
सुनील कुमार महला
भारत त्योहारों का देश है। यहां प्रत्येक पर्व किसी न किसी धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक परंपरा से जुड़ा होता है। इन्हीं पर्वों में से एक है हरितालिका तीज। इस बार हरतालिका तीज(बड़ी तीज) 26 अगस्त 2025 मंगलवार को मनाई जाएगी। पाठकों को बताता चलूं कि हरतालिका तीज व्रत हिंदू धर्म में मनाये जाने वाला एक प्रमुख व्रत है। यह भाद्रपद शुक्ल तृतीया का पावन पर्व है, जो वास्तव में नारी-संकल्प, स्त्री संकल्प, अटूट समर्पण और भक्ति का अद्भुत प्रतीक है। यह व्रत स्त्रियों के आत्मबल और अटूट आस्था को दर्शाता है, जिसमें शिव-पार्वती की आराधना के माध्यम से जीवन में सौभाग्य, समर्पण और सकारात्मक ऊर्जा का आह्वान किया जाता है।इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखकर पति की लंबी उम्र के लिए कामना करती हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि पति-पत्नी के संबंधों की पवित्रता और सौहार्द बनाए रखने का यह एक सुंदर उत्सव है, जो आज भी उतने ही उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन का विशेष महत्व है।हरतालिका तीज व्रत कुमारी और सौभाग्यवती स्त्रियां करती हैं।मान्यता है कि इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए किया था। कहते हैं कि इस व्रत करने से महिलाओं को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वैसे तो यह त्योहार पूरे भारत में बड़े ही हर्षोल्लास और खुशियों के साथ मनाया जाता है, लेकिन मुख्य रूप से यह बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश विशेष रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है।नेपाल में इसे तीज महोत्सव के रूप में तीन दिन तक बड़े उत्साह से मनाया जाता है।पाठकों को बताता चलूं कि कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में इस व्रत को ‘गौरी हब्बा’ के नाम से जाना जाता है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस बार हरितालिका तीज पर सर्वार्थ सिद्धि, शोभन, गजकेसरी और पंचमहापुरुष जैसे चार शुभ योग बन रहे हैं। ये योग इस व्रत को और अधिक फलदायी और मंगलकारी बना रहे हैं। वास्तव में,हरतालिका दो शब्दों से मिलकर बना है-‘हरत’ और ‘आलिका।’ ‘हरत’ का मतलब है ‘अपहरण’ और ‘आलिका’ यानी ‘सहेली।’ यहां पाठकों को बताता चलूं कि, मां पार्वती की सखियों ने उन्हें उनके पिता द्वारा तय विवाह (भगवान विष्णु से) से ‘हर’ लिया और जंगल में ले गईं, ताकि वे तपस्या कर शिव को पति रूप में प्राप्त कर सकें। इसी कारण इसका नाम हरितालिका तीज पड़ा। पौराणिक कथाओं में विवरण मिलता है कि देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए 108 जन्मों तक तपस्या की थी और 109वें जन्म में, हरितालिका तीज के दिन उनका विवाह भगवान शिव से हुआ।हरितालिका तीज को नारी-संवेदना का पर्व भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन महिलाएँ अपनी इच्छाओं, दुख-सुख और मन की बातें गीतों और सामूहिक नृत्यों के माध्यम से व्यक्त करती हैं।ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएँ तीज के गीतों में वैवाहिक जीवन की खुशियाँ और पीड़ा दोनों गाती हैं। वास्तव में यह पर्व प्रकृति और शृंगार से जुड़ा भारतीय संस्कृति का अनोखा, अद्भुत पर्व है। वास्तव में, यह पर्व वर्षा ऋतु में आता है जब धरती हरियाली से भर उठती है। इसलिए इसे प्रकृति-पूजन का पर्व भी माना जाता है।बहुत-सी जगहों पर महिलाएँ पीपल, बरगद और तुलसी के पौधे के नीचे पूजा करती हैं, जिससे पर्यावरण संरक्षण की परंपरा भी जुड़ी हुई है।इस दिन स्त्रियाँ पारंपरिक सोलह शृंगार करती हैं और हरी चूड़ियाँ व हरे वस्त्र धारण करती हैं।हरा रंग प्रकृति, समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक है। सावन और भाद्रपद की हरियाली से इसका गहरा संबंध है। लाल रंग देवी पार्वती का प्रिय है, जो प्रेम और शक्ति का प्रतीक है। हरा रंग हरियाली और समृद्धि का संकेत देता है, जबकि गुलाबी रंग सौम्यता और आपसी समझ का प्रतीक माना जाता है। इसके विपरीत, काला, नीला, सफेद और क्रीम रंग इस दिन वर्जित माने जाते हैं।कुल मिलाकर, हरितालिका तीज सिर्फ पति की लंबी आयु का व्रत मात्र ही नहीं है, बल्कि यह नारी की आस्था, संकल्प, प्रेम, पर्यावरण और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का अनोखा संगम है।