वर्तमान डिजिटल युग में भी दूषित भोजन खाने से होने वाली मौतों, दर्जनों बीमारियों,कौन जिम्मेदार कौन?

Even in the present digital age, deaths and dozens of diseases are caused by eating contaminated food. Who is responsible?

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

पूरी दुनियाँ क़े डिजिटल युग में जहां भोजन उत्पादन, वितरण और आपूर्ति-शृंखला तेजी से वैश्वरीकृत हो गया है, वहीं “दूषित या असुरक्षि भोजन” के कारण स्वास्थ्य-संकट भी उतने ही तेज स्वर से उत्पन्न हो रहे हैं। वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन के अनुमान के अनुसार, प्रति वर्ष लगभग 60 करोड़ (600 मिलियन) लोग असुरक्षित भोजन खाने के कारण बीमार होते हैं और लगभग 4.2 लाख लोगों की मौत होती है। बच्चों (5 वर्ष से कम उम्र) पर यह बोझ विशेष रूप से भारी है,बच्चों की मृत्यु का लगभग 30 पर्सेंट हिस्सा इसी से संबंधित है। यह संख्या सिर्फ एक स्वस्थ्य-संकट नहीं है, बल्कि सामाजिक-आर्थिकझटका भी है, खासकर उन देशों में जहाँ निगरानी नियामक व्यवस्था और सूचना-प्रौद्योगिकी कमजोर हैं।इस व्यापक समस्याका सामना आजडिजिटल -संचालित दुनियाँ में भी करना पड़ रहा है: उपभोक्ताओं के पास जानकारी का प्रवाह तो तेजी से है, लेकिन साथ ही वितरण-नेटवर्क, निर्यात- आयात,ऑनलाइन-खरीदारी, ग्रोथिंग आउटसोरसिंग आदि ने खाद्य सुरक्षा की चुनौती को जटिल बना दिया है।इस पृष्ठभूमि में,यह लेख इस अवस्था का विश्लेषण करेगा,समस्या का पैमाना,कारण- विस्तार,डिजिटल युग में चुनौतियाँ, स्वास्थ्य विभागों और शासन की भूमिका तथा जरूरी सख्त कार्यवाही के रुझान पर चर्चा करना इसलिए जरूरी हो गया है, क्योंकि छत्तीसगढ़ के बीजापुर और नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ क्षेत्र में दिनांक 21 अक्टूबर 2025 को दूषित भोजन खाने से 5 लोगों की मौत हो गई अनेकों बीमार है ऐसी जानकारी 24 अक्टूबर 2025 को देऱ रात्रि मुझे मीडिया के माध्यम से मिली,वहीं, कई अन्य ग्रामीणों की तबीयत बिगड़ गई है, जब ग्रामीणों को अचानक उल्टी, दस्त और पेट दर्द की शिकायतें होने लगीं। ग्रामीणों की हालत बिगड़ने की सूचना मिलते ही जिलाधिकारी और स्वास्थ्य विभाग समेत वरिष्ठ अधिकारी मौके पर पहुंचे।टीम ने तुरंत घटनास्थल पहुंचकर प्रभावित लोगों के लिए स्वास्थ्य शिविर लगाया और उपचार शुरू किया।गंभीर बीमार ग्रामीणों को आगे के इलाज के लिए नारायणपुर जिला अस्पताल भेजा गया है।जांच के दौरान प्राथमिक जानकारी में सामने आया कि ग्रामीणों ने संभवतः दूषित भोजन का सेवन किया था। विभाग ने दूषित खाद्य पदार्थों के नमूने लेकर जांच के लिए प्रयोगशाला भेजे हैं। साथ ही, स्वास्थ्य टीम गांवों में ग्रामीणों को स्वच्छ भोजन और उबला हुआ पेयजल उपयोग करने के लिए जागरूक कर रही है।इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे वर्तमान डिजिटल युग में भी दूषित भोजन खाने से होने वाली मौतों,दर्जनों बीमारियों, कौन जिम्मेदार कौन?

साथियों बात अगर हम इस समस्या के कारण-विस्तार, क्यों बढ़ रही/बनी हुई है इस समस्या इसको समझने की करें तो, दूषित भोजन से होने वाली बीमारियों और मौतों के पीछे अनेक कारण हैं,इनमें पारंपरिक कारण भी शामिल हैं तथा डिजिटल -आधारित नए कारण भी। नीचे मुख्य कारण दिए गए हैं-

(1)उपभोक्ता-आपूर्ति श्रृंखला का जटिलीकरण-विक्रेताओं से लेकर उपभोक्ता तक भोजन पहुँचने की प्रक्रिया आज कई चरणों से होकर गुजरती है, उत्पादन, पैकिंग, प्रसंस्करण, भंडारण, कंटेनर-शिपिंग, लॉजिस्टिक्स,रिटेलिंग(ऑनलाइन/ऑफलाइन) आदि। इस जटिलता के कारण “क्लीन/सेफ” रखने के लिए निगरानी के अवसर बढ़ जाते हैं। उदाहरण के लिए, ठंडे-श्रृंखला टूट जाना, अस्वच्छ परिवहन या वितरण स्टेशन में बैक्टीरिया-वृद्धि का कारण बन सकता है।

(2) वैश्वीकरण एवं अन्तरराष्ट्रीय व्यापार-खाद्य सामग्री अब राष्ट्रीय सीमाओं को पार कर रही है,एक देश में उत्पादित अनाज/फसल, दूसरे देश में प्रसंस्करण, तीसरे में उपभोग। इस वैश्वीकरण ने निगरानी को कठिन बना दिया है क्योंकि गुणवत्ता-मानदंड, नियामक ढांचा, निरीक्षण-रफ्तार विभिन्न देशों में भिन्न हैं। इस चित्र में, यदि किसी देश में नियंत्रण कमजोर हो, तो दूषित खाद्य सामग्री दूसरे देश में भी पहुँच सकती है

(3) प्रौद्योगिकी- निर्भर वितरण (ऑनलाइन फ़ूड, होम-डिलीवरी, ग्रोथिंग आउटसोर्सिंग) डिजिटल युग में खाद्य वितरण बहुत तेजी से हो रहा है,ऑनलाइन ऑर्डर, होम-डिलीवरी थ्रू ऐप, ग्रोथिंग केटरिंग-सर्विसेज, क्लाउड- किचन आदि। इन नए मॉडल में तीसरे-पक्ष विक्रेता की भागीदारी अधिक है, जिसका अर्थ है जिम्मेदारी विभाजित हो जाती है और कभी-कभी निगरानी कम हो जाती है।

(4) सूचना-कमी एवं निगरानी-दुर्बलता-विशेष तौर पर विकासशील या निम्न-मध्यम -आय वाले देशों में निरीक्षण, खाद्य-चैनल मॉनिटरिंग, खाद्य- सुरक्षा प्रशिक्षण, प्रयोगशाला सुविधाएँ, डेटा-रिपोर्टिंग संरचनाएँ पर्याप्त नहीं हैं।डब्ल्यूएचओ ने यह बताया है कि इन देशों में “राजनीतिक इच्छाशक्ति” कम मिली है।

(5) हाइजीन व खान-पकाने की प्रक्रियाओं का अभाव-भोजन तैयार करने, संभालने, भंडारण करने तथा परोसने के दौरान स्वच्छता का अभाव बड़े जोखिमों को जन्म देता है, उदाहरण के लिए कच्चे और पके खाने का मिश्रण, तापमान- नियंत्रण का अभाव, अस्वच्छ हाथ-धोना आदि।

(6)उच्च जोखिम-उत्पाद और नए जोखिम-स्रोत स्रोतों में बैक्टीरिया वायरस, परजीवी, टॉक्सिन- उत्पादक फफूंद आदि शामिल हैं। विशेषकर पशु-मूल खाद्य भोजन में जोखिम अधिक पाया गया है

(7) जलवायु परिवर्तन, पर्यावरणीय दुष्प्रभाव एवं सामाजिक- परिवर्तन,बढ़ते तापमान, अस्थिर मौसम, अधिक नमी और भंडारण सुविधाओं में कमी जैसे कारक खाद्य बोर्न रोगजनकों के लिए अनुकूल वातावरण बना सकते हैं।इसके अलावा,जनसंख्या- घनत्व, शहरीकरण, भोजन- वेस्ट का बढ़ना आदि सामाजिक-परिवर्तन भी योगदान दे रहे हैं।इन कारणों के संयोजन ने इस समस्या को “वर्तमान डिजिटल युग” की नब्ज़ पर अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है,जहाँ सिर्फ उत्पादन बढ़ना नहीं पर्याप्त,बल्कि नियंत्रित, सुरक्षित, समग्र दृष्टिकोण से खाद्यचेन को संभालना जरूरी है।

साथियों बात अगर हम स्वास्थ्य विभागों एवं शासन की चुनौतियों को समझने की करें तो, इस आर्टिकल का यह सबसे महत्वपूर्ण पार्ट है, जब समस्या इतनी व्यापक हो, तब स्वास्थ्य विभागों,नियामक संस्थाओं और शासन- संरचनाओं के सामने कई चुनौतियाँ खड़ी होती हैं। निम्न बिंदुओं में इन चुनौतियों का विवेचन है:

(1)डेटा और निगरानी की कमी- कई देशों में खाद्य बोर्ने रोगों का ठोस, नियमित डेटा उपलब्ध नहीं है, जिससे समस्या का दायरा और कारण सही ढंग से नहीं समझे जा पाते। डब्लयु एचओ ने भी इस बात पर प्रकाश डाला है कि वर्तमान अनुमान “संभावित रूप से अंडरएस्टिमेट” हैं।

(2) सहयोग -समन्वय का अभाव-खाद्य सुरक्षा एक मल्टी-सेक्टरल कार्य है, इसमें स्वास्थ्य मंत्रालय, कृषि विभाग, वाणिज्यविभाग,आयात-नियंत्रण,उपभोक्ता आयोग आदि मिलकर काम करते हैं।अक्सर इन विभागों में समन्वय की कमी होती है और डिजिटल युग में जानकारी-वितरण एवं प्रतिक्रिया -प्रक्रिया धीमी होती है।

(3)नियम -और-नियमन का धीमा कार्यान्वयन –खाद्य सुरक्षा कानूनों का होना पर्याप्त नहीं; उन्हें लागू करना, निरीक्षण करना,उल्लंघनों के लिए पक्रिया तय करना, दोषियों पर कार्यवाही करना आवश्यक है। लेकिन कई जगह संसाधन, प्रशिक्षित कर्मी और राजनीतिक प्रेरणा कम पाई जाती है।

(4) इंडस्ट्री अकाउंटेंबिलिटी का कम प्रत्याशा-बड़ी खाद्य सप्लायर्स, बहुराष्ट्रीय कंपनियों, अंतरराष्ट्रीय निर्यात-आयात नेटवर्क में निगरानी कम होने पर “दक्षता, जवाबदेही” कम होजाती है। डिजिटल व्यवस्था में यदि ऑनलाइन-विक्रेता, क्लाउड -किचन आदि शामिल हैं,तो निरीक्षण और प्रमाणन चुनौतीपूर्ण होता है

(5)उपभोक्ता –सचेतना का अधूरापन- उपभोक्ताओं को भोजन सुरक्षा, स्वच्छता, पकाने-भंडारण की सरल लेकिन प्रभावी प्रक्रियाएँ जानने कीआवश्यकता है। डिजिटल प्लेटफार्मों पर जानकारी उपलब्ध है, लेकिन उसकी पहुंच, भाषा-समझ, व्यवहार-परिवर्तन की चुनौती बनी हुई है।

(6)क्रॉस- बॉर्डर चुनौतियाँ-खाद्य सामग्रियों का आयात-निर्यात तेजी से हो रहा है; यदि किसी देश में नियंत्रण कमजोर है,तो दूषित उत्पाद दूसरे देश में पहुँच सकते हैं। यह डिजिटल युग में सूचना-ट्रैकिंग, रिमोट मॉनिटरिंग आदि के माध्यम से संभव है, लेकिन पर्याप्त संसाधन नहीं हर जगह मौजूद हैं।इन चुनौतियों को देखते हुए यह स्पष्ट है कि सिर्फ “उत्तम काम कर रहे हैं” कहना पर्याप्त नहीं,सख्त, समन्वित, प्रभावी शासकीय कार्रवाई की आवश्यकता है।

साथियों बात अगर हम सख्त शासकीय कार्यवाही की आवश्यकता और वैश्विक दृष्टिकोण को समझने की करें तो,क्यों शासकीय (राज्य/राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय) स्तरपर सख्त कार्रवाई बेहद जरूरी है, विशेषकर इस डिजिटल युग में। निम्न बिंदुओं में कारण और प्रस्ताव हैं:

(1) प्राकृतिक न्याय एवं मानवाधिकार-सम्बंधी दृष्टि
भोजन एक मूलभूतमानवाधिकार है,सुरक्षित, पौष्टिक, पर्याप्त भोजन तक पहुँच होना अवधारणा का हिस्सा है। जब लोगों को दूषित भोजन मिल रहा है जिससे बीमारियाँ हो रही हैं या देहांत हो रहे हैं, तो यह सामाजिक न्याय-विषयक समस्या बन जाती है। राज्य की जिम्मेदारी है कि उपभोक्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करे।

(2) प्रिवेंशन (रोकथाम) का लाभदायक निष्पादन-रोग होने के बाद उपचार की तुलना में रोग को रोकना कहीं अधिक किफायती और प्रभावी है। यदि खाद्य सुरक्षा तीव्र हो जाए जैसे निरीक्षण, तापमान-नियंत्रण, क्रॉस- संक्रमण- नियंत्रण, दुष्प्रभाव वाली वस्तुओं की समयपर जाँच और रिमूवल,तो मृत्यु और बीमारी के मामले कम होंगे, साथ ही आर्थिक बोझ भी घटेगा। डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों से यह पता चलता है कि रोगों का बोझ बड़े पैमाने पर है।

(3) डिजिटल युग की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए उत्तरदायी व्यवस्था-आज जहाँ खाद्य प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष (ऑनलाइन खाद्य-ऑर्डर, ग्रोथिंग आउटसोर्सिंग, अंतरराष्ट्रीय सप्लायर्स) वितरण में है,वहां पारंपरिक निरीक्षण -प्रक्रिया पर्याप्त नहीं रही। इसलिए, शासकीय व्यवस्था को डेटा- एनेबल्ड, रियल-टाइम मॉनिटरिंग, ट्रेस-एबिलिटी और फूड चेन जिम्मेदारी को कानूनी रूप देना होगा।

उदाहरण के लिए: खाद्य उत्पाद को ‘खेती’ से ‘उसके पत्ते में’ तक निगरानी करना, ऑनलाइन प्लेटफार्म्स पर विक्रेताओं का लाइसेंसिंग और रेटिंग सिस्टम, अंतरराष्ट्रीय निर्यात-आयात में टेस्टिंग प्रमाणपत्र की अनिवार्यता आदि।

(4) सख्त नियामक दंड और जवाबदेही-खाद्य सुरक्षा उल्लंघन करने वाले उद्योगों, वितरकों, विक्रेताओं पर सख्त दंड होना चाहिए,सिर्फ जुर्माना नहीं बल्कि लाइसेंस रद्दीकरण, सार्वजनिक सूचना, दोषी कर्मियों पर कार्यवाही। इससे ‘अनजानी भूल’ और ‘लापरवाही’ के बीच फर्क दिखेगा।अन्य देशों में खाद्य प्रसारक कंपनियों को बड़े दंड दिए गए उदाहरण मिलते हैं। डिजिटल युग में जहाँ इनाम और दंड का पाठ सबको दिखता है, वहां कार्रवाई सार्वजनिक होती है तो यह चेतावनी-काम करती है।

(5)अंतरराष्ट्रीय सहयोग एवं मानकीकरण-चूँकि खाद्य श्रंखला अब बहु-देशीय है, इसलिए राष्ट्रीय स्तर की कार्रवाइयाँ पर्याप्त नहीं,देशों के बीच मानकीकरण,सूचना- विनिमय, जोखिम-साझा, रिकॉल नेटवर्क आदि स्थापित होना चाहिए। (6)फोकस्ड शिक्षा-प्रसार एवं उपभोक्ता-सशक्तिकरण-उपभोक्ताओं को यह जानकारी मिलनी चाहिए कि वे कैसे सुरक्षित भोजन-चयन करें, कैसे तैयार करें, कैसे भंडारण करें, कब शिकायत करें। डिजिटल प्लेटफार्म, मोबाइल ऐप्स, सोशल मीडिया-कैम्पेन आदि इस दिशा में उपयोग किए जा सकते हैं। लेकिन अकेले शिक्षा नहीं पर्याप्त इसके साथ-साथ परिस्थिति- सक्षम संसाधन (जैसे सुरक्षित पानी, स्वच्छ रसोई-परिसर, उचित भंडारण) भी उपलब्ध होना चाहिए।