
मनोज कुमार मिश्र
कांग्रेस के सबसे बड़े नेता माने जाने वाले राहुल गांधी ने पूरा बिहार में राष्ट्रीय जनता दल(राजद) के मुख्यमंत्री के दावेदार तेजस्वी यादव के साथ दौरा करने के बाद अपने लोगों में यह जताने के प्रयास कर रहे हैं कि उन्होंने बिहार जीत लिया है। वे और उनके समर्थक खुलेयाम आरोप लगा रहे हैं कि देश का चुनाव आयोग केन्द्र की भाजपा की अगुवाई वाली सरकार के दबाव में मतदाता और मतदान में हेराफेरी कर रहा है। चुनाव आयोग की लगातार सफाई के बावजूद विपक्ष अब वोटिंग मशीन(ईवीएम) में गड़बड़ी के बजाए सीधे वोट चोरी का आरोप लगा रहा है। बिहार विधानसभा का चुनाव दो महीने बाद होने वाले हैं। यह तय सा हो गया है कि इस बार भी बिहार का चुनाव राजद और कांग्रेस की अगुवाई वाले महागठबंधन और भाजपा, जनता दल(एकी) की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन(राजग) के बीच मुख्य रूप से होने वाला है। जिस कांग्रेस ने आजादी के बाद से अब तक बिहार में करीब चालीस साल शासन किया है, उसके नेता बड़े ही गर्व के साथ एक तरह से राजद के पिछलग्गु बनना स्वीकार लिया है। देश में राजग, भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पराजित करने का सपना देखने वाले कांग्रेस के नेता राहुल गांधी दिल्ली समेत उन राज्यों में भी पार्टी को नहीं खड़ी कर पा रहे हैं, जहां सालों कांग्रेस शासन में रही है। वास्तविकता तो यह है कि कुछ अपवादों को छोड़कर जिस राज्य में कांग्रेस पराजित हुई है, वहां उसकी वापसी ही वहीं हो पाई है। 2024 के लोक सभा चुनाव में भाजपा पर बेबुनियाद संविधान बदलने का आरोप को कांग्रेस की अगुवाई में विपक्ष ने मुद्दा बनाने की कोशिश की। उससे कुछ भ्रम बना लेकिन लगातार तीसरी बार राजग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में केन्द्र में सरकार बनाने में कामयाब हुई और राजग का दायरा बढ़ता ही गया।
उसके बाद हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में लोक सभा से 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का आम आदमी पार्टी(आप) से सीटों का तालमेल था। सात में से तीन सीट कांग्रेस और चार आप लड़ी। चुनाव में सभी सातों सीटें भाजपा लगातार तीसरी बार जीती। कांग्रेस को 18.50 फीसद वोट मिले। माना जा रहा है कि कांग्रेस के समर्थक वोट पर दिल्ली में राज कर रही आप को लग रहा है कि उसके साथ तालमेल करने से कांग्रेस मजबूत हो जाएगी और देर-सबेरे आप को ही नुकसान पहुंचाएगी। इसलिए उसने विधानसभा चुनाव अकेले चुनाव लड़ना तय किया। चुनाव में भाजपा को जीत मिली और 27 साल दिल्ली की सत्ता में उसकी वापसी हुई। दस साल से दिल्ली में सरकार चला रही आप को उससे केवल दो फीसद वोट कम मिले लेकिन सीटों का फासला काफी रहा। 70 सदस्यों वाली विधानसभा में भाजपा 45.86 वोट के साथ 48 और आप को 43.57 फीसद वोट के साथ 22 सीट जीत पाई। कांग्रेस को करीब छह फीसद वोट मिले। चुनाव नतीजों के बाद भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस के नेता प्रसन्न थे। उन्हें लगता था कि आप के पराजय के साथ कांग्रेस की वापसी होगी लेकिन अभी तक एक भी कार्यक्रम ऐसा न हुआ जिससे लगे कि कांग्रेस दिल्ली में वापसी के लिए कोई प्रयास कर रही है। न ही आप में कोई भगदड़ मची।
2006 के परिसीमन में पूर्वी दिल्ली सीट दो हिस्सों में (पूर्वी दिल्ली और दिल्ली उत्तर पूर्व) बंटी। उससे पहले पूर्वी दिल्ली सीट से दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के पुत्र संदीप दीक्षित सांसद थे जो परिसीमन के बाद 2009 में उसकी एक सीट से सांसद बने और 2014 में पराजित हुए। 2019 में पूर्वी दिल्ली की दूसरी सीट दिल्ली उत्तर पूर्व से उनकी मां और दिल्ली की 15 साल मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित चुनाव लड़ी और पराजित हुई। शीला दीक्षित 2019 में आप से समझौता का विरोध किया तो उन्हें प्रदेश अध्यक्ष के साथ जबरन लोक सभा चुनाव लड़वाया गया। सत्ता सुख भोगने की आदत पड़ जाने के चलते एक ही चुनाव की हार ने कांग्रेस को संकट में ही ला दिया। अपनी चिंता में लगे नेताओं ने पार्टी को हाशिए पर ला दिया। 2013 विधानसभा चुनाव की हार के बाद पार्टी बिखरती ही गई। 2015 के चुनाव के समय प्रदेश अध्यक्ष थे अरविंद सिंह लवली और मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बना दिया गया अजय माकन को। इससे नाराज लवली ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया। उसके बाद प्रदेश अध्यक्ष बने अजय माकन 2019 के लोक सभा चुनाव में आप से तालमेल की मुहीम चलाई। बताया गया कि कांग्रेस का एक वर्ग को सात में से दो सीट पर भी समझौता करने को तैयार हो गया था। जिस पार्टी ने कांग्रेस को हाशिए पर पहुंचाया उससे समझौता करने का शीला दीक्षित के भारी विरोध किया। समझौता न होने पर भारी मन से अजय माकन नई दिल्ली सीट से चुनाव लड़कर हारे। वे भी बिना प्रदेश अध्यक्ष तय हुए बीमारी के बहाने प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी छोड़ दी।
त्रासदी यह है कि वही अजय माकन आज की तारीख में राहुल गांधी के बेहद करीबी हैं। उन्हें लोक सभा चुनाव हारने के बाद पहले हरियाणा से और वहां से पराजित होने के बाद कर्नाटक से राज्य सभा का सदस्य बनाया गया। वे पार्टी के कोषाध्यक्ष हैं और बिहार चुनाव के सुपर प्रभारी। 2013 विधानसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस का दिल्ली में प्रयोग ही चल रहा है।2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को कोई सीट नहीं मिली और कांग्रेस का वोट औसत घटकर 4.26 हो गया। 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद जुलाई में शीला दीक्षित के निधन के बाद चौधरी अनिल कुमार प्रदेश अध्यक्ष बने। लवली थोड़े ही समय भाजपा में रहकर कांग्रेस में लौट आए और 2019 का लोक सभा चुनाव पूर्वी दिल्ली सीट से मजबूती से लड़े। उन्हें 2023 में अनिल कुमार के इस्तीफा देने पर दोबारा अध्यक्ष बनाया गया था लेकिन 2024 के लोक सभा चुनाव में टिकटों के बंटवारे में अपनी भूमिका न होने से नाराज होकर उन्होंने फिर कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन पकड़ लिया। अब विधायक बनने के बाद भाजपा ने उन्हें यमुना पार विकास बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया है। उसी दौरान बड़ी तादात में कांग्रेस के अनेक नेता भाजपा में शामिल हुए। अब आर्थिक रूप से संपन्न पूर्व विधायक देवेन्द्र यादव दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष हैं।
दिल्ली में कांग्रेस वहीं पहुंच गई जहां भाजपा और कांग्रेस के अलावा मजबूत तीसरे दल वाले राज्य में पहुंच गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अगुवाई में भाजपा ने तो गुजरात, मध्यप्रदेश में कांग्रेस को सालों से सत्ता से बेदखल कर दिया है। तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, झारखंड उत्तराखंड, बिहार और पंजाब इत्यादि में तो उसकी सत्ता में वापसी संभव ही नहीं लग रही है। हर राज्य में कांग्रेस उनकी कृपा से कुछ सीटें पा जाती है। देश में भाजपा की विकल्प बनने का सपना देख रही कांग्रेस शासित राज्यों कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश के अलावा शायद ही किसी राज्य में अपने बूते सरकार बना पाएगी इसकी भविष्यवाणी करना कठिन है। राजस्थान या छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के भी समीकरण बदल गए हैं। कांग्रेस के इस कदर बूरे दिन आ गए हैं कि वह उन दलों के साथ उनसे कम सीटों पर चुनाव लड़कर अपने को धन्य मान रही है. जिनके वजूद ने उसे हाशिए पर पहुंचा दिया है। सीधे शब्दों में कहें तो कांग्रेस इन्हीं क्षेत्रीय दलों के बूते भाजपा के मुकाबले बड़ी राष्ट्रीय पार्टी बनी हुई है और उनके ही बूते देश पर राज करने का सपना देख रही है।
पहले ईवीएम( ईलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन) के खिलाफ कांग्रेस काफी समय से ने अभियान चला रही है। जबकि ईवीएम से चुनाव कांग्रेस राज में ही शुरू हुआ था। इतना ही नहीं जब कांग्रेस किसी राज्य में जीतती है तब ईवीएम पर कुछ नहीं बोलती। केवल हारने पर ईवीएम मुद्दा होता है। अब चुनाव आयोग पर भाजपा के इशारे पर वोट चोरी का मनगढ़ंत आरोप लगाकर केन्द्र सरकार को कटघरे में खड़ा करने का जबरन प्रयास कर रही है। यह उसी तरह से उठाया जा रहा है जैसे लोक सभा चुनाव में संविधान खतरे में की झूठा प्रचार किया जा रहा था। बताया जा रहा थी इसे ही मुद्दा बनाकर राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और विपक्षी नेताओं ने बिहार चुनाव को प्रयोगशाला बनाने का प्रयास कर रहे हैं। अगर यह सफल हुआ तो बाकी राज्यों में भी इसे मुद्दा बनाएंगे। अति उत्साह में उनसे गलती हो गई। बिहार के दरभंगा में विपक्षी मंच से प्रधानमंत्री की मां के लिए अपशब्द बोले गए। इसे प्रधानमंत्री और राजग के नेताओं ने उसी तरह मुद्दा बना लिया जिस तरह से 2019 के लोक सभा चुनाव में कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को नीच कहना बन गया था। प्रधानमंत्री जिस भावनात्मक शैली में इस मुद्दे को उठाया है विपक्ष अभी से सफाई देने लगा है। यग प्रमाणित हो चुका है कि देश भर में भाजपा के वोट बैंक में प्रधानमंत्री के प्रभाव से एक नया वोट बैंक जुड़ा है, जिसने 27 साल बाद दिल्ली में भाजपा की सत्ता में वापसी कराई है और अनेक राज्यों में भाजपा की लगातार सरकार बनवाई है। इसने ऐसे हालात बना दिए हैं कि कांग्रेस के लिए सही मायने में दिल्ली दूर हो गई है। देश की राजधानी दिल्ली में तो कांग्रेस की वापसी की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं दिख रही है।