दीपक कुमार त्यागी
देश में प्रदूषण की मार झेल रही विभिन्न नदियों को स्वच्छ बनाने के लिए केन्द्र व राज्य सरकारों के स्तर पर विभिन्न प्रकार के छोटे-बड़े प्रोजेक्टों के माध्यम से प्रदूषण मुक्त करने का कार्य चल रहा है। हालांकि यह बात अलग है कि कहीं यह कार्य अभी तक भी केवल फाइलों में ही चल रहा है और कहीं धरातल पर कछुए की धीमी रफ्तार के साथ कार्य चल रहा है। धरातल पर आलम यह है कि देश की राजधानी दिल्ली से चंद किलोमीटर दूर होकर गुजरने वाली पोराणिक व ऐतिहासिक महत्व वाली हरनंदी (हिंडन) नदी मृतप्राय होने के कगार पर है और हमारा सिस्टम तमाशबीन बनकर बैठा हुआ तमाशा देख रहा है। सिस्टम व आम जनमानस की उपेक्षा का शिकार होने के चलते पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जनपदों से होकर गुजरने वाली हरनंदी (हिंडन) नदी भी आज उन नदियों में शुमार है जो लापरवाही के चलते आज एक गंदे नाले में तब्दील होकर रह गयी है। वैसे देखा जाये तो मुख्य रूप से हरनंदी (हिंडन) नदी वर्षा पर निर्भर रहने वाली एक बड़ी बरसाती नदी है, जो कि उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जनपद में शाकुंभरी देवी रेंज के ऊपरी हिस्से शिवालिक रेंज से निकलती है। हरनंदी (हिंडन) नदी की काली नदी व कृष्णा प्रमुख सहायक नदी है, जो स्वयं आज इतना अधिक प्रदूषित है कि बहुत सारे लोग तो इनको नदी की जगह गंदा नाला ही मानते हैं। हरनंदी (हिंडन) नदी से जुड़े कुछ आंकड़ों की बात करें तो इस नदी का अनुमानित जलग्रहण क्षेत्र 7,083 वर्ग किलोमीटर (2,735 वर्ग मील) है और यह यमुना नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है, जो कि उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जनपद में पहुंचकर यमुना नदी में मिल जाती है।
*”आज गंगा -यमुना के दोआब के बीच बहने वाली हरनंदी (हिंडन) नदी की हालत यह हो गयी है कि उसमें जलीय जीव लगभग खत्म हो चुकें हैं, हमारे सिस्टम की जबरदस्त लापरवाही के चलते अब यह नदी शहरों का गंदा पानी व औद्योगिक कचरों के भार को ढोती हुए एक बड़े गंदे नाले के रूप नज़र आती है, अब तो प्रदूषण के चलते नदी के जल का आलम यह हो गया है कि नदी का जल तेजी से भूजल को भी प्रदूषित करने का कार्य कर रहा है।”*
वैसे देखा जाये तो पिछले कई वर्षों से हरनंदी (हिंडन) नदी देश की मीडिया की निरंतर सुर्खियों में बनी हुई है, क्योंकि कभी इसको निर्मल बनाने के लिए केन्द्र व राज्य सरकार पहल करती है, कभी इसकी स्वच्छता के लिए एनजीटी पहल करती है, कभी इसकी स्वच्छता के लिए विभिन्न जनपदों का जिला प्रशासन पहल करता है और कभी देश की विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाएं इसकी स्वच्छता के लिए पहल करती है, जिसके चलते हरनंदी (हिंडन) नदी अक्सर मीडिया की चर्चाओं में रहती है।
लेकिन हरनंदी (हिंडन) नदी के मौके पर जाकर हालात देखें तो धरातल पर स्थिति ‘ढ़ाक के तीन पात’ से ज्यादा कुछ नहीं है, नदी के स्वच्छता अभियान के नाम पर ‘थोथा चना बाजे घना’ की नीति पर काम चल रहा है, किसी भी स्वच्छता के अभियान को लंबा चलाकर धरातल पर कार्य नहीं किया जा रहा है। नदी की सफाई के लिए सिस्टम के द्वारा चलाए गए अभी तक के अभियान केवल क्षणिक इवेंट बनकर सीमित रह गये हैं।
सिस्टम के द्वारा हरनंदी (हिंडन) नदी के लिए चलाए गए स्वच्छता अभियानों की हालात देखकर यह स्पष्ट है कि देश में नदियों की सफाई के नाम होना वाले कार्य मीडिया की सुर्खियों में बनने वाले एक क्षणिक इवेंट से ज्यादा कुछ नहीं है। इन अभियानों में नदी की स्वच्छता के लिए मौके पर सिस्टम के द्वारा बड़ी-बड़ी घोषणाएं की जाती है, लेकिन ना जाने क्यों वह घोषणाएं बीतते हुए समय के ठंडे बस्ते में चली जाती हैं। यही हाल हरनंदी (हिंडन) नदी के लिए समय-समय पर चले स्वच्छता अभियानों की है। कभी तो उत्तर प्रदेश सरकार हरनंदी (हिंडन) नदी को स्वच्छ करने की बात करती है, लेकिन वह उसमें डलने वाले गंदे पानी के नालों तक को भी वह बंद नहीं करवा पाती है, कभी वह हम लोगों को सपना दिखाया जाता है कि हरनंदी (हिंडन) नदी को साफ करके उसके दोनों किनारे की तरफ भूमि को कब्ज़ा मुक्त करवाकर उस पर वृक्षारोपण करके भविष्य में भूमि को अवैध कब्जे से मुक्त रखने व जल प्रवाह को गति प्रदान करने का कार्य किया जायेगा। उत्तर प्रदेश सरकार ने सपना दिखाया था कि हरनंदी (हिंडन) नदी के दोनों किनारों पर सौंदर्यीकरण करके लभभग 37 किलोमीटर लंबा एक बहुत ही शानदार रिवर फ्रंट बनाया जायेगा। लेकिन अफसोस की बात यह है कि धरातल इनमें से कोई भी कार्य होता दिखता नज़र नहीं आता है। उसके उल्ट उत्तर प्रदेश सरकार का तंत्र तो हरनंदी (हिंडन) नदी के संदर्भ में एनजीटी के द्वारा दिये गये आदेशों तक का सही ढंग से पालन ना होने के चलते आयेदिन एनजीटी से फटकार तक खाता रहता है।
लेकिन आज हम लोगों के सामने विचारणीय तथ्य यह है कि जिस तरह से देश दुनिया में आबादी बहुत तेजी के साथ बढ़ रही है, वहीं जीवन के लिए बेहद जरूरी स्वच्छ जल के स्रोत बहुत तेजी के साथ दिन प्रतिदिन घटते जा रहे हैं, आखिर हम समय रहते इस हालात पर नियंत्रण करने के लिए कार्य क्यों नहीं कर रहे हैं। जबकि देश व दुनिया का एक छोटा सा समझदार बच्चा भी यह अच्छी तरह से जानता है कि ‘जल ही जीवन है’ फिर भी हमारे देश का सिस्टम धरातल पर नदियों को स्वच्छ बनाने के कार्य की गति को ना जाने क्यों गति नहीं दे पा रहा है, देश में नदी स्वच्छता अभियान की गति ना जाने क्यों बेहद धीमी है। सरकार, सिस्टम व हम लोगों को समय रहते यह समझना होगा कि जिस तेजी के साथ देश में भूजल का स्तर गिर रहा है और इस्तेमाल योग्य स्वच्छ जल के स्रोत घट रहे हैं, भविष्य में हम लोगों को स्वच्छ पेय जल उपलब्ध करवाना किसी भी सरकार के सामने एक बहुत बड़ा चुनौती पूर्ण कार्य होगा, इसलिए समय से समझ जाये कि ‘जल है तो ही कल है’ भविष्य के लिए जल को स्वच्छ रखें और एक-एक बूंद बचाएं यह सरकार सिस्टम व हम सभी लोगों का दायित्व है।।