किले से टीस , मैदान में नीतीश

Pain from the fort, Nitish in the field

प्रेम प्रकाश

भारत समय प्रबंधन से ज्यादा काल चिंतन का देश है, इसलिए समय को लेकर एक व्यापक और समावेशी समझ हमारे यहां है। विमर्श की भारतीय परंपरा में इसलिए देशकाल की चर्चा भी होती है। ऐसे में जिस राष्ट्रीय व वैश्विक समकाल और देशकाल के बीच भारत ने अपना 79वां स्वाधीनता दिवस मनाया, वह महत्वपूर्ण है। पक्ष-विपक्ष की राजनीति से आगे इस बदले देशकाल को देखें तो कुछ बातें साफ नजर आती हैं। पहली बात तो यही कि बीते एक दशक में देश का सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक चरित्र जिस तरह बदला है, उसने एक नए भारत का साक्षात्कार कराया है। दूसरी अहम बात यह कि विभाजनकारी, नफरती और अलगाव की सियासत का एक्सपायरी डेट अब नजदीक आ चुका है। आज देश के जन-गण-मन को अगर आज कोई बात खींच रही है तो वो है विरासत के साथ विकास की बात। इस लिहाज से देखें तो लाल किले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण का कंपास तो हम समझ पाएंगे ही, साथ ही हम यह भी देख पाएंगे कि दिल्ली से हजार किलोमीटर दूर चुनावी राज्य बिहार में जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब तिरंगा फहराते हैं तो उनका फोकस किन बातों पर है।

अखबारों और टीवी चैनलों के लिए भले यह सुर्खी हो कि पीएम मोदी ने ऑपरेशन सिंदूर पर संसद में अपनी बात कहने के बाद फिर से एक बार अपनी रक्षा प्रतिज्ञा दोहराई है। पर ये बातें बस एक घटनाचक्र का हिस्सा हैं, जिस पर स्वाधीनता दिवस जैसे मौके पर बोलते हुए प्रधानमंत्री देश की के जवानों और आमजनों को एक गर्वीले अहसास से भरते हैं। बड़ी बातें दूसरी हैं, जिसमें उन्होंने देश की भावी दिशा और ठोस कदमों के बारे में बताया है। इस सिलसिले में उन्होंने स्पेस और उद्यम क्षेत्र में सुधार के साथ आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को दोहराया, तो वहीं देश के युवाओं के लिए उठाए जा रहे कदमों की भी बात कही। इस मौके पर उन्होंने खासतौर पर कहा कि देश को विकसित बनाने के लिए हम अब समुद्र मंथन की ओर भी जा रहे हैं और हम समुद्र के भीतर के तेल और गैस के भंडार को खोजने की दिशा में मिशन मोड में काम करना चाहते हैं। प्रधानमंत्री की ये बातें अमेरिका के शुरू किए गए टैरिफ वार के बीच भारत के विवेक और भविष्य के रोडमैप को सामने रखती हैं।

उन्होंने स्पष्टता के साथ कहा कि विकसित भारत का आधार है आत्मनिर्भर भारत। अगर कोई दूसरों पर बहुत अधिक निर्भर हो जाता है, तो स्वतंत्रता का प्रश्न ही धुंधला पड़ने लगता है। यह भी कि आत्मनिर्भरता केवल आयात, निर्यात, रुपये, पाउंड या डॉलर तक सीमित नहीं है। इसका अर्थ कहीं अधिक व्यापक है। आत्मनिर्भरता सीधे हमारी ताकत से जुड़ी है।

देश के उद्यम और व्यापार क्षेत्र का भरोसा जीतने और नई चुनौतियों के बीच उनके भरोसे को बहाल रखने के लिए उन्होंने कहा, ‘इस बार दोहरी दिवाली मनेगी। …पिछले आठ वर्षों में, हमने जीएसटी में एक बड़ा सुधार किया है। अब नेक्स्ट जनरेशन जीएसटी रिफॉर्म लेकर आ रहे हैं।’ आर्थिक सुधार के इस बड़े कदम के एलान के साथ सरकार इस बात का भरोसा देश को दिला रही है कि नए वैश्विक संकट के बीच आगे बढ़ने की राह उसने खोज ली है। निश्चित रूप से यह रास्ता आत्मनिर्भरता और स्वदेशी का है।

उद्योग और व्यापार के क्षेत्र में मंदी की आशंका के बीच एक बड़ा खतरा युवाओं के मनोबल टूटने का है। अगर ऐसा हुआ तो आत्मनिर्भरता तो दूर देश गहरी निराशा के गर्त में डूब जाएगा। लिहाजा लाल किले की प्राचीर से पीएम ने जब कहा कि आज से प्रधानमंत्री विकसित भारत रोजगार योजना लागू हो रही है तो साफ लगा कि सरकार अपनी प्रतिबद्धता और प्राथमिकता दोनों को समझ रही है। पीएम ने युवाओं के लिए जिस योजना की बात कही उसका एक चमकदार पक्ष यह भी है कि इसके तहत निजी क्षेत्र में पहली नौकरी पाने वाले नौजवान को 15 हज़ार रुपये सरकार की तरफ़ से दिए जाएंगे। यही नहीं, जो कंपनियां रोजगार के नए अवसर ज्यादा पैदा करेंगी उन्हें भी प्रोत्साहन राशि दी मिलेगी।

जिस एक मुद्दे पर बात करते हुए प्रधानमंत्री सियासी गोटी खेलते साफ नजर आए, वो है देश में घुसपैठियों की समस्या के कारण बदलते डेमोग्राफी की। जिस हाई पावर डेमोग्राफी मिशन शुरू करने की बात उन्होंने कही, उसका अर्थ निश्चित तौर पर एक दिन पहले एसआईआर मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की हिदायतों से जोड़ा जाएगा। घुसपैठ देश में निश्चित रूप से एक बड़ी समस्या रही है, पर इससे चुनावी गणित साधने की कोशिश के खतरे भी हम देख चुके हैं। इस मौके पर राष्ट्रीय स्वयंस्वक संघ के सौ साला सफर पर फूल बरसाने की उनकी शाब्दिक कोशिश भी अनपेक्षित रही, क्योंकि यह विचार और मंत्वय के इकहरेपन को दर्शा गया।

गौरतलब है कि अगले कुछ दो महीने में बिहार विधानसभा का चुनाव होगा। गहन मतदाता पुनरीक्षण का मामला भी वहीं से गरमाया है। इसमें सुप्रीम कोर्ट की अब तक की सुनवाई में केंद्रीय निर्वाचन आयोग की भूमिका और मंशा दोनों पर सवाल उठे हैं। चूंकि सारा पेंच बिहार की चुनावी राजनीति का है तो इस 15 अगस्त पर लोगों की निगाह स्वाभाविक तौर पर पटना में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भाषण पर भी रही। अच्छी बात यह कि इस चुनावी सूबे के मुख्यमंत्री ने अपने भाषण को पूरी तरह विकास पर केंद्रित रखा। वे इससे पहले भी लगातार बीते दो दशक में बिहार में आए बदलाव और विकास से जुड़ी उपलब्धियों की बात करते रहे हैं। वैसे इस मौके पर उनकी यह यह नई घोषणा जरूर प्रदेश के युवाओं को उत्साहित कर गया होगा कि राज्य स्तरीय सरकारी नौकरी की सभी प्रतियोगिता परीक्षाओं का परीक्षा शुल्क अब सौ रुपए होगा। यही नहीं, मुख्य परीक्षा में शामिल होने वाले अभ्यर्थियों को अब कोई परीक्षा शुल्क नहीं देना होगा। अगले पांच वर्षों में एक करोड़ युवाओं को नौकरी और रोजगार देने के बिहार कैबिनेट के फैसले के बाद राज्य के युवाओं के लिए निश्चित तौर पर यह बड़ी खुशखबरी है। इस मौके पर नीतीश ने प्रधानमंत्री का भी जिक्र किया और कहा कि प्रदेश के विकास में केंद्र सरकार से मिल रही योजनागत और आर्थिक मदद से बिहार विकास के रास्ते पर तेजी से आगे बढ़ रहा है।

इस बार 15 अगस्त को दिल्ली के लाल किले और पटना के गांधी मैदान में मौसम का रंग जरूर एक जैसा था, पर इस अवसर पर दिए गए दो अहम संबोधनों के बीच जो एक समानता दिखती है कि वह यह कि देश की राजनीति को विकास और युवाओं से दूर करने का जोखिम अब सभी समझते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो जातीय और सामाजिक अलगाव के बूते अब सियासी शह और मात के दिन अब लद चुके हैं।