भारत का पड़ोसी देश क्यों सुलग रहे है नेपाल से श्रीलंका तक बवाल…

Why are India's neighboring countries burning? There is chaos from Nepal to Sri Lanka...

अशोक भाटिया

पिछले चार सालों में भारत के कई पड़ोसी देशों में घरेलू कारणों से उभरे आंदोलनों ने न सिर्फ सत्ता परिवर्तन को जन्म दिया बल्कि दक्षिण एशिया की स्थिरता पर भी सवाल खड़े कर दिए। नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका और म्यांमार की सड़कों पर उतरी भीड़ ने यह साबित कर दिया है कि इन देशों में राजनीतिक और सामाजिक असंतोष अपने चरम पर है।

पहले बात करें नेपाल की ।वहां सोमवार को बीते कल के भारत का छोटा भाई और आज चतुर चीन व मक्कार अमेरिका की गोद में झूल रहा नेपाल सुलग उठा। गुस्साई भीड़ नेपाली संसद में घुस पड़ी। ठीक उसी स्टाइल में जैसे कुछ समय पहले बांग्लादेश में बेकाबू भीड़ ने किया था। नेपाल की संसद के भीतर पहुंची भीड़ ने जमकर तोड़फोड़, आगजनी-पथराव किया।संसद और सरकार की इज्जत बचाने की कोशिश में नेपाली पुलिस द्वारा की गई गोलीबारी में 21 प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई। इन मौतों ने पहले से ही गुस्साई भीड़ के लिए आग में घी का काम कर डाला। पहले से ही उग्र भीड़ के गुस्से का ‘उग्रतम’ रूप और भयावह हो उठा। कुल जमा खबर लिखे जाने तक नेपाल का ससंद भवन भीड़ और पुलिस व नेपाली सुरक्षाकर्मियों की भीड़ से घिरा हुआ है।

कहा जा रहा है कि गुस्साई भीड़ में लाखों की तादाद में युवा शामिल हैं। जिनकी उम्र 18 से 35 साल रही है। आखिर युवाओं की ही भीड़ इस कदर गुस्से में क्यों? इसके पीछे नेपाल प्रशासन और वहां की सरकार की दलील है कि, “कुछ समय पहले नेपाली हुकूमत ने देश में 26 सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स पाबंद कर दिए। जैसे कि यूट्यूब, इंस्टाग्राम, फेसबुक, एक्स (पहले ट्विटर) आदि-आदि। इसी से युवाओं की भीड़ विरोध में सड़कों पर उतर आई।”

चलिए नेपाल सरकार की यह दलील मान ली जाए तो सवाल पैदा होना लाजिमी है कि, आखिर इन गुस्साए युवाओं की भीड़ हाथों में “भ्रष्ट नेपाल सरकार को हटाओ, प्रधानमंत्री ओपी शर्मा ओली महाभ्रष्ट है” की तख्तियां और बैनर क्यों थे? सरकार का तो ताल ठोंककर दावेदारी कर रही है कि, नेपाल के युवाओं की भीड़ सरकार द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स के पाबंद किए जाने से नाराज है। तब फिर सरकार और नेपाली प्रधानमंत्री ओपी शर्मा ओली के भ्रष्ट होने का मुद्दा कैसे इस बवाल में बुरी तरह से उछाल कर ‘जलाया-झोंका-फूंका’ जा रहा है जो गृह मत्री रमेश लेखक के इस्तीफे व सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स से पाबन्दी हटाने से शांत नहीं हो रहा है ।

भारतीय थलसेना के “कोर ऑफ इंजीनियर्स” से रिटायर जेएस सोढ़ी एनडीए, खड़कवासला और आईआईटी कानपुर के काबिल स्टूडेंट्स में शुमार रहे हैं। ले। कर्नल जे एस सोढ़ी कहते हैं कि नेपाल में जो कुछ हो रहा है उस पर भारत को हैरान होने की नहीं, इस सब बवाल से हमें सतर्क-चौकन्ना रहने की जरूरत है। क्योंकि बीते कल में खुद को भारत का छोटा भाई कहने वाला नेपाल बीते कई साल से अपनी स्वार्थ-पूर्ति के लिए पाकिस्तान की तरह ही चतुर चीन और मक्कार अमेरिका की गोद में बैठकर झूल रहा है। अब नेपाल को अपना छोटा भाई समझने की गलती भारत न कर बैठे। हालांकि, हिंदुस्तानी हुकूमत नेपाल के इस बदले हुए रुख को काफी पहले से ताड़े-भांपे बैठा है।

कान का कच्चा और आंख के अंधे जिस नेपाल को भारत, चीन और अमेरिका की विश्वसनीयता में अंतर कर पाने का ही माद्दा बाकी न बचा हो। तब फिर नेपाल में कोई भी बवाल होने वाला है या क्या बवाल कब होने वाला है? यह जानकारी तो नेपाल अपने मतलबपरस्त मक्कार दोस्त अमेरिका और चतुर चीन से मांगे न। चीन और अमेरिका की खुफिया एजेंसियां बताएं नेपाल को, या नेपाल पूछे उनसे कि, नेपाल की संसद पर हमला होने वाला था, और चीन-अमेरिका की एजेंसियों क्यों कहां सोती रहीं? भारतीय एजेंसियां तो नेपाल की मदद तभी करेंगी न जब नेपाल, भारत के दुश्मन देश चीन, और चालबाज अमेरिका की गोद में खेलना बंद करेगा। वरना भारत को क्या पड़ी है कि नेपाल भारत के खिलाफ खेले तो चीन-अमेरिका के हाथों में। और नेपाल कब क्यों कैसे जलने वाला है? यह खबर नेपाल को भारतीय एजेंसियां दें। अंतरराष्ट्रीय वैश्विक, सामरिक, विदेश नीति और कूटनीति में ऐसा कहीं नहीं लिखा है कि जो देश, किसी देश के साथ मक्कारी करे, वही पीड़ित देश उस मक्कार देश की मदद करे।”

बांग्लादेश की बात करें तो बांग्लादेश में अशांति का माहौल 2022 से ही बनने लगा था, लेकिन मई 2024 में यह गुस्सा चरम पर पहुंच गया। राजधानी ढाका और अन्य शहरों में शेख हसीना सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए। प्रदर्शनकारियों की मांग थी कि अवामी लीग और उसकी छात्र इकाई पर प्रतिबंध लगाया जाए। आरोप था कि पार्टी लंबे समय से सत्ता पर काबिज रहकर विपक्ष को कमजोर कर रही है और छात्र संगठन हिंसा को बढ़ावा दे रहे हैं। सरकार के प्रयासों के बावजूद विरोध थमा नहीं और आखिरकार अगस्त 2024 में शेख हसीना को देश छोड़ना पड़ा। शेख हसीना के खिलाफ जिन छात्रों ने विरोध प्रदर्शन कर सत्ता परिवर्तन किया था वही आज मौजूदा सरकार के खिलाफ भी खड़े होते दिख रहे हैं। NCP ने बीते दिनों ढाका विश्वविद्यालय के परिसर में विरोध भी किया था साथ ही आरोप लगाया था कि सेना एक साजिश के तहत शेख हसीना की अवामी लीग के लिए चुनाव में फायदा पहुंचाने की कोशिश हो रही है। आपको बता दें कि कुछ दिन पहले ही बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के सूचना सलाहकार और छात्र आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक नाहिद इस्लाम ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने पिछले साल जुलाई में हुए विद्रोह में शामिल कार्यकर्ताओं द्वारा एक नई राजनीतिक पार्टी शुरू करने से पहले यह कदम उठाया था। यानि कि विद्रोह आज भी जारी है ।

बात करे भारत के दुश्‍मन और परमाणु शक्ति से लैस पाकिस्तान भी पिछले दो सालों में दो बड़े प्रदर्शनों का गवाह बना है। मई 2023 में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ्तारी ने पूरे पाकिस्तान में आग भड़का दी। लाहौर से लेकर इस्‍लामाबाद और रावलपिंडी तक उनके समर्थक सड़कों पर उतरे और कई जगहों पर हालात बेकाबू हो गए। सरकारी इमारतों, पुलिस चौकियों और यहां तक कि सेना के प्रतिष्ठानों पर भी हमले हुए। कई शहरों में कर्फ्यू जैसी स्थिति बनी और इंटरनेट सर्विसेज पूरी तरह से बंद कर दी गईं।विशेषज्ञों की मानें तो यह पाकिस्तान के इतिहास में उन असाधारण मौकों में से एक था जब जनता का गुस्सा सीधे सेना की ओर मुड़ा। इन प्रदर्शनों ने यह संकेत दिया कि पाकिस्तान की राजनीति और सत्ता पर कितना बड़ा संकट है। प्रदर्शन उस समय हुए जब इमरान के सत्ता से हटने के करीब एक साल बाद तोशाखान मामले में उन्‍हें गिरफ्तार कर लिया गया था। इमरान अभी तक जेल में बंद हैं। इस प्रदर्शन में जहां 10 से ज्‍यादा लोगों की मौत हुई तो वहीं हजारों लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था।

हॉल ही में पाकिस्तान का बलूचिस्तान बेहद अशांति है। यहां हाल के समय में पाकिस्तान विरोधी हिंसा के मामलों में काफी बढ़ोतरी हुई है। पिछले दिनों बलूचिस्तान में दो विभिन्न मामलों में बलूच बंदूकधारियों ने करीब 40 लोगों को मौत के घाट उतार दिया। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बलूचिस्तान में पिछला अगस्त का महीने पिछले 6 साल का सबसे घातक महीना रहा है। अगस्त महीने में सबसे ज्यादा हिंसा के मामले आए हैं।पाकिस्तान इंस्टीट्यूट फॉर कॉन्फ्लिक्ट एंड सिक्योरिटी स्टडीज (PICSS) के अनुसार अगस्त के महीने में पाकिस्तान में सरकार विरोधी हिंसा के मामलों में खतरनाक ढंग से बढ़ोतरी हुई है। इस कारण यह पिछले 6 साल का सबसे ज्यादा अशांत महीना बन गया है। अगस्त में बलूचिस्तान में सबसे अधिक मौतें होने के मामले सामने आए हैं।PICSS की जारी रिपोर्ट के अनुसार केवल अगस्त के महीने में हिंसा की घटनाओं में पाकिस्तान में कम से कम 254 लोग मारे गए। इनमें 92 नागरिक, 108 आतंकवादी और 54 सशस्त्र सैनिक शामिल थे। इसके अतिरिक्त अलग अलग घटनाओं में करीब 150 लोग घायल हुए। इनमें 88 के करीब आमजन थे।

पाकिस्‍तान से पहले भारत का एक और पड़ोसी श्रीलंका में साल 2022 में बड़े प्रदर्शन हुए। भयंकर आर्थिक संकट के बाद देश धीरे-धीरे सुधार की कोशिशों की तरफ बढ़ रहा था लेकिन जनता नाराज थी। राजधानी कोलंबो, कैंडी और कई और शहरों में हजारों लोगों ने बिजली कटौती, महंगाई, ईंधन की कीमतों में वृद्धि और बेरोजगारी के खिलाफ प्रदर्शन किए। कई जगह भ्रष्टाचार के खिलाफ नारेबाजी भी हुई। इस प्रदर्शन की नींव दरअसल मार्च 2022 में ही पड़ चुकी थी। श्रीलंका में हुए इन प्रदर्शनों को अरगलाया आंदोलन का नाम दिया गया था। प्रदर्शन के बीच ही जनता राष्‍ट्रपति के आधिकारि‍क निवास में दाखिल हो गई और तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति महिंदा राजपक्षे को देश छोड़कर भागना पड़ गया। फिलहाल पूर्व राष्‍ट्रपति और पीएम रानिल विक्रमसिंघे सरकारी फंड के दुरुपयोग के आरोप में जेल की सजा काट रहे हैं।

फरवरी 2021 में भारत के नॉर्थ-ईस्‍ट रीजन से सटे म्यांमार में सैन्य तख्तापलट हो गया। देश में तब से ही हालात लगातार अस्थिर हैं और जनता लोकतंत्र की बहाली के लिए संघर्ष कर रही है। 2025 में भी विश्वविद्यालयों, मंदिरों और कस्बों में विरोध प्रदर्शन जारी हैं। छात्रों, नागरिक समूहों और भिक्षुओं ने सेना के खिलाफ आवाज बुलंद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। तख्‍तापलट के बाद से ही देश की नेता आंग सा सू की जेल में हैं और सेना सत्ता पर काबिज है। देश में इन हालातों में गिरफ्तारियां, गोलीबारी, इंटरनेट ब्लैकआउट और मीडिया पर पाबंदियां आम हैं। देश पर अंतरराष्‍ट्रीय दबाव भी बढ़ रहा है लेकिन सैन्य शासन अभी भी सख्ती से सत्ता पर काबिज है। 2021 में हुए प्रदर्शन को स्प्रिंग रेवॉल्‍यूशन के नाम से जाना जाता है।