
राजेश जैन
इजराइल ने छह मुस्लिम देशों—गाजा (फिलिस्तीन), सीरिया, लेबनान, कतर, यमन और ट्यूनीशिया—पर हवाई और ड्रोन हमले किए। इन हमलों में 200 से अधिक लोग मारे गए और 1000 से ज्यादा घायल हुए। इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इन हमलों का बचाव करते हुए कहा कि इजराइल वही कर रहा है जो 9/11 के बाद अमेरिका ने किया था। यानी आतंकवाद को उसकी जड़ों तक जाकर खत्म करने की कोशिश। लेकिन इस घटनाक्रम ने एक बार फिर अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी हलचल पैदा कर दी है। ऐसे समय में भारत के लिए यह सवाल और अहम हो जाता है कि उसे अपनी विदेश नीति किस तरह साधनी चाहिए।
भारत के सामने चुनौतियां
भारत के लिए यह घटनाक्रम सीधे असर डालने वाला है। भारत की विदेश नीति हमेशा संतुलन पर टिकी रही है। एक तरफ इजराइल भारत का अहम रक्षा सहयोगी है, तो दूसरी तरफ अरब देश ऊर्जा आपूर्ति और प्रवासी भारतीयों की वजह से बेहद महत्वपूर्ण हैं। ऊर्जा सुरक्षा सबसे बड़ी चुनौती है। दरअसल, भारत अपनी कुल तेल ज़रूरतों का 85% आयात करता है, जिसमें से अधिकांश खाड़ी देशों से आता है। यदि यमन, कतर या सऊदी अरब में अस्थिरता बढ़ी तो इसका सीधा असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। दूसरी चुनौती खाड़ी देशों में रह रहे 80 लाख भारतीयों की सुरक्षा है। वहां संघर्ष बढ़ने पर उनकी जान और रोजगार दोनों संकट में आ सकते हैं।
तीसरी चुनौती रणनीतिक साझेदारी है। भारत-इजराइल रिश्ते डिफेंस, साइबर सिक्योरिटी, कृषि और टेक्नोलॉजी तक गहराई से जुड़े हैं, लेकिन ओआईसी के सदस्य देशों का दबाव भी भारत पर रहता है। चौथी चुनौती कूटनीतिक संतुलन की है। भारत ने परंपरागत रूप से फिलिस्तीन का समर्थन किया है, लेकिन अब इजराइल से भी करीबी रिश्ते हैं। ऐसे में भारत को तय करना होगा कि किस हद तक बयानबाजी करे और किस हद तक चुप रहे। पांचवीं चुनौती आतंकवाद का मुद्दा है। भारत इजराइल के आतंकवाद विरोधी रुख से सहानुभूति रख सकता है, लेकिन गाजा और फिलिस्तीन में हो रहे मानवीय संकट को अनदेखा करने से भारत की छवि पर असर पड़ेगा।
भारत के विकल्प और विदेश नीति की दिशा
भारत के पास कई विकल्प हैं। सबसे पहले उसे मानवीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और गाजा सहित अन्य प्रभावित देशों में हो रहे संकट पर चिंता जतानी चाहिए। इससे भारत की छवि एक संवेदनशील राष्ट्र की बनेगी। भारत शांति और मानवीय सहायता की पहल भी कर सकता है। दूसरा विकल्प ऊर्जा आपूर्ति का प्रबंधन है। भारत को अमेरिका, रूस और अफ्रीका जैसे वैकल्पिक स्रोतों पर ध्यान देना होगा और घरेलू नवीकरणीय ऊर्जा पर भी निवेश बढ़ाना होगा ताकि ऐसे संकटों का असर कम हो। तीसरा रास्ता बहुपक्षीय मंचों का उपयोग है। संयुक्त राष्ट्र, ब्रिक्स और जी-20 जैसे मंचों पर भारत को संतुलित भूमिका निभानी चाहिए। न इजराइल का खुला समर्थन और न मुस्लिम देशों का अंधा विरोध, बल्कि संवाद और मध्यस्थता की पेशकश ही भारत को जिम्मेदार शक्ति बनाएगी। चौथा कदम प्रवासी भारतीयों की सुरक्षा योजना बनाना होगा। भारत को पहले से तैयारी करनी होगी कि यदि खाड़ी देशों में हालात बिगड़ते हैं तो वहां रह रहे भारतीयों को सुरक्षित कैसे निकाला जाए। पांचवां विकल्प रणनीतिक स्वायत्तता पर जोर देना है, जिससे यह संदेश जाए कि भारत की विदेश नीति अमेरिका या किसी और शक्ति से प्रभावित नहीं है बल्कि अपने राष्ट्रीय हित और वैश्विक शांति पर केंद्रित है।
अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर असर
इजराइल और मुस्लिम देशों का टकराव नया नहीं है, लेकिन हाल के हमले एक बड़े संघर्ष की भूमिका लिखते दिख रहे हैं। खासकर इसलिए कि इसमें छह देश सीधे प्रभावित हुए हैं और यह महज़ इजराइल-फिलिस्तीन विवाद तक सीमित नहीं रहा। कतर में हमास नेताओं को निशाना बनाकर हमला किया गया, जिससे युद्धविराम की कोशिशें नाकाम हो गईं। लेबनान में हिजबुल्लाह पर कार्रवाई से पहले से मौजूद सीजफायर टूट गया। सीरिया, जो पहले से अस्थिरता और गृहयुद्ध जैसी स्थिति झेल रहा है, वहां इजराइल के हमले हालात को और बिगाड़ देंगे। यमन में हूती विद्रोहियों पर हमले से सऊदी अरब और अमेरिका के साथ उनके तनाव और गहरे होंगे। ट्यूनीशिया में भले ही सीधा नुकसान नहीं हुआ, लेकिन उत्तरी अफ्रीका तक संघर्ष की लपटें फैलने का खतरा है। गाजा की स्थिति सबसे भयावह है, जहां 150 से अधिक मौतें और सैकड़ों घायल हुए हैं और पहले से तबाह इलाका पूरी तरह संकट में है।
इन हमलों ने वैश्विक स्तर पर दो ध्रुवों को और तेज़ कर दिया है—एक तरफ अमेरिका और उसके सहयोगी, दूसरी तरफ मुस्लिम जगत और उनके समर्थक देश। यूरोप भी असमंजस में है क्योंकि मानवीय संकट पर उसे चुप रहना मुश्किल हो रहा है, जबकि चीन और रूस इस मौके का फायदा उठाकर मुस्लिम देशों के करीब जाने की कोशिश करेंगे।
इजराइल के ताज़ा हमलों ने दुनिया को फिर से याद दिलाया है कि पश्चिम एशिया वैश्विक राजनीति का सबसे अस्थिर इलाका है। यहां की आग केवल सीमाओं तक सीमित नहीं रहती, बल्कि दुनिया की अर्थव्यवस्था, सुरक्षा और राजनीति को हिला देती है। भारत जैसे उभरते वैश्विक खिलाड़ी के लिए यह जरूरी है कि वह इस अस्थिरता में संतुलित, संवेदनशील और रणनीतिक विदेश नीति अपनाए। न इजराइल को पूरी तरह गले लगाना सुरक्षित है और न ही अरब देशों को नाराज़ करना। भारत का हित इसी में है कि वह शांति, संवाद और मानवीय मूल्यों का झंडाबरदार बने। यह घटनाक्रम भारत की विदेश नीति के सामने एक बड़ा सबक लेकर आया है—भू-राजनीति की आग में खुद को जलाए बिना, राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए दुनिया में एक जिम्मेदार ताकत की भूमिका निभाना। यही भारत की असली परीक्षा है और यही उसका आने वाला रास्ता।