
गोपेन्द्र नाथ भट्ट
भारत निर्वाचन आयोग ने सोमवार को बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की घोषणा कर दी है। बिहार में इस बार मतदान दो चरणों में 6 और 11 नवम्बर को होगा, जबकि मतगणना 14 नवम्बर को होगी तथा चुनाव परिणाम आ जायेंगे।
बिहार के साथ ही राजस्थान के बारां जिले की अंता विधानसभा सीट पर उपचुनाव की तारीखों का ऐलान भी हो गया है। चुनाव आयोग की घोषणा के अनुसार 11 नवंबर को मतदान होगा और 14 नवंबर को नतीजे घोषित किए जाएंगे। चुनाव कार्यक्रम के अनुसार 13 अक्टूबर को गजट नोटिफिकेशन जारी होगा। उम्मीदवार 21 अक्टूबर तक नामांकन दाखिल कर सकेंगे। नामांकन पत्रों की जांच 23 अक्टूबर को होगी और प्रत्याशी 27 अक्टूबर तक नामांकन वापस ले सकेंगे। यह उप चुनाव निवर्तमान भाजपा विधायक कंवरलाल मीणा की विधानसभा सदस्यता रद्द होने से खाली हुई सीट के कारण हो रहा है। यह सीट भाजपा नेता कंवरलाल मीणा की विधायकी खत्म होने से खाली हुई थी। दरअसल, कंवरलाल मीणा को 20 साल पुराने एक मामले में अदालत से सजा हुई थी, जिसमें उन्होंने एसडीएम पर पिस्टल तान दी थी। इसी सजा के बाद मई 2025 में उनकी विधायकी रद्द कर दी गई थी। संविधान के अनुसार किसी सीट के खाली होने के 6 महीने के भीतर उपचुनाव कराना जरूरी होता है। इसी प्रावधान के तहत अंता विधानसभा सीट पर यह उपचुनाव कराया जा रहा है।
2023 में हुए विधानसभा चुनाव में अंता सीट पर कंवरलाल मीणा ने कांग्रेस के दिग्गज नेता और हाड़ौती क्षेत्र में प्रभावशाली माने जाने वाले प्रमोद जैन भाया को पराजित किया था। भाया कांग्रेस की गहलोत सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं और उनकी गिनती हाड़ौती के बड़े नेताओं में होती है।
अब उपचुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच फिर से कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है। यह चुनाव हाड़ौती की राजनीति में दोनों दलों की साख से जुड़ा माना जा रहा है। अंता विधानसभा क्षेत्र में लगभग 2.3 लाख मतदाता हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह उपचुनाव न केवल स्थानीय जनभावनाओं का परीक्षण होगा, बल्कि राजस्थान की मौजूदा सरकार की अग्नि परीक्षा होगा। सभी की निगाहें अब 11 नवम्बर को होने वाले मतदान पर टिकी हुई हैं।
इधर बिहार में चुनाव के ऐलान के साथ ही बिहार की सियासत में चुनावी माहौल गर्मा गया है। बिहार विधानसभा- 2025 का चुनाव लोकतंत्र का नया इम्तिहान है।भारत के लोकतंत्र का असली चेहरा तब दिखता है जब जनता अपने मताधिकार का प्रयोग करने निकलती है। बिहार एक बार फिर उसी दिशा में कदम बढ़ा चुका है। निर्वाचन आयोग ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की घोषणा कर दी है। इस घोषणा के साथ ही राज्य में सियासी सरगर्मी तेज हो गई है। राज्य की 243 विधानसभा सीटों के लिए इस बार भी मुख्य मुकाबला फिर से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और महागठबंधन (एमजीबी) के बीच होगा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नेतृत्व वाली जदयू, भाजपा और लोजपा के साथ मिलकर सत्ता बरकरार रखना चाहेगी, जबकि तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद, कांग्रेस और वाम दल जनता के बीच नए विकल्प के रूप में उतरेंगे। छोटे दल और स्वतंत्र उम्मीदवार भी इस बार समीकरण बिगाड़ सकते हैं। जाने माने चुनाव रणनीतिकार प्रशांत कुमार भी बाजी पलटने की ताक में हैं।
बिहार की राजनीति सदैव बहुरंगी रही है। यहाँ के मतदाता जातीय समीकरणों से लेकर विकास की दिशा तक, हर मुद्दे को परखते हुए निर्णय लेते हैं। वर्ष 2020 के बाद से राज्य की राजनीति में कई उलटफेर हुए हैं। गठबंधन बदले, नेतृत्व के चेहरे बदले और जनता के मन में भी बदलाव आया। इस बार का चुनाव उसी बदलाव की दिशा तय करेगा। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार इस बार चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा है रोज़गार। बिहार के युवा आज भी बड़ी संख्या में दूसरे राज्यों में काम की तलाश में जाते हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य और उद्योगों का विकास भी मुद्दा है। मतदाता अब केवल नारे नहीं, ठोस नीतियाँ और परिणाम चाहते हैं। महिलाओं की भागीदारी, अपराध नियंत्रण और भ्रष्टाचार पर सख़्त कार्रवाई जैसे विषय भी इस बार जनता के एजेंडे में हैं। सड़कों से लेकर सोशल मीडिया तक, हर जगह ‘बिहार कौन चलाएगा?’ का सवाल गूंजने लगा है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में जदयू और भाजपा एक साथ मैदान में उतरेंगी। वहीं तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद, कांग्रेस और वाम दलों का गठबंधन सत्ता पलटने की कोशिश करेगा। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इस चुनाव में नीतीश कुमार की साख दांव पर है, जबकि तेजस्वी यादव के समक्ष युवा नेतृत्व के रूप में खुद को स्थापित करने की परीक्षा है। राजनीतिक दलों ने अपनी अपनी घोषणाओं में विकास, निवेश और युवाओं के लिए अवसर बढ़ाने के वादे किए हैं। विश्लेषकों का कहना है कि बिहार की जनता अब केवल जातीय समीकरणों से नहीं, बल्कि विकास और सुशासन के आधार पर वोट करेगी।अगर एनडीए सत्ता में लौटता है तो यह स्थिरता और अनुभव की जीत मानी जाएगी, जबकि महागठबंधन की सफलता नयी सोच और युवा नेतृत्व के उभार का प्रतीक होगी।
बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा करते हुए मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने प्रेस वार्ता में बताया कि बिहार में चुनाव प्रक्रिया को निष्पक्ष और शांतिपूर्ण बनाने के लिए विशेष सुरक्षा बलों की तैनाती होगी। सभी संवेदनशील मतदान केंद्रों पर सीसीटीवी निगरानी और लाइव मॉनिटरिंग की व्यवस्था की जा रही है। साथ ही ईवीएम और वीवीपैट मशीनों की जांच के लिए विशेष तकनीकी टीमें गठित की गई हैं। निर्वाचन आयोग ने दो चरणों में मतदान रखकर स्पष्ट किया है कि निष्पक्षता और सुरक्षा सर्वोपरि है। ईवीएम और वीवीपैट की पारदर्शिता, सीसीटीवी निगरानी और विशेष बलों की तैनाती से चुनावी प्रक्रिया को सुरक्षित बनाने की कोशिश होगी।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह चुनाव बिहार के राजनीतिक भविष्य की नई रेखाएँ खींचेगा। अगर नीतीश कुमार की एनडीए सत्ता में लौटती है तो इसे स्थिरता और अनुभव की जीत माना जाएगा, वहीं महागठबंधन अथवा प्रशान्त कुमार की सफलता नई पीढ़ी के नेतृत्व की स्वीकार्यता का संकेत देगी। बिहार की जनता आज पहले से अधिक सजग और परिपक्व है।
कुल मिला कर बिहार का यह चुनाव राज्य की दिशा और दशा तय करने वाला जनादेश होगा। जनता अब बहुत अधिक जागरूक है । उसे मालूम है कि उसका एक वोट न केवल सरकार बनाएगा, बल्कि बिहार के भविष्य की रेखाएँ भी तय करेगा। लोकतंत्र का यह महापर्व बतलाएगा कि बिहार अब किस दिशा में आगे बढ़ना चाहता है ।