सुनील कुमार महला
आज हमारे देश में जनरेटिव एआई(ऐसी कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआइ) तकनीक है जो नई चीज़ें ‘बनाने’ की क्षमता रखती है- जैसे कि पाठ (टेक्स्ट), चित्र (इमेजेज), संगीत, वीडियो या कोड आदि) उपकरणों की बढ़ती उपलब्धता और इसके परिणामस्वरूप कृत्रिम रूप से उत्पन्न जानकारी (डीपफेक) के प्रसार के साथ, उपयोगकर्ता को नुकसान पहुंचाने, गलत सूचना फैलाने, चुनावों में हेरफेर करने या व्यक्तियों का प्रतिरूपण करने के लिए ऐसी प्रौद्योगिकियों के दुरुपयोग की संभावना काफी बढ़ गई है। वास्तव में, इन सभी जोखिमों को ध्यान में रखते हुए, और व्यापक सार्वजनिक चर्चाओं और संसदीय विचार-विमर्श के बाद, हाल ही में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने आईटी नियम, 2021 में संशोधन का एक मसौदा(ड्राफ्ट) तैयार किया है। कहना ग़लत नहीं होगा कि सरकार द्वारा डीपफेक पर लगाम को लेकर आइटी नियमों में संशोधन का जो प्रस्ताव पेश किया गया है, वह स्वागत योग्य है। स्वागत योग्य इसलिए, क्यों कि अब नये नियमों के तहत सोशल मीडिया पर मनमानी नहीं चलेगी। गौरतलब है कि सरकार ने विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे कि फेसबुक, इंस्टाग्राम, एक्स, यूट्यूब आदि के लिए कंटेंट हटाने के नियमों को अब सख्त कर दिया है।अब कोई भी जूनियर ऑफिसर अपनी मर्ज़ी से किसी भी पोस्ट या वीडियो को हटाने का आदेश नहीं दे पाएगा। इस क्रम में भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने आइटी नियम, 2021 के एक अहम नियम 3(1)(डी) में बड़े व व्यापक संशोधन किए हैं। इसके तहत अब एआई कंटेंट पर ‘लेबल’ लगाना होगा। दूसरे शब्दों में कहें तो नए नियमों के तहत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को एआई-जनरेटेड कंटेंट पर ‘लेबल’ और स्पष्ट पहचान चिह्न लगाना अनिवार्य होगा। पाठकों को बताता चलूं कि इस ड्राफ्ट (मसौदे) को इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा तैयार किया गया है। दरअसल,अब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को एआई या सिंथेटिक कंटेंट को स्पष्ट रूप से चिह्नित करना होगा, ताकि यूजर असली और नकली सामग्री में फर्क कर सकें। गौरतलब है कि प्रस्तावित संशोधन के अनुसार, फेसबुक, इंस्टाग्राम और एक्स (पूर्व में ट्विटर) जैसे बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि यदि कोई कंटेंट एआई या कंप्यूटर-जनित है, तो उस पर लेबल या मार्कर लगाया जाए। जानकारी के अनुसार यह लेबल विजुअल कंटेंट में कम से कम 10 फीसदी हिस्से पर दिखाई देना चाहिए, जबकि ऑडियो में शुरुआती 10 फीसदी अवधि तक सुनाई देना जरूरी होगा। साथ ही, प्लेटफॉर्म्स को यह भी जांच करनी होगी कि यूजर द्वारा अपलोड किया गया कंटेंट असली है या सिंथेटिक। इसके लिए तकनीकी उपाय अपनाने और यूजर से ‘डिक्लेरेशन’ लेना अनिवार्य होगा। बहरहाल, यहां यह कहना ग़लत नहीं होगा कि इस प्रस्ताव का सीधा असर उन सोशल मीडिया यूजर पर पड़ेगा, जो फेसबुक, इंस्टाग्राम, एक्स, यूट्यूब या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) कंटेंट बनाने वाले किसी भी ऐप या वेबसाइट का यूज करते हैं। दरअसल,सरकार ने आईटी रूल्स, 2021 में ‘सिंथेटिकली जेनरेटेड इन्फॉर्मेशन'(वह सामग्री जो AI या सॉफ़्टवेयर द्वारा इस प्रकार बनाई गई हो कि वह वास्तविक लगे) शब्द जोड़ा है तथा इस संदर्भ में आइटी मंत्रालय ने आईटी नियमों में संशोधन के मसौदे पर आम जनता तथा विशेषज्ञों से 6 नवंबर, 2025 तक प्रतिक्रियाएं/टिप्पणियां या फीडबैक भी मांगा गया है। वास्तव में, हाल ही में प्रस्तुत इन संशोधनों का मुख्य मकसद ऑनलाइन गलत/अवैध कंटेंट (अन-ला फुल कंटेट) को हटाने की प्रक्रिया को और ज़्यादा पारदर्शी (ट्रांसपेरेंट), जवाबदेह (अकाउंटेबल) और सुरक्षित (सेफ) बनाना है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार ये नियम 1 नवंबर, 2025 से पूरे देश में लागू हो जाएंगे।सरल शब्दों में कहें तो, सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे कि फेसबुक, इंस्टाग्राम, एक्स, यूट्यूब आदि के लिए कंटेंट हटाने के नियमों को अब काफी सख्त कर दिया है तथा इसके तहत अब कोई भी जूनियर ऑफिसर अपनी मर्ज़ी से किसी भी पोस्ट या वीडियो को हटाने का आदेश नहीं दे पाएगा। बहरहाल, यदि हम यहां पर पुराने नियमों की बात करें तो आइटी नियम, 2021 पहली बार 25 फरवरी 2021 को नोटिफाई किए गए थे, तथा इनमें समय-समय पर (2022 और 2023 में) बदलाव होते रहे हैं। नियमों के तहत, सभी सोशल मीडिया कंपनियों की ये ज़िम्मेदारी होती है कि वे अपने प्लेटफॉर्म पर ‘अवैध’ कंटेंट को तुरंत हटा दें, बशर्ते उन्हें इसकी जानकारी कोर्ट के आदेश या सरकारी नोटिफिकेशन से मिली हो। दरअसल, अब सरकार को यह लगा कि इस प्रक्रिया में कुछ कमी है।इसलिए भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने फैसला किया कि कंटेंट हटाने के आदेश देने के लिए सीनियर ऑफिसर ज़िम्मेदार हों तथा ‘अवैध कंटेंट’ की परिभाषा ज़्यादा स्पष्ट हो। इतना ही नहीं,सरकारी आदेशों की समय-समय पर समीक्षा भी की जानी चाहिए। सरकार द्वारा प्रस्तुत नये ड्राफ्ट के निश्चित ही कुछ प्रभाव देखने को मिलेंगे। मसलन, इससे सोशल मीडिया मंचों में पारदर्शिता बढ़ेगी और जवाबदेही भी। वास्तव में, उच्च रैंक के ऑफिसर द्वारा आदेश जारी करने और मासिक समीक्षा होने से ‘चेक एंड बैलेंस’ बना रहेगा।कंपनियों के लिए भी इससे स्पष्टता होगी। दरअसल, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को अब पता होगा कि उन्हें किन आधारों पर कंटेंट हटाना है, जिससे उन्हें कानून का पालन करने में आसानी होगी। वास्तव में,नया आईटी रूल्स नागरिकों की सुरक्षा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच संतुलन स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
इन संशोधनों के तहत, सरकार और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स दोनों को यह सुनिश्चित करना होगा कि कंटेंट मॉडरेशन पारदर्शी और न्यायसंगत हो। इससे मनमाने प्रतिबंधों पर रोक लगेगी और नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा मजबूत होगी।साथ ही, यह बदलाव आईटी एक्ट, 2000 के तहत कानूनी प्रावधानों को और सशक्त बनाता है, जिससे ऑनलाइन वातावरण अधिक सुरक्षित, जवाबदेह और विश्वसनीय बनेगा। संक्षेप में यह बात कही जा सकती है कि नये आइटी रूल्स से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर जहां एक ओर विश्वसनीयता और ट्रस्ट बढ़ाने में मदद मिलेगी, वहीं दूसरी ओर इससे गलत सूचना (मिसइन्फार्मेशन) और पहचान-छल (इम्पर्सोनेशन) रोकने में भी मदद मिलेगी।प्लेटफार्मों (इंटरमीडियरीज) की जवाबदेही तो इससे बढ़ेगी ही। व्यक्ति-गोपनीयता और व्यक्तित्व अधिकारों की भी सुरक्षा सुनिश्चित हो सकेगी। दूसरे शब्दों में कहें तो एआई-जेनरेटेड या गहरी फेक सामग्री अक्सर किसी व्यक्ति की छवि, आवाज़, चेहरे-हावभाव का उपयोग करके बनाई जाती है-जिससे उनकी निजता/छवि को नुकसान हो सकता है। इस तरह के नियम से ऐसे दुष्प्रयोगों (मिसयूज) को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी। इतना ही नहीं, इससे डिजिटल अर्थव्यवस्था व नवोन्मेष (इनोवेशन) के लिए स्पष्ट ढाँचा प्रदान करने में भी मदद मिलेगी। आज के इस आधुनिक समय में एआई-जेनरेटेड मीडिया का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। कोई नियम ना हो तो अनियंत्रित स्थिति बन सकती है। इन संशोधनों से यह स्पष्ट होगा कि क्या करना होगा (लेबलिंग, ट्रेसबिलिटी, आदि) और प्लेटफार्मों/उपयोगकर्ताओं के लिए दिशा-निर्देश बनेंगे।इससे प्लेटफार्मों को भी रणनीति बनाने में मदद मिलेगी कि किस तरह एआई-सामग्री को संभाला जाए-जिससे सकारात्मक उपयोग और नवाचार बाधित नहीं होगा। हालांकि, कुछ चुनौतियाँ भी हैं।मसलन, नियमों का पालन सुनिश्चित करना सरल नहीं होगा- तकनीकी रूप से ‘यह सामग्री एआई द्वारा बनाई गई है’ का लेबल हमेशा सही साबित करना कठिन हो सकता है। यह भी कि यदि नियम बहुत सख्त हुए, तो सृजनात्मक/कलात्मक उपयोग भी प्रभावित हो सकते हैं। अतः संतुलन बनाना जरूरी है। इतना ही नहीं,एक चुनौती यह भी है कि इससे प्लेटफार्मों पर बोझ बढ़ सकता है- लेबलिंग, स्वीकृति प्रक्रिया, मॉनिटरिंग इत्यादि की लागत व संसाधन की आवश्यकता होगी। बहरहाल यहां पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि आज के इस दौर में ‘डीपफेक’ से खतरा लगातार बढ़ता चला जा रहा है। यहां यह भी जानना जरूरी है कि डीपफेक वास्तव में है क्या ? तो इस संबंध में बताना चाहूंगा कि डीपफेक एक ऐसी तकनीक है जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआइ) और मशीन लर्निंग का उपयोग करके किसी व्यक्ति की आवाज़, चेहरा या हाव-भाव को बदलकर नकली वीडियो या ऑडियो तैयार करती है। इसमें वास्तविक व्यक्ति के चेहरे को किसी दूसरे के चेहरे पर इस तरह से लगाया जाता है कि असली और नकली में फर्क करना मुश्किल हो जाता है। यह तकनीक डीप लर्निंग के एल्गोरिद्म पर आधारित होती है, जो बड़ी मात्रा में डेटा से सीखकर यथार्थ जैसी छवियां बनाती है। डीपफेक का उपयोग मनोरंजन, फिल्मों और गेमिंग में रचनात्मक रूप से किया जा सकता है, लेकिन इसका दुरुपयोग गलत सूचना, ब्लैकमेल और फेक न्यूज़ फैलाने में भी होता है। कई बार इसका प्रयोग राजनैतिक या सामाजिक भ्रम पैदा करने के लिए किया जाता है। डीपफेक से निजता और सुरक्षा को खतरा पैदा हो सकता है। सरकारें और सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म इस पर नियंत्रण के लिए नए नियम बना रहे हैं। इसलिए, डीपफेक तकनीक के उपयोग में जागरूकता और सावधानी बेहद आवश्यक है।मंत्रालय ने इस संबंध में यह बात कही है कि हाल ही के कुछ ही महीनों में डीपफेक ऑडियो और वीडियो तेजी से वायरल हुए हैं, जिनसे गलत जानकारी फैलाने, राजनीतिक छवि बिगाड़ने, धोखाधड़ी करने और लोगों की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के मामले सामने आए हैं। वैश्विक स्तर पर भी डीपफेक तकनीक को लेकर चिंता बढ़ी है, क्योंकि यह तकनीक असली लगने वाले झूठे वीडियो और फोटो बनाकर समाज में भ्रम फैलाने में सक्षम है। अंत में यही कहूंगा कि नए आईटी रूल्स का उद्देश्य डिजिटल स्पेस में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना है।इन नियमों से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मनमानी रोकने का प्रयास किया गया है। वास्तव में, यह नागरिकों के अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाता है।फेक न्यूज, डीपफेक और गलत जानकारी पर नियंत्रण के लिए ये नियम कारगर हैं।ऑनलाइन सुरक्षा, खासकर महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा पर जोर दिया गया है। आईटी नियम डिजिटल इंडिया को सुरक्षित और जिम्मेदार दिशा देने का कार्य करते हैं।सरकार और प्लेटफॉर्म दोनों की जवाबदेही तय की गई है। कुल मिलाकर, नए आईटी रूल्स डिजिटल समाज को अधिक सुरक्षित और विश्वसनीय बनाते हैं।





