ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन से धरती को बचाएगा अंतरिक्षीय बुलबुला!

निर्मल कुमार शर्मा

वैज्ञानिकों के अनुसार हमारी धरती पर स्थित समस्त जैवमण्डल दिनों-दिन बढ़ रही ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन जिसके कारण हीट वेव,सूखा,बाढ़,तूफान और समुद्र तल में बढ़ोतरी जैसी समस्याएं पैदा हो रहीं हैं,से अत्यंत दु:खी है,के लिए मानव प्रजाति द्वारा उत्सर्जित किए जा रहे कार्बन डाइऑक्साइड, जंगलों के विनाश,कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग और प्रदूषण के अतिरिक्त सूर्य में अनवरत पैदा होते सोलर तूफानों से पैदा होती और निकलती तीव्र रेडिएशन भी बहुत हद तक जिम्मेदार है ! सूर्य में अनवरत पैदा होते सोलर तूफानों से पैदा होती और निकलती तीव्र रेडिएशन के दुष्प्रभाव से इस धरती को बचाने के लिए अमेरिका स्थित मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी यानी एमआइटी के वैज्ञानिकों ने एक अनोखा सुझाव पेश किया है,उन्होंने सुझाव दिया है कि सूर्य और हमारी पृथ्वी के बीच उसके लैग्रेंज बिंदु मतलब L-2बिन्दु पर पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर,जहां अभी जेम्स वेब टेलीस्कोप स्थापित किया गया है,एक अंतरिक्षीय बुलबुला यानी Space Bubble स्थापित किया जाय,इसका आकार लगभग दक्षिण अमेरिकी देश ब्राजील के आकार का रखना होगा। यह हवा में तैरने वाला बुलबुला यानी Inflatable Bubble होगा !

इस जियो इंजीनियरिंग आधारित टेक्नोलॉजी के अनुसार ब्राजील के आकार का एक गोलाकार आकार का खाली बुलबुला बनाया जायेगा,जो एक तरल सिलिकॉन को अंतरिक्ष में ले जाकर उसे सीधे फुलाकर बनाया जाएगा,यह विशालकाय बुलबुला सूर्य से हमारी पृथ्वी पर आने वाली बहुत बड़ी रेडिएशन को पुनः अंतरिक्ष में अपवर्तित कर देने की क्षमता रखता है ! इस प्रकार सूर्य से धरती की तरफ आने वाली बहुत ही खतरनाक रेडिएशन को हम काफी हद तक रोक सकते हैं !

मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी यानी एमआइटी की सेंसेबल सिटी लैब या Sensible City Lab के अनुसार इस प्रकार के बुलबुलों का टेस्ट अंतरिक्ष में किया जा चुका है। वे अंतरिक्ष वैज्ञानिक मानते हैं कि एक दिन सूर्य की तरफ से आने वाले रेडिएशन को कम करने में ये बुलबुले अवश्य इस्तेमाल किए जाएंगे। शोधकर्ताओं की ओर से जारी विज्ञप्ति में यह कहा गया है कि अंतरिक्ष में मौजूद यह समाधान अन्य किसी भी समाधान से हर तरह से सुरक्षित भी होंगे !

अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के अनुसार जेम्स वेब टेलीस्कोप के समीप बनाया गया यह बुलबुला
अगह सूर्य से हमारी पृथ्वी की तरफ आनेवाले सोलर रेडिएशन को केवल 1.8 प्रतिशत भी रोक देता है,तो भी हम आज की ग्लोबल वार्मिंग को पूरी तरह खत्म करने में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार इस बुलबुले को सूर्य और हमारी धरती के बीच अंतरिक्ष में मौजूद लैग्रेंज प्वाइंट मतलब L-2 परिक्षेत्र में ही स्थापित करना चाहिए,क्योंकि यही क्षेत्र सूर्य की रेडिएशन मोड़ने के लिए एक आदर्श स्थान है !

मनुष्योचित्त और अन्यान्य कई कारणों से हमारी धरती का तापमान पिछले कई दशकों से उत्तरोत्तर बढ़ता ही जा रहा है ! वर्तमान समय में आग उगलते सूरज को देख कर तो यही महसूस होता है कि इस धरती पर अब भविष्य में आग युग की शुरुआत हो गई हो ! इसके लिए सूर्य में हो रहे ताप संबंधी बदलाव भी जिम्मेदार हैं। प्राकृतिक चेतावनियों मसलन बाढ़,सूखा, अतिवृष्टि,जंगलों में आग,भूस्खलन,बार-बार बादलों के फटने,समुद्रों में सुनामी आने,भयंकर तूफानों आदि से यह स्पष्ट है कि प्रकृति के साथ मानवता के पुराने मैत्रीपूर्ण रिश्तों में निश्चित रूप से एक बहुत बड़ी दरार आ चुकी है ! आज पर्यावरण,प्रकृति और विश्व शांति सभी कुछ बहुत ही खतरे में पड़ चुके हैं। असीमित बढ़ता वैश्विक तापमान या ग्लोबल वार्मिंग और परमाणु परीक्षणों व युद्धों से उत्पन्न होने वाला विकिरण आज समस्त मानव प्रजाति के अस्तित्व के लिए कहीं ज्यादा बड़े खतरे के रूप में सामने आ गए हैं !

यह अद्भुत विचार सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक जेम्स अर्ली का है !

अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के दिमाग में अभी-अभी आया यह अंतरिक्ष बुलबुला शोध परियोजना वास्तव में सुप्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक जेम्स अर्ली के विचारों पर ही आधारित है जिन्होंने इस धरती के असामान्य होते मौसम को संतुलित करने के लिए सबसे पहले अंतरिक्ष में एक विक्षेपी वस्तु तैनात करने का सुझाव दिया था। उसके बाद खगोलविद रोजर एंजेल ने बबल-बेड़े का प्रस्ताव रखा। हालांकि जियो-इंजीनियरिंग एक विज्ञान कथा से कम नहीं लगती,लेकिन आज के समय में इस टेक्नोलॉजी का प्रयोग वास्तविक दुनिया में सफलतापूर्वक होने लगा है !

सौर तूफान के खतरे !

वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि हमारी धरती का चुंबकीय क्षेत्र भी हमें सूरज की तरफ से आने वाले विकिरणों से हमें बचा लेता है,लेकिन इसके बावजूद भी सूरज पर उठने वाले तूफानों का बुरा असर धरती पर काफी पड़ जाता है। सूरज पर अनवरत उठते रहने वाले सौर तूफानों से उत्पन्न गरम लपटें हमारी धरती के बाह्य वायुमंडल को गरम कर देतीं हैं। इसका असर हमारे अंतरिक्ष वैज्ञानिकों द्वारा प्रक्षेपित सेटिलाइटों या उपग्रहों पर भी पड़ता है। सामान्य तौर पर सौर तूफान 16 लाख मील प्रति घंटे की गति से चलते हैं। इसका असर अंतरिक्ष में दूर-दूर तक होता है। इन्हीं सौर लपटों के आवेशित कण अंतरिक्ष से होते हुए बेहद तेज गति से धरती की ओर आ जाते हैं। जब ये धरती के चुंबकीय क्षेत्र से टकराते हैं तो प्रकाश के रूप में ऊर्जा उत्सर्जित करते हैं। इससे धरती का वायुमंडल कुछ सेंटीग्रेड तक अधिक गर्म हो जाता है और इसका सीधा असर जीपीएस,नेविगेशन, मोबाइल फोन और टीवी सिग्नलों पर पड़ता है। इनकी वजह से विद्युत लाइनों में करंट तेज हो जाता है,जिससे ट्रांसफार्मर तक भी जल जाते हैं !

सौर तूफान का इतिहास

ऐसा नहीं है कि सूरज में सौर तूफान होना कोई नई खगोलीय परिघटना हो !आज से ठीक 163वर्ष पहले सन् 1859 में पहली बार सौर तूफान का दुष्प्रभाव देखा गया था। उस समय सूर्य से आए अतिशक्तिशाली भू-चुंबकीय तूफान ने यूरोप और अमेरिका में टेलिग्राफ नेटवर्क को पूरी तरह से मटियामेट कर दिया था। इसके अलावा कम तीव्रता का एक सौर तूफान 1989 में भी आया था। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के अनुसार पिछले तूफानों के मुकाबले अब भविष्य के सौर तूफानों की तीव्रता ज्यादा भयावह होगी जो अंतरिक्ष में चक्कर लगा रहे हमारे विभिन्न जनोपयोगी उपग्रहों को भी प्रभावित कर सकते हैं और हमारी संचार व्यवस्था व जीपीएस प्रणाली तक को भी ठप कर सकते हैं !

वैज्ञानिकों के अनुसार मानव स्वास्थ्य के लिए अत्यंत खतरनाक सूरज से निकलने वाली पराबैंगनी किरणें भी अब एक खतरनाक स्तर तक पहुंच चुकी हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि इसका स्तर औसत से तीन गुना और बढ़ गया है ! इस दु:स्थिति में कड़ी धूप में बाहर निकलने वालों की आंखों में जलन,मोतियाबिंद,त्वचा का कैंसर और अन्य बीमारियां होने का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ता जा रहा है। पिछले कुछ महीनों से सूर्य पर काफी हलचल भरी गतिविधियां देखने को मिल रही हैं। पिछले दिनों सूरज पर मौजूद एक धब्बे में भयानक विस्फोट की तस्वीरें भी सामने आईं हैं !

सौर तूफान के दुष्प्रभाव

सूरज की सतह पर होनेवाली इस विस्फोट को पृथ्वी के लिए खतरे के रूप में देखा जा रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस विस्फोट से निकलने वाले विकिरण धरती पर भू-चुंबकीय तूफान का कारण बन सकते हैं। इससे इलेक्ट्रानिक उपकरणों के खराब होने का खतरा बहुत बढ़ जाता है। भू-चुंबकीय तूफान एक प्रकार का सौर तूफान है जो पूरे सौरमंडल को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। यह धरती के चुंबकीय क्षेत्र पर असर करने वाली महाविपदा है। अंतरिक्ष में चक्कर काट रहे मानवनिर्मित सेटेलाइट्स के लिए यह कितना घातक है,उदाहरणार्थ इस साल की शुरुआत में एलन मस्क की स्पेस कंपनी के 40 उपग्रह भू-चुंबकीय तूफान के शिकार हो गए थे ! अंतरिक्ष मौसम के बारे में शोध करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि 2020 से ही सौर-तूफान चक्र की शुरुआत हो चुकी है। आने वाले दिनों में पृथ्वी पर ऐसे ही कई सौर तूफान देखने को मिल सकते हैं !

वस्तुत: सौर तूफान के दौरान सूरज की सतह से असीम ऊर्जा का एक महाविशालकाय गुब्बारा उत्सर्जित होता है। इससे पृथ्वी पर विद्युत आवेश और चुंबकीय क्षेत्र की भारी बरसात आती रहती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि सूरज पर लंबे समय तक ऐसी स्थिति देखने को नहीं मिली थी,लेकिन अब सूरज पर एक चक्र एक बार फिर शुरू हो चुका है। पृथ्वी पर ऐसे सौर तूफान की वजह से पावर ग्रिड और संचार व्यवस्था पर तो असर पड़ता ही है,धरती के समस्त प्राणियों के लिए भी यह खतरनाक है। इस तरह के सौर तूफान मनुष्य प्रजाति पर भी घातक प्रभाव डालते हैं। स्पेसवेदर डॉट कॉम वेबसाइट या spaceweather.com website के अनुसार इस सोलर तूफान के चलते वैज्ञानिकों को चेतावनी जारी की गई है,कि वे इसके तहत लोगों को जरूरी सलाह दें कि अगर अत्यंत जरूरी ना हो तो वे विमान यात्रा करने से बचें,क्योंकि सैटेलाइट सिग्नलों में बाधा आ सकती है, जिससे विमानों की उड़ान,रेडियो सिग्नल,कम्यूनिकेशन और मौसम पर भी इसका दुष्प्रभाव देखने को मिल सकता है !

अभी तक विगत् में इस धरती पर आए सौर तूफानों से हुए नुकसान को लेकर वैज्ञानिकों की रूचि और खोज भी सीमित रही है। पहले इसे इतनी गंभीरता से लिया ही नहीं जाता था। लेकिन हाल के वर्षों में कई देश अंतरिक्ष मौसम के बारे में ज्यादा गंभीर हुए हैं। भारतीय वैज्ञानिक भी इस दिशा में तेजी से काम कर रहे हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि सूरज से आने वाले विकिरणों को इस अंतरिक्ष बुलबुले की तकनीक से पूरी तरह तो नहीं रोका जा सकता,लेकिन उसे कम जरूर किया जा सकता है। ऐसा भी नहीं कि यह जलवायु परिवर्तन से निपटने के मौजूदा प्रयासों का एकमात्र विकल्प हो। हां,यह बात जरूर है कि जलवायु संकट से निपटने के लिए जो भी मौजूदा उपाए किए जा रहे हैं,उनमें यह सबसे ज्यादा सफल तकनीक होगी !

इस धरती,इसके वातावरण,इसके पर्यावरण और इस पर उपस्थित समस्त जैवमण्डल को बचाने के लिए हमारे वैज्ञानिकों द्वारा विविध तरह से भरसक प्रयत्न सतत तौर पर किया जा रहा है ! सोलर तूफानों से बचाने के लिए अंतरिक्षीय बुलबुला यानी Space Bubble का अंतरिक्ष में स्थापित करने का उनका प्रयास भी अत्यंत सराहनीय है,क्योंकि धरती बचाओ की मुहिम अंतरिक्ष से भी होनी ही चाहिए,लेकिन अपनी धरती बचाने के लिए हम सामान्य जनों का भी प्रयास करना भी अभीष्ट कर्तव्य है, उदाहरणार्थ हमें इस धरती पर उपस्थित संसाधनों का उपभोग अपनी जरूरत के अनुसार ही करनी चाहिए ! ध्यान रहे हमें अपनी धरती को अपनी आनेवाली पीढ़ी को भी सौंपकर जाना है ! ताकि वे भी अपना जीवन अच्छे स्वास्थ्य और खुशहाली के साथ सुदीर्घ जीवन के साथ जी सकें !