
प्रीति पांडेय
13 सितम्बर 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मणिपुर दौरा ऐसे समय में हो रहा है जब राज्य में सामाजिक तनाव और हिंसा की गूंज अभी भी शांत नहीं हुई है। इस दौरे से जुड़े विकास और कार्यक्रमों के माध्यम से केंद्र सरकार शांति, सामान्यता और पुनर्निर्माण की दिशा में पहल करना चाहती है, लेकिन विपक्ष और प्रभावित समुदायों की आशंकाएँ भी कम नहीं हैं।
दौरे की रूप-रेखा और घोषणाएँ
मुख्यमंत्री सचिव पूनीत कुमार गोयल ने बताया है कि पीएम मोदी का यह दौरा राज्य में शांति, सामान्यता और विकास की राह खोलेगा।
इस दौरान मणिपुर के चुराचंदपुर (जहां कुकी समुदाय की संख्या ज़्यादा है) में करीब ₹7,300 करोड़ की विकास परियोजनाओं की आधारशिला रखी जाएगी।
इम्फाल (मैतेई बहुल क्षेत्र) में ₹1,200 करोड़ की इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं का उद्घाटन होगा।
सुरक्षा व्यवस्था कड़ी की गई है। कार्यक्रम स्थलों पर भारी सुरक्षा इंतज़ाम, दर्शकों हेतु निर्देश जैसे कि बैग, छाता, लैम्प, माचिस, बच्चों और बीमार व्यक्तियों के साथ आने से परहेज़ आदि।
पृष्ठभूमि: दो-वर्षीय तनाव
मई 2023 से कुकी-ज़ो और मैतेई समुदायों के बीच हिंसा भड़की थी, जिसमें दोनों पक्षों से लोगों की मौत हुई, हजारों लोगों ने अपने घर छोड़े।
इस हिंसा का कारण सामाजिक, जातीय, आर्थिक एवं राजनीतिक असंतुष्टियाँ थीं — विशेष रूप से भूमि, जाति-परिस्थितियाँ, आरक्षण, पहचान और सुरक्षा को लेकर।
विपक्ष और प्रभावित समुदायों की प्रतिक्रियाएँ
कांग्रेस के कई नेताओं ने दौरे का स्वागत किया है जैसे कि राहुल गांधी जिन्होंने कहा कि “मणिपुर की समस्या लंबे समय से चली आ रही है, अच्छा हुआ कि वे अब जा रहे हैं।”
लेकिन आलोचनाएँ भी सामने आई हैं:
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि दौरे की तैयारियाँ अनिन्द्रिय प्रतीत होती हैं और यह कि पीएम सिर्फ तीन घंटे ही मणिपुर में बिताएँगे, जिससे यह “तीखा संकेत” बनेगा कि उन्हें राज्य की समस्या की गहराई का एहसास नहीं है।
पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता Okram Ibobi Singh ने कहा कि एक सर्व-पार्टी (all-party) बैठक होनी चाहिए ताकि हर राजनीतिक दल और प्रभावित समुदायों की आवाज़ सुनी जाए।
कुकी-ज़ो प्रभावितों ने भावनात्मक असमर्थता व्यक्त की है — उन्होंने कहा है कि वे अभी भी अपने नुकसान और विस्थापन की यादों से जूझ रहे हैं, इसलिए समारोहों में भाग लेने में सहज महसूस नहीं करते।
क्या फर्क लाएगा यह दौरा?
समस्याओं की वास्तविक समझ और लंबी अवधि की नीति प्रतिबद्धता
सिर्फ विकास परियोजनाएँ ही पर्याप्त नहीं हैं; प्रभावित समुदायों को सुरक्षा, पुनर्वास, न्याय, पहचान और प्रशासनिक आश्वासनों का भरोसा चाहिए। यदि केंद्र सरकार इन पहलुओं में ठोस कदम उठाती है, तो विश्वास बनेगा।
समावेशी संवाद
सभी समुदाय — कुकी, मैतेई, ज़ो आदि — राजनीतिक दल, नागरिक समाज, प्रभावित परिवारों को शामिल करके संवाद की प्रक्रिया तैयार होना चाहिए। केवल कार्यक्रमों का उद्घाटन या शिलान्यास करना पर्याप्त नहीं है; उनके बाद लागू योजनाएँ और निगरानी भी ज़रूरी है।
पिछले अनुभवों से सीखा जाना
पिछले महीनों و वर्षों में हुई हिंसा और विस्थापन ने जो घाव छोड़े हैं, उन्हें ध्यान में रखकर राहत और पुनर्निर्माण के कार्यों को जल्दी और विश्वसनीय तरीके से करना होगा। अन्यथा, अपेक्षाएँ अधूरी रह जाएँगी।
प्रभाव और प्रतीकात्मक्ता का संतुलन
दौरा प्रतीकात्मक मूल्य रखता है — यह संदेश है कि केंद्र गंभीर है। लेकिन यदि समय, पहुँच, कार्यक्रम, निजी मुलाक़ातें और स्थलों का चुनाव सिर्फ राजनीतिक संतुलन के उद्देश्य से किया गया हो, तो यह प्रतीत होगा कि यह केवल ‘चक्रवात पूर्व तैयारी’ की तरह है न कि वास्तविक परिवर्तन की शुरुआत
प्रधानमंत्री मोदी का मणिपुर दौरा अवसर है — अवसर राज्य को दो-वर्षीय तनाव से बाहर निकालने, समुदायों के बीच भरोसा बहाल करने और लंबी अवधि की विकास और शांति की दिशा सुनिश्चित करने का। लेकिन सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि सरकार कितनी ईमानदारी से और कितने समग्र एवं समावेशी दृष्टिकोण से कार्य करेगी। यदि यह दौरा सिर्फ उद्घाटनों और घोषणाओं का ‘एक कार्यक्रम’ बनकर रह गया, तो व्यापक अपेक्षाएँ निराशा में बदल सकती हैं।