सुप्रीम कोर्ट का आदेश: दिल्ली-NCR को आवारा कुत्तों से मुक्त करें, सड़कों पर विरोध की लहर, आदेश के विरोध में पिटीशन साइन कराने की मुहीम भी शुरू हुई

Supreme Court's order: Free Delhi-NCR from stray dogs, wave of protest on the streets, campaign to sign petition against the order also started

प्रीति पांडेय

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-NCR में आवारा कुत्तों को सड़कों से हटाकर शेल्टर होम में रखने का आदेश जारी किया है। आदेश के अनुसार, सभी कुत्तों को 6–8 सप्ताह में पकड़कर सुरक्षित आश्रयों में रखा जाएगा। इसमें नसबंदी, टीकाकरण, CCTV निगरानी और 24×7 हेल्पलाइन जैसी सुविधाएं अनिवार्य होंगी। कोर्ट ने साफ चेतावनी दी कि इस प्रक्रिया में बाधा डालने वालों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई होगी।

आदेश के बाद सड़कों पर गुस्सा

फैसले के विरोध में दिल्ली, नोएडा, गुड़गांव और गाजियाबाद में पशु-प्रेमी, NGO कार्यकर्ता और स्थानीय लोग सड़कों पर उतर आए। कई जगहों पर कैंडल मार्च और शांतिपूर्ण धरने आयोजित किए गए। प्रदर्शनकारियों ने तख्तियां उठाकर कहा –

“ये मूक जीव हमारे पड़ोसी हैं, अपराधी नहीं।”

पशु अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह आदेश 2023 के Animal Birth Control (ABC) Rules के खिलाफ है, जिनमें कुत्तों को नसबंदी व टीकाकरण के बाद उनके मूल क्षेत्र में वापस छोड़ने का प्रावधान है।

कई पशुप्रेमी इस आदेश के रिवर्सल के लिए बाकायदा पिटीशन साइन करने की मुहीम चला रहे हैं

राहुल गांधी का बयान

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस फैसले को “दयाहीन और अल्पदृष्टि” करार दिया। उन्होंने कहा:

“ये मूक प्राणी कोई समस्या नहीं हैं जिन्हें मिटा दिया जाए। हमें विज्ञान-आधारित और मानवीय नीति अपनानी चाहिए।”

मेनका गांधी की आलोचना

भाजपा सांसद और पशु-अधिकार कार्यकर्ता मेनका गांधी ने भी आदेश पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि दिल्ली-NCR में लाखों कुत्तों के लिए शेल्टर बनाना “वित्तीय और लॉजिस्टिक रूप से असंभव” है।

“अगर एक भी कुत्ता पकड़ने की कोशिश की तो लोग इसे रोकेंगे, क्योंकि यह न तो मानवीय है और न ही व्यावहारिक। इस पर हजारों करोड़ रुपये लगेंगे और परिणाम भी संदिग्ध होंगे।”

अदालत का तर्क

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बच्चों, बुज़ुर्गों और आम जनता की सुरक्षा सर्वोपरि है। कोर्ट के मुताबिक, लगातार बढ़ रही डॉग-बाइट घटनाएं और रेबीज के खतरे को देखते हुए यह कदम ज़रूरी है।

आगे की चुनौतियाँ

  • इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी – दिल्ली में इतने बड़े पैमाने पर शेल्टर की क्षमता मौजूद नहीं।
  • लागत का बोझ – अनुमानित खर्च ₹3 करोड़ प्रतिदिन सिर्फ भोजन पर, निर्माण और देखभाल को छोड़कर।
  • कानूनी विरोधाभास – यह आदेश ABC नियमों और पूर्व न्यायिक निर्देशों के विपरीत।

यह फैसला सुरक्षा और संवेदनशीलता के बीच टकराव की तस्वीर पेश करता है। जहां एक ओर अदालत सार्वजनिक सुरक्षा की बात कर रही है, वहीं सड़कों पर उतरते लोग इसे मानवीय मूल्यों के खिलाफ मानते हैं। आने वाले हफ्तों में यह साफ होगा कि दिल्ली-NCR इस आदेश को लागू कर पाता है या इसे पुनर्विचार के लिए चुनौती दी जाएगी।