आदर्श शासन-व्यवस्था और समाजवाद के प्रणेता थे अग्रसेन

Agrasen was the pioneer of ideal governance and socialism

ललित गर्ग

महाराजा अग्रसेन भारतीय संस्कृति और इतिहास के उन दिव्य शासकों में गिने जाते हैं जिनकी शासन-कीर्ति किसी एक युग तक सीमित नहीं रही। उनका लोकहितकारी चिन्तन कालजयी हो गया। उन्होंने न केवल जनता बल्कि सभ्यता और संस्कृति को भी समृद्ध और शक्तिशाली बनाया। उनकी विलक्षण एवं आदर्श शासक-प्रणाली और उसकी दृष्टि में सत्ता का हित सर्वाेपरि न होकर समाज एवं मानवता सर्वोच्च था। वे कर्मयोगी लोकनायक तो थे ही, संतुलित एवं आदर्श समाजवादी व्यवस्था के निर्माता भी थे। उन्होंने अपने जीवन और दर्शन से मानवता को नई दिशा प्रदान की। वे केवल अग्रवाल समाज के ही शासक नहीं थे, बल्कि आदर्श समाज व्यवस्था के प्रणेता, गणतंत्र के संस्थापक, अहिंसा के पुजारी और शांति के दूत भी थे। आज जब हमारा समाज असमानताओं, हिंसा, स्वार्थ और राजनीतिक विघटन एवं विसंगतियों से जूझ रहा है, तब उनके विचारों और सिद्धांतों की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है।

महाराजा अग्रसेन अग्रवाल जाति के पितामह थे। धार्मिक मान्यतानुसार इनका जन्म मर्यादा पुरुषोतम भगवान श्रीराम की चौंतीसवी पीढ़ी में सूर्यवंशी क्षत्रिय कुल के प्रतापनगर के महाराजा वल्लभ सेन के घर में द्वापर के अन्तिमकाल और कलियुग के प्रारम्भ में आज से लगभग 5150 वर्ष पूर्व हुआ था। अग्रसेन महाराज वल्लभ के ज्येष्ठ पुत्र थे। महाराजा अग्रसेन के जन्म के समय गर्ग ऋषि ने महाराज वल्लभ से कहा था, कि यह बालक बहुत तेजस्वी है और बड़ा राजा बनेगा। इसके राज्य में एक नई शासन व्यवस्था का उदय होगा और हजारों वर्ष बाद भी इनका नाम अमर रहेगा। सचमुच उनका युग रामराज्य की एक साकार संरचना था जिसमें उन्होंने अपने आदर्श जीवन कर्म से, सकल मानव समाज को महानता का जीवन-पथ दर्शाया। वे एक प्रकाश स्तंभ थे, अपने समय के सूर्य थे जिनकी जन्म जयन्ती आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा अर्थात नवरात्री के प्रथम दिन यानी इस वर्ष में 22 सितम्बर, 2025 को मनाई जाएगी।

महाराजा अग्रसेन का शासन न्याय, समानता, करुणा और सहअस्तित्व पर आधारित था। वे केवल सम्राट नहीं थे, बल्कि एक दार्शनिक चिंतक और युगदृष्टा थे। उन्होंने ‘राजा प्रजा का सेवक है’ जैसी अवधारणा को व्यवहार में उतारा। उनका व्यक्तित्व हमें महावीर, बुद्ध और अशोक जैसे शांति दूतों की याद दिलाता है। उन्होंने हिंसा का त्याग कर अहिंसा, सहयोग और सामूहिकता को समाज की आत्मा माना। अपने क्षेत्र में सच्चे समाजवाद की स्थापना हेतु उन्होंने नियम बनाया कि उनके नगर में बाहर से आकर बसने वाले व्यक्ति की सहायता के लिए नगर का प्रत्येक निवासी उसे एक रुपया व एक ईंट देगा, जिससे आसानी से उसके लिए निवास स्थान व व्यापार का प्रबंध हो जाए। उन्होंने पुनः वैदिक सनातन आर्य संस्कृति की मूल मान्यताओं को लागू कर राज्य के पुनर्गठन में कृषि-व्यापार, उद्योग, गौपालन के विकास के साथ-साथ नैतिक मूल्यों की पुनः प्रतिष्ठा का बीड़ा उठाया। इससे न केवल आर्थिक सहयोग की व्यवस्था बनी, बल्कि समाज में भाईचारे और साझा जिम्मेदारी की भावना भी विकसित हुई। यह सोच आज की आधुनिक ‘कोऑपरेटिव सोसायटी’ और ‘कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी’ की जड़ों में देखी जा सकती है।

अग्रसेनजी का जीवन संदेश था-हिंसा से नहीं, शांति और सहयोग से ही स्थायी सुख संभव है। उन्होंने युद्ध और संघर्ष से दूर रहकर समाज में शांति और समन्वय का वातावरण बनाया। इसीलिए उन्हें शांति का दूत कहा गया। उनकी समाज व्यवस्था में ऊँच-नीच और भेदभाव का कोई स्थान नहीं था। अर्थव्यवस्था में ईमानदारी और पारदर्शिता सर्वाेपरि थी और नारी को सम्मान एवं अधिकार प्रदान किए गए थे। आज जब समाज भ्रष्टाचार, हिंसा, असमानता और स्वार्थ की खाई में उलझा है, तब अग्रसेनजी के सिद्धांत हमें नई राह दिखाते हैं। राजनीति में उनका गणतांत्रिक दृष्टिकोण लोकतंत्र की शुचिता को पुनः स्थापित कर सकता है। वे केवल ऐतिहासिक चरित्र या इतिहास-पुरुष ही नहीं हैं, बल्कि वे आज भी समाज सुधार, शासन व्यवस्था और मानवीय मूल्यों के प्रेरणास्रोत हैं। महाराज अग्रसेन ने 108 वर्षों तक राज किया। एक निश्चित आयु प्राप्त करने के बाद कुलदेवी महालक्ष्मी से परामर्श पर वे आग्रेय गणराज्य का शासन अपने ज्येष्ठ पुत्र के हाथों में सौंपकर तपस्या करने चले गए। व्यक्ति, समाज, राष्ट्र तथा जगत की उन्नति मूल रूप से जिन चार स्तंभों पर निर्भर होती हैं, वे हैं- आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक व सामाजिक। अग्रसेनजी का जीवन-दर्शन चारों स्तंभों को दृढ़ करके उन्नत विश्व के नवनिर्माण का आधार बना है। लेकिन इसे समय की विडम्बना ही कहा जायेगा कि अगणित विशेषताओं से संपन्न, परम पवित्र, परिपूर्ण, परिशुद्ध, मानव की लोक कल्याणकारी आभा से युक्त महामानव महाराज अग्रसेन की महिमा से अनभिज्ञ अतीत से वर्तमान तक के कालखण्ड ने उन्हें एक समाज विशेष का कुलपुरुष घोषित कर उनके स्वर्णिम इतिहास कोे हाशिए पर डाल दिया है।

अग्रसेनजी सूर्यवंश में जन्मे। महाभारत के युद्ध के समय वे पन्द्रह वर्ष के थे। युद्ध हेतु सभी मित्र राजाओं को दूतों द्वारा निमंत्रण भेजे गए थे। पांडव दूत ने वृहत्सेन की महाराज पांडु से मित्रता को स्मृत कराते हुए राजा वल्लभसेन से अपनी सेना सहित युद्ध में सम्मिलित होने का निमंत्रण दिया था। महाभारत के इस युद्ध में महाराज वल्लभसेन अपने पुत्र अग्रसेन तथा सेना के साथ पांडवों के पक्ष में लड़ते हुए युद्ध के 10वें दिन भीष्म पितामह के बाणों से बिंधकर वीरगति को प्राप्त हो गए थे। इसके पश्चात अग्रसेनजी ने ही शासन की बागडोर संभाली। उन्होंने बचपन से ही वेद, शास्त्र, अस्त्र-शस्त्र, राजनीति और अर्थ नीति आदि का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। उनका विवाह नागों के राजा कुमुद की पुत्री माधवी से हुआ। महाराजा अग्रसेन ने ही अग्रोहा राज्य की स्थापना की थी। उन्होंने अपने जीवन में कई बार कुलदेवी लक्ष्मीजी से यह वरदान प्राप्त किया कि जब तक उनके कुल में लक्ष्मीजी की उपासना होती रहेगी, तब तक अग्रकुल धन व वैभव से सम्पन्न रहेगा। उनके 18 पुत्र हुए, जिनसे 18 गोत्र चले।

समाज व्यवस्था उनके लिए कर्तव्य थी, इसलिए कर्तव्य से कभी पलायन नहीं किया तो धर्म उनकी आत्मनिष्ठा बना, इसलिए उसे कभी नकारा नहीं। महाराजा अग्रसेनजी की इसी विचारधारा का ही प्रभाव है कि आज भी अग्रवाल समाज शाकाहारी, अहिंसक एवं धर्मपरायण के रूप में प्रतिष्ठित है। अग्रसेनजी ने राजनीति का सुरक्षा कवच धर्मनीति को माना। राजनेता के पास शस्त्र है, शक्ति है, सत्ता है, सेना है फिर भी नैतिक बल के अभाव में जीवन मूल्यों के योगक्षेम में वे असफल होते हैं। इसीलिये उन्होंने धर्म को जीवन की सर्वाेपरि प्राथमिकता के रूप में प्रतिष्ठापित किया। इसी से नये युग का निर्माण, नये युग का विकास वे कर सके। उनके युग का हर दिन पुरातन के परिष्कार और नए के सृजन में लगा था। एक बार अग्रोहा में बड़ी भीषण आग लगी। उस पर किसी भी तरह काबू ना पाया जा सका। उस अग्निकांड से हजारों लोग बेघरबार हो गये और जीविका की तलाश में भारत के विभिन्न प्रदेशों में जा बसे। पर उन्होंने अपनी पहचान नहीं छोडी। वे सब आज भी अग्रवाल ही कहलवाना पसंद करते हैं और उसी 18 गोत्रों से अपनी पहचान बनाए हुए हैं। आज भी वे सब महाराज अग्रसेन द्वारा निर्देशित मार्ग का अनुसरण कर समाज की सेवा में लगे हुए हैं। एक सर्वे के अनुसार, देश की कुल इनकम टैक्स का 24 प्रतिशत से अधिक हिस्सा अग्रसेन के वंशजांे का हैं। कुल सामाजिक एवं धार्मिक दान में 62 प्रतिशत हिस्सा अग्रवंशियों का है। देश की कुल जनसंख्या का मात्र एक प्रतिशत अग्रवंशज है, लेकिन देश के कुल विकास में उनका 25 प्रतिशत सहयोग रहता है। उस महामानव को राष्ट्र की सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी जब देश की बड़ी जन-कल्याणकारी योजनाएं उस महान शासक के नाम पर हो। उनकी जयंती हमें स्मरण कराती है कि यदि हमें एक सुखी, समृद्ध और शांतिपूर्ण समाज का निर्माण करना है तो उनके आदर्शों को अपनाना होगा। वे हमें यह संदेश देते हैं कि संपत्ति तभी सार्थक है जब वह समाज के साथ बाँटी जाए, शक्ति तभी महान है जब वह सबके कल्याण में लगे और शासन तभी सफल है जब वह न्याय और करुणा पर आधारित हो।