
नरेंद्र तिवारी
भारत अपनी स्वतन्त्रता की 78 वीं वर्षगांठ बना रहा है। हम खुशनसीब है की आजाद हवाओं में सांस ले रहे है। एक समय था जब ब्रिटिश हुक्मरान भारत पर राज कर रहे थै, सिर्फ राज ही नहीं कर रहे थै भारतीयों का शोषण, दमन अत्याचार और अनाचार के चाबुक चला रहे थै। भारत गुलाम देश था, जिसपर अंग्रेज शासन कर रहे थै, हम भारतीय शोषित दमित और पीड़ित थै। अनवरत संघर्ष के परिणामस्वरूप 15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजी शासन की लम्बी गुलामी से मुक्त हुआ था। एक देश का ब्रिटिश शासन के अधीन बरसों तक गुलाम रहने और उससे मुक्ति के लिये संघर्ष करने की कहानी भारत के स्वतन्त्रता संग्राम की जीवंत कहानी है। भारत का अंग्रेजी शासन से आजादी प्राप्त करने का संघर्ष भारत का राष्ट्रीय आंदोलन कहलाता है। गुलामी से मुक्ति के आंदोलन में देश के लाखों राष्ट्रभक्तों ने अपने प्राणों की आहुति दी है। अंग्रेजी शासन का भारत की जनता के प्रति घृणास्पद रवैय्या था। भारत के लोगो को दोयम दर्जे का गुलाम समझने का ब्रितानी नजरिया उनके अत्याचार, शोषण और जुल्म की लम्बी फहरिस्त है। आजादी सैकड़ो बलिदानो के बाद हासिल हुई है।जिसकी महत्ता को समझना हर भारतीय नागरिक का परम दायित्व है। आज जब हम संविधान प्रदत्त स्वतन्त्रताओं या अधिकारों की बात करतें है, तब हमारे जहन में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये किये गए संघर्षो का ज्ञान भी होना चाहिए। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का इतिहास जाने बगैर आजादी के महत्व को समझ पाना आसान नहीं होगा। ब्रिटिश शासन से भारत की मुक्ति की लड़ाई का यह राष्ट्रीय आंदोलन 1857 से शुरू हो गया था। इसे भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम भी कहा जाता है, जिसके राजनितिक, सामजिक, आर्थिक और धार्मिक कारण शामिल है, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी की विस्तारवादी नीति के तहत राज्यों के विलय की नीति और भारतीय सहायक संधि भारतीय शासको में असंतोष का कारण बनी।ब्रिटिश शासन ने भारतीय अर्थ व्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया। भारतीय उद्योगो को नष्ट कर दिया गया, किसानों से अत्यधिक लगान वसुला गया। इससे किसानो की आर्थिक स्थिति दयनीय हो गयी। अंग्रेजो द्वारा भारतीय संस्कृति और धर्म में हस्तक्षेप से नाराज चल रहे समाज को 1857 एनफील्ड राइफल के कारतुसों गाय और सूअर की चर्बी के इस्तेमाल की अफवाह ने विद्रोह को भड़का दिया। इन कारतुसों को मुंह से खोलना पड़ता था, जिससे हिन्दू और मुस्लिमों की भावनाओं को ठेस पहुंची। 1857 का विद्रोह एक सैनिक विद्रोह था। इस प्रथम राष्ट्रीय आंदोलन के शहीदों में मंगल पांडे, रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफ़र, नाना साहब, कुवंरसिंह आदि वीरों ने अपनी जान की बाजी लगाई। इस आंदोलन से अंग्रेजो के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी विद्रोह की भावना का निर्माण हुआ 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई जिसने स्वतन्त्रता आंदोलन को संगठित करने और ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक मंच प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कांग्रेस ने विभिन्न चरणों में स्वतन्त्रता के लिये संघर्ष किया, जिसमे नरमपंथी, उग्रवादी और गांधीवादी चरण शामिल थै। महात्मा गांधी के नैतृत्व में कांग्रेस ने सविनय अवज्ञा, असहयोग और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे अहिंसक आंदोलन चलाए। राष्ट्रीय आंदोलन की महत्वपूर्ण घटनाओ ने जिसमे बंगाल विभाजन, जलियावाला बाग हत्याकांड जैसी घटनाओ ने स्वतन्त्रता सग्राम को गति प्रदान कर दी थी। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में सुभाष चंद्र बोस, भगत सिँह, सुखदेव, चंद्र शेखर आजाद राजगुरु जैसे क्रान्तिकारीयों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्वतन्त्रता संग्राम ने भारतीयों में राष्ट्रीय भावनाओं को मजबूत किया। भारत के हर प्रांत में राष्ट्रीय आंदोलन फ़ैल गया अंग्रेजो भारत छोड़ो के नारों से हिंदुस्तान की गालिया गूंज उठी, विदेशी वस्तुओं और प्रतिको का बहिस्कार किया जाने लगा। भारत को 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजो की लम्बी दासता से मुक्ति मिली। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने दिल्ली के लाल किले पर भारतीय तिरंगा फहराया और भारत की आजादी की घोषणा कर दी। जब से प्रतिवर्ष भारत में 15 अगस्त को स्वतन्त्रता दिवस के रूप में मनाए जाने की परम्परा है। आजाद भारत में 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ। भारत के संविधान को लागू होने के इस दिवस को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन देश के राष्ट्रपति राजपथ अब कर्तव्य पथ पर आयोजित कार्यक्रम में ध्वज फहराते है। गणतंत्र दिवस जहाँ भारत की संविधान सभा द्वारा निर्मित संविधान के लागू होने का दिवस है, तो स्वतन्त्रता दिवस ब्रिटिश शासन से मुक्ति का प्रतिक है। आजादी लम्बे और कढ़े संघर्ष और सैकड़ो बलिदानों के उपरांत प्राप्त हुई है। इस आजादी को कायम रखना हर भारतीय का परम दायित्व है। इस हेतु राष्ट्र के प्रति प्रेम, निष्ठा और राष्ट्रीय प्रतिको के प्रति गौरव की भावना का होना बहुत जरुरी है। भारत को ज़ब हम दुनियाँ का सरताज बनना देखना चाहते है, तब हम तय करें की एक अनुशासित भारतीय नागरिक होने की अपनी भूमिका का निर्वहन करेंगे। मजबूत नागरिको से ही मजबूत राष्ट्र का निर्माण सम्भव है। राष्ट्रीयता से ओतप्रोत भारतीय धर्म, जाति, भाषा, प्रांत के बंधनों के ऊपर राष्ट्र प्रेम को रखता है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहदुर शास्त्री जिन्होंने जय जवान जय किसान का नारा दिया था। इससे आगे प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान को जोड़ा। इन नारों का आशय सीमा पर जवान, खेतो में किसान और देश में वैज्ञानिक अपने सामूहिक प्रयासों से राष्ट्र की तरक्की विकास में सहायक हो सकते है। इस नारे की भावना का वास्तविक अर्थ हर नागरिक का राष्ट्र के प्रति दायित्व को निभाने से है। शिक्षक अपने छात्र को ज़ब एक अच्छा नागरिक बनाता है तब वह राष्ट्र निर्माण में सहायता दे रहा होता है, एक इंजिनियर अपने निर्माण से शासकीय सेवक अपने निष्ठापूर्वक किये कार्यों से एक आमनागरिक राष्ट्रीय नेताओं, प्रतिको का सम्मान कर, राष्ट्रीय सम्पत्ति की रक्षा कर राष्ट्र निर्माण में अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर सकता है। राष्ट्रप्रेम से परिपूर्ण समाज राष्ट्र के विकास की इबारत लिख रहा होता है। हिन्द के सपनो को चरितार्थ करता हुआ समाज स्वतन्त्रता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार के नारो को चरितार्थ करता समाज भारत निर्माण को गति दे रहा होता है।