… ताकि किश्तवाड़ और धराली जैसी आपदाओं से बचा जा सके !

… so that disasters like Kishtwar and Dharali can be avoided!

सुनील कुमार महला

दिन-ब-दिन प्रकृति मानव को अपना रौद्र रूप दिखा रही है। भूस्खलन हो, भू-धंसाव हो, बाढ़ हो(अतिवृष्टि), बादल फटना हो, अनावृष्टि हो(सूखा), भूकंप हो या सुनामी सब कहीं न कहीं, कोई माने या नहीं मानें, प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से मानवीय गतिविधियों से ही जुड़े हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि बादल फटने की घटनाएँ अब केवल प्राकृतिक आपदाएँ भर नहीं रहीं, बल्कि इनमें मानवीय लापरवाहियों और अवैज्ञानिक विकास कार्यों की भी बड़ी भूमिका है।सच तो यह है कि ऐसी घटनाएं मानव जनित संकट हैं। आज के समय में जलवायु परिवर्तन से अत्यधिक वर्षा की घटनाएँ बढ़ी हैं। पहाड़ी ढलानों पर अचानक अत्यधिक पानी गिरने से वहां की मिट्टी ढीली हो जाती है और लैंडस्लाइड, फ्लैश फ्लड का खतरा बढ़ जाता है। मानवीय गतिविधियों या कारणों की बात करें, तो कहना ग़लत नहीं होगा कि आज के समय में अनियंत्रित निर्माण कार्य प्राकृतिक आपदाएं जन्म ले रहीं हैं। आज नदियों और ढलानों पर घर, होटल, सड़कें बनाने से जलधाराओं के प्राकृतिक मार्ग मानव ने बाधित कर दिए हैं। सच तो यह है कि मानव हद से ज्यादा स्वार्थी और लालची होता चला जा रहा है।वृक्षों की अंधाधुंध कटाई की जा रही है और जंगलों के घटने से पानी रोकने की क्षमता खत्म हो गई है। पर्यटन का दबाव भी है। हर साल लाखों की संख्या में आने वाले तीर्थयात्री और पर्यटक स्थानीय पारिस्थितिकी पर बोझ( वायु प्रदूषण, मिट्टी प्रदूषण, जल प्रदूषण, प्लास्टिक प्रदूषण) डालते हैं। यह बहुत ही दुखद है कि आज संवेदनशील क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन की ईमानदारी और पूर्ण इच्छाशक्ति के पूर्व तैयारियां नहीं की जातीं। अक्सर यह देखा गया है कि विभिन्न तीर्थयात्राओं व मेलों के दौरान भीड़ नियंत्रित करने और सुरक्षित मार्ग बनाने की अनदेखी होती है। आज सड़कें, घर और होटल और विभिन्न निर्माण कार्य बिना भू-वैज्ञानिक अध्ययन किए ही निर्माण कर लिए जाते हैं। प्राकृतिक संसाधनों का अतिक्रमण किया जाता है। ग्रीन टूरिज्म की ओर हमारा ध्यान कम ही होता है और इसका परिणाम हमें भुगतना पड़ता है। हाल ही में हमने देखा कि उत्तरकाशी के धराली में जान-माल को बहुत क्षति पहुंची। हमने देखा कि धराली में बीते पांच अगस्त को खीरगंगा से आई बाढ़ ने मिनटों में बाज़ार, होटल और घर बहा दिए।कई लोग असमय काल के ग्रास बन गए।आंकड़े बताते हैं कि (विभिन्न सरकारी एजेंसियों के प्रारंभिक अनुमान के मुताबिक) धराली क्षेत्र में 500 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ है। धराली में बादल फटने से हुई तबाही से लोग अभी उबरे भी नहीं थे कि जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के चशोती-पड्डर(नियंत्रण रेखा के पास स्थित गांव) में भी ठीक वैसा ही हादसा हो गया। बादल फटने से आई बाढ़ ने तबाही मचा दी। अचानक आए सैलाब में साठ से ज्यादा लोगों की जान चली गई, और सैकड़ों लोग लापता हो गए। जानकारी के अनुसार यह बादल चशोती में फटा, जो मचैल माता मंदिर के मार्ग पर स्थित है। यह आखिरी गांव है, जहां किसी गाड़ी से पहुंचा जा सकता है। खबरों में आया है कि हादसे के समय मचैल माता की यात्रा चल रही थी, जिसकी वजह से रूट पर हजारों श्रद्धालु मौजूद थे। घटना के बाद मंदिर की वार्षिक यात्रा को स्थगित कर दिया गया और रेस्क्यू अभियान चलाए गए। वास्तव में उत्तरकाशी और किश्तवाड़ में हुईं प्राकृतिक आपदाएं मानव के लिए एक बड़ा सबक है।चशोती गांव गांव पड्डर घाटी में पड़ता है और यहां अठारह सौ से लेकर करीब चार हजार मीटर तक ऊंचे पहाड़ हैं। जब भी यहां बारिश होती है तो पानी पहाड़ों से होते हुए बहुत ही तीव्र गति से नीचे आता है। स्थानीय प्रशासन को इस बात की जानकारी भी है, लेकिन बावजूद इसके जिला प्रशासन द्वारा आपदा बचाव की तैयारियां नहीं की गईं ,यह वास्तव में बहुत ही दुखद है। इन दिनों पूरे भारत में जोरदार बारिश हो रही है। आपदा प्रबंधन विभाग व प्रशासन को बारिश व किसी भी आपदा के लिए पूर्व में ही माकूल इंतजाम करने चाहिए और सदैव तैयार रहना चाहिए। हालांकि, यह भी नहीं है कि आपदा प्रबंधन विभाग, स्थानीय प्रशासन और सरकारें आपदाओं को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठातीं हैं, लेकिन समय रहते यदि पूर्ण ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा, सजगता और सतर्कता बरतकर निर्णय ले लिए जाएं तो बहुत हद तक जान-माल का नुक़सान कम तो किया ही जा सकता है लेकिन सभी तभी चेतते हैं,जब ऐसे हादसे घटित हो जाते हैं,यह बहुत ही दुखद है। गौरतलब है कि साढ़े नौ हजार फुट ऊंचाई पर स्थित मचैल माता मंदिर जाने के लिए हर वर्ष बड़ी संख्या में लोग आते हैं। यहां यक्ष प्रश्न यह उठता है कि स्थानीय प्रशासन ने यहां लंगर और दुकानें लगाने की अनुमति आखिर क्यों दी, यह जानते हुए भी कि जम्मू-कश्मीर में बादल फटने की घटनाएं हर वर्ष बढ़ रही हैं।इधर, हिमाचल प्रदेश में आफत की बारिश थम नहीं रही है। राज्य के कुल्लू जिले में दो अलग-अलग जगह से बादल फटने की खबरें आई हैं। जानकारी के अनुसार कुल्लू के बंजार और आनी निरमंड सब डिवीजन के ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में ये घटनाएं हुई हैं।बादल फटने से तीर्थन घाटी और आसपास के कई निचले ग्रामीण इलाकों में पानी और मलबा भर गया। हालांकि, प्रशासन ने सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कई गांवों को खाली करा लिया, लेकिन पहाड़ी इलाकों विशेषकर उत्तराखंड, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में इस तरह की घटनाओं से अब सजग होने और इससे निपटने की जरूरत है।यह बात ठीक है कि कुदरत के कहर जैसे कि बाढ़, भूकंप, बादल फटना, भूस्खलन, जंगल की आग, सूखा आदि को पूरी तरह रोका नहीं जा सकता, लेकिन इंसान सतर्कता, तैयारी और सही जीवनशैली से इसका असर ज़रूर कम कर सकता है। वास्तव में कुदरत अगर अपना क्रोध प्रकट कर रही है, तो इसे समझने और चेतने का समय है। हमें यह बात अपने जेहन में रखनी चाहिए कि कुदरत के कहर से बचना केवल सरकार की नहीं, हर नागरिक की जिम्मेदारी है। अगर हम पर्यावरण का सम्मान करें और सावधानी और सतर्कता अपनाएँ, तो बड़े हादसों को काफी हद तक टाला जा सकता है।