88 लाख का H-1B वीज़ा: क्या अब भारतीय प्रतिभा भारत में ही चमकेगी?

H-1B visa worth Rs 88 lakh: Will Indian talent now shine only in India?

नीलेश शुक्ला

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक ऐतिहासिक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर करके भारतीय पेशेवरों को सीधा झटका दिया है। इस आदेश के तहत अब H-1B वीज़ा की सालाना फीस लगभग एक लाख डॉलर यानी करीब 88 लाख रुपये कर दी गई है। यह भारी शुल्क उन सभी नए आवेदकों पर लागू होगा जो अमेरिका जाकर नौकरी करना चाहते हैं। दशकों से भारतीय आईटी इंजीनियर, डॉक्टर, वैज्ञानिक और तकनीकी विशेषज्ञ इस वीज़ा के सबसे बड़े लाभार्थी रहे हैं। ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि हर साल अमेरिका में जारी होने वाले लगभग 70 से 73 प्रतिशत H-1B वीज़ा भारतीय नागरिकों को ही मिलते हैं। 2023 में जहां भारतीय आवेदकों को एक लाख से ज़्यादा H-1B वीज़ा मिले थे, वहीं 2024 में यह संख्या घटकर करीब 71,219 हो गई और 2025 में यह और कम होकर लगभग 63,323 पर पहुँच गई। यह लगभग 35 से 37 प्रतिशत की गिरावट है और अब जब फीस 88 लाख रुपये कर दी गई है, तो यह गिरावट और तेज़ हो सकती है।

सवाल यह उठ रहा है कि इतनी महँगी फीस देने के बाद कितने भारतीय अमेरिका जाने का जोखिम उठाएंगे? निश्चित रूप से यह फैसला अमेरिकी टेक्नोलॉजी कंपनियों और वहाँ की अर्थव्यवस्था पर भी असर डालेगा क्योंकि उन्हें सस्ता और कुशल श्रम भारतीयों से ही मिलता था। भारतीय पेशेवर दशकों से अमेरिकी सिलिकॉन वैली और आईटी उद्योग की रीढ़ बने हुए थे। लेकिन अब वही टैलेंट अमेरिका की जगह भारत में रह सकता है या फिर कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, यूके और यूरोप जैसे विकल्पों की तरफ बढ़ सकता है।

भारत के लिए यह निर्णय संकट से अधिक अवसर की तरह देखा जा सकता है। यदि सरकार और निजी क्षेत्र ने सही नीतिगत पहल की, तो लाखों कुशल पेशेवर भारत में ही रोजगार तलाशेंगे और इससे घरेलू उद्योगों, स्टार्टअप्स और अनुसंधान संस्थानों को नई ऊर्जा मिलेगी। भारत का सॉफ़्टवेयर सेवाओं का निर्यात बाजार पहले से ही लगभग 158 अरब अमेरिकी डॉलर के आसपास है और अनुमान है कि 2030 तक यह 197 अरब डॉलर से ऊपर पहुँच सकता है। ऐसे में अगर अमेरिकी कंपनियाँ भारतीय टैलेंट को वहीं बुलाने के बजाय भारत से ही काम करवाने लगें, तो यह भारत की आईटी और सॉफ़्टवेयर सेवाओं को और मज़बूत करेगा। खासकर जब दुनिया का कामकाज तेज़ी से रिमोट और हाइब्रिड मॉडल की तरफ बढ़ रहा है, तब अमेरिकी कंपनियों के लिए भारत में बैठे इंजीनियरों और डेवलपर्स को रोजगार देना कहीं सस्ता और आसान विकल्प होगा।
इस कदम से भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम को भी अप्रत्याशित फायदा हो सकता है। जो युवा पहले अमेरिका जाकर करियर बनाने की सोचते थे, वे अब भारत में ही स्टार्टअप शुरू करने पर विचार करेंगे। इससे देश में उद्यमिता को बढ़ावा मिलेगा, नई नौकरियाँ पैदा होंगी और रिसर्च एवं इनोवेशन की संस्कृति विकसित होगी। साथ ही भारत के विश्वविद्यालयों और तकनीकी संस्थानों को भी यह अवसर मिलेगा कि वे छात्रों को वैश्विक स्तर का प्रशिक्षण दें ताकि टैलेंट भारत में रहकर भी विश्वस्तरीय योगदान कर सके।

हालाँकि इस फैसले से चुनौतियाँ भी पैदा होंगी। सबसे पहली चुनौती वेतन और काम का वातावरण है। भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि उच्च कौशल वाले पेशेवरों को पर्याप्त वेतन, करियर ग्रोथ और बेहतर कार्यस्थल उपलब्ध हों, वरना वे कनाडा या यूरोप जैसे देशों की ओर रुख कर सकते हैं। दूसरी बड़ी चुनौती है बुनियादी अवसंरचना। यदि भारत को ग्लोबल टैलेंट हब बनना है तो डेटा सेंटर्स, तेज़ इंटरनेट, स्थायी विद्युत आपूर्ति, रिसर्च सुविधाएँ और कॉर्पोरेट माहौल को बेहतर बनाना ही होगा। इसके अलावा टैक्स पॉलिसी और नियामक बाधाओं को भी सरल करना पड़ेगा ताकि विदेशी निवेश आसानी से आकर्षित हो और भारतीय कंपनियाँ भी प्रतिस्पर्धी बन सकें।

अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर भी इसका असर दिखेगा। दशकों से भारतीयों ने अमेरिका की टेक इंडस्ट्री को सस्ते लेकिन उच्च गुणवत्ता वाले कौशल से समृद्ध किया है। यदि अब वही टैलेंट महँगी फीस की वजह से अमेरिका नहीं जा पाएगा, तो अमेरिकी कंपनियों की लागत बढ़ेगी। या तो उन्हें भारतीय पेशेवरों को रिमोटली भारत से काम पर रखना होगा या फिर उन्हें स्थानीय कर्मचारियों को ऊँचे वेतन पर भर्ती करना पड़ेगा। दोनों ही स्थितियों में अमेरिकी कंपनियों के लिए दबाव बढ़ेगा और यह अंततः अमेरिकी अर्थव्यवस्था की प्रतिस्पर्धात्मकता पर असर डाल सकता है।

भारत के लिए अब यह समय निर्णायक है। यदि सरकार इस मौके को भुनाती है और तकनीकी, औद्योगिक तथा शैक्षिक ढांचे में सुधार करती है, तो यह फैसला भारत के लिए ब्रेन ड्रेन को ब्रेन गेन में बदल सकता है। भारत को नीति-निर्माण में लचीलापन लाना होगा, कौशल विकास पर ज़ोर देना होगा, शोध और विकास में निवेश बढ़ाना होगा और उद्यमिता को प्रोत्साहन देना होगा। तभी भारत दुनिया के लिए टैलेंट हब बन पाएगा।

निष्कर्ष यही है कि 88 लाख का H-1B वीज़ा भले ही लाखों भारतीयों के अमेरिकी सपने को महँगा बना दे, लेकिन यह भारत के लिए सुनहरा अवसर भी बन सकता है। यदि भारत ने सही कदम उठाए, तो आने वाले वर्षों में वही प्रतिभा जो अमेरिका के लिए नवाचार और विकास कर रही थी, अब भारत की धरती पर रहकर भारतीय अर्थव्यवस्था को गति देगी। यह फैसला अमेरिकी कंपनियों और अर्थव्यवस्था के लिए झटका है, लेकिन भारत के लिए यह अवसर है कि वह अपने ही टैलेंट से आत्मनिर्भरता और समृद्धि की नई कहानी लिखे।