
अजय कुमार
दिल्ली की तिहाड़ जेल जो एशिया की सबसे बड़ी और सुरक्षित मानी जाने वाली जेल है, उसके भीतर हाल में एक ऐसा शर्मनाक और विचलित करने वाला दृश्य सामने आया है जिस पर समाज के हर जिम्मेदार नागरिक को गहराई से सोचने की आवश्यकता है। यह वही जेल है जहां देश के सबसे खूंखार आतंकवादी, अपराधी और दुर्दांत कैदी रखे जाते हैं। परंतु आश्चर्यजनक यह है कि यहां इन अपराधियों और आतंकवादियों के लिए कब्र के रूप में एक व्यवस्था खड़ी हो गई है और वहां का माहौल किसी मेले की तरह बना दिया गया है। जो स्थान अपराधियों और आतंकियों की धूर्तता और दहशत का प्रतीक होना चाहिए, वही अब उनके तथाकथित महिमामंडन का स्थल बन रहा है। दिल्ली की अदालतों में इस बाबत याचिकाएं भी दर्ज की गई हैं जिनमें इसे रोकने और इस पर ठोस नकेल कसने की मांग की गई है। मामला ऐसा है कि तिहाड़ जेल परिसर के भीतर कुछ अपराधियों और आतंकवादियों की मौत के बाद उनकी कब्र बनाई गई। समय के साथ इन कब्रों के आसपास स्थानीय स्तर पर एक भीड़ जुटने लगी और अंध विश्वास के चलते लोगों ने इसे आस्था का केंद्र बना डाला। जिन अपराधियों ने समाज को हिंसा, आतंक और खूनखराबे के सिवा कुछ नहीं दिया, आज उन्हीं की कब्रों पर श्रद्धांजलि देने, फूल चढ़ाने और मन्नत मांगने का ढोंग हो रहा है। कोई इसे अपने कारोबार के लिए शुभ मान रहा है तो कोई अपने निजी मामलों के लिए चमत्कार की उम्मीद लगाए बैठा है। इससे भी अधिक चिंताजनक यह कि अपराधियों के नाम पर बने इन स्थलों पर जुट रही भीड़ में अपराधियों की छवि को नायक का रूप दिया जा रहा है।
भारतीय न्याय व्यवस्था और संविधान ने हमेशा यह स्पष्ट रूप से कहा है कि अपराधी चाहे कितना बड़ा क्यों न हो, उसके साथ न्यायिक प्रक्रिया के तहत व्यवहार किया जाना चाहिए। लेकिन तिहाड़ जैसे संवेदनशील स्थल के भीतर खून से रंगे हाथों वाले अपराधियों की कब्र पर हो रहा यह जमावड़ा न्याय और समाज, दोनों के लिए सबसे बड़ा अपमान है। यह वह जेल है जहां आतंकी साजिश रचने वाले, देशद्रोह करने वाले, निर्दाेषों का कत्ल करने वाले और संगठित आपराधिक गैंग चलाने वाले कैद होकर अपने अपराधों की सजा भुगतते रहे। मगर उनकी मृत्यु के बाद कब्रों को पूजा स्थल बना देना उस व्यवस्था की सबसे बड़ी विफलता है जो सुरक्षा और सुधार के नाम पर चल रही है। इस पूरे घटनाक्रम को अदालत में चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि तिहाड़ जेल जैसे अत्यंत संवेदनशील स्थान पर अपराधियों और आतंकियों के नाम पर कब्रें बनाना और वहां मेला-जैसा माहौल बनाना न केवल कानून के विरुद्ध है बल्कि पूरे समाज में अपराध और आतंक के प्रति गलत संदेश देता है। अदालत में दिए गए तर्कों में यह भी कहा गया कि अपराधियों का जत्था हमारे समाज का आदर्श नहीं बन सकता, फिर उनकी कब्र को किसी तरह की मान्यता देना न्याय और अपराध, दोनों के बीच की रेखा को धुंधला कर देगा। अदालत से यह मांग की गई है कि जेल परिसर से इन कब्रों को हटाया जाए और इस प्रकार की गतिविधियों पर सख्ती से रोक लगाई जाए। तिहाड़ जेल प्रशासन भी इस मामले में कठघरे में खड़ा है। यह सवाल स्वाभाविक है कि आखिर प्रशासनिक चूक के चलते ऐसी कब्रें कैसे बनने दी गईं और वहां भीड़ जुटने से रोकने के लिए उचित और समय पर कदम क्यों नहीं उठाए गए। देश की सबसे बड़ी जेल से इस प्रकार की खबर बाहर आना प्रशासनिक लापरवाही का ही सुबूत है। यदि अपराधियों का महिमामंडन जेल के भीतर ही होने लगे और लोग उन्हें पूजने लगें, तो इसका सीधा असर जेल की सुरक्षा, कानून व्यवस्था और समाज की मनोवृत्ति पर पड़ेगा।
समाजशास्त्र के विशेषज्ञ इसे अत्यंत खतरनाक बताते हैं। उनका कहना है कि अपराधियों को किसी भी रूप में आदर्श या नायक बनाने की प्रक्रिया नई पीढ़ी के भीतर विकृत आदर्श गढ़ने का काम करती है। आज तिहाड़ जेल के भीतर जो हो रहा है, वह आने वाले कल में युवाओं के लिए यह संदेश देगा कि अपराध करके भी कोई मौत के बाद समाज में महिमामंडित हो सकता है। यह वह मानसिकता है जो अपराध को पनाह देती है और कानून के शासन को कमजोर करती है। इन कब्रों पर जुटने वाले लोगों में से कई ऐसे भी हैं जो अपराधियों की दबंग छवि से प्रभावित होकर उनसे प्रेरणा लेने की बात करते हैं। यह स्थिति केवल व्यक्तिगत स्तर पर खतरनाक नहीं है बल्कि समाज की व्यापक संरचना के लिए भी घातक है। अपराधियों और आतंकवादियों की छवि को महिमामंडित किया जाना उस दर्द और ग़म का अपमान है जो उनके पीड़ितों ने भोगा। जिन परिवारों ने अपने प्रिय जनों को आतंक और अपराध की भेंट चढ़ते देखा है, उनके लिए यह दृश्य और अधिक कचोटने वाला होगा जब वे देखेंगे कि उन्हीं अपराधियों और आतंकियों की कब्रों पर फूल चढ़ाए जा रहे हैं। इस तरह के दृश्य यह भी बताते हैं कि हमारे समाज में अंधविश्वास और गलत नायकों को पूजने की प्रवृत्ति किस हद तक गहरी है। यह स्थिति केवल तिहाड़ जेल तक सीमित नहीं रह सकती, बल्कि आने वाले समय में देश के अन्य हिस्सों में भी अपराधियों को नायक बनाने की संस्कृति को बढ़ा सकती है। इससे रोकथाम करना केवल प्रशासन की ही जिम्मेदारी नहीं है बल्कि आम नागरिकों को भी यह समझना होगा कि अपराधियों को किसी भी रूप में पूजना एक सामाजिक अपराध है।
अदालत में दर्ज याचिकाओं पर सुनवाई जारी है और अदालत ने प्रशासन से जवाब मांगा है कि आखिरकार किस आधार पर इन कब्रों को बनने दिया गया और वहां आस्था के नाम पर भीड़ इकट्ठा होने से क्यों नहीं रोका गया। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया है कि यदि इसमें प्रशासन की कोई मिलीभगत पाई गई तो जिम्मेदार अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। यह फैसला आने वाले समय में इस प्रकार की घटनाओं के लिए मिसाल बनेगा। तिहाड़ जेल का मामला हमें यह याद दिलाता है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था और न्यायिक प्रणाली का सबसे बड़ा उद्देश्य समाज को अपराध और भय से मुक्त रखना है। जब उस व्यवस्था की सबसे प्रतिष्ठित जेल ही अपराधियों का महिमामंडन करने लगे तो यह हमारे लिए चेतावनी की तरह है। ऐसे में आवश्यक है कि तुरंत कठोर कदम उठाकर इन कब्रों को हटाया जाए, वहां जुट रहे जमावड़े को पूरी तरह से रोका जाए और अपराधियों की किसी भी प्रकार से पूजा करने की प्रवृत्ति को कानून के दायरे में अपराध मानकर कार्रवाई की जाए। देश के करोड़ों नागरिक उम्मीद लगाए बैठे हैं कि अदालत इस मसले पर कठोर निर्णय लेगी और प्रशासन अपनी लापरवाही का प्रायश्चित करेगा। क्योंकि यह केवल जेल प्रशासन या अदालत का विषय नहीं है, बल्कि पूरे समाज के सम्मान और न्याय की रक्षा से जुड़ा हुआ मामला है। खून से सनी कहानियों वाले अपराधियों को नायक या संत का चोला पहनाना भारतीय समाज के लिए सबसे बड़ी शर्मनाक स्थिति है। अब समय आ गया है कि इस स्थिति को निर्णायक रूप से रोका जाए और तिहाड़ जैसे नामचीन स्थल पर कानून और न्याय की ही सत्ता कायम हो।