
लोकसभा में ऑनलाइन गेमिंग बिल 2025 को लेकर गहन बहस हुई। सरकार ने इसे समाज में जुए और लत जैसी प्रवृत्तियों को रोकने के लिए आवश्यक बताया, जबकि विपक्ष ने इसे रोजगार और उद्योग पर चोट मानते हुए संशोधन की माँग रखी। सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री ने स्पष्ट किया कि बिल केवल रियल-मनी गेमिंग और सट्टेबाज़ी पर रोक लगाता है, जबकि ई-स्पोर्ट्स और कौशल आधारित खेलों को प्रोत्साहित करेगा। कुछ सांसदों ने युवाओं की मानसिक सेहत और परिवारों की सुरक्षा पर चिंता जताई, वहीं उद्योग से जुड़े हितों पर विशेष समिति गठित करने का सुझाव आया।
डॉ. सत्यवान सौरभ
भारत में डिजिटल क्रांति के बाद से मोबाइल और इंटरनेट ने जिस तरह लोगों के जीवन को प्रभावित किया है, उसमें ऑनलाइन गेमिंग का संसार सबसे अधिक आकर्षक और विवादित रहा है। स्मार्टफोन की बढ़ती पहुँच, तेज़ इंटरनेट और युवाओं के बीच डिजिटल प्लेटफॉर्म की लोकप्रियता ने इस क्षेत्र को तेजी से विस्तार दिया है। लेकिन जहाँ एक ओर ई-स्पोर्ट्स और कौशल-आधारित खेलों ने भारत को विश्व मानचित्र पर जगह दिलाई है, वहीं दूसरी ओर पैसे के दाँव पर खेले जाने वाले खेल, बेटिंग ऐप्स और जुए जैसी प्रवृत्तियों ने समाज और सरकार दोनों को चिंतित किया है। इसी पृष्ठभूमि में केंद्र सरकार ने हाल ही में ऑनलाइन गेमिंग बिल को मंजूरी दी है। यह बिल न केवल आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि भविष्य में भारत की डिजिटल नीति की दिशा भी तय करेगा।
यह बिल स्पष्ट रूप से कहता है कि कोई भी वास्तविक धन पर आधारित गेमिंग या ऑनलाइन सट्टेबाज़ी प्रतिबंधित होगी। इसके साथ ही ऐसे खेलों के विज्ञापन, प्रचार और वित्तीय लेन-देन पर भी रोक लगाने का प्रावधान है। इसका सीधा मतलब है कि बैंक और वित्तीय संस्थान किसी भी रूप में ऐसे खेलों से जुड़े लेन-देन को प्रोसेस नहीं करेंगे। इस प्रावधान से सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि पैसे के लालच में जुए जैसी प्रवृत्तियाँ समाज में न फैलें।
परंतु इस बिल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह ई-स्पोर्ट्स और कौशल-आधारित गैर-आर्थिक गेमिंग को बढ़ावा देता है। सरकार ने साफ किया है कि उसे खेल के रूप में ई-स्पोर्ट्स को प्रोत्साहित करना है। आने वाले समय में “नेशनल ई-स्पोर्ट्स अथॉरिटी” जैसी संस्था की स्थापना की जा सकती है, जो ई-स्पोर्ट्स को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधि बनाने की दिशा में काम करेगी। यह कदम न केवल डिजिटल खेलों को वैधता देगा बल्कि उन लाखों युवाओं को भी अवसर देगा जो गेमिंग को कैरियर बनाना चाहते हैं।
इस बिल का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसके तहत सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) को केंद्रीय नियामक की भूमिका सौंपी गई है। मंत्रालय को यह अधिकार होगा कि वह गैर-पंजीकृत या अवैध गेमिंग प्लेटफॉर्म को ब्लॉक कर सके। यह व्यवस्था उपभोक्ताओं को धोखाधड़ी और अवैध गतिविधियों से बचाने के उद्देश्य से की गई है। भारत में अब तक ऑनलाइन गेमिंग से जुड़े नियम अलग-अलग राज्यों में अलग थे। कहीं इसे वैध माना गया तो कहीं प्रतिबंधित। ऐसे में एक राष्ट्रीय स्तर की रूपरेखा बनाना समय की मांग थी।
यह बिल केवल नियम-कानून का दस्तावेज़ नहीं है बल्कि इसके पीछे गहरे सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारण भी हैं। पिछले कुछ वर्षों में देखा गया है कि ऑनलाइन बेटिंग और वास्तविक धन से जुड़े खेलों की लत ने कई युवाओं की ज़िंदगियाँ बर्बाद कर दी हैं। कई मामलों में लोगों ने कर्ज़ लेकर खेला और परिवार तबाह हो गए। बच्चों में भी मोबाइल गेम्स की लत मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डाल रही है। सरकार को यह भी एहसास है कि इस समस्या को रोकना उतना ही ज़रूरी है जितना मादक पदार्थों की लत को रोकना। कई विशेषज्ञों ने तो इसे नशे से भी खतरनाक बताया है क्योंकि यह बिना किसी भौतिक पदार्थ के सीधे दिमाग़ पर नियंत्रण कर लेती है।
हालाँकि उद्योग जगत का पक्ष बिल्कुल अलग है। गेमिंग इंडस्ट्री का कहना है कि इस बिल से लगभग दो लाख नौकरियों पर खतरा मंडराने लगा है और सरकार को हर साल मिलने वाले बीस हज़ार करोड़ रुपये के जीएसटी राजस्व पर भी असर पड़ सकता है। “ड्रीम11”, “गेम्स24×7”, “विन्ज़ो” जैसी कंपनियाँ लंबे समय से करोड़ों रुपये का कारोबार कर रही हैं। उनका कहना है कि यदि घरेलू प्लेटफॉर्म को पूरी तरह रोक दिया गया तो उपयोगकर्ता विदेशी और ऑफशोर प्लेटफॉर्म की ओर रुख करेंगे, जहाँ न तो सरकार का कोई नियंत्रण होगा और न ही उपभोक्ताओं की सुरक्षा। इससे उल्टा नुकसान ही होगा।
इस बहस में दोनों पक्षों की अपनी-अपनी दलीलें हैं। सरकार का तर्क है कि समाज को जुए और नशे की लत से बचाना ज़रूरी है, वहीं उद्योग जगत मानता है कि यह क्षेत्र देश की डिजिटल अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा है और इसे खत्म करना युवाओं के रोजगार और नवाचार दोनों के लिए नुकसानदायक होगा। असली चुनौती यही है कि सही संतुलन कैसे कायम किया जाए।
बिल के समर्थकों का कहना है कि इस कदम से न केवल सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित होगी बल्कि युवाओं की ऊर्जा सही दिशा में लगेगी। ई-स्पोर्ट्स को प्रोत्साहन देकर भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीत सकता है, जैसा कि हमने बैडमिंटन, कुश्ती या क्रिकेट में देखा है। इसके अलावा गैर-आर्थिक गेम्स को बढ़ावा देने से बच्चों का मनोरंजन भी सुरक्षित दायरे में रहेगा।
दूसरी ओर आलोचकों का मानना है कि सरकार को “पूर्ण प्रतिबंध” की बजाय “कड़े नियमन” का रास्ता चुनना चाहिए था। यदि धन-आधारित गेमिंग को लाइसेंस प्रणाली और कड़े कराधान के तहत नियंत्रित किया जाता तो न केवल सरकार को राजस्व मिलता बल्कि उपभोक्ताओं की सुरक्षा भी बनी रहती। पूरी तरह प्रतिबंध लगाने से समस्या यह है कि लोग भूमिगत या विदेशी प्लेटफॉर्म की ओर भागेंगे और सरकार का नियंत्रण और भी कमजोर हो जाएगा।
यह बहस केवल भारत तक सीमित नहीं है। विश्व के कई देशों में ऑनलाइन गेमिंग को लेकर अलग-अलग दृष्टिकोण हैं। अमेरिका और यूरोप के कई हिस्सों में इसे सख्त नियमों और टैक्स प्रणाली के तहत वैध किया गया है। वहीं चीन जैसे देशों ने बच्चों के लिए गेमिंग के समय पर ही पाबंदी लगा दी है। भारत ने अब तक इस दिशा में कोई स्पष्ट राष्ट्रीय नीति नहीं बनाई थी, यही कारण है कि राज्यों के स्तर पर भ्रम और असमानता बनी रही।
अब सवाल यह उठता है कि आगे क्या होगा? यह बिल लोकसभा में पेश किया जाएगा और संभव है कि इसमें संशोधन हों। उद्योग जगत की चिंताओं को देखते हुए सरकार कुछ नरमी दिखा सकती है। उदाहरण के लिए “फैंटेसी स्पोर्ट्स” को कौशल-आधारित खेल मानकर सीमित अनुमति दी जा सकती है। इसी तरह कराधान और नियमन के ज़रिए सरकार और उद्योग के बीच समझौता हो सकता है।
परंतु एक बात तय है कि यह बिल भारत की डिजिटल यात्रा का अहम पड़ाव है। यह देश को यह सोचने पर मजबूर करता है कि तकनीक और समाज का संतुलन कैसे बनाया जाए। तकनीक अपने आप में न अच्छी है न बुरी, उसका इस्तेमाल उसे अच्छा या बुरा बनाता है। यदि ऑनलाइन गेमिंग युवाओं को कैरियर, रोजगार और अंतरराष्ट्रीय पहचान दे सकती है तो यह सकारात्मक है। लेकिन यदि वही गेमिंग परिवारों को तोड़ दे, युवाओं को कर्ज़ में डुबो दे और अपराध को बढ़ावा दे, तो यह खतरनाक है।
इसलिए ज़रूरी है कि सरकार, उद्योग, समाज और परिवार – सभी मिलकर समाधान निकालें। अभिभावकों को बच्चों पर नज़र रखनी होगी, शिक्षा संस्थानों को डिजिटल साक्षरता सिखानी होगी, उद्योग जगत को आत्मनियंत्रण और पारदर्शिता अपनानी होगी और सरकार को नियमन और प्रोत्साहन के बीच संतुलन बनाना होगा।
ऑनलाइन गेमिंग बिल केवल एक कानून नहीं है, यह हमारे समाज के भविष्य की रूपरेखा है। यह हमें यह सोचने पर विवश करता है कि क्या हम डिजिटल क्रांति को सिर्फ मनोरंजन और जुए का साधन बनने देंगे या इसे शिक्षा, रोजगार और वैश्विक प्रतिस्पर्धा का अवसर बनाएँगे। आने वाले वर्षों में यह बिल किस रूप में लागू होगा और समाज पर इसका क्या असर पड़ेगा, यह देखने वाली बात होगी। लेकिन एक बात स्पष्ट है कि यह बहस भारत के हर घर तक पहुँचेगी, क्योंकि मोबाइल और इंटरनेट अब हर जेब में है और गेमिंग हर उम्र की पसंद।