बिहार 2025: तेजस्वी की चुनौती, एनडीए की दुविधा और त्रिशंकु विधानसभा का साया

Bihar 2025: Tejashwi's challenge, NDA's dilemma and the specter of a hung assembly

नीलेश शुक्ला

महागठबंधन द्वारा तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद बिहार की सियासत में हलचल तेज हो गई है। विपक्षी खेमे में नई ऊर्जा है, सत्ता पक्ष में बेचैनी बढ़ गई है, और चुनावी मैदान में अनिश्चितता की धुंध छा गई है। अब सीधा मुकाबला एनडीए बनाम महागठबंधन का दिख रहा है — लेकिन असल तस्वीर कहीं अधिक जटिल है। प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी का उभरना, दोनों गठबंधनों के अंदरूनी मतभेद और एनडीए की “मुख्यमंत्री चेहरा” पर चुप्पी — सब मिलकर यह संकेत दे रहे हैं कि बिहार 2025 का चुनाव त्रिशंकु विधानसभा की दिशा में बढ़ रहा है।

तीन तरफा मुकाबला: फिर लौट आई बिहार की सियासी अनिश्चितता
अबकी बार मुकाबला सिर्फ दो ध्रुवों के बीच नहीं है। प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी (JSP) ने खुद को न एनडीए का हिस्सा बताया है, न महागठबंधन का। उन्होंने साफ कहा है कि दोनों ही गठबंधन बिहार को दिशा नहीं दे पाए हैं। किशोर का अभियान खासतौर पर युवाओं, शिक्षित वर्ग और ग्रामीण मतदाताओं के उस हिस्से को आकर्षित कर रहा है जो एनडीए–राजद की पारंपरिक राजनीति से ऊब चुका है।
अगर JSP को 8–10 प्रतिशत वोट भी मिलते हैं, तो नतीजे की पूरी तस्वीर बदल सकती है। बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से किसी भी बड़े गठबंधन का 122 का आंकड़ा पार करना कठिन हो जाएगा। यही वजह है कि विशेषज्ञ पहले से कह रहे हैं — इस बार नतीजे चौंकाने वाले होंगे, और संभव है विधानसभा लटकी रहे।

महागठबंधन का दांव: “तेजस्वी कार्ड” से नया जोश
महागठबंधन ने तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाकर एक मजबूत संदेश देने की कोशिश की है — “हम एकजुट हैं और बदलाव चाहते हैं।” तेजस्वी युवा चेहरा हैं, लालू यादव की विरासत के उत्तराधिकारी हैं और रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य व भ्रष्टाचार के खिलाफ बात कर रहे हैं।
युवाओं में उनका आकर्षण बढ़ रहा है, लेकिन चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। “जंगलराज” का पुराना ठप्पा अब भी राजद के सिर से पूरी तरह मिटा नहीं है। भाजपा इसी मुद्दे पर उन्हें घेरने की तैयारी में है। साथ ही, कांग्रेस और वीआईपी जैसी छोटी पार्टियाँ सीट बंटवारे को लेकर नाराज़ हैं।
तेजस्वी के सामने असली परीक्षा यह है कि वे सिर्फ जोश नहीं, भरोसा भी पैदा करें — ऐसा भरोसा जो बिहार को यह यकीन दिला सके कि उनका नेतृत्व राज्य को अतीत नहीं, भविष्य की ओर ले जाएगा।

एनडीए की चुप्पी: रणनीति या संशय?
एनडीए की सबसे बड़ी पहेली है — मुख्यमंत्री कौन होगा?
नीतीश कुमार का चेहरा थका हुआ दिखता है। कई बार पाला बदलने की वजह से उनकी विश्वसनीयता पर सवाल हैं। भाजपा चाहती है कि उनका संगठन और मोदी का चेहरा जीत दिला दे, पर वो खुद अपना सीएम उम्मीदवार घोषित करने से हिचक रही है ताकि जेडीयू नाराज़ न हो।
चिराग पासवान जैसे सहयोगी नेता खुलकर “गुणवत्ता पर मात्रा” की बात कर रहे हैं और सीएम पद पर भी दावा ठोंक रहे हैं। एनडीए शायद चुनाव के बाद सीटों के हिसाब से सीएम तय करना चाहता है, लेकिन जनता में यह “अनिर्णय की स्थिति” दिखती है। जो गठबंधन खुद तय न कर पाए कि नेतृत्व कौन करेगा, वह जनता का भरोसा कैसे जीतेगा? यही सवाल एनडीए के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनता जा रहा है।

प्रशांत किशोर का नया प्रयोग: खामोश खिलाड़ी, बड़ा असर
राजनीतिक रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर अब “जनसुराज” आंदोलन को राजनीतिक विकल्प बना चुके हैं। उनकी रैलियाँ भीड़ खींच रही हैं, और उनका एजेंडा साफ है — “बिना जात-पात की राजनीति, विकास और सुशासन।”
किशोर जानते हैं कि उन्हें इस चुनाव में सरकार नहीं, समीकरण बिगाड़ने का मौका मिल सकता है। अगर JSP 15-20 सीटों पर असर डालती है, तो यह दोनों बड़े गठबंधनों के लिए सिरदर्द बन जाएगा। किशोर का संदेश है — “बिहार को तीसरा रास्ता चाहिए।” और यही संदेश पारंपरिक राजनीति की नींव हिला रहा है।

जातीय समीकरणों में बदलाव की आहट
बिहार की राजनीति हमेशा जातीय समीकरणों पर टिकी रही है। राजद की ताकत यादव-मुस्लिम गठजोड़ में है, एनडीए की रीढ़ सवर्ण और कुर्मी वोट हैं। लेकिन इस बार समीकरणों में हलचल है।
युवा मतदाता जाति से ज़्यादा रोजगार, शिक्षा और अवसरों की बात कर रहा है। तेजस्वी और किशोर, दोनों इस भावनात्मक बदलाव को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं। एनडीए अभी भी केंद्र की योजनाओं के लाभार्थियों पर भरोसा कर रहा है, लेकिन पहली बार यह माना जा रहा है कि “कास्ट पॉलिटिक्स” के ऊपर “यंग पॉलिटिक्स” हावी हो सकती है।

त्रिशंकु विधानसभा की दस्तक
बिहार के राजनीतिक गलियारों में आज सबसे बड़ा सवाल है — क्या इस बार कोई भी गठबंधन बहुमत नहीं पाएगा?
अगर एनडीए या महागठबंधन 122 सीटें पार नहीं कर पाए, तो परिणामस्वरूप फिर से जोड़-तोड़ की राजनीति शुरू होगी। जनसुराज पार्टी कुछ ही सीटों के साथ “किंगमेकर” बन सकती है।
ऐसी स्थिति में बिहार एक बार फिर कमजोर गठबंधन, अस्थिर सरकार और ठप प्रशासन की ओर लौट सकता है। निवेश, विकास और नीति-निर्माण सब अधर में लटक जाएंगे।

राष्ट्रीय असर: बिहार की गूंज दिल्ली तक
बिहार का चुनाव सिर्फ एक राज्यीय चुनाव नहीं है — यह भारत की राजनीतिक दिशा तय करने वाला चुनाव है।
अगर तेजस्वी यादव को बड़ी सफलता मिलती है तो विपक्षी खेमे को नई ऊर्जा मिलेगी। वहीं अगर एनडीए का प्रदर्शन कमजोर रहा, तो यह भाजपा के “अजेय किले” में दरार की तरह देखा जाएगा।
और अगर प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी दो अंकों की सीटें हासिल करती है, तो यह भारतीय राजनीति में एक नया प्रयोग साबित होगा — जहां विकास, पारदर्शिता और नीति को जातीय समीकरणों से ऊपर रखा जाएगा।

विशेषज्ञ क्यों असमंजस में हैं
राजनीतिक विश्लेषक इस बार कोई ठोस भविष्यवाणी नहीं कर पा रहे।
नीतीश कुमार के बार-बार पाला बदलने से मतदाता भ्रमित हैं।

एनडीए ने सीएम चेहरा घोषित नहीं किया है।

महागठबंधन की एकता सवालों के घेरे में है।

और जनसुराज पार्टी का प्रभाव अभी पूरी तरह मापा नहीं जा सकता।

सर्वे बताते हैं कि वोट शेयर में एनडीए को मामूली बढ़त है, लेकिन तेजस्वी यादव सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री चेहरा बने हुए हैं। यह विरोधाभास बताता है कि नतीजे किसी भी दिशा में जा सकते हैं