
अशोक भाटिया
बिहार में ठीक एक महीने बाद दो चरणों में होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए मतदान होगा। मतलब साफ है कि अब सोचने का समय नहीं है। परिणाम चाहे जो भी आए मुख्य रूप से 7 फैक्टर्स की भूमिका कहीं न कहीं से रहेगी ही। 19 साल से ज्यादा समय से राज्य के मुख्यमंत्री रहे नीतीश कुमार और केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की अग्निपरीक्षा तो है ही। लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव के साथ राहुल गांधी को उनके मुद्दों पर जनता का कितना साथ मिलता है यह भी पता चल जाएगा।
बिहार चुनाव के पुराने समीकरण खंगाले जाय तो बिहार में जिस पार्टी को जातिगत समीकरण मिलता है, वह जीतती है, जैसा कि एनडीए में भाजपा और नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) ने पिछले दो दशकों में जीत हासिल की है। इस बार भी इस समीकरण पर भाजपा की पकड़ ढीली नहीं हुई है, इसलिए इस चुनाव ने भी उम्मीद के मुताबिक रफ्तार पकड़नी शुरू कर दी है, लेकिन अभी तक किसी ने यह अनुमान नहीं लगाया है कि इस बार एनडीए को अस्थिर करने वाले दो फैक्टर फायदा उठाएंगे या हिट होंगे।
बिहार में एक समय में तीन, पांच, सात चरणों में चुनाव होते थे, लेकिन इस बार सिर्फ दो चरणों में मतदान होगा। हैरानी की बात है कि भारत के चुनाव आयोग ने एक भी चरण में मतदान कराने की हिम्मत नहीं की है, जब देश में कहीं भी चुनाव नहीं होता है और सारी सुरक्षा एजेंसियां उपलब्ध हैं। अगर ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की नीति लागू करनी है तो बिहार जैसे बड़े राज्य में एक ही चरण में चुनाव कराने की क्षमता आयोग के पास होनी चाहिए। मतदान 6 और 11 नवंबर को होगा, यानी छठ पूजा पूरी होने के बाद नौवें दिन पहला चरण और छठ पूजा संपन्न होने के 14वें दिन दूसरा चरण होगा। हाल के दिनों में वोट चोरी के आरोपों के साथ, बिहार में मतदान की तारीखें एक बार फिर आयोग को आरोपियों के पिंजरे में डाल सकती हैं। बिहार में सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक 11 घंटे तक मतदान होगा। किसी ने भी मतदान की अवधि पर आपत्ति नहीं जताई होगी। हालांकि, विपक्ष को संदेह है कि महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के दौरान शाम पांच बजे के बाद मतदान प्रतिशत अप्रत्याशित रूप से बढ़ गया है, जिसके बाद मतदान का समय बदल दिया गया है। बिहार में एक पोलिंग बूथ पर 1200 मतदाता हैं। अगर हर मतदाता को एक मिनट भी लगता है, तो भी हर किसी को वोट डालने में 20 घंटे लगेंगे। मान लीजिए कि मतदान 100 प्रतिशत नहीं है, अगर शाम 5 बजे के बाद लंबी कतारें लगती हैं, तो महाराष्ट्र में विवाद दोहराया जाएगा।
गौरतलब है कि 74 वर्षीय मुख्यमंत्री की तबीयत अब पहले जैसी नहीं रही है, और यही विपक्षी महागठबंधन का मुख्य हथियार बन गया है। विपक्ष का आरोप है कि अब नीतीश प्रशासन पर नियंत्रण नहीं रख पा रहे हैं, और राज्य एक सात-आठ सदस्यीय राजनीतिज्ञों और अफसरों का समूह चला रहा है। तेजस्वी यादव, जो नेता प्रतिपक्ष हैं, अक्सर नीतीश कुमार के समारोहों के वीडियो साझा करते हैं ताकि यह दिखा सकें कि सीएम अब उतने सक्रिय नहीं हैं। रविवार को पटना के एक कार्यक्रम में नीतीश कुमार के बार-बार हाथ जोड़ने का का वीडियो इसका ताज़ा उदाहरण है।
हालांकि जेडीयू ने लगातार इन आरोपों का खंडन किया है। जेडीयू के मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार ने सोमवार को कहा, वह (नीतीश) सभी फैसले खुद ले रहे हैं।। उनकी सेहत सिर्फ विपक्ष का मुद्दा है। सहयोगी भाजपा भी बार-बार यह कह रही है कि चुनाव नीतीश के नेतृत्व में ही लड़े जा रहे हैं। लेकिन भाजपा यह बताने से बच रही है कि चुनाव के बाद क्या होगा।जाहिर है कि नीतीश के प्रति बिहार में अब भी जो सम्मान है उसके चलते भाजपा इस मुद्दे पर फूंक फूक कर कदम रख रही है। दरअसल डर यह है कि अगर नीतीश कुमार स्वस्थ नहीं हैं, यह बात आम लोगों तक पहुंच गया तो एनडीए के लिए स्थितियां माकूल नहीं रह सकेंगी।
एनडीए ने विरोधी लहर को रोकने के लिए नीतीश कुमार पिछले कुछ महीनों से लगातार आम जनता की भलाई के लिए कोई न कोई फैसले ले रहे हैं। उन्होंने मतदाताओं के लिए कई योजनाओं की झड़ी लगा दी है। अब तक 1।21 करोड़ महिलाओं को 10,000 रुपये जा चुके हैं ताकि वे कोई छोटा व्यवसाय शुरू कर सकें। यह वितरण मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत जारी रहेगा क्योंकि आचार संहिता चल रही योजनाओं पर लागू नहीं होती।राज्य सरकार 1।89 करोड़ परिवारों को 125 यूनिट मुफ्त बिजली देने की घोषणा पहले ही कर चुकी है। सामाजिक सुरक्षा पेंशन को 400 रुपये से बढ़ाकर 1,100 रुपये प्रति माह किया गया है। जीविका, आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं का मानदेय बढ़ाया गया है। साथ ही 18 से 25 वर्ष के बेरोजगार युवाओं को दो वर्षों तक प्रति माह 1,000 रुपये भत्ता देने की घोषणा की गई है।
उधर बिहार में चुनाव आयोग के मतदाता सूची के विशेष सघन जांच अभियान को राहुल गांधी ने मुद्दा बना दिया। उनका साथ देने के लिए पूरा इंडिया गुट आधे अधूरे मन से लग गया। बिहार में 17 अगस्त से लेकर एक सितंबर तक की राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने मिलकर यात्रा भी निकाली। दोनों नेताओं को देखने और सुनने के लिए भारी भीड़ भी जुटी पर जिस तरह तेजस्वी ने दुबारा यात्रा निकाली है और वोट चोरी के मुद्दे पर अब उनका उतना फोकस नहीं है, उससे तो यही लगता है कि महागठबंधन यह समझ चुका है कि यह मुद्दा फुस्स हो चुका है।मोदी सरकार पर वोट चोरी का आरोप कितना काम किया इसका नतीजा 14 नवंबर को बिहार चुनाव परिणामों के साथ ही आ जाएंगे। दूसरी तरफ एनडीए ने एसआईआर के विरोध को घुसपैठियों को प्रोत्साहन देने वाला बताया है। चुनाव परिणाम ये साबित करेगा आम लोगों को अपनी बात समझाने में कौन अधिक सफल रहा।
एनडीए नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात बार-बार कहता तो है। पर चुनाव परिणाम आने के बाद उनके सीएम बनाने की बात पर भाजपा और जेडीयू दोनों ही ओर से एक तरह की चुप्पी ही है। दरअसल नीतीश की बिगड़ती सेहत को देखते हुए एनडीए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही अपनी मुख्य चेहरा बनाया हुआ है। जबकि हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में मोदी ने स्थानीय नेतृत्व के भरोसे ही चुनाव अभियान को छोड़ रखा था। पर बिहार में ऐसा नहीं है।दरअसल महाराष्ट्र और हरियाणा की तरह पूरे प्रदेश में प्रभाव दिखाने वाला भाजपा का कोई स्थानीय नेता बिहार में नहीं है। उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और राज्य अध्यक्ष दिलीप जायसवाल के पास राज्यव्यापी जनअपील में वह प्रभाव नहीं है जो एनडीए को चाहिए। इसी तरह जनता दल यू में भी नीतीश कुमार ने कभी भी किसी को अपने डिप्टी के रूप में उभरने ही नहीं दिया।नीतीश कुमार जिस तरह बीमार दिख रहे हैं उसके चलते मोदी की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है । क्योंकि जेडीयू के किसी भी नेता में राज्यव्यापी अपील नहीं है। जाहिर है कि सारा दारोमदर नरेंद्र मोदी पर ही है।
पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे चुनाव रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा रखी है।जन सुराज पार्टी (JSP) के बारे में कहा जा रहा है कि एनडीए के लिए यह पार्टी बहुत घातक साबित होने वाली है। पिछले कुछ दिनों में भाजपा के शीर्ष नेताओं पर उनके आरोपों ने सत्तारूढ़ दल को रक्षात्मक मुद्रा में ला दिया है। डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी के बारे में तो उन्होंने ऐसे आरोप लगाएं हैं कि भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को मुंह छुपाना पड़ रहा है। इतना ही नहीं बिहार की जातिगत राजनीति से ऊबे बहुत से लोगों के लिए किशोर का यह संदेश कि उनकी सरकार प्रवास, बेरोजगारी और सुशासन जैसे मुद्दों पर ध्यान देगी। जाहिर है कि बहुत से लोगों के लिए वो उम्मीद की किरण बन रहे हैं। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि नीतीश कुमार ने अंतिम मौकों पर फ्रीबीज की घोषणाएं की हैं उसके पीछे कहीं न कहीं प्रशांत किशोर ही हैं। जाहिर है कि अगर महागठबंधन को कई सीटों पर माइलेज मिलती है तो उसमें कहीं न कहीं प्रशांत किशोर और उनकी पार्टी जनसुराज का भी हाथ होगा।
सवाल यह भी है कि एनडीए के लिए लालू प्रसाद यादव के जंगलराज का नैरेटिव बिहार विधानसभा चुनावों में क्या इस बार भी काम करेगा? दरअसल RJD की छवि को अपराध, भ्रष्टाचार और अराजकता से जोड़कर मतदाताओं में भय पैदा कराना ही एनडीए के लिए एक बार फिर फायदेमंद साबित हो सकता है। 1990-2005 के लालू-राबड़ी काल को जंगलराज बताकर NDA ने 2005, 2010, 2020 चुनावों में सफलता हासिल की, जहां अपहरण, हत्या और लूट की घटनाओं का जिक्र कर जनता को नीतीश कुमार के सुशासन से जोड़ा जाता रहा है।
पिछले कुछ समय से बिहार में अपराध बढ़ने से NDA पर सवाल उठे हैं। इसके साथ ही इस बार ऐसे युवाओं की मात्रा इस बार वोट देने वालों की अधिक है जिन्होंने जंगलराज के बारे में केवल सुना है। जाहिर है कि उनके लिए बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है। हो सकता है कि उनके लिए जंगलराज का नैरेटिव कमजोर हो जाए।