लोकतंत्र की लूट में मीडिया की बेशर्म भूमिका

Media's shameless role in looting democracy

निर्मल रानी

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी द्वारा चुनाव के दौरान होने वाली व्यापक धांधलियों को लेकर चुनाव आयोग पर ज़ोरदार हमला बोला गया है। उन्होंने इस तरह के अनेक प्रमाण पेश किये जिससे यह साफ़तौर पर साबित होता है कि देश में बड़े स्तर पर वोटों की चोरी की जा रही है। राहुल गांधी द्वारा 7 अगस्त 2025 को वोट चोरी से सम्बंधित एक विशाल प्रेस कॉन्फ्रेंस करने के बाद https://votechori.in नाम से एक वेबसाइट लांच की गयी तथा साथ ही यूजर मिस्ड कॉल हेतु 9650003420 नंबर भी घोषित किया गया। इस नंबर या वेबसाइट पर जाकर देश के आम लोग फ़ॉर्म भरकर इस अभियान से जुड़ सकते हैं। यह अभियान मुख्य रूप से भारतीय चुनावों में मतदाता सूची में हेराफेरी, फ़र्ज़ी वोटर्स और चुनाव आयोग की कथित मिलीभगत पर केंद्रित है। वेबसाइट का मुख्य लक्ष्य जनता को “वोट चोरी” के ख़िलाफ़ एकजुट करना है। इसमें चुनाव आयोग से डिजिटल मतदाता सूचियों को सार्वजनिक करने की मांग की गई है, ताकि जनता और राजनीतिक दल इनकी जांच कर सकें।राहुल गांधी का सीधा आरोप है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी चुनावी प्रक्रिया पर व्यवस्थित तरीक़े से हमला कर रही है, और चुनाव आयोग इसमें शामिल है। सत्ता व चुनाव आयोग का यह गठजोड़ “एक व्यक्ति, एक वोट” के सिद्धांत को कमज़ोर कर रहा है।

चुनाव आयोग को कटघरे में खड़ा करने के बाद बजाये इसके कि वह राहुल गांधी के आरोपों की जांच करने की बात करता और देश के मतदाताओं को यह विश्वास दिलाने की कोशिश करता कि देश में चुनाव निष्पक्ष संपन्न होते हैं। उल्टे चुनाव आयोग ने अपनी वेबसाइट ही बंद कर दी ? क्या ऐसा इसलिये नहीं किया गया कि मतदाता चुनाव आयोग से ऐसी धांधलियों के सम्बन्ध में सवाल न पूछ सकें ? जिसका जवाब दे पाना शायद अब चुनाव आयोग के लिये संभव नहीं ? चुनाव आयोग द्वारा ‘वोट चोरी ‘ से सम्बंधित धांधलियों से चूँकि फ़ायदा भाजपा को मिला है और उसी की सत्ता में बार बार वापसी हो रही है इसलिये भाजपा का चुनाव आयोग के पक्ष में दलीलें देना और चुनाव आयोग के बजाये राहुल गाँधी को ही कटघरे में खड़ा करना अनैतिक परन्तु कुछ स्वाभाविक सा प्रतीत होता है। परंतु जिस तरह देश का गोदी मीडिया भी वोट चोरी के इस ‘भ्रष्ट तंत्र ‘ के साथ खुलकर खड़ा है और चुनाव आयोग व भाजपा से भी अधिक बढ़कर वोट चोरी जैसे इस घोर राष्ट्रविरोधी कृत्य की पैरोकारी कर रहा है उसे देखकर देश आश्चर्यचकित हो रहा है।

राहुल गांधी द्वारा वोटर लिस्ट के माध्यम से की जा रही ‘अंधाधुंध वोट चोरी ‘ के आरोपों के बाद इंडियन एक्सप्रेस की टीम ने इस मामले की पड़ताल के लिए बेंगलुरु सेंट्रल लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली महादेवपुरा विधानसभा के कुछ इलाक़ों का दौरा किया। ग़ौरतलब है कि राहुल गांधी ने 7 अगस्त 2025 को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह दावा किया था कि महादेवपुरा विधानसभा के अंतर्गत कुछ क्षेत्रों में 1,00,250 वोटों की चोरी हुई, जिसमें डुप्लीकेट वोटर्स, फ़र्ज़ी पते, और अन्य अनियमितताएं शामिल थीं। इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि उनकी टीम ने महादेवपुरा के कुछ पतों की जांच की, जहां राहुल गांधी ने फ़र्ज़ी वोटरों के होने का दावा किया था। उदाहरण के लिए, एक मामले में 80 वोटरों के एक ही पते पर रजिस्ट्रेशन होने की बात सामने आई थी। इसके अतिरिक्त, बीबीसी व अन्य मीडिया संगठनों की टीम ने भी महादेवपुरा क्षेत्र में उस घर की पड़ताल की, जहां एक कमरे के मकान में कथित तौर पर 80 वोटर रजिस्टर्ड थे।

परन्तु भाजपा व चुनाव आयोग के साथ ‘गोदी मीडिया ‘ भी क़दम ताल कर रहा है। इसका कारण किसी विपक्षी नेता या गोदी मीडिया के आलोचकों ने नहीं बल्कि स्वयं गोदी मीडिया के ही एक अहम पत्रकार सुमित अवस्थी ने अपने एक पॉडकास्ट साक्षात्कार में यह बता ही दिया कि भारतीय मीडिया को “गोदी मीडिया” क्यों कहा जाता है। सुमित अवस्थी ने बताया कि भारतीय मीडिया को “गोदी मीडिया” इसलिए कहा जाता है क्योंकि ‘न्यूज़ चैनल और मीडिया संस्थान अपनी आय के लिए सरकार से मिलने वाले विज्ञापनों पर बहुत हद तक निर्भर हैं’। उन्होंने कहा कि ‘टीवी चैनलों की आय का 70-80% हिस्सा सरकारी विज्ञापनों से आता है, जिसके कारण मीडिया सत्ता के ख़िलाफ़ खुलकर बोलने में हिचकता है’। अवस्थी के अनुसार, ‘यह आर्थिक निर्भरता मीडिया को मजबूरी में “गोदी मीडिया” बनाती है, क्योंकि सवाल उठाने की आज़ादी सीमित हो जाती है।

अवस्थी ने ही यह भी स्वीकार किया कि सत्ताधारी दल विज्ञापनों के माध्यम से चैनल मालिकों पर दबाव बनाते हैं, जिससे पत्रकारिता की निष्पक्षता प्रभावित होती है।’ तो सवाल यह है कि क्या 2014 से पहले भी मीडिया सरकार का ऐसा ही भोंपू था जैसा आज है ? क्या उस समय इन मीडिया घरानों को विज्ञापन का लालच नहीं था ? याद कीजिए उस अन्ना आंदोलन का दौर जिसके कंधे पर सवार होकर भाजपा आज सत्तारूढ़ है। उस समय तो इसी मीडिया ने सत्ता विरोधी माहौल देश में पैदा किया था?

दरअसल ‘गोदी मीडिया ‘ की सच्चाई इससे भी ज़्यादा ख़तरनाक है। सत्ता की डफ़ली बजाने वाला अधिकांश मीडिया देश के अडानी व अंबानी जैसे उन बड़े उद्योग घराने की मिलकियत बन चुके हैं जिनके हितों में सत्ता दिन रात काम किया करती है और उनके हितों को संरक्षण देती है। अन्यथा जो मीडिया कभी 90 /100 साल के बुज़ुर्ग को किसी के कंधे पर बैठ कर वोट डालते दिखाया करता था, या किसी अपाहिज व्यक्ति को लाइन में लगा दिखाता था,उसे यही नहीं पता चल सका की भारत के बिहार के सीवान,भागलपुर और गोपालगंज में कथित तौर पर 124 ,120 और 119 वर्ष की ‘महिला वोटरों’ ने भी ‘मतदान’ कर लोकतंत्र में अपनी ‘अहम भूमिका’ निभाई है ? और इसी 124 वर्षीय कथित मतदाता मिन्ता देवी के नाम की टी शर्ट संसद में पहन कर विपक्षी सांसदों ने चुनाव आयोग का वोटर लिस्ट के नाम पर हो रहा ‘तमाशा’ उजागर किया। सच पूछिये तो लोकतंत्र की लूट में मीडिया की इस बेशर्म भूमिका को देश कभी मुआफ़ नहीं करेगा।