सरहदों पर अवैध धार्मिक स्थल बने देश की सुरक्षा को खतरा

Illegal religious sites on the borders pose a threat to the country's security

भारत की सीमाएं न केवल भौगोलिक सीमाएं हैं, बल्कि देश की संप्रभुता और सुरक्षा की रक्षक भी हैं। लेकिन पिछले कुछ दशकों में इन सीमाओं के निकट अवैध रूप से उग आए धार्मिक स्थलों ने एक गंभीर समस्या का रूप धारण कर लिया है। इन पर अवैध घुसपैठ को बढ़ावा देने और देश-विरोधी तत्वों को शरण देने के पुख्ता सुबूत भी मिले हैं। अब सरकार ने देश की सीमाओं पर बने धार्मिक स्थलों को तोड़ने का फैसला लिया है। ये फैसला क्यों देश की सुरक्षा के लिए जरूरी है? क्या सरकार अपने इरादे पर सफल होगी?

विवेक शुक्ला

भारत की सरहदों के आसपास पिछले कुछ दशकों के दौरान अवैध रूप से उग आए धार्मिक स्थलों ने देश की सुरक्षा के सामने गंभीर समस्या का रूप धारण कर लिया है। इन पर अवैध घुसपैठ को बढ़ावा देने और देश-विरोधी तत्वों को शरण देने के पुख्ता सबूत भी मिले हैं। भारत-बांग्लादेश, भारत-नेपाल और भारत-पाकिस्तान सीमाओं पर ऐसे हजारों धार्मिक स्थल बिना किसी सरकारी अनुमति के खड़े किए गए। इनमें से कई तो सीधे-सीधे अवैध घुसपैठियों द्वारा बनाए गए हैं, जो स्थानीय आबादी में घुल मिलकर डेमोग्राफिक परिवर्तन लाने की साजिश कर रहे हैं।

दरअसल इस समस्या की जड़ें बहुत गहरी हैं। देश की स्वतंत्रता के बाद से ही सीमावर्ती क्षेत्रों में अवैध निर्माण बनते रहे हैं। राजनीतिक संरक्षण और वोट बैंक की राजनीति ने इन्हें पनपने दिया। लेकिन मौजूदा केन्द्र सरकार ने इन पर लगाम लगाना का फैसला लिया है।केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हाल ही में सीमावर्ती जिला कलेक्टरों को निर्देश दिया कि सीमा के 30 किलोमीटर के दायरे में सभी अवैध धार्मिक अतिक्रमणों को हटा दिया जाए। अमित शाह ने अपने निर्देश में यह भी कहा है कि अंतर्राष्ट्रीय सीमा से सटे क्षेत्रों में कोई भी अवैध धार्मिक ढांचों का निर्माण ना हो और जो पहले से अवैध धार्मिक स्थल बने हुए हैं, उनको तुरंत ध्वस्त किया जाए। इस निर्देश के पीछे सिर्फ एक ही उद्देश्य है कि कोई घुसपैठिया यहां आकर छुप ना पाए, और भारत विरोधी कोई षड्यंत्र ना कर सके। भारत सरकार ने पहले भी कई बार इस बात की निशानदेही की है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से सटे भारत की सीमाओं में तेजी से अवैध धार्मिक ढांचों का निर्माण पिछले दो दशक में हुए हैं।

जानने वाले जानते हैं कि जम्मू कश्मीर में कुछ बड़े आतंकवादियों ने इन अवैध धार्मिक स्थानों में पनाह ली है। कभी कश्मीर में सूफी इस्लाम का चलन था, लेकिन 1990 के दशक में बाहरी उग्रवादी-कट्टरपंथी संगठनों ने घुसपैठ किया और वहां वहाबीवाद को बढ़ावा मिल गया। देखते देखते कश्मीर में सलाफी मस्जिदों की बाढ़ आ गई और जिहाद का दौर शुरू हो गया। आतंकवादी संगठन अपना विस्तार इन मस्जिदों के जरिए करने लगे। चरमपंथी संदेश का प्रचार मस्जिदों से भी किया जाने लगा। मस्जिदों से जिहाद करने वालों को जन्नत नसीब होने का पाठ पढ़ाया गया। कुछ मस्जिदों को तो कट्टरपंथी विचारधारा फैलाने के लिए विदेश से धन भी प्राप्त होता रहा।

केंद्र में एनडीए सरकार के आने के बाद कट्टरपंथ और वैचारिक कट्टरता में संलिप्त मदरसों और स्कूलों और धार्मिक संस्थानों पर निगरानी बढ़ा दी गई । गृह मंत्रालय ने जिन राज्यों को निर्देश दिए हैं, उनमें गुजरात, राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय, नागालैंड, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और लद्दाख हैं। इन राज्यों की सरकारों को इस आदेश पर तत्काल कार्रवाई करने के लिए कहा गया है। केंद्र सरकार का मानना है कि सीमावर्ती क्षेत्रों को अवैध निर्माणों से बचाना होगा।

बेशक, घुसपैठ के कारण सीमावर्ती क्षेत्रों में जनसांख्यिकीय संतुलन तेजी से बदल रहा है और इससे देश की सीमा को खतरा उत्पन्न हो सकता है। सीमा पर बाहरी लोगों को अवैध तरीके से बसाना एक सामान्य राजनीतिक और भौगोलिक कारण नहीं है, बल्कि यह एक आतंरराष्ट्रीय षड्यंत्र का हिस्सा भी हो सकता है। नेपाल की सीमा से लगे बिहार और उत्तरप्रदेश में बड़े पैमाने पर अवैध मस्जिदों और मदरसों का निर्माण कराया गया । इन मदरसों में बांग्लादेशी बच्चे भी पाए गए हैं। असम में भी ऐसी ही शिकायतें मिल रही थीं, जिसके बाद असम सरकार ने मदरसों को सामान्य स्कूलों में बदलने का फैसला किया गया।

सरकार का यह कदम इसलिए भी जरूरी है क्योंकि ये अवैध स्थल सीमा सुरक्षा बलों (बीएसएफ) की निगरानी में बाधा डालते हैं। कई मामलों में, इन जगहों को घुसपैठ के लिए कवर के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जहां देश-विरोधी ताकतें छिपकर अपनी साजिशें रचती हैं। उदाहरणस्वरूप, बांग्लादेश सीमा पर ऐसे मदरसे पाए गए हैं जहां पाकिस्तान समर्थित आतंकी समूहों के सदस्यों को शरण मिली।

सरकार ने अपनी जांच में यह भी पाया है कि जिन सीमावर्ती क्षेत्रों में घुसपैठ लगातार होते रहे हैं, उन क्षेत्रों के मूल निवासी पलायन के लिए मजबूर कर दिए गए, क्योंकि बाहरी लोगों ने अपनी संख्या के बल पर स्थानीय लोगों का उत्पीड़न शुरू कर दिया था।

उनकी जमीनों पर कब्जा कर लिया था और उनकी बहु बेटियों के साथ अभद्रता शुरू कर दी । गृह मंत्री ने स्वयं इन कई क्षेत्रों का दौरा किया और स्थानीय निवासियों को प्रश्रय देने और उनका संरक्षण करने के लिए जीवंत गाँव कार्यक्रम की शुरुआत की। सबसे पहले सीमावर्ती गाँवों से पलायन को रोकने के लिए उनके जान माल की सुरक्षा सुनिश्चित की गई। साथ में यह भी पहल की गई कि सीमावर्ती गाँवों के प्रत्येक निवासी को केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं से जोड़ दिया जाए। मूल निवासी के रूप में पहचाने जाने वाले गावों को अब जल्द ही राष्ट्रीय और सीमा सुरक्षा तंत्र से जोड़ा जाएगा।

खैर, चुनौतियां कम नहीं हैं। इन संरचनाओं को हटाने में स्थानीय विरोध और कानूनी अड़चनें आती हैं। कई बार, मानवाधिकार संगठन हस्तक्षेप करते हैं, लेकिन राष्ट्रीय हित सर्वोपरि है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे अभियान से सीमा प्रबंधन में सुधार आएगा और अवैध घुसपैठ में कमी आ सकती है। साथ ही, वैध धार्मिक स्थलों को संरक्षण मिलेगा, जो सही अनुमति के साथ बने हैं।

इसमें कोई शक नहीं है कि यह अभियान भारत की सीमाओं को सुरक्षित बनाने की दिशा में एक निर्णायक कदम है। अवैध धार्मिक संरचनाएं न केवल सुरक्षा के लिए खतरा हैं, बल्कि देश की एकता को भी चुनौती देती हैं। सरकार को देखना होगा कि सरहदों पर अवैध धार्मिक स्थल भविष्य में न बनें।