
ललित गर्ग
भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राजग ने चंद्रपुरम पोन्नुस्वामी राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित करके एक तीर से अनेक निशाने साधे हैं। भाजपा ने बहुत सोच-समझकर उन्हें इस प्रतिष्ठित पद का उम्मीदवार बनाया है। वे तमिल हैं, पिछडे़ भी हैं, संघ से जुड़े हैं और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पुराने करीबी एवं साफ-सुथरी छवि वाले राजनायक हैं। भाजपा ने जब उन्हें उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया, तो यह केवल राजनीतिक गणित का परिणाम नहीं था, बल्कि एक ऐसे व्यक्तित्व को राष्ट्रीय मंच पर स्थापित करने का निर्णय था, जो सादगी, ईमानदारी और सेवा की पहचान रखते हैं। उनका चयन भारतीय लोकतंत्र की व्यापकता और समावेशिता का जीवंत प्रतीक है।
अब तक भारतीय राजनीति में दक्षिण भारत, विशेषकर तमिलनाडु में भाजपा की जड़ें अपेक्षाकृत कमजोर और सबसे बड़ी चुनौती रहा है। उत्तर और पश्चिम भारत में लगातार सफलता के बाद पार्टी चाहती है कि दक्षिण के राज्य भी उसके प्रभाव में आएं। राधाकृष्णन तमिलनाडु से आते हैं और वहां भाजपा के शीर्ष चेहरों में गिने जाते हैं। उनका उपराष्ट्रपति उम्मीदवार बनना भाजपा की यह घोषणा है कि वह दक्षिण भारत को अब हाशिए पर नहीं, बल्कि सत्ता की मुख्यधारा में लाना चाहती है।
राधाकृष्णन तमिलनाडु में भाजपा के मजबूत संगठनकर्ता के रूप में पहचाने जाते हैं। सीपी राधाकृष्णन उत्तर भारत के भाजपा के राजनीतिक गलियारे में राधाजी के नाम से जाने जाते हैं। तमिलनाडु की कोयंबटूर लोकसभा सीट से 1998 और 1999 के आम चुनावों में भाजपा के टिकट पर सांसद चुने गए सीपी राधाकृष्णन ने स्कूली जीवन से ही आरएसएस का दामन थाम लिया था। हालांकि एक दौर में वे तमिल राजनीति में अन्नाद्रमुक के करीब माने जाते थे। उनके तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं से मधुर संबंध हैं। उपराष्ट्रपति चुनाव में डीएमके भी उनकी उम्मीदवारी का विरोध करना कठिन हो सकता है।
उपराष्ट्रपति पद पर उनका चयन ओबीसी समाज को सम्मान और सशक्तिकरण का नया संदेश देगा। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने लगातार इस वर्ग को सशक्त बनाने की दिशा में कार्य किया है। राधाकृष्णन ओबीसी समाज से आते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने हमेशा ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ की नीति को बल दिया है। राधाकृष्णन का चयन इसी दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है। इससे भाजपा को देशभर में ओबीसी समाज का और अधिक समर्थन मिल सकता है। इससे भाजपा की सामाजिक आधारशिला और मजबूत होगी। भाजपा अपने निर्णयों से हमेशा करिश्मा घटित करती रही है, अपने चतुराई का परिचय देती रही है, सी.पी. राधाकृष्णन का चयन भाजपा की इसी रणनीतिक चतुराई का ही बड़ा उदाहरण है। इससे पार्टी ने एक तीर से अनेक निशाने साधे हैं, दक्षिण भारत में पैठ बनाना, ओबीसी समाज को साधना, विपक्ष को असहज करना और साफ-सुथरी राजनीति का संदेश देना। यह तय है कि उपराष्ट्रपति के रूप में वे न केवल भाजपा बल्कि पूरे राष्ट्र के लिए सफल नायक सिद्ध होंगे।
यह एक संयोग की कहा जायेगा कि देश के शीर्ष दो पदों पर विराजमान हस्तियों का नाता झारखंड से रहा है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु देश के सर्वाेच्च पद पर चुने जाने से पहले झारखंड की राज्यपाल रहीं और देश के उपराष्ट्रपति बनने जा रहे सीपी राधाकृष्णन भी इस राज्य के राज्यपाल रहे हैं। इन दिनों वे महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं। वे झारखंड के साथ ही तेलंगाना के राज्यपाल और पुदुचेरी के उपराज्यपाल का भी अतिरिक्त कार्यभार संभाल चुके हैं। मोदी-शाह का उन पर बड़ा भरोसा रहा है, क्योंकि उन्हें एक समय एक साथ तीन-तीन राज्यों के राज्यपालों की जिम्मेदारी थमाई गई थी। अभी उपराष्ट्रपति पद पर ऐसे ही भरोसेमंद, निष्ठाशील एवं जिम्मेदार व्यक्ति की ही तलाश थी। उपराष्ट्रपति भारत का प्रतिनिधित्व अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी करते हैं। राधाकृष्णन का अध्ययनशील स्वभाव, शालीन व्यवहार और संतुलित दृष्टिकोण भारत की सॉफ्ट पावर को और मजबूत करेगा। उनका व्यक्तित्व भारत की परंपरा, संस्कृति और लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रभावी प्रतिनिधित्व करेगा।
भारतीय राजनीति में उपराष्ट्रपति केवल राज्यसभा के सभापति ही नहीं होते, बल्कि सर्वदलीय संवाद और लोकतांत्रिक परंपराओं के संरक्षक भी होते हैं। राधाकृष्णन का सौम्य व्यक्तित्व, धैर्य और संवाद क्षमता उन्हें इस भूमिका में और अधिक सफल बनाएगी। विपक्षी दलों के लिए भी उनकी छवि स्वीकार्य है, जो संसद की कार्यवाही को संतुलित बनाए रखने में सहायक होगी। सी.पी. राधाकृष्णन का उपराष्ट्रपति पद पर चयन भारतीय लोकतंत्र की उस विशेषता को रेखांकित करता है, जिसमें सादगी और सेवा जैसे गुण सर्वाेपरि माने जाते हैं। वे न केवल दक्षिण भारत और ओबीसी समाज का सम्मान हैं, बल्कि पूरे राष्ट्र के लिए आशा और संतुलन का चेहरा हैं। निश्चित रूप से वे उपराष्ट्रपति पद की जिम्मेदारी को सफलतापूर्वक निभाते हुए आने वाले वर्षों में एक आदर्श और प्रेरक नायक सिद्ध होंगे। जैसाकि पूर्व उपराष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन हमारे आदर्श नायक हैं।
वैसे भी डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन और वर्तमान उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार सी.पी. राधाकृष्णन के बीच कुछ उल्लेखनीय समानताएं दिखाई देती हैं। भले ही दोनों की पृष्ठभूमि अलग हो, एक महान दार्शनिक, शिक्षक और राजनयिक रहे, तो दूसरे राजनीति और सामाजिक जीवन से जुड़े हैं, फिर भी उनके व्यक्तित्व में कई साझा बिंदु हैं जैसे दोनों का नाम ‘राधाकृष्णन’ है, जो भारतीय संस्कृति में श्रीकृष्ण से जुड़ी भक्ति, ज्ञान और नीति का प्रतीक है। दोनों ने अपने-अपने क्षेत्र में भारतीय परंपरा और मूल्यों को प्रतिष्ठित किया। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने भारतीय दर्शन को विश्वपटल पर प्रतिष्ठा दिलाई और शिक्षा जगत को नई दिशा दी। सी.पी. राधाकृष्णन ने राजनीति और सार्वजनिक जीवन में सेवा, ईमानदारी और पारदर्शिता के लिए ख्याति अर्जित की। डॉ. राधाकृष्णन जीवन भर शिक्षक रहे और शिक्षा को राष्ट्र निर्माण का मूल आधार माना। सी.पी. राधाकृष्णन का राजनीतिक जीवन भी शिक्षा, नैतिकता और संस्कारों की धरती पर खड़ा है। वे स्वच्छ छवि और सादगी के लिए जाने जाते हैं। दोनों का जीवन साधारण परंतु ऊँचे आदर्शों से जुड़ा रहा। किसी प्रकार का दुराचार या विवाद इन दोनों के जीवन में नहीं जुड़ा, जो आज के राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन में बहुत दुर्लभ है। डॉ. राधाकृष्णन को दार्शनिक-राजनेता के रूप में विश्वभर में सम्मान मिला। सी.पी. राधाकृष्णन को जनता का भरोसा, सरल व्यवहार और समाज में उनकी स्वीकार्यता ने एक सम्मानित नेता बनाया। डॉ. राधाकृष्णन ने भारतीय संस्कृति के सार्वभौमिक दृष्टिकोण को स्थापित किया। सी.पी. राधाकृष्णन भी राजनीति में समन्वयकारी, सर्वसमावेशी और राष्ट्रहित की सोच को आगे बढ़ाते हैं। दोनों ही भारतीय मूल्यों, ईमानदारी और राष्ट्र-सेवा के प्रतीक माने जा सकते हैं।
राजनीति में सी.पी. राधाकृष्णन की पहचान एक स्वच्छ और सादगीपूर्ण नेता की है। वे कभी भी विवादास्पद राजनीति का हिस्सा नहीं बने, बल्कि अपने संगठन कौशल, जनता से जुड़ाव और सेवाभाव से अपनी अलग जगह बनाई। सामाजिक और शैक्षणिक संस्थाओं से जुड़े रहने के कारण उनका व्यक्तित्व सिर्फ राजनीतिक दायरे तक सीमित नहीं रहा। यही कारण है कि वे उपराष्ट्रपति पद की गरिमा और जिम्मेदारी निभाने में पूरी तरह सक्षम होंगे। भाजपा ने राधाकृष्णन को मैदान में उतारकर विपक्ष के लिए कठिनाई खड़ी कर दी है। उनकी सादगीपूर्ण और निर्दाेष छवि के कारण विपक्ष उनके खिलाफ आक्रामक रुख अपनाने में हिचकेगा। साथ ही, वे किसी विवाद या कट्टरपंथी राजनीति से दूर रहे हैं, जिससे उनकी स्वीकार्यता सर्वदलीय स्तर पर अधिक है। वे न केवल चुनावी राजनीति में सक्रिय रहे, बल्कि सामाजिक और शैक्षणिक गतिविधियों से भी जुड़े रहे हैं। इससे भाजपा की यह छवि और प्रखर होगी कि वह स्वच्छ और ईमानदार नेतृत्व को प्राथमिकता देती है। राधाकृष्णन क्यों सफल उपराष्ट्रपति साबित होंगे, इस प्रश्न का उत्तर निम्न पंक्तियों में समाया है कि वे पक्षपात से दूर और सर्वदलीय संवाद को बढ़ावा देने वाले विरल व्यक्तित्व माने जाते हैं। भाजपा संगठन में लंबे अनुभव के कारण वे राजनीतिक नब्ज को भली-भांति समझते हैं। इससे जनता और सभी दलों में उनकी विश्वसनीयता बनी रहेगी। दक्षिण भारत का केन्द्र में समुचित प्रतिनिधित्व होने से वे राष्ट्रीय राजनीति में समावेशिता का चेहरा बनेंगे।