सुप्रीम कोर्ट ने बिहार SIR में आधार को दस्तावेज़ के रूप में स्वीकार किया, पर नागरिकता का सबूत नहीं माना जाएगा

Supreme Court accepts Aadhaar as a document in Bihar SIR, but it will not be considered as proof of citizenship

प्रीति पांडेय

सुप्रीम कोर्ट का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (8 सितंबर 2025) चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया के दौरान आधार कार्ड को 12वें वैध पहचान दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया जाए। हालांकि, कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि इसे नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जाएगा ।

यह आदेश बेंच—जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची—द्वारा पारित किया गया, जिसमें यह भी निर्देश दिया गया कि चुनाव आयोग आधार की प्रमाणिकता जांच सकता है, लेकिन नागरिकता की पुष्टि इसे नहीं करनी है। साथ ही, आयोग को आदेशों को अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करना भी निर्देशित किया गया है ।

चुनाव आयोग को नोटिस — अन्य राज्यों में SIR की संभावनाएं

कोर्ट ने असम, पश्चिम बंगाल, केरल, पुद्दुचेरी और तमिलनाडु में SIR कराने की मांग पर चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है और उनकी प्रतिक्रिया मांगी है । इन राज्यों में 2026 में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर, आयोग एक पैन-इंडिया SIR पर विचार कर रहा है, और इस पर 10 सितंबर को एक अहम बैठक आयोजित की जाएगी ।

SIR का व्यापक परिदृश्य — बिहार से आगे

बिहार में SIR प्रारंभ हो चुका है—24 जून को इसकी घोषणा हुई और 1 अगस्त को ड्राफ्ट वोटर लिस्ट जारी की गई। इसमें लगभग 65 लाख मतदाता नामों को हटाया गया, जिन्हें चुनाव आयोग ने विभिन्न कारणों (जैसे मृत्यु, प्रवासन, डुप्लीकेशन) से हटाया माना ।

सुप्रीम कोर्ट ने 14 अगस्त को ECI को निर्देश दिया कि यह डिलीट किए गए नामों की सूची जिला-वार, बूथ-स्तर पर ऑनलाइन और स्थानीय अधिकारियों के कार्यालयों में प्रकाशित करे — साथ ही, आधार या वोटर ID (EPIC) जैसे दस्तावेजों से पुनः नाम दर्ज कराने की अनुमति दी जाए ।

इसके बावजूद, कई लोग जिन्हें दस्तावेज़ अपूर्ण या अमान्य होने के कारण निकाला गया था, उनके लिए चुनाव आयोग ने फिर से आधार जमा करने का मौका उपलब्ध कराया है—कुछ को नोटिस भी जारी किए गए हैं । फ्लैग किया गया है कि लगभग 5% लोगों ने ऐसे दस्तावेज़ जमा किए, जो मताधिकार की पुष्टि नहीं करते—3-4 लाख नाम संभावित पुनः शामिल किए जा सकते हैं ।

राजनीतिक प्रतिक्रिया और आरोप-प्रत्यारोप

विभिन्न विपक्षी दल SIR प्रक्रिया को आलोचना का विषय बना रहे हैं।

इंडिया गुट ने आरोप लगाया कि यह मनमाना और लाखों मतदाताओं को मतदान से वंचित कर सकता है ।

वोकी पहचान समिति (VCK) के अध्यक्ष थोल थिरुमावलवन ने कहा कि चुनाव आयोग की विश्वसनीयता संकट में है, और यह SIR नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) का एक गुप्त रूप हो सकता है ।

TMC महासचिव अभिषेक बनर्जी ने EC पर बीजेपी के समर्थक होने का आरोप लगाया, और संभावित सामूहिक SIR कराने का विरोध करते हुए कहा कि वे लोकसभा चुनाव 2024 की निर्वाचित मान्यता तक़ पर सवाल उठा रहे हैं ।

वहीं, पश्चिम बंगाल में SIR को लेकर राज्य सरकार और चुनाव आयोग के बीच विवाद बढ़ गया है—EC ने कुछ स्टेट अधिकारियों के खिलाफ FIR दर्ज करने की मांग की है, CM ममता बनर्जी ने इसे अंजाम बताया है, लेकिन राज्य प्रशासन ने पर्याप्त संवाद नहीं होने का आरोप लगाया है ।

आगामी प्रक्रिया और समयसीमा

चुनाव आयोग ने बताया है कि ड्राफ्ट सूची में दावे और आपत्तियां 1 सितंबर तक ही स्वीकार की गईं, लेकिन आयोग ने यह भी कहा कि नाम शामिल करने के लिए अंतिम तारीख (नॉमिनेशन की तारीख) तक दावे स्वीकार किए जाएंगे ।
आखिरी वोटर लिस्ट 30 सितंबर को जारी की जाएगी, और सवाल यह है कि SIR प्रक्रिया पूरे देश में लागू होगी या नहीं—10 सितंबर को चेयरमैन की अगुवाई में राज्यों के चुनाव प्रमुखों की बैठक में इस पर निर्णय होने की उम्मीद है l

बिहार SIR में सुप्रीम कोर्ट ने आधार को पहचान दस्तावेज़ के रूप में स्वीकार्यता दी, लेकिन यह स्पष्ट किया कि यह नागरिकता का प्रमाण नहीं है। साथ ही, SIR प्रक्रिया देशभर में फैलने की संभावना और इसके कारण उठ रहे राजनीतिक विवादों ने इसे सिर्फ एक प्रशासनिक प्रयास से आगे बढ़ा कर एक संवैधानिक और राजनीतिक बहस बना दिया है। आगामी सुनवाई और 10 व 15 सितंबर की बैठकों के परिणाम इस दिशा में महत्वपूर्ण संकेत देंगे।