
पूजा गुप्ता
आज का समय ऐसा है कि इंटरनेट हमारी जिंदगी का हिस्सा बन चुका है। बच्चे तो अब छोटी-छोटी उम्र से ही मोबाइल, टैबलेट और कंप्यूटर पर ऑनलाइन दुनिया में घूमने लगे हैं। पढ़ाई हो, गेम खेलना हो, यूट्यूब पर वीडियो देखना हो या दोस्तों से सोशल मीडिया पर चैट करना, बच्चे हर चीज के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं। खासकर कोरोना के समय में जब स्कूल ऑनलाइन हो गए, तब से बच्चों का इंटरनेट से जुड़ाव और बढ़ गया। लेकिन इस सुविधा के साथ-साथ कई खतरे भी हैं। इसलिए कहते हैं कि अगर बच्चे ऑनलाइन हैं, तो उनकी निगरानी करना बहुत जरूरी है। यह कोई सलाह नहीं, बल्कि आज की जरूरत है। इस लेख में हम इस बात को आसान और साधारण भाषा में समझेंगे कि बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा क्यों जरूरी है, कौन से खतरे हैं, और माता-पिता इसे कैसे संभाल सकते हैं।
सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि बच्चे इंटरनेट पर क्यों इतना समय बिताते हैं। आज के बच्चे, जिन्हें लोग डिजिटल नेटिव्स कहते हैं, इंटरनेट को अपनी जिंदगी का हिस्सा मानते हैं। उनके लिए ऑनलाइन गेम खेलना, दोस्तों से चैट करना, या यूट्यूब पर कुछ नया सीखना उतना ही आम है, जितना हमारे समय में बाहर खेलना। इंटरनेट से बच्चों को बहुत कुछ सीखने को मिलता है, जैसे कोडिंग, डांस, या नई भाषाएं। लेकिन इसके साथ कई खतरे भी हैं, जिनके बारे में माता-पिता को जानना जरूरी है।
पहला और बड़ा खतरा है साइबरबुलिंग। यानी ऑनलाइन बच्चों को परेशान करना। कई बार बच्चे सोशल मीडिया पर दूसरों से भद्दी टिप्पणियां या मजाक का सामना करते हैं। कुछ बच्चों को धमकियां भी मिलती हैं। इससे उनके दिमाग पर बहुत बुरा असर पड़ता है। कई बार बच्चे डर, चिंता या उदासी में चले जाते हैं। कुछ मामलों में तो इससे और गंभीर समस्याएं भी हो सकती हैं। फिर दूसरा खतरा है गलत चीजों का सामने आना। इंटरनेट पर ऐसी बहुत सी चीजें हैं, जो बच्चों के लिए ठीक नहीं, जैसे अश्लील वीडियो, हिंसक गेम या गलत खबरें। बच्चे जिज्ञासा में या गलती से ऐसी चीजें देख लेते हैं, जो उनके दिमाग पर बुरा असर डाल सकती हैं।
इसके अलावा, ऑनलाइन शोषण का खतरा भी है। कुछ लोग बच्चों से चैट या गेमिंग ऐप्स के जरिए दोस्ती करने की कोशिश करते हैं। वे बच्चों को बहलाते-फुसलाते हैं और उनकी निजी जानकारी, जैसे नाम, पता, फोटो या स्कूल का नाम, मांगते हैं। कई बार यह अपहरण या और गंभीर अपराधों तक ले जा सकता है। फिर गोपनीयता का मसला भी है। बच्चे बिना सोचे-समझे अपनी तस्वीरें या दूसरी जानकारी सोशल मीडिया पर डाल देते हैं। हैकर्स या गलत लोग इसका फायदा उठा सकते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 तक एक अरब से ज्यादा बच्चे ऑनलाइन डेटा चोरी का शिकार हो चुके हैं। इसके अलावा, ज्यादा स्क्रीन टाइम से बच्चों की नींद खराब होती है, आंखों को नुकसान होता है और वे असल जिंदगी में लोगों से कम जुड़ पाते हैं।
तो अब सवाल है कि माता-पिता इन खतरों से बच्चों को कैसे बचाएं? सबसे जरूरी है बच्चों से खुलकर बात करना। उन्हें बताएं कि इंटरनेट क्या है, इसके फायदे क्या हैं और खतरे क्या हैं। उन्हें सिखाएं कि अजनबियों से बात न करें और अपनी जानकारी शेयर न करें। यह बातचीत बच्चों को डराने के लिए नहीं, बल्कि जागरूक करने के लिए होनी चाहिए। इसके अलावा, कुछ तकनीकी उपाय भी हैं। जैसे, गूगल फॅमिली लिंक या एप्पल स्क्रीन टाइम जैसे ऐप्स का इस्तेमाल करें। ये ऐप्स बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों पर नजर रखते हैं, गलत वेबसाइट्स को ब्लॉक करते हैं और यह भी बताते हैं कि बच्चा कितना समय स्क्रीन पर बिता रहा है।
निगरानी का मतलब यह नहीं कि आप बच्चों की जासूसी करें। उन्हें बताएं कि आप उनके डिवाइस पर नजर रख रहे हैं ताकि वे सुरक्षित रहें। जैसे, अगर आप उनका लोकेशन ट्रैक कर रहे हैं, तो उन्हें इसका कारण समझाएं। स्कूलों में भी बच्चों को साइबर सुरक्षा के बारे में सिखाने के लिए क्लास होनी चाहिए। माता-पिता को भी खुद अच्छा उदाहरण बनना चाहिए। अगर आप खुद फोन पर दिनभर लगे रहेंगे, तो बच्चे भी वही करेंगे। इसलिए अपने स्क्रीन टाइम को भी सीमित रखें।
लेकिन निगरानी में संतुलन बहुत जरूरी है। अगर आप हर समय बच्चों के पीछे पड़े रहेंगे, तो उनकी निजता पर असर पड़ सकता है। छोटे बच्चों के लिए सख्त नियम ठीक हैं, लेकिन किशोरों को थोड़ी आजादी देनी चाहिए। अगर बच्चा कोई गलती करता है, जैसे गलत वेबसाइट पर चला जाता है, तो उसे डांटने के बजाय समझाएं। इससे वे अपनी गलतियों से सीखेंगे और जिम्मेदार बनेंगे।
निगरानी के कई फायदे हैं। बच्चे सुरक्षित महसूस करते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि कोई उनकी देखभाल कर रहा है। इससे माता-पिता और बच्चों के बीच विश्वास बढ़ता है। अगर हर माता-पिता निगरानी को गंभीरता से ले, तो ऑनलाइन अपराध कम हो सकते हैं। सरकार भी इसमें मदद कर सकती है, जैसे भारत में IT एक्ट के तहत सख्त नियम बनाकर।
अंत में, बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा हम सबकी जिम्मेदारी है। इंटरनेट एक शानदार चीज है, लेकिन इसके खतरे भी उतने ही बड़े हैं। माता-पिता, शिक्षक और समाज मिलकर बच्चों को सुरक्षित और जिम्मेदार डिजिटल दुनिया का हिस्सा बना सकते हैं। निगरानी का मतलब सिर्फ बच्चों पर नजर रखना नहीं, बल्कि उनके भविष्य को सुरक्षित करना है। आइए, हम सब यह सुनिश्चित करें कि हमारे बच्चे डिजिटल दुनिया में न सिर्फ सुरक्षित रहें, बल्कि उसका सही इस्तेमाल भी सीखें।