हाथी केंद्र, असम का काजीरंगा केंद्र) देश में स्थापित है। और तो और हाथियों के संरक्षण हेतु जन-जागरूकता और समुदाय सहभागिता की जा रही है। हाथियों के संरक्षण के लिए तकनीकी और वैज्ञानिक उपायों में रेडियो कॉलर और जीपीएस ट्रैकिंग से हाथियों के मूवमेंट पर नज़र रखकर उचित प्रबंधन किया गया है। डीएनए प्रोफाइलिंग से अवैध शिकार और हाथीदांत व्यापार में लिप्त लोगों की पहचान संभव हो रही है। ई-पेट्रोलिंग से वन विभाग हाथियों की डिजिटल निगरानी तक कर रहा है, लेकिन बावजूद इन सबके बहुत ही दुखद यह है कि हाल के 5 वर्षों में असम और अन्य राज्यों में 528 हाथियों की मौत हुई, जिनमें से 392 बिजली गिरने और 73 ट्रेन हादसों में मारे गए थे।असम में 2000–2023 के दौरान 1,209 हाथियों और 1,400 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई—ये मौतें ज़्यादातर मानव-हाथी संघर्ष, अवैध विद्युत बाड़ और जंगलों के क्षरण के कारण हुई। 5 वर्षों में पुरी भारत में 528 हाथियों की मृत्यु हुई—इनमें अवैध बाड़, ज़हर, और ट्रेन हादसे जैसे कारण शामिल हैं। अतः हाथियों के संरक्षण के लिए हमें और भी प्रभावी कदम उठाने होंगे।