कीर्तिमान अमित शाह का,पर चुनौतियां अब भी हैं

Amit Shah has achieved a milestone, but challenges still remain

अमित शाह ने बीते दिनों देश के सबसे लंबे समय तक गृह मंत्री पद पर रहने का कीर्तिमान बना लिया है। उनकी सरपरस्ती में देश ने जम्मू-कश्मीर से संविधान के अनुच्छेद 370 को उखाड़ फेंका गया। वे कई मोर्चों पर काम कर रहे हैं। उनकी क्षमताएं निर्विवाद हैं। क्या वे आने वाले समय में देश को तमाम आंतरिक चुनौतियों से राहत दिलवा पाएंगे, इसी बिंदु का गहराई से अध्ययन करता यह आलेख।

विवेक शुक्ला

केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह जब राजधानी में अपने 6-ए कृष्ण मेनन मार्ग के सरकारी आवास से नॉर्थ एवेन्यू के अपने दफ्तर में जा रहे होते होंगे तो उनके जेहन में जम्मू- कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों में स्थायी शांति, नक्सली समस्या, साइबर अपराध, विदेशी नागरिकों की देश में घुसपैठ जैसे बहुत सारे गंभीर मसले चल रहे होते होंगे। उन्हें इस बात का संतोष भी होता होगा कि उनकी कोशिशों के चलते जम्मू-कश्मीर से संविधान के अनुच्छेद 370 को हटा दिया गया। संयोग देखिए कि अमित शाह उसी सरकारी आवास में रहते हैं, जहां पर एक दौर में महान आर्किटेक्ट हरबर्ट बेकर रहते थे जिन्होंने नॉर्थ ब्लॉक का डिजाइन बनाया था।

अमित शाह ने बीती 5 अगस्त को भारत के सबसे लंबे समय तक गृह मंत्री के रूप में सेवा देने का कीर्तिमान स्थापित किया, जब उन्होंने 2,258 दिनों के कार्यकाल के साथ भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी के 2,256 दिनों के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ दिया। 30 मई, 2019 को गृह मंत्रालय का कार्यभार संभालने के बाद से, अमित शाह ने अपने दृढ़ नेतृत्व, रणनीतिक दृष्टिकोण और निर्णायक फैसलों के माध्यम से भारत की आंतरिक सुरक्षा, कानून व्यवस्था और राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण बदलाव लाए हैं। उनका दफ्तर वहां पर ही है, जहां पर सरदार पटेल और लाल कृष्ण आडवाणी जैसे नेता गृह मंत्री के रूप में काम करते थे। बेशक, ये दोनों अमित शाह को प्रेरणा देते हैं।

धारा 370 और 35A का निरस्तीकरण

जरा याद करें 5 अगस्त, 2019 को। अमित शाह के कार्यकाल की सबसे महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक उपलब्धि 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर से धारा 370 और 35A को हटाना ही थी। यह फैसला भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की लंबे समय से चली आ रही विचारधारा को साकार करने वाला था। धारा 370 जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करती थी, जिसके तहत राज्य का अपना संविधान, झंडा और स्वायत्तता थी। यह प्रावधान जम्मू-कश्मीर को शेष भारत से अलग करता था और राष्ट्रीय एकीकरण में बाधा उत्पन्न करता था। शाह ने राज्यसभा में ‘जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2019’ पेश किया, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों—जम्मू-कश्मीर और लद्दाख—में विभाजित किया गया।

बेशक, धारा 370 के निरस्त होने से जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद पर प्रभावी नियंत्रण स्थापित हुआ। उनके कार्यकाल में जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं में 70% से अधिक की कमी दर्ज की गई। 2024 में पत्थरबाजी की कोई घटना नहीं हुई, और पिछले 33 वर्षों में सबसे अधिक मतदान दर्ज किया गया।

नक्सलवाद पर प्रभावी नियंत्रण

नक्सलवाद, जिसे वामपंथी उग्रवाद के रूप में भी जाना जाता है, दशकों से भारत के लिए एक गंभीर आंतरिक सुरक्षा चुनौती रहा है। अमित शाह ने नक्सलवाद को समाप्त करने के लिए एक बहुआयामी रणनीति अपनाई, जिसके परिणामस्वरूप इस समस्या पर अभूतपूर्व नियंत्रण स्थापित हुआ। उन्होंने 31 मार्च, 2026 तक भारत को नक्सलवाद से पूरी तरह मुक्त करने का लक्ष्य रखा है, और इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति हुई है।

अमित शाह की रणनीति चार स्तरों पर आधारित थी। पहला, नक्सलियों के खिलाफ सख्त और निर्मम कार्रवाई। इसके लिए केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों और राज्य पुलिस बलों का प्रशिक्षण और एकीकरण किया गया। आधुनिक हथियारों, जैसे लंबी दूरी की असॉल्ट राइफल्स, का उपयोग करके सुरक्षा बलों की क्षमता को बढ़ाया गया। दूसरा, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बलों की पहुंच बढ़ाने के लिए 302 नए फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस स्थापित किए गए, और 612 फोर्टिफाइड पुलिस स्टेशन बनाए गए। तीसरा, आधुनिक तकनीक का उपयोग, जिसमें ड्रोन, सैटेलाइट इमेजिंग, और कृत्रिम बुद्धिमत्ता शामिल हैं, ने नक्सलियों की गतिविधियों पर नजर रखने और हमलों को रोकने में मदद की। चौथा, नक्सल मुक्त क्षेत्रों में विकास योजनाओं को लागू करना, ताकि लोग हिंसा की ओर न लौटें।इन प्रयासों के परिणामस्वरूप, नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या 2014 में 126 से घटकर 2025 तक केवल 12 रह गई।

पूर्वोत्तर भारत में शांति स्थापना और विकास अमित शाह के कार्यकाल की एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि रही है। उन्होंने इस क्षेत्र में 12 शांति समझौतों पर हस्ताक्षर कराए, जिसके परिणामस्वरूप 10,000 से अधिक उग्रवादियों ने आत्मसमर्पण किया। शाह ने पूर्वोत्तर में शांति स्थापना के लिए कई कदम उठाए। असम और त्रिपुरा जैसे राज्यों में भाजपा की जीत में उनकी रणनीति ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने उग्रवादी समूहों के साथ बातचीत को बढ़ावा दिया और शांति समझौतों के माध्यम से स्थानीय समुदायों का विश्वास जीता। इसके अलावा, पूर्वोत्तर में बुनियादी ढांचे के विकास पर विशेष ध्यान दिया गया।

अमित शाह ने देश की आपराधिक न्याय प्रणाली में ऐतिहासिक सुधार किए। 2023 में, उन्होंने औपनिवेशिक युग के कानूनों—भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता, और साक्ष्य अधिनियम—को बदलकर तीन नए कानून पेश किए: भारतीय न्याय संहिता , भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम। ये कानून 1 जुलाई, 2024 से लागू हुए।

अमित शाह की चाहत है कि देश में नशीले पदार्थों का धंधा करने वालों पर चाबुक चले। उनकी सरपरस्ती में नारकोटिक्स के खिलाफ एक बड़ा अभियान चलाया गया, जिसमें 10 लाख किलोग्राम से अधिक प्रतिबंधित मादक पदार्थ जब्त किए गए, जिनकी कीमत लगभग 12,000 करोड़ रुपये थी। यह अभियान न केवल ड्रग तस्करी को रोकने में प्रभावी रहा, बल्कि युवाओं को नशे की लत से बचाने में भी सहायक रहा।

अमित शाह के बंगले के पिछले हिस्से में एक फव्वारा भी है। ये शायद लुटियन जोन का एकमात्र सरकारी बंगला है,जिसमें फव्वारा भी है। इसके करीब बैठकर अमित शाह सुबह अखबार पढ़ते हैं और अपने सलाहकारों से चर्चा भी करते हैं। दूसरी तरफ इधर लगे बुजुर्ग पेड़ों में रहने वाले परिंदों की अखंड चहचहाहट जारी रहती है। इनमें तोते सर्वाधिक हैं। इन पेड़ों ने ना जाने कितनी शक्तिशाली हस्तियों को देखा है। बेकर से लेकर अमित शाह तक, इस बंगले में मोटे तौर पर एक ही बदलाव हुआ। बेकर 8 नंबर में रहते थे, पर प्रधानमंत्री पद से 2014 में मुक्त होने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी को जब यह बंगला अलॉट हुआ तो इसका एड्रेस कर दिया गया 6-ए कृष्ण मेनन मार्ग। बहरहाल, अभी अमित शाह के सामने चुनौतियां और भी हैं। उनके अभी तक का कार्यकाल इस बात की गवाही है कि उनकी सरपरस्ती में देश नक्सलवाद, नशीले पदार्थों और साइबर अपराध जैसी चुनौतियों को मात दे देगा।