रविवार दिल्ली नेटवर्क
- साहित्य, प्रकृति,स्वास्थ्य व शांति का संगम है बस्तर: डॉ राजाराम त्रिपाठी
- कोलकाता के वरिष्ठ पत्रकार अनवर हुसैन व बिमल शर्मा का सम्मान, डॉ. राजाराम त्रिपाठी बोले: “भविष्य की चिकित्सा प्रकृति से ही निकलेगी”
कार्यक्रम की चार प्रमुख झलकियां:
- स्वर-संध्या में शिप्रा त्रिपाठी का मधुर स्वागत गीत — सुरों और शब्दों से वातावरण मंत्रमुग्ध हुआ।
- अतिथियों को भेंट में मिला ‘छिंद’ के पत्तों से बना कभी न मुरझाने वाला गुलदस्ता , बस्तर की सृजनशीलता और प्रकृति-संवेदना का प्रतीक।
- वरिष्ठ पत्रकार अनवर हुसैन ने कहा: “बस्तर आतंक नहीं, अपार संभावनाओं की भूमि है; डॉ. त्रिपाठी की खेती सोना उगाने की मिसाल है।”
- कोलकाता के बिमल शर्मा ने कहा: “बस्तर की आत्मीय संस्कृति महानगरों की सभ्यता से अधिक सच्ची और मानवीय है।”
कोंडागांव : विश्व हर्बल मेडिसिन दिवस एवं संयुक्त राष्ट्र दिवस के अवसर पर माँ दंतेश्वरी हर्बल इस्टेट परिसर के ‘बइठका हॉल’ में शुक्रवार की संध्या एक अनूठा आयोजन हुआ, जहाँ दीपावली-मिलन सह काव्य गोष्ठी के माध्यम से साहित्य, पत्रकारिता, चिकित्सा और पर्यावरण चेतना का सुंदर संगम दिखाई दिया।
यह आयोजन छत्तीसगढ़ हिन्दी साहित्य परिषद, हिन्दी भारती कोंडागांव इकाई तथा जनजातीय सरोकारों की राष्ट्रीय मासिक पत्रिका ‘ककसाड़’ के संयुक्त तत्वावधान में संपन्न हुआ। अध्यक्षता ‘ककसाड़’ के संपादक एवं माँ दंतेश्वरी हर्बल समूह के अध्यक्ष डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने की, जबकि मुख्य अतिथि के रूप में कोलकाता से पधारे वरिष्ठ पत्रकार एवं ‘पैरोकार’ पत्रिका के संपादक श्री अनवर हुसैन तथा प्रख्यात पत्रकार श्री बिमल शर्मा उपस्थित रहे।
कार्यक्रम की शुरुआत माँ सरस्वती की वंदना से हुई। स्वागत गीत स्वर-साधिका शिप्रा त्रिपाठी ने गाया, जिसकी मधुरता ने वातावरण को रस-रस में भीगो दिया। संचालन का दायित्व शायर सैयद तौसीफ आलम ने सौम्यता और प्रभाव के साथ निभाया तथा अपनी शेरो शायरी से लोगों का मन मोह लिया।
अतिथियों का अभिनव स्वागत छग बस्तर की पारंपरिक शैली में किया गया। उन्हें छत्तीसगढ़ हिंदी साहित्य परिषद के सचिव उमेश मांडवी के सौजन्य से ‘छिंद’ (स्थानीय खजूर) के पत्तों से बने ऐसे गुलदस्ते भेंट किए गए जो कभी मुरझाते नहीं, जो बस्तर की लोककला और स्थायी सृजनशीलता का प्रतीक हैं।
इस अवसर पर कोलकाता के वरिष्ठ पत्रकार द्वय अनवर हुसैन और बिमल शर्मा का परंपरागत तरीके से अंगवस्त्र शाल ओढ़ाकर तथा श्री फल भेंट कर सम्मान किया गया।
अपने उद्बोधन में मुख्य अतिथि श्री अनवर हुसैन ने कहा “दो दशकों की पत्रकारिता में बस्तर का नाम हमने अधिकतर हिंसा और संघर्ष से जोड़ा। लेकिन आज यहाँ आकर हमने एक नया बस्तर देखा। संभावनाओं और सृजन की भूमि। डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने पूरे देश के सामने यह साबित किया है कि मिट्टी से भी सोना उगाया जा सकता है। अगर नीति-निर्माता उनके जैविक कृषि मॉडल को अपनाएँ, तो बिना खनिज दोहन के भी बस्तर भारत की समृद्धि का केंद्र बन सकता है।”
वहीं श्री बिमल शर्मा ने कहा — “महानगरों की चमक में अक्सर हम संवेदना खो देते हैं, लेकिन बस्तर में आज भी संस्कृति जीवित है । यहां का जीवन ही कविता है।”
अध्यक्षीय संबोधन में डॉ. राजाराम त्रिपाठी ने कहा :- “विश्व हर्बल मेडिसिन दिवस हमें स्मरण कराता है कि चिकित्सा का भविष्य रसायनों में नहीं, प्रकृति में है। बस्तर की वनौषधियाँ और पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियाँ आज भी दुनिया को संतुलन और स्वास्थ्य का संदेश दे रही हैं। संयुक्त राष्ट्र दिवस की भावना भी यही कहती है ‘Healing the word Naturally’ यानी प्रकृतिपथ से ही विश्व का उपचार तथा उद्धार संभव है।
कार्यक्रम में राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षाविद् ऋषभ जैन, वरिष्ठ ग़ज़लकार मनोहर सग्गू, हल्बी साहित्यकार महेश पांडे, समाजसेवी मनीष श्रीवास्तव ने भी सारगर्भित उद्बोधन दिया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में नगर अनेक प्रबुद्ध नागरिक, लेखक और पत्रकार उपस्थित रहे।
काव्य-पाठ सत्र में डॉ. विश्वनाथ देवांगन ने हल्बी बोली में पर्यावरण का संदेश देते हुए वनों के महत्व पर आधारित कविता सुनाई, श्रीमती दंतेश्वरी राव ने सामाजिक सौहार्द और दिवाली के पर्व पर काव्य पाठ कर सबका मन मोह लिया, उमंग दुबे ने उर्दू में नज़्म और हिंदी में कविता सुनाकर शमा बांधा, उपेन्द्र ठाकुर ने अपनी समसामयिक विषय की कविता से ध्यान आकर्षित किया,मशहूर शायर मनोहर सिंह सग्गू ‘ ज़ख्मी ‘ ने अपनी ग़ज़लों से माहौल बनाया,महेश पाण्डे ने हल्बी गीत सुनाकर श्रोताओं को झूमने पर मजबूर किया, कवियत्री रानी पाठक ने दिवाली पर अपनी कविता सुनाते हुए बधाईयां दी, हर्षिका महावीर ने छत्तीसगढ़ी में छत्तीसगढ़ महतारी का गुणगान किया तथा अन्य युवा कवि द्रोणा प्रसाद हियाल जिन्होंने ने पहली बार ऐसे किसी मंच से काव्य पाठ किया,ने ‘ बस्तर में मेरा बचपन ‘ कविता से हॉल को गूंजा दिया कार्यक्रम के अंत में शायर सैयद तौसीफ आलम ने अपने चिर परिचित अंदाज़ में शेरों शायरी सुनाकर कार्यक्रम को अंजाम तक पहुंचाया। आयोजन को सफल बनाने में शिप्रा त्रिपाठी, अनुराग कुमार, अपूर्वा त्रिपाठी, शंकर नाग, उत्तम मानिकपुरी, ऋषिराज, कृष्णा नेताम और माधुरी देवांगन का उल्लेखनीय योगदान रहा।
माँ दंतेश्वरी हर्बल इस्टेट में आयोजित यह दीपावली-मिलन सह काव्य गोष्ठी केवल एक सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं रही, बल्कि उसने यह सशक्त संदेश दिया कि साहित्य, प्रकृति और चिकित्सा ,, तीनों मिलकर ही विश्व शांति, स्वास्थ्य और स्थायी विकास के मार्ग को प्रकाशित करते हैं।





