
अशोक भाटिया
पश्चिम बंगाल के बर्धमान जिले के दुर्गापुर में एक मेडिकल कॉलेज की द्वितीय वर्ष की छात्रा के साथ गैंगरेप की सनसनीखेज वारदात हुई है। पीड़िता ओडिशा के जलेश्वर की रहने वाली है। शुक्रवार रात कॉलेज परिसर के बाहर आरोपियों ने उसे अगवा कर लिया। उसे जंगल में ले जाकर अपनी हवस का शिकार बनाया। पुलिस ने हमेशा की तरह आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज करके इस मामले की जांच शुरू कर दी है।बताया जाता है कि ये घटना उस समय हुई जब छात्रा अपनी एक सहेली के साथ रात का खाना खाने के लिए कॉलेज परिसर से बाहर गई थी। शुक्रवार रात करीब 8 से 8:30 बजे के बीच तीन युवक उनके पास पहुंचे। उन्हें देखकर छात्रा की सहेली घबरा गई और मौके से भाग निकली। इसके बाद आरोपियों ने पीड़िता का मोबाइल फोन छीन लिया और उसे जबरन पास के जंगल में ले गए।वहां तीनों ने छात्रा को अपनी हवस का शिकार बना डाला। दरिंदगी के बाद उन तीनों ने उसे धमकाया गया कि यदि उसने किसी को कुछ बताया तो अंजाम गंभीर होंगे। आरोपी जाते-जाते यह भी कह गए कि मोबाइल वापस चाहिए तो पैसे देने होंगे। इस वारदात के बाद पीड़िता की हालत बेहद नाजुक बताई जा रही है। उसे दुर्गापुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां उसका इलाज चल रहा है।
हाल ही में जब आरजी कर मेडिकल कॉलेज में महिला डॉक्टर के साथ हुए दुष्कर्म और हत्याकांड की पहली बरसी पर भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और पश्चिम बंगाल के केंद्रीय पर्यवेक्षक अमित मालवीय ने ममता बनर्जी सरकार पर महिलाओं की सुरक्षा में विफल रहने का गंभीर आरोप लगाया था । उन्होंने कहा था कि राज्य में महिलाओं के खिलाफ अपराध लगातार बढ़ रहे हैं और सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठाने में नाकाम रही है। श्री मालवीय ने सोशल मीडिया पर एक्स पर शनिवार को आंकड़ों के साथ एक बयान जारी कर कहा कि पश्चिम बंगाल महिलाओं के लिए देश के सबसे असुरक्षित राज्यों में से एक बन गया है। उन्होंने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि वर्ष 2022 में राज्य में महिलाओं के खिलाफ 34 हजार 738 अपराध दर्ज हुए, जिससे यह देश के शीर्ष पांच राज्यों में शामिल है। उनके अनुसार, राज्य की अपराध दर 71।8 प्रति एक लाख आबादी है, जो राष्ट्रीय औसत 65।4 से अधिक है। उन्होंने यह भी खुलासा किया कि अगस्त 2024 तक पश्चिम बंगाल में बलात्कार और पॉक्सो से जुड़े 48 हजार 600 मामले लंबित हैं, जबकि फास्ट-ट्रैक विशेष अदालतें मौजूद हैं। मालवीय के अनुसार, यह ममता बनर्जी सरकार की प्रशासनिक विफलता को दर्शाता है। श्री मालवीय ने कहा, “ममता बनर्जी के नेतृत्व में बंगाल की महिलाएं असुरक्षित, अनसुनी और उपेक्षित हैं। राज्य को केवल जवाब नहीं, जवाबदेही चाहिए। 2026 में उन्हें सत्ता से बाहर करना ही एकमात्र रास्ता है।” उन्होंने कहा कि आरजी कर घटना के एक वर्ष बाद भी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है।
गौरतलब है कि बंगाल एकमात्र ऐसा स्थान है जोकि आदिशक्ति मां दुर्गा की आराधना करने के लिए प्रसिद्ध है। वहां का दुर्गा पूजा विश्व प्रसिद्ध है। ऐसे में वहां से यह ख़बर आना कि एक महिला चिकित्सक के साथ वीभत्स कार्य हुआ है। यह काफ़ी झकझोर देने वाला है। महिलाएं इस सृष्टि के सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उनके साथ ऐसा जघन्य पाप किसी भी सभ्य समाज के लिए कलंक है।
बंगाल में यह पहली घटना नहीं है। कुछ महीनों पहले संदेशखाली की घटना ने भी राज्य के मुख पर कालिख पोता था। फ़िर सोशल मीडिया पर तमाम वीडियो डाले गए जहां जानवरों से भी ज्यादा बेकार महिलाओं के पीटा जा रहा था। उसके बाद महिला चिकित्सक से हुई यह घटना काफ़ी निंदनीय है। यह देखकर काफ़ी खुशी होती है कि इसके विरोध में महिलाएं सड़कों पर उतर आयीं है। हालांकि यह संघर्ष केवल महिलाओं का ही नहीं है।इसके साथ पुरूषों को भी यह समझने की जरूरत है कि स्त्रियां कोई वस्तु नहीं है। जिनका की वह उपभोग करके के छोड़ दें। उन्हें यह भी समझने की ज़रूरत है कि यदि रक्तबीज रूपी पिशाच उनके आबरूह को गंदा करने की कोशिश करेगा। तो वही स्त्री चंडिका का रूप धर के उनका संहार करने में सक्षम है।
ममता बनर्जी खुद महिला हैं। उनको महिलाओं की वेदना समझना चाहिए। क्योंकि महिला ही यदि महिला के साथ नहीं खड़ा होगी। तो गिद्ध दृष्टि वाले उनको अपने हवस का शिकार करने के लिए तो बैठे ही हैं। इसके वाला छद्म नारीवाद का चोला पहनने वालीं स्त्रियां ही विरोध प्रदर्शन को हवा नहीं देंगी। तो यह दुष्कृत्य ऐसे ही होते रहेंगे।
अगर आप सभ्यता का चोला पहनने हैं। अपने देश में महिलाओं के साथ हो रहे अन्याय पर नहीं बोलते हैं तो आप भी बराबर के अपराधी हैं। पार्टी ,राजनीति, विचारधारा से ऊपर उठकर मणिपुर, संदेशखाली, हाथरस और ऐसे तमाम कृत्यों की निंदा करें। इसलिए नहीं की वह आपका व्यक्तिगत मामला नहीं है। बल्कि इसलिए की आपके अंदर मानवीय संवेदना जीवित है। आपके घर परिवार में स्त्रियां हैं। जो यह गर्व से कह सकें कि आप उस श्रेणी का हिस्सा नहीं हैं। जोकि महिलाओं को जीव कम पशु ज्यादा समझते हैं।
एनसीआरबी के रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के खिलाफ अपराधों के संदर्भ में 2022 में पश्चिम बंगाल में प्रति एक लाख की दर के हिसाब से अपराध दर 71।8 थी। एनसीआरबी अपराध दर की गणना प्रति एक लाख जनसंख्या के आधार पर दर्ज करता है। यानी पश्चिम बंगाल में प्रति एक लाख महिलाओं ने 71।8 अपराध के मामले दर्ज करवाए। ये आंकड़ा उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों से अधिक थी। उत्तर प्रदेश में यह दर 58।6 और बिहार में यह दर 33।5 थी।
देखा जाय तो भारत में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध दर हरियाणा (118) में सबसे ज्यादा है। इसके बाद तेलंगाना (117) और पंजाब (115) का नंबर आता है।दिल्ली में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध दर 144 है जो हरियाणा के आंकड़े से भी अधिक है।एनसीआरबी के वर्ष 2022 के आंकड़ों के मुताबिक नागालैंड में महिलाओं के खिलाफ अपराध दर सबसे कम 4।6 है।मणिपुर में यह अपराध दर 15।6 दर्ज की गई और तमिलनाडु में यह दर 24 दर्ज की गई जो भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध की सबसे कम दरों में से हैं।
प्रसिध्द वकील वृंदा ग्रोवर कहती हैं कि भारत में महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा शायद सबसे कम रिपोर्ट की जाती है।महिलाओं और ट्रांस समुदाय के अधिकारों का समर्थन करने वाली महिला निधि साउथ एशिया वूमेन्स फाउंडेशन की को-फाउंडर सुनीता धर कहती हैं, “अपराध दर और दर्ज कराए आपराधिक मामले जरूरी नहीं कि सभी हो रहे अपराधों की वास्तविकता बयां करें।”सुनीता कहती हैं, “इस बात पर गौर करने की जरूरत हैं कि डर के कारण कई राज्यों में अपराधों की रिपोर्टिंग में कमी हो सकती है।”वह कहती हैं, “अधिक अच्छे समाज और लिंग आधारित हिंसा के प्रति अधिक जागरूकता रखने वाले समाज में यह मामले सामान्य बात है। महिलाएं ऐसी बातें बोलने के लिए सुरक्षित जगह खोजती हैं। भारत में समाज में अपमानित होने के डर से ऐसे अपराधों की रिपोर्ट करना मुश्किल है।”
सुनीता कहती हैं, “इनमें से कई कारण दिल्ली जैसे शहरों में बड़ी संख्या में रिपोर्टों में योगदान करते हैं, जहां हिंसा से बचे लोगों के लिए अधिक मजबूत समर्थन नेटवर्क और सेवाएं हैं। आधिकारिक आंकड़े अक्सर वास्तविक हालात को नहीं दिखाते हैं, खासकर जब अपराधी परिवार का सदस्य हो,”
2022 के एनसीआरबी के आकड़ों के मुताबिक महिलाओं के खिलाफ अपराध का डेटा देखने पर यह मालूम चलता है कि तमिलनाडु के कोयंबटूर और चेन्नई में आपराधिक दर पश्चिम बंगाल के कोलकाता की आपराधिक दर से कम थी।एनसीआरबी के आकड़े दिखाते हैं कि इस दौरान पश्चिम बंगाल में रेप/गैंग रेप के बाद हत्या के पांच मामले सामने आएं हैं। राज्य में 845 रेप के मामले सामने आएं हैं और 427 दहेज हत्या से जुड़े मामले दर्ज हुए हैं। 35 मामले एसिड अटैक, 6,869 मामले महिलाओं को अगवा करने, 928 मामले दुष्कर्म का प्रयास करने और पॉक्सो एक्ट से संबंधित 2,771 मामले दर्ज किए गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट में यौन उत्पीड़न से बचे हुए लोगों का पक्ष रख चुकी वकील वृंदा ग्रोवर कहती हैं कि महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा शायद भारत में सबसे कम रिपोर्ट की जाती है।वृंदा ग्रोवर कहती हैं, “चूंकि यौन हिंसा और बलात्कार बेरोकटोक जारी हैं, हम जो देख रहे हैं वह वास्तविक स्थिति का बहुत छोटा सा अंश है। न्याय तक पहुंचने के लिए और महिलाओं को कानून का दरवाजा खटखटाने के लिए उसके पास आत्मविश्वास और ऐसा माहौल होना चाहिए जो उसे शिकायत को आगे ले जाने के लिए प्रोत्साहित करे और सक्षम बनाए।”ग्रोवर कहती हैं कि जिस तरह से आपराधिक न्याय प्रणाली बनाई गई है, उससे ये आशंका बनी रहती है कि मदद नहीं मिलेगी, बल्कि उसे फिर से पीड़ित करेगी। उनका कहना है कि उसी महिला की बात पर तभी यक़ीन किया जाता है कि जिस पर क्रूरता स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही हो।
भारत में दर्ज किए गए कुल 58,24,946 अपराधों में से हत्या के 28,522 मामले दर्ज किए गए हैं जबकि अगवा किए जाने 1,07,588 मामले दर्ज किए गए हैं।एनसीआरबी की साल 2022 की रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि पूरे भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 4,45,256 मामले दर्ज किए गए हैं जबकि बच्चों के खिलाफ 1,62,449 अपराध के मामले दर्ज किए हैं।
पश्चिम बंगाल में यौन उत्पीड़न के 331 मामले दर्ज किए गए हैं, जबकि तमिलनाडु में 243 मामले दर्ज किए गए हैं।पंजाब में यौन उत्पीड़न के 190 मामले, हिमाचल प्रदेश में 151 मामले और हरियाणा में 917 मामले दर्ज किए गए हैं।अपहरण और अगवा किए जाने के मामलों में पश्चिम बंगाल में 2084 मामले दर्ज किए गए हैं। जो राजस्थान (1,753), बिहार (1,370) और हरियाणा (839) में दर्ज मामलों से कहीं अधिक हैं।पूरे भारत में पॉक्सो एक्ट के 63,116 मामले दर्ज किए गए हैं। पश्चिम बंगाल में पॉक्सो एक्ट के 2,771 मामले दर्ज किए गए हैं।
उत्तर प्रदेश में पॉक्सो एक्ट के तहत 7,970 मामले दर्ज किए गए हैं जो पूरे भारत में सबसे अधिक हैं। वहीं गोवा में पॉक्सो एक्ट के तहत कोई भी मामला नहीं दर्ज किया गया है।पूरे देश में दर्ज किए गए 58,24,946 मामलों में 53,90,233 लोगों को गिरफ्तार किया गया है जिसमें से 24,72,039 लोगों को दोषी ठहराया गया है।एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से हाल ही में जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार 151 सांसदों और विधायकों के खिलाफ महिलाओं से जुड़े अपराध के मामले दर्ज हैं। जिसमें पश्चिम बंगाल सबसे आगे है।
पश्चिम बंगाल के 25 मौजूदा विधायक और सासंदों के खिलाफ महिलाओं से जुड़े अपराध के मामले दर्ज हैं। इसके बाद आंध्र प्रदेश (21) और ओडिशा के (17) सांसदों के खिलाफ महिलाओं से जुड़े अपराध के मामले दर्ज हैं।एनसीआरबी की साल 2022 की रिपोर्ट के अनुसार 16 सांसद और विधायक ऐसे हैं जिन्होंने आईपीसी की धारा 376 के तहत बलात्कार के मामलों के बारे में जानकारी दी है।
एडीआर के मुताबिक लोकसभा चुनाव के द्वितीय चरण में 87 में से 45 निर्वाचन क्षेत्रों को रेड अलर्ड निर्वाचन क्षेत्र के रूप में चिन्हित किया गया था। रेड अलर्ड निर्वाचन क्षेत्र वो क्षेत्र होते हैं जहां पर तीन से अधिक प्रत्याशियों ने आपराधिक मामलों की घोषणा की हो।पश्चिम बंगाल में ड्यूटी पर तैनात एक डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या के बाद पूरे देश के डॉक्टर हड़ताल पर चले गए थे। सुप्रीम कोर्ट की अपील के बाद हड़ताल को आंशिक रूप से समाप्त किया गया।
एक सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई और पश्चिम बंगाल सरकार से चल रही जांच के संबंध में कोर्ट को अपडेट देने को कहा था। सुनवाई के दौरान पश्चिम बंगाल सरकार की कानूनी टीम में 21 वकील थे जबकि केंद्र की ओर से केवल पांच वकील पैरवी कर रहे थे।