
सोनम लववंशी
भारत आज एक ऐसे मुकाम पर खड़ा है, जहाँ आर्थिक नीतियां केवल वित्तीय संतुलन का उपकरण नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और राष्ट्र निर्माण का माध्यम बन चुकी हैं। जीएसटी परिषद का हालिया निर्णय इसका सशक्त प्रमाण है। दरों को सरल बनाकर पाँच और अठारह प्रतिशत की दो श्रेणियों में सीमित करना तथा विलासिता और नुकसानदेह वस्तुओं पर उच्चतम दर लागू करना केवल कर ढांचे की जटिलताओं को कम करने का प्रयास नहीं है, बल्कि यह संकेत है कि सरकार नागरिकों और कारोबारियों के बीच विश्वास को प्राथमिकता देती है। महामारी के समय राज्यों की आय-हानि की भरपाई हेतु उठाए गए ऋण को उपकर से सीमित अवधि में चुकता करने का संकल्प भी यही दर्शाता है कि सरकार आर्थिक अनुशासन और संघीय सहयोग दोनों पर समान रूप से केंद्रित है। लेकिन मोदी सरकार का दृष्टिकोण केवल कर सुधार तक सीमित नहीं है। प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस पर अगली पीढ़ी के सुधारों की घोषणा करते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि भारत की नीतियां आज नहीं, आने वाले कल की चुनौतियों और अवसरों को ध्यान में रखकर गढ़ी जा रही हैं। यही दूरदर्शिता राष्ट्र निर्माण की सच्ची कसौटी है। सुधारों का मकसद केवल आंकड़े सुधारना नहीं, समाज की संरचना को मजबूत करना, अंतिम पंक्ति के व्यक्ति तक विकास पहुँचाना और हर नागरिक के जीवन स्तर को ऊँचा उठाना है।
विनिवेश पर नए सिरे से दिया गया जोर इसी व्यापक दृष्टिकोण का हिस्सा है। अब सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि विनिवेश केवल राजस्व जुटाने का साधन नहीं, यह शासन व्यवस्था को अधिक चुस्त, पारदर्शी और सक्षम बनाने का साधन है। गैर-रणनीतिक क्षेत्रों में सार्वजनिक उपक्रमों से सरकार की हिस्सेदारी कम होने का अर्थ है निजी क्षेत्र के लिए अवसरों का विस्तार और संसाधनों का बेहतर उपयोग। इससे न केवल दक्षता बढ़ती है, रोजगार और उद्यमिता की संभावनाएं भी मजबूत होती हैं। वहीं रणनीतिक क्षेत्रों में सरकार की उपस्थिति यह संदेश देती है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और बुनियादी ढांचे जैसे संवेदनशील विषयों पर राज्य की भूमिका अपरिहार्य है। सरकार ने वार्षिक विनिवेश लक्ष्य तय करने की परंपरा समाप्त कर दी है। यह बदलाव मामूली नहीं, बेहद गहन महत्व रखता है। पहले यह प्रक्रिया अक्सर राजकोषीय घाटे को कम करने की कवायद बन जाती थी। अब यह स्पष्ट है कि विनिवेश से जुटाई गई राशि दीर्घकालिक पूंजीगत निवेश, अवसंरचना निर्माण, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों पर केंद्रित होगी। इससे न केवल विकास की गति तेज होगी बल्कि भविष्य की पीढ़ियों पर सार्वजनिक ऋण का बोझ भी कम होगा।
इतना ही नहीं इन निर्णयों के पीछे जो मूल विचार है, वह है भविष्योन्मुखी दृष्टि और सामाजिक न्याय का संतुलन। कर सुधार छोटे कारोबारियों को राहत देकर स्थानीय स्तर पर उत्पादन और रोजगार को प्रोत्साहित करेंगे। इससे आर्थिक असमानता कम होगी और समाज के कमजोर वर्गों को मजबूती मिलेगी। वहीं विनिवेश से मिलने वाले संसाधन यदि शिक्षा, कौशल विकास और स्वास्थ्य जैसी आधारभूत जरूरतों में लगाए जाएं तो यह सीधे-सीधे ज्ञानोदय की ओर बढ़ाया गया कदम होगा। यही वह बिंदु है जहाँ अंत्योदय और ज्ञानोदय आपस में मिलते हैं। सबसे अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति की आर्थिक और सामाजिक बेहतरी से ही समाज का सामूहिक उत्थान संभव है। मोदी सरकार की नीतियों में विश्वास की एक स्पष्ट धारा दिखाई देती है। महामारी के कठिन दौर में राज्यों की जरूरतों को पूरा करने के लिए केंद्र ने ऋण लेकर सहयोग दिया। अब उसी ऋण को समयबद्ध तरीके से चुकाने का निर्णय यह दर्शाता है कि भारत केवल आर्थिक प्रबंधन ही नहीं, बल्कि जिम्मेदार शासन की मिसाल भी प्रस्तुत कर रहा है। यह विश्वास का ताना-बाना ही है जो संघीय ढांचे को मजबूत करता है और भारत जैसे विविधतापूर्ण राष्ट्र को एकजुट रखता है।
विकास तभी स्थायी होता है जब वह समावेशी हो। मोदी सरकार बार-बार यह संदेश देती रही है कि विकास की धारा केवल महानगरों तक सीमित न होकर गांव, किसानों, महिलाओं, युवाओं और श्रमिकों तक पहुँचे। कर ढांचे की सरलता, विनिवेश की पारदर्शिता और संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग से यही सुनिश्चित किया जा रहा है। यह दृष्टिकोण स्पष्ट करता है कि सरकार का लक्ष्य केवल आर्थिक महाशक्ति बनना नहीं, बल्कि सामाजिक रूप से न्यायपूर्ण राष्ट्र बनाना है। विश्वास और पारदर्शिता का यह संगम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की छवि को मजबूत करता है। विदेशी निवेशक तभी किसी अर्थव्यवस्था में भरोसा करते हैं जब उन्हें नीति-निर्माण में स्पष्टता और दीर्घकालिक स्थिरता नजर आती है। हालिया निर्णय यही संदेश देते हैं कि भारत अपनी आर्थिक यात्रा में केवल अल्पकालिक राजस्व की चिंता नहीं करता, पीढ़ियों के भविष्य की चिंता करता है।
कुल मिलाकर, मोदी सरकार की आर्थिक और सामाजिक नीतियां यह प्रमाणित करती हैं कि उसका सरोकार सत्ता संचालन तक सीमित नहीं है। उसका लक्ष्य है एक ऐसे राष्ट्र का निर्माण, जहाँ हर नागरिक के जीवन में विकास का प्रकाश पहुँचे, जहाँ संसाधनों का वितरण न्यायपूर्ण हो और जहाँ आने वाली पीढ़ियाँ एक सक्षम, आत्मनिर्भर और सशक्त भारत की विरासत पाएँ। यही वह यात्रा है जो अंत्योदय से ज्ञानोदय तक जाती है और जब यह यात्रा पूरी होगी, तब भारत केवल आर्थिक शक्ति के रूप में नहीं, बल्कि विश्व को यह संदेश देने वाले राष्ट्र के रूप में उभरेगा कि विकास का वास्तविक अर्थ है विश्वास, न्याय और दूरदर्शिता का संगम। यही सच्चा राष्ट्र निर्माण है और यही मोदी सरकार की नीति और नियत का सार है।