परिधि से मुख्यधारा तक: UNHRC में पूर्वोत्तर भारत के विकास पथ पर उच्च स्तरीय नीति संवाद

From periphery to mainstream: High-level policy dialogue on Northeast India's development trajectory at UNHRC

रविवार दिल्ली नेटवर्क

जिनेवा : इंडिया वाटर फाउंडेशन (IWF) द्वारा संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) के 60वें सत्र के आधिकारिक साइड इवेंट के रूप में “परिधि से मुख्यधारा तक: पूर्वोत्तर भारत के विकास पथ” विषय पर एक उच्च स्तरीय नीति संवाद आयोजित किया गया। यह आयोजन जिनेवा के पैलेस डेस नेशन्स के बिल्डिंग-A, रूम-VII में सम्पन्न हुआ।

इस संवाद में प्रमुख नेताओं, नीति निर्माताओं और विशेषज्ञों ने भाग लिया और इस बात पर प्रकाश डाला कि किस प्रकार पूर्वोत्तर भारत एक परिधीय क्षेत्र से बदलकर अब देश की विकास यात्रा का एक सशक्त इंजन बनता जा रहा है।

प्रमुख वक्ताओं में शामिल रहे:

  • डॉ. अरविंद कुमार, अध्यक्ष, इंडिया वाटर फाउंडेशन
  • सुश्री मिकिको तनाका, निदेशक, UN ESCAP दक्षिण एवं दक्षिण-पश्चिम एशिया कार्यालय
  • प्रो. एडी मुअर्स, रेक्टर, IHE डेल्फ्ट
  • डॉ. पेमा ग्याम्त्शो, महानिदेशक, ICIMOD
  • श्री विनोद मिश्रा, कंट्री मैनेजर, UNOPS इंडिया
  • सुश्री श्वेता त्यागी, प्रमुख कार्यकारी, IWF
  • श्री सतीश कुमार दामोदरन, आईटी विशेषज्ञ, स्विस सरकार

डॉ. अरविंद कुमार ने अपने उद्बोधन में पूर्वोत्तर भारत में “कनेक्टिविटी, सततता और समावेशिता के बीच सामंजस्य” को रेखांकित किया। उन्होंने सिक्किम के विश्व का पहला पूर्णतः जैविक राज्य बनने, मिजोरम में शत-प्रतिशत साक्षरता और असम में दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा कैंसर केयर नेटवर्क स्थापित होने जैसे उल्लेखनीय उपलब्धियों को साझा किया।

प्रो. मुअर्स ने जल सहयोग के माध्यम से वैश्विक मंच पर पूर्वोत्तर की भूमिका को रेखांकित किया और स्थानीय ज्ञान को संस्थागत क्षमता निर्माण से जोड़ने की आवश्यकता पर बल दिया। डॉ. पेमा ग्याम्त्शो ने ICIMOD द्वारा चलाए जा रहे पारिस्थितिकी-आधारित आजीविका कार्यक्रमों, बाढ़ पूर्व चेतावनी प्रणालियों और हिमालयी भागीदारों के साथ साझा सीखने की पहलों का उल्लेख किया।

सुश्री मिकिको तनाका ने BBIN ढांचे के तहत सीमा-पार व्यापार और संपर्क में वृद्धि की संभावनाएं बताते हुए गैर-शुल्क बाधाओं को दूर करने की आवश्यकता जताई। श्री विनोद मिश्रा ने जल जीवन मिशन और स्वच्छ भारत जैसी पहलों के माध्यम से सतत विकास लक्ष्य (SDGs) में मिली प्रगति पर प्रकाश डाला, साथ ही क्षेत्रीय समानता और जलवायु कार्रवाई की दिशा में आगे काम करने की आवश्यकता बताई।

श्री सतीश कुमार दामोदरन ने स्थानीय, केंद्रीय सरकार, नागरिक समाज और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के बीच बहु-स्तरीय साझेदारियों की आवश्यकता बताई और पूर्वोत्तर की सफलताओं को अन्य क्षेत्रों में दोहराने के लिए डिजिटल टूल्स और नागरिक-केंद्रित शासन की वकालत की।

कार्यक्रम का संचालन सुश्री श्वेता त्यागी ने किया और उन्होंने युवाओं, महिलाओं एवं डिजिटल सशक्तिकरण के साथ-साथ सामुदायिक आजीविका कार्यक्रमों में भागीदारी पर प्रकाश डाला।

संवाद का सार –
सभी वक्ताओं ने यह स्वीकार किया कि जलवायु संवेदनशीलता और आपदा जोखिम जैसी चुनौतियां अब भी बनी हुई हैं। इनसे निपटने के लिए क्षेत्रीय सहयोग, नवाचार आधारित वित्तीय मॉडल, पारंपरिक ज्ञान का आधुनिक नियोजन में समावेश, और स्थानीय व उप-राष्ट्रीय स्तर पर क्षमता निर्माण को आवश्यक बताया गया।

समापन में, सभी प्रतिभागियों ने इस बात को दोहराया कि पूर्वोत्तर भारत न केवल ASEAN और BIMSTEC अर्थव्यवस्थाओं का प्रवेश द्वार है, बल्कि समावेशी, सतत और जलवायु-प्रतिकारक विकास पथ का एक वैश्विक उदाहरण भी बन रहा है।