
मुनीश भाटिया
भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग अब केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि समय की आवश्यकता बन चुकी है, क्योंकि पेट्रोल और डीजल जैसे जीवाश्म ईंधन सीमित संसाधन हैं और इनके लिए भारत को बड़े पैमाने पर अन्य देशों पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे हर साल लगभग 200 अरब डॉलर का कच्चा तेल आयात करना पड़ता है, जो आर्थिक असंतुलन और व्यापार घाटे को बढ़ाता है, लेकिन इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देकर भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत कर सकता है और स्वच्छ पर्यावरण तथा आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा सकता है, साथ ही यदि इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी बढ़ती है, तो भारत लगभग 40 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा बचा सकता है, जो आर्थिक विकास के लिए बेहद लाभकारी होगा, और बैटरी निर्माण तथा चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास से नए रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे, जिससे युवाओं को रोजगार मिलेगा और अर्थव्यवस्था को और मजबूती मिलेगी।
बड़े शहरों में वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन चुका है, और इसका एक प्रमुख कारण पारंपरिक पेट्रोल-डीजल वाहनों से होने वाला उत्सर्जन है, खासकर दिल्ली, मुंबई और कोलकाता जैसे महानगरों में वाहनों से होने वाला प्रदूषण सर्वाधिक है, क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 14 भारत में हैं, और 2022 में दिल्ली की औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक 300 से ऊपर रही, जो गंभीर स्तर को दर्शाता है, जबकि पारंपरिक वाहनों से निकलने वाला धुआं, जिसमें नाइट्रोजन ऑक्साइड, पार्टिकुलेट मैटर और कार्बन मोनोऑक्साइड के हानिकारक तत्व शामिल हैं, वायु प्रदूषण में सबसे बड़ा योगदान देता है, लेकिन इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग से इन हानिकारक उत्सर्जनों को काफी हद तक कम किया जा सकता है, जिससे देश में स्वच्छ हवा और बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य को बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि इलेक्ट्रिक वाहन शून्य कार्बन उत्सर्जन करते हैं, और यदि इन्हें सौर और पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय स्रोतों से चार्ज किया जाए, तो ऊर्जा की स्वच्छता और आत्मनिर्भरता में और वृद्धि होगी। पिछले कुछ वर्षों में भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो यह दर्शाता है कि लोग धीरे-धीरे इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की ओर बढ़ रहे हैं, जैसे कि 2020 में देश में लगभग 1.5 लाख इलेक्ट्रिक वाहन बेचे गए थे, जबकि 2023 में यह संख्या 10 लाख से अधिक हो गई, जो उपभोक्ताओं में बढ़ती जागरूकता और पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता को दिखाता है, और सरकार भी इस दिशा में सक्रिय कदम उठा रही है, जैसे कि सब्सिडी, टैक्स छूट और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास को प्रोत्साहन देना, हालांकि इस क्षेत्र में अभी भी कई चुनौतियां बाकी हैं, जैसे कि चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी, बैटरियों की उच्च कीमत, सीमित रेंज और चार्जिंग समय, लेकिन यदि सरकार और निजी कंपनियां मिलकर इन समस्याओं का समाधान करें, तो भारत इलेक्ट्रिक वाहन क्रांति में अग्रणी बन सकता है।
देश में चार्जिंग स्टेशनों की संख्या अभी भी बहुत सीमित है, जिससे लंबी दूरी की यात्रा में कठिनाई होती है, क्योंकि वर्तमान में भारत में लगभग 10,000 सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन हैं, जबकि कम से कम 50,000 स्टेशनों की आवश्यकता है, और शहरी क्षेत्रों में कुछ चार्जिंग पॉइंट उपलब्ध हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों और हाईवे नेटवर्क में इनकी भारी कमी है, जिस कारण उपभोक्ताओं को लंबी दूरी की यात्रा में असुविधा होती है, और इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने की गति धीमी हो रही है, इसके अलावा बैटरी चार्जिंग में लगने वाला समय भी एक बड़ी समस्या है, क्योंकि एक सामान्य इलेक्ट्रिक वाहन को चार्ज होने में 4-8 घंटे लगते हैं, जबकि फास्ट चार्जिंग से भी 30-60 मिनट का समय लगता है, जो पारंपरिक वाहनों की तुलना में अधिक है, और इस समस्या के समाधान के लिए सरकार को हाईवे और शहरों में फास्ट चार्जिंग स्टेशनों की संख्या बढ़ानी होगी, साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में भी दीर्घकालिक योजना बनाकर चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करना आवश्यक है। इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमत अभी भी पारंपरिक पेट्रोल-डीजल वाहनों से अधिक है, और इसका मुख्य कारण बैटरी की ऊंची लागत है, क्योंकि एक इलेक्ट्रिक वाहन की बैटरी इसकी कुल कीमत का 40-50% हिस्सा होती है, इसके अलावा चार्जिंग की बिजली दरें और होम चार्जिंग सेटअप की लागत भी उपभोक्ताओं के लिए चिंता का विषय है, लेकिन बैटरी की कीमत को कम करने के लिए स्थानीय स्तर पर बैटरी निर्माण को बढ़ावा देना जरूरी है, और यदि सरकार और निजी कंपनियां मिलकर बैटरी उत्पादन की लागत घटाएं और बिजली दरों में रियायत दें, तो इलेक्ट्रिक वाहन अधिक किफायती हो सकते हैं, जिससे उनकी लोकप्रियता में तेजी आएगी। भारत में सड़क संरचना और ट्रैफिक प्रबंधन भी इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए एक चुनौती बने हुए हैं, क्योंकि खराब सड़कों के कारण बैटरी जल्दी डिस्चार्ज होती है, जिससे वाहनों की क्षमता कम हो जाती है, और हाईवे पर सड़कें ठीक हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों की स्थिति खराब है, जो इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए उपयुक्त नहीं है, जिससे खराब सड़कों पर बैटरी का जल्दी खत्म होना उपभोक्ताओं के लिए एक बड़ी समस्या है, और इस स्थिति को सुधारने के लिए सरकार को सड़क निर्माण और मरम्मत को प्राथमिकता देनी चाहिए, क्योंकि बेहतर सड़कें न केवल इलेक्ट्रिक वाहनों की दक्षता बढ़ाएंगी, बल्कि इनके उपयोग को ग्रामीण स्तर तक पहुंचाने में भी मदद करेंगी।
इलेक्ट्रिक वाहनों को व्यापक स्तर पर अपनाने के लिए सरकार, उद्योग और उपभोक्ताओं को मिलकर काम करना होगा, जैसे कि चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार करना, बैटरी लागत में कमी लाना, सब्सिडी और कर छूट देना, सड़कों की स्थिति में सुधार करना, और सार्वजनिक परिवहन में इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देना कुछ प्रमुख कदम हैं जो इस दिशा में उठाए जा सकते हैं, इसके साथ ही स्थानीय स्तर पर बैटरी निर्माण और इलेक्ट्रिक वाहन उत्पादन को प्रोत्साहित करने से आयात पर निर्भरता कम होगी, और भारत वैश्विक बाजार में अपनी मजबूत स्थिति बना सकेगा।
इलेक्ट्रिक वाहन भारत को स्वच्छ, हरित और आत्मनिर्भर भविष्य की ओर ले जाने का एक सशक्त माध्यम बन सकते हैं, जो न केवल पर्यावरण संरक्षण के लिए जरूरी है, बल्कि आर्थिक और ऊर्जा सुरक्षा के लिए भी अनिवार्य है, हालांकि चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी, बैटरी की ऊंची लागत और खराब सड़कें जैसी चुनौतियां अभी भी बाधा बनी हुई हैं, लेकिन यदि सरकार और निजी क्षेत्र मिलकर इन समस्याओं का समाधान करें, तो इलेक्ट्रिक वाहनों की लोकप्रियता तेजी से बढ़ सकती है, और बेहतर नीतियां, तकनीकी नवाचार और जन जागरूकता के साथ भारत इलेक्ट्रिक वाहन क्रांति में अग्रणी बन सकता है, जिससे यह एक ऊर्जा-संपन्न, आर्थिक रूप से सशक्त और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में उभर सकता है। यह बदलाव न केवल शहरों में वायु प्रदूषण को कम करेगा, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देगा, और यदि बैटरी रिसाइक्लिंग जैसी तकनीकों को अपनाया जाए, तो पर्यावरणीय प्रभाव को और कम किया जा सकता है, साथ ही सार्वजनिक परिवहन में इलेक्ट्रिक बसों, ऑटो को शामिल करने से ईंधन की खपत में कमी आएगी, जिससे भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को स्थानीय स्तर पर पूरा करने में सक्षम होगा, और वैश्विक मंच पर एक जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर सकेगा।