
दिलीप कुमार पाठक
“मुझे मार दिया जाए, मेरी यूनिवर्सिटी में बुलडोज़र चला दिया जाए फिर भी एक यूनिवर्सिटी के फाउंडर के रूप में मेरी शिनाख्त होगी. मुझ पर किताबों की चोरी का आरोप लगाया गया है, अगर चोरी करके कोई गरीब बच्चों को पढ़ाता है तो ऐसे चोरों की ज़रूरत हिन्दुस्तान को है”.ये शब्द किसी और के नहीं बल्कि उत्तरप्रदेश के सबसे चर्चित दिग्गज नेता आज़म खान के हैं.
मुहम्मद आज़म खान एक तेज़तर्रार नेता आपातकाल की छाया से निकलकर उत्तर प्रदेश की सबसे मज़बूत राजनीतिक आवाज़ों में से एक बनकर उभरे थे. आज़म खान मुल्क के दिग्गज नेताओ की फ़ेहरिस्त में शामिल रहे, जिन्होंने लम्बा दौर सियासत के आंगन में जिया, परंतु उनके हिस्से लम्बा संघर्ष भी आया … उत्तरप्रदेश में जिनकी तूती बोलती थी, जिनकी पर्सनैलिटी ऐसी कि जिस गली से गुज़र जाएं तो जुलूस निकल जाएं. मुँह खोलें तो हेड लाइन बन जाए. उत्तरप्रदेश का ऐसा नेता जो पूरे देश की राजनीति के केंद्र में होता था. आपातकाल में इन्दिरा गांधी के मुखर विरोध में नेतागिरी में कूद जाने वाले आज़म खान ने कभी भी राजनीतिक समझौता नहीं किया, कीमत चाहे जो भी रही हो. आज़म खान ने गरीबों की उंगली थामकर नवाबों के राजनीतिक किले की प्राचीर को ध्वस्त कर दिया था. इंदिरा गांधी के विरुद्ध आवाज़ बुलन्द करने वाले आज़म खान को काल कोठरी में ठूंस दिया गया था, जहां इंसानो को रखने की मनाही थी जो बिल्कुल जायज नहीं था. जहां उनके साथी नेताओ को आरामदायक जगह में रखा गया था, वहीँ आज़म खान ने तमाम ज्यादतियां झेली… आपातकाल के दौरान 17 महीनों की लम्बी कैद झेलने के बाद पहला चुनाव जनता पार्टी की टिकिट पर लड़ गए हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन राजनीति से जूझते रहे.
इस हार ने उनके इरादों को और मजबूत कर दिया और उन्होंने रामपुर के नवाब परिवार के प्रभुत्व को खुली चुनौती देने का फैसला किया. नवाब परिवार ने ऐतिहासिक रूप से अंग्रेजों का साथ दिया था और बाद में राजनीति में अपना दबदबा बनाए रखा था. ज़ुल्फ़िकार अली ख़ान ने 1967 से 1989 तक रामपुर से संसद की सीट पर कब्ज़ा किया, और उनकी पत्नी नूर बानो ने 1996 और 1999 में जीत हासिल की. आज़म ने इस नवाबी दबदबे को चुनौती देने का बीड़ा उठाया, और खुद को एक मजबूत प्रतिद्वंद्वी के रूप में स्थापित किया. 1980 में, आज़म ने रामपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की, उन्होंने मज़दूरों और निचले तबके के बीच अपना समर्थन मज़बूत करना शुरू किया. मौलाना मोहम्मद अली जौहर के आदर्शों से प्रेरित होकर, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ़ लड़ाई लड़ी थी, आज़म ने रामपुर के मज़दूर वर्ग को संगठित किया और नवाबी परिवार के प्रभुत्व को चुनौती दी.
आज़म ख़ान का प्रभाव बढ़ने के साथ, रामपुर पर नवाबी पकड़ कम होती गई. 1980 से 1992 के बीच, ख़ान ने चार अलग-अलग दलों के टिकट पर रामपुर सीट जीती. 1992 में समाजवादी पार्टी की स्थापना के बाद, वे मुलायम सिंह यादव के साथ जुड़ गए और पार्टी के टिकट पर जीत हासिल की. उनकी लगातार जीत और तीक्ष्ण भाषण कला ने उन्हें उत्तर प्रदेश के प्रमुख मुस्लिम नेताओं में से एक बना दिया. 2003 में, समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान, आज़म खान ने मौलाना अली जौहर ट्रस्ट की स्थापना की और रामपुर में एक विश्वविद्यालय की नींव रखी. विश्वविद्यालय के उद्घाटन में सपा कैबिनेट की उपस्थिति खान के प्रभाव को दर्शाती थी. लेकिन 2017 में राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद, एक यूनिवर्सिटी के चांसलर को किताब चोर कहकर चिढ़ाया जाने लगा. ये भी राजनीति का क्रूर चेहरा है.
मुलायम सिंह यादव के कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले आज़म खान हमेशा उनके बाद वाली मजबूत पोजीशन वाले लीडर रहे, परंतु समाजवादी पार्टी में पीढ़ी परिवर्तन होता गया, खुद को आज़म खान परिस्थितयों में ढालते रहे, परंतु मुलायम सिंह यादव ने हमेशा आज़म खान को अपने भाई के बराबर स्नेह दिया. उन्हीं आज़म खान को मुलायम सिंह के निधन के बाद दरकिनार कर दिया गया था. समाजवादी पार्टी से सीमित समर्थन के बावजूद, आज़म खान की मुश्किलें बढ़ती चली गईं, जेल में रहने के दौरान अखिलेश यादव और पार्टी ने उन्हें दरकिनार कर दिया था. हालांकि वे एक अपराधी नहीं, बल्कि एक राजनेता के रूप में उभरे और आपातकाल के दौरान जेल गए थे. भाजपा के प्रभुत्व और उनके खिलाफ 100 से अधिक कानूनी मामलों के बावजूद, उनका प्रभाव और रामपुर में चुनावों को प्रभावित करने की क्षमता बनी हुई है. अदालत के फैसले इस बात की तस्दीक करते हैं कि उनके खिलाफ़ राजनीतिक विद्वेष के कारण तमाम मुकदमे लादे गए. हालांकि बात मुकदमों की नहीं है, बात उनकी विश्वसनीयता की है, एक पूर्व मंत्री कई बार के सांसद, एक यूनिवर्सिटी के फाउंडर ने मुर्गी चुराई, बकरी चुराई, भैंस चुराई,
उनकी पत्नी ने कुछ पैसे चुराए, उनके बेटे ने शराब की बोतलें लूटी… हमारे देश की राजनीतिक द्वेष भावना को देखना हो तो इस स्तर पर जाकर समझ सकते हैं.. आज़म खान में तमाम दोष हो सकते हैं परंतु एक चेतना सम्पन्न आदमी अगर इसका मूल्यांकन करे तो समझ आएगा क्या आज़म खान के लिए यही काम रह गया था कि वे मुर्गी, बकरी, चोरी करेंगे? ऐसे घिनौने आरोपों के बावजूद आज़म खान की शख्सियत कभी धूमिल नहीं हुई. उनके ऊपर तमाम तरह के मुकदमे लगे, उनकी जांच विमर्श कोर्ट करेगा, परंतु इस तरह राजनीतिक द्वेष के तहत जेल में ठूंस देना क्या यही भारतीय राजनीति का स्तर है?
यही कारण है कि जेल से छूटने के बाद आज़म खान ने कहा था मैं गूँगा हूं, मेरे मुँह में जुबां नहीं है, मैं अंधा हूं, मेरी आँखों में रोशनी नहीं है, जेहन खाली है क्योंकि मेरे बुद्घि नहीं है. इतना फ़ना कर दिया गया हूं और कितना किया जाऊँगा… कोई बता सके तो बताए… हालांकि इतना कहूँगा मेरे पास ईमान है.
आज़म खान की शख्सियत बेजोड़ है, आप उनसे सहमत असहमत हो सकते हैं परंतु अनदेखा नहीं कर सकते. आज़म खान ने अपराध किए या नहीं ये तो कोर्ट तय करेगा, परंतु ये तय हो गया है कि भारत की राजनीति का स्तर बहुत घिनौना है.