
प्रेम प्रकाश
महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह के 2017 में जब सौ वर्ष पूरे हुए तो अहिंसा के इस ऐतिहासिक प्रयोग को लेकर कई सारे किताबें आईं। लेखकों और शोधार्थियों ने तब के गांधी के अनुभवों और उस दौरान के घटनाक्रम के आधार पर कई नए तथ्यों को उजागर किया। इसमें सबसे अहम है गांधी और कस्तूरबा का यह साझा अनुभव कि बिहार की महिलाएं जागरूक हैं और उनमें अपने बूते खड़ा होने का माद्दा है। अगर उनके आगे कोई बाधा है तो वह समाज और व्यवस्था का लैंगिक वह पूर्वाग्रह, जिसकी जड़ें खासी गहरी हैं। आज की तारीख में इस बात को देखना-समझना तब बेहद अहम और दिलचस्प हो जाता है जब हम देखते हैं कि बिहार ने बीते दो दशक में देश को महिला सशक्तीकरण का एक टिकाऊ मॉडल दिया है। यह एक ऐसा मॉडल है जो सामुदायिकता के बूते बड़े सामाजिक बदलाव को संभव बना रहा है।
बिहार की चर्चा इन दिनों जरूर होने जा रहे विधानसभा चुनाव को लेकर हो रही है, पर इससे जुड़ी तमाम सियासी गहमागहमी के बीच यह बात खासतौर पर समझने की है कि आज राजनीति से लेकर समाज और आर्थिकी तक हर क्षेत्र में जेंडर इक्वलिटी या लैंगिक समानता की बात लाजिमी तौर पर होती है। वैसे भी बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र विधानसभा के चुनावी नतीजे ने यह दिखा दिया है कि अब चुनावों का संतुलन महिलाएं साध रही है। यह देश में सामाजिक के साथ राजनीतिक बदलाव का एक बड़ा संकेत है।
बिहार में सामाजिक और आर्थिक बदलाव की नई लहर उस समय शुरू हुई जब नीतीश कुमार ने राज्य की बागडोर संभाली। वे अपनी इस समझ और विवेक में बहुत साफ रहे कि अगर समाज को सशक्त बनाना है, तो महिलाओं को सिर्फ लाभार्थी नहीं, बल्कि विकास की भागीदार बनाना होगा। इसी सोच के साथ नीतीश सरकार ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में अनेक योजनाएं चलाईं, जिनका उद्देश्य है महिला स्वरोजगार। चुनाव से पूर्व होने वाली अव्यावहारिक और हवाई घोषणाओं से अलग बिहार सरकार ने कैबिनेट स्तर पर इस दौरान कई अहम फैसले लिए हैं। इस क्रम में जो बड़ा फैसला राज्य सरकार ने किया है, वह है मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना। गौरतलब है कि इस निर्णय से पहले 70 हजार महिला समूहों के साथ सरकार ने महिला संवाद किया। साफ है कि सरकार ने इस योजना को प्रदेश की महिलाओं की स्थिति और जरूरत को समझते हुए न सिर्फ फ्रेम किया, बल्कि इसके शीघ्र क्रियान्वयन को लेकर भी वह लगातार गंभीर रही।
आज जब प्रदेश की 75 लाख महिलाओं के खाते में दस-दस हजार रुपए की राशि पहुंच रही है तो यह महिला स्वावलंबन को लेकर सरकार की दृष्टि और संकल्प शक्ति दोनों जाहिर करती है। महिलाओं को यह राशि योजना के तहत मिलने वाली दस हजार रुपए की पहली किस्त के तौर पर मिली है। छह महीने बाद मूल्यांकन के बाद इन महिलाओं को दो लाख रुपए की अतिरिक्त सहायता दी जाएगी। बात महिला सशक्तीकरण की हो रही है तो यह जान लेना जरूरी है बिहार में नीतीश सरकार की सबसे सफल योजनाओं में जीविका विशेष स्थान रखती है। वर्ष 2006 में शुरू हुई इस योजना ने ग्रामीण महिलाओं को न केवल स्वरोजगार का अवसर दिया, बल्कि उन्हें नेतृत्व का अभ्यास भी कराया।
आज राज्य में एक करोड़ 40 लाख से अधिक महिलाएं 11 लाख स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से जीविका दीदी के रूप में पहचान बना चुकी हैं। ये महिलाएं सिलाई, बुनाई, कृषि, पशुपालन, किराना दुकान, मसाला निर्माण, मधुमक्खी पालन, बकरी पालन जैसे छोटे-छोटे उद्योगों के जरिए न केवल अपनी आमदनी बढ़ा रही हैं, बल्कि दूसरों को भी रोजगार दे रही हैं। मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना जीविका के इसी मॉडल का विस्तृत और परिपक्व रूप है। ऐसा इसलिए क्योंकि जीविका स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) से जुड़ी महिलाओं को ही इस योजना का लाभ मिल रहा है। इन महिलाओं को सरकार की आर्थिक मदद स्वरोजगार शुरू करने, छोटे-मोटे बिजनेस शुरू करने या वर्तमान में चल रहे व्यवसायों को बढ़ाने में सहायता के उद्देश्य से दी जा रही है। इससे बड़ी किसी योजना की सफलता और उपयोगिता क्या होगी कि इसके लिए 1.05 करोड़ जीविका दीदियों ने, जबकि 1.40 लाख से अधिक महिलाओं ने समूह से जुड़ने के लिए आवेदन किया। गौरतलब है कि जीविका योजना 2006 में विश्व बैंक की मदद से शुरू किया गया था। आज यह देश में महिला स्वरोजगार का सबसे बड़ा समूह है।
2023 की बिहार जाति जनगणना के अनुसार, बिहार की कुल आबादी 13 करोड़ 7 लाख 70 हजार के आसपास आंकी गई, जिसमें महिला आबादी लगभग 6 करोड़ 40 लाख थी। बात करें 2011 की जनगणना के आंकड़ों की तो बिहार की महिला आबादी 4.96 करोड़ थी, जो कि राज्य की कुल जनसंख्या का लगभग 47.8 फीसदी हिस्सा थी। जीविका मॉडल का विस्तार और अब इस फ्रेमवर्क के जरिए शुरू हुई महिला रोजगार योजना आज इस बात को गहराई से रेखांकित कर रही है कि विकास और समृद्धि से जुड़ी कोई भी पहल सर्व-समावेशी और सर्व-स्पर्शी मानकों पर तभी खरी उतरेगी, जब वह लैंगिक आधार पर हर तरह के पूर्वाग्रह से दूर हो। इस योजना की खास बात है कि यह एक यूनिवर्सल योजना है। यानी राज्य के सभी वर्ग और समुदाय की महिलाओं को इस योजना का लाभ मिलने जा रहा है। यह भी कि क्योंकि यह एक एक कम्यूनिटी ड्रिवेन योजना है, लिहाजा इसकी निगरानी बेहतर तरीके से हो पाएगी और पारदर्शिता व जवाबदेही जैसे मानकों पर भी यह खरी उतरेगी।
बिहार के साथ पूरा देश आज लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चले संपूर्ण क्रांति को 50 वर्ष पूरे होने पर याद कर रहा है। आजादी के बाद के देश के इस सबसे आंदोलन को बिहार आंदोलन के रूप में ख्याति मिली। यह भी एक सुखद संयोग ही है कि इन पचास वर्षों में बिहार ने अपनी पहचान सामाजिक-राजनीतिक बदलाव की जिस बुनियाद पर कायम की है, उसका सबसे चमकदार पक्ष प्रदेश की आधी आबादी का बढ़ा दमखम है। बिहार के लिए यह गर्व की बात है कि देश में पंचायतीराज व्यवस्था और नगर निकायों में महिलाओं को 50 फीसद आरक्षण सबसे पहले देने वाले इस सूबे के पास आज महिला स्वावलंबन का अपना मॉडल है। पटना से लेकर प्रदेश के तमाम शहरों और छोटे-बड़े कस्बों में बिहार सरकार अपनी इस उपलब्धि को होर्डिंग-पोस्टर के जरिए चुनाव से ऐन पहले प्रचारित भी कर रही है। राजनीतिक बयान और घटिया नुक्ताचीनी के बजाय इस तरह के रचनात्मक तथ्यों के आधार पर चुनावी समर में उतरने का राजनीतिक विवेक सराहनीय तो है ही, लोकतांत्रिक गरिमा के अनुरूप भी है।