
अजय कुमार
राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की वोटर अधिकार यात्रा इन दिनों बिहार की सड़कों पर धूम मचा रही है। कन्याकुमारी से कश्मीर तक की भारत जोड़ो यात्रा की तरह ही राहुल गांधी यहां भी पूरे जोश के साथ डटे हुए हैं। यात्रा में मजा आना जरूरी है, जैसा कि राहुल खुद कहते हैं, और लगता है कि उन्हें तेजस्वी यादव के साथ यह सफर खूब रास आ रहा है। लेकिन इस मजेदार सफर के बीच एक सवाल बार-बार उछल रहा है- क्या राहुल गांधी तेजस्वी यादव को बिहार के मुख्यमंत्री पद का चेहरा मानने से कतरा रहे हैं? तेजस्वी तो राहुल को प्रधानमंत्री बनाने की बात खुलकर कर रहे हैं, लेकिन राहुल की तरफ से वैसी ही निष्ठा क्यों नहीं दिख रही? यह सवाल बिहार की राजनीति में तूफान खड़ा कर रहा है, खासकर जब 2025 के विधानसभा चुनाव नजदीक हैं।यात्रा की शुरुआत सासाराम से हुई, जहां राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने मिलकर चुनाव आयोग पर वोट चोरी का आरोप लगाया। राहुल ने कहा कि चुनाव आयोग भाजपा के साथ मिलकर वोटर लिस्ट से नाम काट रहा है, और इसे ‘एसआईआर’ (सिस्टेमेटिक इलेक्टोरल रोल) का नाम देकर संस्थागत चोरी कर रहा है। यहां तक कि छोटे बच्चे भी ‘वोट चोर, गद्दी छोड़’ का नारा लगा रहे हैं, जैसा कि राहुल ने खुद बताया। यात्रा में बुलेट बाइक पर सवार होकर दोनों नेता जनता के बीच पहुंचे, जो एक आकर्षक दृश्य था। लेकिन इसी दौरान कुछ हादसे भी हुए- काफिले की गाड़ियों से दो सुरक्षा जवानों को चोट लगी, और एक युवक ने अचानक राहुल को किस कर लिया। सोशल मीडिया पर यह वीडियो वायरल हो गया, और सवाल उठा कि आगे कौन लीड कर रहा है- राहुल या तेजस्वी?
तेजस्वी यादव राहुल को ‘बड़े भाई’ कहकर संबोधित कर रहे हैं, और उनकी हर बात में सम्मान झलकता है। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब चिराग पासवान पर सवाल उठा, तो तेजस्वी ने उन्हें ‘बड़े भाई’ बताते हुए शादी करने की सलाह दी। राहुल हंस पड़े और बोले, ‘यह मेरे लिए भी लागू होता है।’ तेजस्वी ने तुरंत जवाब दिया कि पापा (लालू यादव) ने आपको यह सलाह पहले ही दे दी है। याद कीजिए, लोकसभा चुनाव से पहले पटना की इंडिया ब्लॉक मीटिंग में लालू यादव ने राहुल से कहा था, ‘आप दूल्हा बनिए, हम बाराती बनने को तैयार हैं।’ अब तेजस्वी भी यही बात दोहरा रहे हैं कि राहुल देश के प्रधानमंत्री बनें। लेकिन राहुल तेजस्वी को बिहार का सीएम फेस घोषित करने से क्यों बच रहे हैं?
यह सवाल मीडिया ने राहुल से कई बार पूछा। अररिया में एक संवाददाता सम्मेलन में जब पूछा गया कि तेजस्वी आपको पीएम बनाने की बात कर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस तेजस्वी को सीएम फेस क्यों नहीं मान रही? राहुल ने जवाब दिया, ‘हमारी पार्टनरशिप बहुत अच्छी है, कोई टेंशन नहीं, म्यूचुअल रिस्पेक्ट है, हम एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं, मजा आ रहा है। राजनीतिक और वैचारिक रूप से हम जुड़े हुए हैं, अच्छा रिजल्ट आएगा।’ लेकिन सीधा जवाब नहीं दिया। बिहार कांग्रेस के नेता जैसे कृष्णा अल्लावरु या राजेश कुमार भी यही सवाल टालते रहे हैं। वे कहते हैं कि यह फैसला आरजेडी का है, या फिर तेजस्वी चुनाव अभियान समिति के प्रमुख हैं। लेकिन सच्चाई यह लगती है कि कांग्रेस की हरी झंडी का इंतजार है।
क्या राहुल को तेजस्वी पर भरोसा नहीं? तेजस्वी तो अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ रहे। वे राहुल को बड़े भाई बताते हैं, उनके साथ बाइक चलाते हैं, और पीएम बनाने का ऐलान करते हैं। लेकिन राहुल का रुख ‘फूफा’ जैसा क्यों लग रहा है? आजकल सोशल मीडिया पर फूफा की नाराजगी के रील्स खूब चलते हैं, जहां फूफा शादी में रूठ जाते हैं। यहां भी राहुल को ‘दूल्हा’ बनने की सलाह दी जा रही है, लेकिन वे तेजस्वी को ‘दूल्हा’ बनाने से कतरा रहे हैं। लालू यादव ने नीतीश कुमार को भी पीएम बनाने पर हामी भरी थी, लेकिन वह सिर्फ दिखावा था, क्योंकि वे नीतीश को सीएम भी नहीं रहने देना चाहते थे। लेकिन तेजस्वी के मामले में राहुल का डर क्या है? तेजस्वी तो ममता बनर्जी या अरविंद केजरीवाल की तरह चुनौती नहीं दे रहे।बिहार की राजनीति में महागठबंधन की एकता जरूरी है। 2024 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी ने 4 सीटें जीतीं, कांग्रेस ने 3। 2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी 71 सीटों के साथ। लेकिन कांग्रेस जूनियर पार्टनर की भूमिका से बाहर निकलना चाहती है। राहुल की बिहार यात्राएं दलितों और युवाओं पर फोकस कर रही हैं, जो आरजेडी के वोट बैंक को प्रभावित कर सकती हैं। कांग्रेस को लगता है कि आरजेडी की जाति-आधारित राजनीति से अलग, वे रोजगार, शिक्षा और सेकुलरिज्म पर लड़ेंगी। लेकिन इससे आरजेडी चिंतित है। वाम दल भी चुप हैं, लेकिन वे तेजस्वी को सीएम मानने में कोई दिक्कत नहीं देखते।
यात्रा में उत्साह है। औरंगाबाद में दोनों नेताओं ने सूर्य मंदिर में पूजा की, जहां महिलाएं ‘वोट चोर गद्दी छोड़’ का नारा लगा रही थीं। पूर्णिया में बाइक रैली ने जनता को आकर्षित किया। लेकिन पप्पू यादव जैसे नेता तेजस्वी को ‘अहंकारी युवराज’ कहकर हमला कर रहे हैं। एक रैली में पप्पू यादव को मंच से नीचे धकेला गया था, जब राहुल मौजूद थे। यह दिखाता है कि महागठबंधन में आंतरिक कलह है। तेज प्रताप यादव भी अलग जन संवाद कर रहे हैं, जो तेजस्वी के लिए चुनौती बन सकता है।भाजपा इस पर चुटकी ले रही है। वे कहते हैं कि राहुल का अहंकार दिख रहा है, जो सीएम फेस पर सवाल टाल रहे हैं। नीतीश कुमार और मोदी पर हमले हो रहे हैं, लेकिन महागठबंधन की एकता पर सवाल हैं। राहुल की न्याय यात्रा और भारत जोड़ो यात्रा की सफलता से प्रेरित यह यात्रा वोटर अधिकारों पर फोकस है, लेकिन इसमें राजनीतिक महत्वाकांक्षा छिपी है। क्या राहुल बिहार में कांग्रेस को मजबूत करना चाहते हैं, या तेजस्वी को सीएम बनने से रोक रहे हैं? लालू का सोनिया गांधी को समर्थन वैसा ही था, जैसा अब तेजस्वी का है। लेकिन राहुल का रुख अलग है।अगर महागठबंधन जीतता है, तो सीएम कौन बनेगा? तेजस्वी की मेहनत और राहुल की लोकप्रियता मिलकर नीतीश को चुनौती दे सकती है। लेकिन भरोसे की कमी से हार भी हो सकती है। यात्रा में मजा आ रहा है, लेकिन सवाल बाकी हैं- क्या राहुल तेजस्वी को ‘दूल्हा’ बनने देंगे, या फूफा बनकर रूठे रहेंगे? बिहार की जनता देख रही है, और चुनाव बताएंगे कि यह पार्टनरशिप कितनी मजबूत है।
यह यात्रा सिर्फ वोटर अधिकारों की नहीं, बल्कि नेतृत्व की जंग भी है। राहुल की पिछली यात्राओं में तन्मयता दिखी, लेकिन यहां तेजस्वी के साथ समानता क्यों नहीं? तेजस्वी ने कहा कि राहुल पीएम बनेंगे, अगर इंडिया ब्लॉक सत्ता में आया। लेकिन बिहार में कांग्रेस का चुप रहना संदेह पैदा करता है। क्या कांग्रेस ज्यादा सीटें मांग रही है? या राहुल को तेजस्वी की छवि पर शक है? लालू की पुरानी बातें याद आती हैं, जब उन्होंने नीतीश को ‘जहर पीकर’ सीएम बनाया था। लेकिन अब मकसद तेजस्वी को सीएम बनाना है, और राहुल रास्ते में रोड़ा नहीं बन सकते, क्योंकि वे खुद बिहार के सीएम नहीं बनने वाले।
सोशल मीडिया पर बहस छिड़ी है। लोग कहते हैं कि राहुल की यात्रा महागठबंधन को मजबूत कर रही है, लेकिन कुछ इसे राहुल का हाईजैक मानते हैं। तेजस्वी की तरफ से पूरा समर्थन है, लेकिन राहुल वैसा क्यों नहीं कर रहे? क्या यह रणनीति है, या भरोसे की कमी? चुनाव नजदीक हैं, और यह सवाल जवाब मांग रहे हैं। महागठबंधन की एकता पर निर्भर करेगा बिहार का भविष्य। राहुल और तेजस्वी का यह सफर मजेदार है, लेकिन राजनीतिक रूप से चुनौतीपूर्ण भी। जनता की नजरें टिकी हैं कि क्या यह जोड़ी नीतीश-मोदी को हरा पाएगी, या आंतरिक मतभेद सब बिगाड़ देंगे।