पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में बढ़ते विरोध: भारत की प्रतिक्रिया और जनता की मांगें

Growing protests in Pakistan-administered Kashmir: India's response and public demands

प्रीति पांडेय

पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर (पीएके) में जारी विरोध प्रदर्शनों पर भारत ने प्रतिक्रिया दी है। भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि पाकिस्तान के कब्ज़े वाले जम्मू-कश्मीर में जो प्रदर्शन हो रहे हैं और जिनमें आम नागरिकों पर सेना की कठोर कार्रवाई की खबरें सामने आ रही हैं, वह पाकिस्तान के दमनकारी रवैये का परिणाम हैं। उनका कहना था कि पाकिस्तान को उसके गंभीर मानवाधिकार उल्लंघनों के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।

हड़ताल का पांचवां दिन

शुक्रवार को पीएके में हड़ताल का पांचवां दिन रहा। बाज़ार, सड़कें और सार्वजनिक परिवहन पूरी तरह बंद रहे और कई जगहों पर लोग सड़कों पर उतरे। इस बीच पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने हालात पर चिंता व्यक्त की और प्रदर्शनकारियों से शांतिपूर्ण रवैया अपनाने की अपील की। उन्होंने पुलिस बलों को भी संयम बरतने का निर्देश दिया।

शहबाज़ सरकार की ओर से बनाई गई वार्ता समिति ने जम्मू-कश्मीर जॉइंट आवामी एक्शन कमेटी (जेकेजेएएसी) के साथ बातचीत के दूसरे दौर का आयोजन किया।

पाकिस्तान सरकार का पक्ष

पाकिस्तान के गृह राज्य मंत्री तलाल चौधरी का कहना है कि वार्ता जारी है और सरकार ने अधिकांश मांगें मान ली हैं। उनके अनुसार, “अगर 80 फ़ीसदी मांगें पूरी हो जाती हैं तो हिंसा का सहारा लेने की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती। हाल ही में सरकार ने बड़े पैकेज भी जारी किए हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि शहबाज़ शरीफ़ का रवैया कश्मीर के प्रति काफी नरम है और अब यह प्रदर्शनकारियों पर निर्भर है कि वे जनता की वास्तविक समस्याओं को उठाना चाहते हैं या किसी और एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं।

विरोध की वजह

जेकेजेएएसी के आह्वान पर 29 सितंबर से पूरे क्षेत्र में हड़ताल शुरू की गई। इस समिति के 38 सूत्री मांग पत्र में सरकारी खर्च में कटौती, विधानसभा सीटों पर आरक्षण का विरोध, मुफ़्त शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं, साथ ही अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की स्थापना जैसी कई प्रमुख मांगें शामिल हैं।

शुरुआत में यह आंदोलन आटे और बिजली की कम दरों पर आपूर्ति सुनिश्चित करने की मांग से शुरू हुआ था, लेकिन अब इसमें कई अन्य मुद्दे जुड़ चुके हैं। इनमें कश्मीरी अभिजात वर्ग को मिलने वाले विशेषाधिकारों में कटौती, शरणार्थियों के लिए आरक्षित 12 विधानसभा सीटों को समाप्त करने और आम जनता के लिए बेहतर सुविधाओं की मांग शामिल है।

प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि सरकार ने दो साल पहले हुए समझौते को लागू नहीं किया, जिसकी वजह से आज स्थिति इतनी बिगड़ गई है। हालात काबू में करने के लिए प्रशासन ने कई क्षेत्रों में इंटरनेट, मोबाइल और सोशल मीडिया सेवाएं बंद कर दीं।

वार्ता की विफलता और बढ़ते तनाव

हड़ताल से पहले स्थानीय और संघीय सरकार की ओर से वार्ता की कोशिश की गई, लेकिन यह नाकाम रही। इसके बाद दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर बातचीत विफल करने का आरोप लगाया।

विरोध प्रदर्शनों ने आम जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है।

जब हिंसा भड़क उठी

प्रदर्शन उस समय हिंसक हो गए जब मुस्लिम कॉन्फ़्रेंस पार्टी ने भी उसी दिन शांति मार्च निकालने की घोषणा कर दी। पुलिस के मुताबिक, दोनों गुटों के आमने-सामने आने से झड़प शुरू हो गई और गोलीबारी तक की नौबत आ गई।

आवामी एक्शन कमेटी के सदस्य शौकत नवाज़ मीर ने आरोप लगाया कि वे शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे, लेकिन सुरक्षा बलों की ओर से गोली चलाई गई। उनके अनुसार, न्याय मिलने तक आंदोलन जारी रहेगा।

मुज़फ़्फ़राबाद के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने इसे दो गुटों के बीच हुई झड़प बताया और कहा कि इस मामले में क़ानूनी कार्रवाई की जा रही है। एक्शन कमेटी का दावा है कि अब तक नौ नागरिक मारे जा चुके हैं।

पुलिस और सरकार का बयान

चम्याती इलाक़े में हुई झड़पों में तीन पुलिसकर्मी मारे गए और लगभग 150 घायल हुए, जिनमें आठ की हालत गंभीर बताई जा रही है।

पीएके के प्रधानमंत्री चौधरी अनवारुल हक़ ने कहा कि हिंसा से कोई समाधान नहीं निकलेगा और बातचीत ही एकमात्र रास्ता है। संघीय मंत्री तारिक फ़ज़ल चौधरी ने बताया कि सरकार ने 90 प्रतिशत मांगें मान ली हैं और शेष मुद्दों पर बातचीत जारी है।

वहीं शौकत नवाज़ मीर का कहना है कि जब तक आरक्षित विधानसभा सीटें और अभिजात वर्ग के विशेषाधिकार खत्म नहीं किए जाते, तब तक आगे कोई वार्ता संभव नहीं।

विरोध की पृष्ठभूमि

करीब दो साल पहले रावलाकोट में आटे की तस्करी के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हुआ था। स्थिति तब और गंभीर हो गई जब लोगों को बिजली के बढ़े हुए बिल मिलने लगे। मई 2023 में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए। 31 अगस्त 2023 को पूरे पीएके में हड़ताल और गिरफ्तारियां हुईं।

इसके बाद 17 सितंबर को मुज़फ़्फ़राबाद में विशाल रैली हुई और इसी दौरान जेकेजेएएसी का गठन हुआ। 30 सितंबर 2023 को इस समिति के नेतृत्व में प्रदर्शनों के बाद कई गिरफ्तारियां हुईं।

5 अक्तूबर को पूरे इलाके में चक्का जाम और रैलियां आयोजित की गईं। 3 नवंबर 2023 से सरकार और कमेटी के बीच बातचीत शुरू हुई, लेकिन किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंची।

11 मई 2024 को प्रदर्शनकारियों ने अपनी 10 सूत्री मांगों के समर्थन में लंबा मार्च शुरू किया। 13 मई 2024 को सरकार ने हस्तक्षेप करते हुए 20 किलो आटे की बोरी की कीमत 1,000 रुपये तय की और घरेलू बिजली दरें 3 से 6 रुपये प्रति यूनिट तथा व्यावसायिक दरें 10 से 15 रुपये प्रति यूनिट घोषित कीं।