
प्रमोद शर्मा
नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति सी. पी. राधाकृष्णन ने मंगलवार को राज्यसभा के सभी राजनीतिक दलों के सभा के नेताओं के साथ अपनी पहली बैठक की अध्यक्षता की।
मंत्रियों सहित 29 राजनेताओं का स्वागत करते हुए, सभापति ने पदभार ग्रहण करने पर मिले अपार समर्थन और शुभकामना संदेशों के लिए उन्हें धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि अल्प सूचना पर सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को एक साथ एकत्रित होते देखना उत्साहजनक है ।
अपने प्रारंभिक वक्तव्य में, सभापति ने यह सुनिश्चित करने के महत्व पर बल दिया कि राज्यसभा उस गरिमा, अनुशासन और शिष्टाचार के साथ कार्य करे जिसकी वह हकदार है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि संवाद, विचार-विमर्श, वाद-विवाद और चर्चा संसदीय लोकतंत्र के मूल सिद्धांत हैं।
जनहित के मुद्दों को उठाने हेतु सदस्यों के लिए उपलब्ध अवसरों पर प्रकाश डालते हुए, सभापति ने शून्यकाल, विशेष उल्लेख और प्रश्नकाल को ऐसे महत्वपूर्ण साधन बताया जो कि सदस्यों को अविलंबनीय लोक महत्व के मामलों को उठाने का अवसर प्रदान करते हैं।
उन्होंने सदस्यों को स्मरण कराया कि भारत का संविधान और राज्य सभा की नियम पुस्तिका संसदीय संवाद के लिए मार्गदर्शक रुपरेखा —लक्ष्मण रेखा—का काम करती है। सभापति ने इस रुपरेखा के भीतर सभी सदस्यों के अधिकारों को बनाए रखने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई, साथ ही सभा की पवित्रता बनाए रखने की सभी की साझा जिम्मेदारी पर जोर दिया।
उन्होंने सभी सदस्यों से आग्रह किया कि वे सभा के प्रत्येक दिन, प्रत्येक घंटे, प्रत्येक मिनट और प्रत्येक सेकंड का उपयोग लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करने के लिए करें ।
राज्यसभा के नेता ने विचारों के आदान-प्रदान की शुरुआत की, जिसके बाद अन्य नेताओं ने अपनी राय रखी। सभा के नेता ने सभा चलाते समय संसदीय प्रक्रिया की उच्च परंपराओं का पालन करने पर जोर दिया और कार्यवाही के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिए हर संभव समर्थन देने का वचन दिया। राजनीतिक दलों के सभा के नेताओं ने सभा चलाने में अपना पूरा सहयोग देने की बात कहते हुए माननीय सभापति से अनुरोध किया कि वे विपक्षी दलों को सभा में विभिन्न संसदीय साधनों जैसे शून्यकाल, प्रश्नकाल, गैर- सरकारी सदस्य विधेयक (पीएमबी), अल्पकालिक चर्चा (एसडीडी), ध्यानाकर्षण सूचना (सीएएन) आदि के माध्यम से अपनी बात रखने का पर्याप्त अवसर दें। यह सुझाव दिया गया कि प्रत्येक पार्टी को उचित समय आवंटित करने का प्रयास किया जाए ताकि छोटे दल अपनी सीमित संख्या के कारण पीछे न रह जाएं – जिस पर माननीय सभापति ने आश्वासन दिया कि वह इस पर विचार करेंगे।
बैठक अत्यंत सौहार्दपूर्ण वातावरण में संपन्न हुई और सभा के सभी नेताओं ने इसमें भाग लिया। अपने समापन भाषण में, सभापति ने आगामी शीतकालीन सत्र को सामूहिक प्रयास और सार्थक विचार-विमर्श का एक अवसर बताया। उन्होंने आश्वासन दिया कि सदस्यों द्वारा दिए गए सभी बहुमूल्य सुझावों पर समुचित विचार किया जाएगा और उन्होंने सभी सदस्यों की भागीदारी के लिए उन्हें धन्यवाद दिया।