आख़िर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच ही गया ‘साइबर ठगी’ का मुद्दा

The issue of cyber fraud has finally reached the Supreme Court

फोन पर ही गिरफ्तारी, जमानत और लेन-देन का खेल — डिजिटल अरेस्ट की भयावह हकीकत

प्रमोद शर्मा

सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप: न्यायिक व्यवस्था पर हमला मानी गई ठगी

साइबर अपराध के नए और खतरनाक रूप “डिजिटल अरेस्ट” के मामले में देश की सर्वोच्च अदालत — सुप्रीम कोर्ट — ने स्वयं संज्ञान लिया है। हरियाणा के अंबाला में एक दंपति से अदालत और जांच एजेंसियों के फर्जी आदेशों के माध्यम से 1.05 करोड़ रुपये की जबरन वसूली के मामले ने न्यायिक तंत्र को झकझोर कर रख दिया।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा — “हम इस बात से स्तब्ध हैं कि धोखेबाजों ने सुप्रीम कोर्ट और अन्य न्यायिक दस्तावेज़ों का दुरुपयोग करते हुए न्यायिक आदेशों में हेराफेरी की है। यह अपराध न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि न्यायिक प्रणाली में जनता के विश्वास की नींव पर सीधा प्रहार है।”

अदालत ने केंद्र सरकार, सीबीआई, और राज्य सरकार से इस मामले पर जवाब मांगा है और निर्देश दिया है कि इस तरह के मामलों की तह तक पहुंचने के लिए केंद्र और राज्य पुलिस के बीच समन्वित प्रयास किए जाएं। शीर्ष अदालत ने कहा कि

“सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट की मुहर, नाम या न्यायिक अधिकार का फर्जी उपयोग — एक गंभीर और चिंताजनक प्रवृत्ति है।”

अब इस मामले में अदालत क्या आदेश पारित करती है, इस पर पूरे देश की नज़र टिक गई है।

क्या है ‘डिजिटल अरेस्ट’? — साइबर ठगी का नया रूप

“डिजिटल अरेस्ट” वास्तव में एक साइबर धोखाधड़ी का परिष्कृत और भयावह रूप है। इसमें ठग अपने शिकार को यह विश्वास दिलाते हैं कि वह किसी अवैध गतिविधि — जैसे मनी लॉन्ड्रिंग, ड्रग्स केस, टैक्स चोरी या साइबर अपराध — में शामिल है।
इसके बाद वे खुद को सीबीआई अधिकारी, पुलिस इंस्पेक्टर, कस्टम अधिकारी, या अदालत का प्रतिनिधि बताकर वीडियो कॉल या फोन पर उसे “डिजिटल रूप से गिरफ्तार” कर लेते हैं।

वे नकली वारंट, जमानत आदेश, कोर्ट नोटिस आदि दिखाकर डराते हैं और कहते हैं कि यदि तुरंत पैसा ट्रांसफर नहीं किया गया तो गिरफ्तारी हो जाएगी। पीड़ित व्यक्ति मानसिक दबाव में आकर बड़ी-बड़ी रकम “जुर्माना” या “जमानत” के नाम पर ट्रांसफर कर देता है।

वर्ष 2024 में ही 92,000 से अधिक भारतीय इस तरह के साइबर ठगी के शिकार बने।

दिल्ली का सबसे बड़ा डिजिटल अरेस्ट घोटाला — 22.92 करोड़ की ठगी

अक्टूबर 2024 में दिल्ली पुलिस ने एक सनसनीखेज मामला उजागर किया। कंबोडिया में बैठे चीनी साइबर अपराधियों ने दिल्ली के गुलमोहर पार्क में रहने वाले 78 वर्षीय सेवानिवृत्त बैंकर को “डिजिटल अरेस्ट” के जरिये 22.92 करोड़ रुपये की ठगी में फंसा दिया।

जांच में सामने आया कि पहले एक महिला ने दूरसंचार कंपनी की अधिकारी बनकर पीड़ित से संपर्क किया। बाद में अलग-अलग अपराधी मुंबई पुलिस, ईडी और सीबीआई अधिकारी बनकर फोन करते रहे। उन्होंने वीडियो कॉल पर कोर्ट जैसी फर्जी प्रक्रिया चलाई और छह हफ्तों तक व्यक्ति को “डिजिटल अरेस्ट” में रखा।

गोपनीयता के नाम पर उनसे एक सादे कागज़ पर हस्ताक्षर लेकर वॉट्सऐप पर भेजने को कहा गया, जिससे ठगों को उसका डिजिटल साक्ष्य मिल गया। रैकेट दक्षिण-पूर्व एशिया से संचालित किया जा रहा था — पुलिस ने दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से पांच लोगों — अशोक, मोहित, अमित, समरजीत और कनकपाल — को गिरफ्तार किया।

गोवा में महिला से 1.10 करोड़ की ठगी — ‘फर्जी सीईओ’ का जाल

इसी तरह गोवा में रहने वाली दीक्षा कनौजिया नामक महिला से एक ठग ने 1.10 करोड़ रुपये की ठगी की। आरोपी, कुणाल सतीश हेलकर — महाराष्ट्र का निवासी — खुद को कई कंपनियों का सीईओ बताकर नौकरी और निवेश योजनाओं का लालच देता था।

उसने प्लानर मीडिया ग्रुप, स्पीक कम्युनिटी नेटवर्क और विजया डिजिटल कॉर्पोरेशन जैसी फर्जी कंपनियां बनाईं, नकली ऑफर लेटर और यूनेस्को व डीडीए जैसी संस्थाओं के फर्जी दस्तावेज़ तैयार किए। यहां तक कि उसने पीड़िता के घर सीसीटीवी कैमरे लगवाकर उन पर “सुरक्षा की निगरानी” के बहाने नियंत्रण रखा। दिल्ली पुलिस ने डिजिटल ट्रैकिंग के आधार पर उसे गोवा से गिरफ्तार किया।

गुजरात से दो आरोपी गिरफ्तार — नर्सिंग अधिकारी से सात लाख की ठगी

दिल्ली की एक नर्सिंग अधिकारी से सात लाख रुपये की ठगी के मामले में गुजरात के सुरेंद्रनगर जिले से दो व्यक्तियों — शोएबभाई मुल्तानी (24) और असलमभाई मुल्तानी (37) — को गिरफ्तार किया गया। दोनों अपराधी एक ऐसे नेटवर्क का हिस्सा थे जो कमीशन पर बैंक खाते उपलब्ध कराते थे।

शिकायतकर्ता को फोन पर कहा गया कि उनका नाम धनशोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) के केस में है। खुद को सीबीआई अधिकारी बताने वाले व्यक्ति ने उन्हें वीडियो निगरानी में रखा और “केस से बचने” के नाम पर उनसे सात लाख रुपये ट्रांसफर कराए।

जांच में पता चला कि ठगी की 30% राशि झारखंड और शेष 70% गुजरात के बैंक खातों में भेजी गई। पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज के आधार पर दोनों को पकड़ा।

राष्ट्रीय स्तर पर ‘साइबर ठगी’ बना गंभीर मुद्दा

आज देश में साइबर ठगी राष्ट्रीय संकट का रूप ले चुकी है। ठग इतने तकनीकी और मनोवैज्ञानिक तरीके से काम कर रहे हैं कि कोई भी व्यक्ति — चाहे डॉक्टर, इंजीनियर, व्यापारी, या सेवानिवृत्त अधिकारी — उनके जाल में फँस सकता है।

इन घटनाओं ने प्रधानमंत्री और गृह मंत्री तक को चिंतित कर दिया है। कई बार ये ठग सरकारी एजेंसियों की वेबसाइटों, लोगो और फर्जी कॉल सेंटरों का उपयोग करके इतना वास्तविक माहौल बना देते हैं कि कोई भी व्यक्ति भ्रमित हो जाए।

कैसे फंसाया जाता है शिकार? — डिजिटल हाउस अरेस्ट का मनोवैज्ञानिक जाल

  • सबसे पहले एक साधारण मैसेज, ईमेल या व्हाट्सऐप कॉल के जरिए कहा जाता है कि आपका नाम किसी अपराध में जुड़ा है।
  • इसके बाद “पुलिस” या “सीबीआई” अधिकारी बनकर कॉल किया जाता है और वीडियो कॉल पर पूछताछ शुरू होती है।
  • कॉलर किसी दफ्तर जैसी पृष्ठभूमि में, यूनिफॉर्म पहने हुए दिखाई देता है।
  • पीड़ित को कहा जाता है कि अब वह “वीडियो निगरानी में है” और किसी से बात नहीं कर सकता।
  • तनाव और भय की स्थिति में पीड़ित को कहा जाता है कि अगर मामला “सेटल” करना है तो तुरंत पैसा भेजना होगा।

ज्यादातर मामलों में पैसा ऐसे खातों में ट्रांसफर कराया जाता है जो अपराधियों के वास्तविक नाम से नहीं जुड़े होते। पैसा तुरंत दूसरे खातों में ट्रांसफर कर दिया जाता है ताकि कोई ट्रैक न कर सके।

यह ठगी साधारण ऑनलाइन फ्रॉड से कहीं ज्यादा खतरनाक है क्योंकि इसमें अपराधी पैसे के साथ-साथ व्यक्तिगत जानकारी — जैसे बैंक अकाउंट, क्रेडिट कार्ड नंबर, पासवर्ड आदि — भी हासिल कर लेते हैं।

एक्सपर्ट की राय — “कानूनी सुधार और बैंकिंग जवाबदेही जरूरी”

साइबर विधि विशेषज्ञ पवन दुग्गल का मानना है कि “डिजिटल अरेस्ट और साइबर ठगी के मामलों को रोकने के लिए बैंकिंग सिस्टम में कठोर जवाबदेही की आवश्यकता है। रिज़र्व बैंक की 2017 की ‘जीरो लाइबिलिटी’ अधिसूचना का दायरा बढ़ाया जाना चाहिए। यदि बैंकों को यह जिम्मेदारी दी जाए कि ठगी के मामलों में वे स्वयं हानि वहन करेंगे, तो वे अधिक सतर्क होकर काम करेंगे।”

उन्होंने यह भी कहा कि साइबर अपराध में सजा की दर एक प्रतिशत से भी कम है। आईटी एक्ट के अधिकतर अपराध जमानती हैं, जिससे अपराधियों को डर नहीं रहता। उन्होंने सुझाव दिया कि देश में विशेष साइबर अदालतें बनाई जाएं ताकि मामलों का तीव्र निपटारा हो सके।

“यदि कोई साइबर ठगी का मुकदमा 20 साल तक चलता रहेगा, तो कानून का भय समाप्त हो जाएगा।”

कानूनी सलाह: ठगी का अहसास होते ही क्या करें

तुरंत शिकायत दर्ज करें — राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल cybercrime.gov.in

  • हेल्पलाइन नंबर 1930 पर तुरंत कॉल करें। यदि लेन-देन को एक घंटे के भीतर रिपोर्ट किया जाए, तो पैसा ब्लॉक होने की संभावना रहती है।
  • सभी साक्ष्य सुरक्षित रखें — कॉल रिकॉर्ड, ट्रांजैक्शन डिटेल, चैट स्क्रीनशॉट, ईमेल आदि।
  • जिस अकाउंट या वॉलेट में पैसे भेजे गए हैं, उसका स्क्रीनशॉट और नंबर नोट करें।
  • किसी भी अनजान लिंक पर क्लिक न करें।
  • यदि 1930 पर कॉल न लगे, तो 112 पर स्थानीय पुलिस को सूचित करें।
  • केंद्रीय गृह मंत्रालय की I4C (Indian Cyber Crime Coordination Centre) ने अब तक 1,000 से अधिक स्काइप आईडी और फर्जी अकाउंट ब्लॉक करवाए हैं।

डिजिटल युग की नई चुनौती

“डिजिटल अरेस्ट” केवल एक तकनीकी अपराध नहीं, बल्कि मानव मनोविज्ञान पर हमला है। यह भय, भ्रम और नकली न्यायिक भय का सहारा लेकर आम नागरिकों को अपनी मेहनत की कमाई से वंचित कर देता है।

सुप्रीम कोर्ट का संज्ञान इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

परंतु जब तक बैंकिंग प्रणाली, कानून प्रवर्तन एजेंसियां और जनता — तीनों स्तरों पर डिजिटल साक्षरता और जवाबदेही नहीं बढ़तीं, तब तक यह ठगी रुकने वाली नहीं।

अब समय आ गया है कि देश साइबर अपराध को सुरक्षा नीति के केंद्रीय मुद्दे के रूप में स्वीकार करे — क्योंकि

“डिजिटल युग में ठगी अब बंदूक से नहीं, बल्कि स्क्रीन से होती है।”