
अशोक भाटिया
सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों को पकड़ कर डॉग शेल्टर में रखने के अपने 11 अगस्त के आदेश में शुक्रवार को संशोधन कर दिया है। संशोधित आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आवारा कुत्तों को पकड़ कर उनका बंध्याकरण व टीकाकरण करने के बाद उन्हें छोड़ा जाएगा।
लेकिन इसके साथ ही कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि आक्रामक और रैबीज संक्रमित कुत्ते पकड़ने के बाद छोड़े नहीं जाएंगे यहां तक कि उन्हें डॉग शेल्टर में भी अलग रखा जाएगा। शीर्ष अदालत ने यह भी आदेश दिया है कि नगरीय निकाय तत्काल प्रभाव से प्रत्येक वार्ड में आवारा कुत्तों को भोजन कराने के लिए एक निश्चति स्थान (फीडिंग प्वाइंट ) बनाएंगी। कोई भी संस्था या व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में कुत्तों को सड़क पर खाना नहीं खिलाएगा और जो व्यक्ति इस निर्देश का उल्लंघन करते हुए पाया जाएगा उसके खिलाफ कानून के मुताबिक कार्यवाही होगी।
कोर्ट का यह आदेश देश भर में समान रूप से लागू होगा। सुप्रीम कोर्ट ने मामले का दायरा बढ़ाते हुए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी किया है। आठ सप्ताह में अनुपालन रिपोर्ट दाखिल होगी और मामले पर फिर सुनवाई होगी। ये आदेश न्यायमूर्ति विक्रमनाथ, संदीप मेहता और एनवी अंजारिया की तीन सदस्यीय पीठ ने 11 अगस्त के दो सदस्यीय पीठ के आदेश में मामूली संशोधन करते हुए दिए।
11 अगस्त को न्यायमूर्ति जेबी पार्डीवाला और आर महादेवन की पीठ ने आवारा कुत्तों के काटने की समस्या पर स्वत: संज्ञान लेते हुए बहुत से निर्देश दिये थे। आदेश दिया था कि सभी आवारा कुत्तों को पकड़ कर डॉग शेल्टर में रखा जाएगा वहां उनका बंध्याकरण, टीकाकरण किया जाएगा लेकिन उन्हें दोबारा छोड़ा नहीं जाएगा। कोर्ट के इस आदेश पर कुत्ता और पशु प्रेमियों ने बड़ी प्रतिक्रिया देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अर्जियां दाखिल कर आदेश पर रोक लगाने की मांग की थी। जिस पर अब तीन न्यायाधीशों की पीठ ने उस आदेश में थोड़ा संशोधन किया है।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश एक कानून है, इसलिए भले ही कुत्तों को आश्रय स्थलों में रखने का आदेश दिल्ली तक सीमित हो, लेकिन यह आग्रह करना स्वाभाविक है कि इसे अन्य राज्यों के शहरों में लागू किया जाए। स्वाभाविक रूप से, विभिन्न शहरों के पशु प्रेमी सड़कों पर उतर आए होंगे। पहले से ही, मुंबई में पुलिस कक्ष को कबूतर प्रेमियों और विरोधियों को रखने के लिए ढीला कर दिया गया है। अगर इससे देशव्यापी बहस छिड़ जाती, तो यह गड़बड़ हो जाती। 2019 की पशु गणना के अनुसार, देश में 15 मिलियन आवारा कुत्ते हैं। इतने सारे कुत्तों के लिए आश्रय स्थलों का खुलना, टीकाकरण और नसबंदी के लिए पशु चिकित्सकों की नियुक्ति, और कुत्तों के लिए खाने-पीने की व्यवस्था एक ऐसा आदेश था जिसने सैकड़ों करोड़ रुपये के बोझ में सैकड़ों करोड़ रुपये जोड़ दिए। परिणाम को लागू करना व्यावहारिक नहीं था और ये संस्थान इसे लागू नहीं कर पाते क्योंकि उनके पास कुत्तों के लिए आश्रय स्थापित करने की वित्तीय ताकत नहीं थी। इसलिए अच्छा हुआ कि पशु मित्रों ने समय रहते फैसले को चुनौती दी और कोर्ट ने भी गलती सुधार ली।
कोर्ट ने सुझाव दिया कि आवारा कुत्तों को खिलाने के लिए एक विशिष्ट स्थान तय किया जाना चाहिए। इसके अलावा कोर्ट ने स्पष्ट चेतावनी दी कि अगर कोई भी कहीं भी उठकर आवारा कुत्तों को खाना खिलाएगा तो यह काम नहीं करेगा। कोर्ट ने कहा कि कुत्तों को कहीं भी खाना खिलाने वालों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी। बेशक, कोर्ट ने कहा, इसके लिए स्थानीय सरकारी कर्मचारियों को सतर्क रहना होगा। सुबह टहलने जाने वाले लोग और पशु मित्र अक्सर रात में कुत्तों को खाना खिलाते हैं। नगरपालिकाओं और स्थानीय निकायों से यह अपेक्षा करना कि यह कैसे करना है, हमारे देश की वास्तविकताओं से अवगत नहीं होना है। नगरपालिकाओं, नगर पालिकाओं और पुलिस की देखभाल करने की कुछ सीमा होनी चाहिए।
इस संबंध में, नागरिकों की जिम्मेदारी भी बहुत बड़ी है। पशु मित्र और उनके संगठन जो आवारा कुत्तों का समर्थन करते हैं, प्राथमिकता के साथ आए हैं। एक बार कुत्तों को खिलाने के स्थानों की पहचान हो जाने के बाद, पशु मित्र संगठनों को कुत्तों द्वारा आधे-अधूरे छोड़े गए स्थानों की सफाई की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। अन्यथा, कुत्ते बड़ी संख्या में रहेंगे जहां खाना खाया जाता है। भोजन के लिए एक-दूसरे पर हमला करें और आसपास के क्षेत्रों के लोग खाए गए भोजन की गंध से परेशान होंगे। जो कबूतरों का हुआ है, वही इन ढाबों का भी होगा जो सड़कों पर आवारा कुत्तों के लिए खोले गए थे। लोग यह रुख अपनाएंगे कि ‘हमारे क्षेत्र में कुत्तों को खिलाने के लिए कोई सार्वजनिक सुविधा नहीं है’, और संघर्ष जारी रहेगा। आंकड़े बताते हैं कि 2024 में देश भर में 3,715,713 लोगों को आवारा कुत्तों ने काटा था। यह रिकॉर्ड किया गया दंश इस बात का संकेत है कि स्थिति कितनी गंभीर है। इसका मतलब है कि देश में सैकड़ों लोग हर दिन कुत्तों द्वारा काटे जाते हैं। इंसान और कुत्ते। उनके बीच संघर्ष की जड़ यह है कि कुत्ते मनुष्यों को काटने की पेशकश करते हैं। मनुष्यों और कुत्तों के बीच जितना अधिक सामंजस्य होगा, उतना ही यह समस्या हल हो जाएगी। कुत्ते के शिकार पर मुख्य रूप से पहरा होता है, बच्चे और बुजुर्ग। पशु मित्रों को भी कुत्तों से निपटने के तरीके के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए। इस तरह के संतुलित और व्यापक उपायों से इस समस्या का समाधान हो जाएगा।
अदालत ने कहा कि अन्य क्षेत्रों में भोजन की अनुमति नहीं दी जाएगी क्योंकि अनियमित भोजन से आम आदमी को समस्याएं होती हैं। अदालत ने उल्लंघनों के खिलाफ शिकायत दर्ज करने के लिए हेल्पलाइन बनाने का भी निर्देश दिया। पीठ ने घोषणा की कि कोई भी व्यक्ति या संगठन अधिकारियों के कर्तव्यों के निर्वहन में कोई बाधा उत्पन्न नहीं करेगा। सुविधाओं के निर्माण के लिए प्रत्येक गैर-सरकारी संगठन को 25,000 रुपये का भुगतान किया जाएगा। अदालत ने स्पष्ट किया कि एबीसी नियमों के अनुसार, किसी भी व्यक्ति या संगठन को नगर निगम अधिकारियों को कुत्तों को उठाने से नहीं रोकना चाहिए।
कोर्ट ने आदेश में आवारा कुत्तों को गोद लेने की भी छूट दी है। आदेश में कहा है कि पशु प्रेमी आवारा कुत्तों को गोद लेने के लिए संबंधित नगर निकाय को अर्जी दे सकते हैं लेकिन उनकी जिम्मेदारी होगी कि जो कुत्ता उन्होंने गोद लिया है वह सड़क पर वापस नहीं होना चाहिए। कोर्ट ने सभी नगर निकायों को हलफनामा दाखिल कर मौजूदा ढांचागत संसाधनों के आंकड़े जैसे डॉग शेल्टर की संख्या, पशु चिकित्सक, कुत्ता पकड़ने वाले लोग, कुत्ता पकड़ने का विशेष वाहन और पिंजड़े आदि की संख्या बताने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पशुपालन विभाग के सचिवों और स्थानीय निकायों के सचिवों के जरिए पक्षकार के तौर पर जोड़ने का आदेश दिया है ताकि उनके यहां एबीसी रूल लागू करने के बारे में उठाए गए कदमों की जानकारी मिल सके। इसके साथ ही कोर्ट ने देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में आवारा कुत्तों की समस्या से संबंधित लंबित याचिकाएं भी सुप्रीम कोर्ट स्थानांतरित कर ली हैं। जिन पर इस मामले के साथ ही सुनवाई की जाएगी। कोर्ट ने आठ सप्ताह में अनुपालन रिपोर्ट मांगी है। मामले में आठ सप्ताह बाद फिर सुनवाई होगी।
दूसरी तरफ आवारा कुत्तों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के संशोधित फैसले से लोगों में निराशा बढ़ती जा रही है। लोगों का कहना है कि विभिन्न सोसायटियों और कॉलोनियों में पहले से ही फीडिंग पॉइंट बने हुए हैं, लेकिन डॉग लवर्स अब भी जगह-जगह कुत्तों को खाना खिलाते हैं।गर सार्वजनिक स्थानों पर खाना खिलाने का विरोध होता है, तो वे हिंसा पर उतर आते हैं। ऐसी घटनाएं पहले भी कई बार हो चुकी हैं।ट्रांस हिंडन के इंदिरापुरम, वैशाली, वसुंधरा, कौशांबी, मोहननगर, भोपुरा, राजेंद्र नगर, लाजपत नगर आदि इलाकों में कई सोसायटियां हैं, जिनमें सालों से फीडिंग पॉइंट बने हुए हैं।लेखक ने स्वयं इस रविवार को खाना खिलाने का विरोध को अजमाने के लिए वसई (जिला -पालघर ) में सार्वजानिक स्थान पर रात को खाना खिलाने वालों का विरोध किया तो जवाब मिला ‘ बुढ्ढे चल यहाँ से नहीं तो इन्ही कुत्तों से कटवा देंगे ‘ ।फोटो भी नहीं निकालने दिया गया । लेखक कई वर्षों से आवारा कुत्तों के आतंक के बारे में लिखते आ रहे है । एक बार सार्वजानिक स्थान को खाना खिलाते व स्थान गन्दा करने का समाचार फोटो सहित अख़बारों में छापने पर श्रीमती मेनका गाँधी के कार्यालय से चेतावनी भी सुन चुके है ।
इनमें से ज्यादातर सोसायटियों के पदाधिकारियों और लोगों का कहना है कि कुछ ही डॉग लवर्स उस पॉइंट का इस्तेमाल करते हैं। ज्यादातर डॉग लवर्स बेसमेंट, लिफ्ट के पास, पार्क, पार्किंग आदि में कुत्तों को खाना खिलाते हैं। फिर वही कुत्ते मौका मिलते ही लोगों पर हमला कर देते हैं।ज्यादातर कुत्ते बच्चों और बुजुर्गों पर हमला करते हैं। डॉग लवर्स द्वारा विरोध करने पर मारपीट हो जाती है। इसके बाद मामला पुलिस तक पहुंच जाता है। इससे लोग विरोध भी नहीं कर पाते।