दिलीप कुमार पाठक
सरदार वल्लभभाई पटेल कहते थे – “एकता के बिना लोगों की ताकत तब तक असली ताकत नहीं है, जब तक वह एकजुट और संगठित नहीं होती। तभी वह एक शक्तिशाली और आध्यात्मिक शक्ति बन जाती है।”
31 अक्टूबर भारत के लिए बेहद खास है क्योंकि इसी दिन देश को एकता के सूत्र में पिरोने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल की जन्म जयंती है l लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की स्मृति में उनके जन्मदिन 31 अक्टूबर को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में प्रति वर्ष मनाया जाता हैं। अपने असाधारण नेतृत्व और राष्ट्रीय एकता के प्रति अटूट प्रतिबद्धता के लिए प्रसिद्ध, सरदार वल्लभभाई पटेल को “भारत के लौह पुरुष” के रूप में याद किया जाता है। राष्ट्रीय एकता दिवस का ऐलान 2014 में किया गया, इसे सरदार पटेल के राष्ट्र के प्रति समर्पण को याद में रखकर तय किया गया था l सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नाडियाड में हुआ था। पेशे से एक सफल वकील, उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब महात्मा गांधी ने उन्हें 1918 में खेड़ा सत्याग्रह का नेतृत्व करने के लिए अपना उप-सेनापति चुना। इस प्रकार, एक किसान आंदोलन के नेता के रूप में, उन्होंने अपने जीवन की दिशा को जनसेवा के पथ की ओर अग्रसर कर दिया l 1924 में, वे अहमदाबाद नगर निगम बोर्ड के अध्यक्ष चुने गए। कार्यभार संभालते हुए, उन्होंने अहमदाबाद की जल निकासी, स्वच्छता, सफ़ाई और जल वितरण प्रणालियों का कायाकल्प किया। नागरिकों को यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ कि बोर्ड के अध्यक्ष ने स्वयं झाड़ू और डस्टबिन उठाकर शहर के हरिजन मोहल्ले की सफ़ाई की। उनमें, अहमदाबाद शहर को एक नया नायक मिला। सरदार वल्लभभाई पटेल स्वतंत्रता संग्राम में तेज़ी से शामिल होते गए। 1928 के बारदोली सत्याग्रह में उनकी भूमिका ने उन्हें राष्ट्रीय गौरव के नए शिखर पर पहुँचाया। किसान आंदोलन, पूरे देश में चर्चा का विषय बना, सरदार वल्लभभाई पटेल की संगठन क्षमता और अथक कार्य के प्रति उनके उत्साह को प्रदर्शित किया। यहीं पर उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि मिली, वह विशेषण जिसके द्वारा उन्हें आज भी याद किया जाता है और सम्मान दिया जाता है। सरदार वल्लभभाई पटेल आगे चलकर राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी स्तंभों में से एक बने।
भारत की गणना विश्व के सबसे बड़े देशों में से एक के रूप में की जाती है जो कि पूरे विश्व में दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है, जहाँ 1652 के आसपास भाषाऍ और बोलियाँ बोली जाती है। यह देश दुनिया के सभी प्रमुख धर्मों को जैसे हिंदू, बौद्ध, ईसाई, जैन, इस्लाम, सिख और पारसी धर्मों को विभिन्न संस्कृति, खानपान की आदतों, परंपराओं, पोशाकों और सामाजिक रीति-रिवाजों के साथ शामिल करता है। भारत की जलवायु में काफी अन्तर के साथ एक विविधतापूर्ण देश है। देश में प्रमुख भिन्नता होने के बाद भी, इसका प्रत्येक भाग एक ही संविधान द्वारा बहुत शांति के साथ नियंत्रित है।
स्वतंत्रता के समय, भारत ब्रिटिश भारत और रियासतों से मिलकर बना था। ब्रिटिश भारत में 17 प्रांत थे, और रियासतों की संख्या 560 से अधिक थी, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग दो-पाँचवाँ हिस्सा थीं। भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम ने ब्रिटिश भारत का नियंत्रण भारत सरकार को सौंप दिया, लेकिन रियासतों के शासकों को यह चुनने का विकल्प दिया गया कि वे भारत में शामिल होना चाहते हैं या पाकिस्तान में, या दोनों में से किसी में भी नहीं। 5 जुलाई 1947 को सरदार पटेल ने रियासतों के प्रति नीति को स्पष्ट करते हुए कहा कि ‘रियासतों को तीन विषयों – सुरक्षा, विदेश तथा संचार व्यवस्था के आधार पर भारतीय संघ में शामिल किया जाएगा।’ और यह बिल्कुल भी आसान नहीं था, क्योंकि सदियों से चली आ रही व्यवस्था को बदलना एवं लागू करना आसान नहीं था, इसलिए ही तो सरदार वल्लभभाई पटेल को लौहपुरुष की उपाधि दी गई थी, ये उपाधि उनकी उपलब्धियां एवं उनके विराट व्यक्तित्व की पहचान कराती है l
सरदार पटेल के स्पष्ट कर देने के बाद धीरे-धीरे बहुत सी रियासतों के शासक भोपाल के नवाब से अलग हो गए थे
और इस तरह नवस्थापित रियासती विभाग की योजना को सफलता मिली। भारत के तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भारतीय संघ में उन रियासतों का विलय किया था जो स्वयं में संप्रभुता प्राप्त थीं। उनका अलग झंडा और अलग शासक था। सरदार पटेल ने आज़ादी के ठीक पूर्व (संक्रमण काल में) ही पी.वी. मेनन के साथ मिलकर कई राज्यों को भारत में मिलाने का कठिन काम आरम्भ कर दिया था। पटेल और मेनन ने देश के राजाओं को बहुत समझाया कि उन्हें स्वायत्तता देना सम्भव नहीं होगा। इसके परिणामस्वरूप तीन को छोडकर शेष सभी राजवाडों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। 15 अगस्त 1947 तक हैदराबाद, कश्मीर और जूनागढ़ को छोड़कर शेष भारतीय रियासतें ‘भारत संघ’ में सम्मिलित हो गयीं। जूनागढ़ के नवाब के विरुद्ध जब बहुत विरोध हुआ तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और जूनागढ़ भी भारत में मिल गया। जब हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो सरदार पटेल ने वहाँ सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण करा लिया। एकता में सबसे बड़ा बाधक स्वहित हैं आज के समय में स्वहित ही सर्वोपरि हो गया है। आज जब देश आजाद हैं आत्म निर्भर हैं तो वैचारिक मतभेद उसके विकास में बेड़ियाँ बनी पड़ी हैं। आजादी के पहले इस फ़ूट का फायदा अंग्रेज उठाते थे और आज देश के सियासी लोग। देश में एकता के स्वर को सबसे ज़्यादा बुलंद स्वतंत्रता सेनानी लोह पुरुष वल्लभभाई पटेल ने किया था। वे उस सदी में आज के युवा जैसी नयी सोच के व्यक्ति थे। वे सदैव देश को एकता का संदेश देते थे। उन्हीं को श्रद्धांजलि देने हेतु उनके जन्म दिवस को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता हैं।
राष्ट्रीय एकता दिवस का मंत्र है – एकता- मूलमंत्र हैं यह विकास का, देश के सौंदर्य और उद्धार का। हर एक शब्द भारी हैं, जब एकता में देश की हर कौम सारी हैं। एकता ही देश का बल हैं, एकता में ही सुनहरा पल हैं। जब तक रहेगी साठ गाठ, होता रहेगा देश का विकास। याद रखो एकता का मान, तब ही होगी देश आन। एकता में ही संबल हैं जिस देश में नही वो दुर्बल हैं राष्ट्रीय एकता दिवस केवल स्मरण का दिन नहीं है; यह प्रत्येक नागरिक से एकता की भावना को अपनाने का आह्वान है। एक ऐसी दुनिया में जो अक्सर विभाजित दिखाई देती है, सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा समर्थित मूल्य पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हैं। इस दिवस को मनाते हुए, हम एक अखंड और सामंजस्यपूर्ण समाज के निर्माण के लिए स्वयं को प्रतिबद्ध करें, भारत के लौहपुरुष की विरासत का सम्मान करते हुए एक ऐसा वातावरण विकसित करें जहाँ विविधता का सम्मान किया जाए और एकता को संजोया जाए। हम सब मिलकर अपने राष्ट्र के उज्जवल भविष्य के लिए प्रयास कर सकते हैं, जो अखंडता, सम्मान और एकजुटता के सिद्धांतों पर आधारित हो।
31 अक्टूबर, 2018 को गुजरात के केवड़िया में सतपुड़ा और विंध्याचल की मनमोहक पहाड़ियों की पृष्ठभूमि में दुनिया की सबसे ऊँची प्रतिमा – स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी – का अनावरण किया गया। 182 मीटर (लगभग 600 फीट) ऊँची यह प्रतिमा स्वतंत्र भारत के निर्माता सरदार वल्लभभाई पटेल को समर्पित है। यह विशाल स्मारक नर्मदा नदी के ऊपर स्थित है और नर्मदा नदी के विशाल परिवेश, नदी बेसिन और विशाल सरदार सरोवर बाँध का मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है। यह साधु बेट पहाड़ी पर स्थित है और 300 मीटर लंबे एक पुल से जुड़ा है, जो मुख्य भूमि से प्रतिमा तक पहुँच प्रदान करता है। स्टैच्यू ऑफ यूनिटी कई आकर्षक आकर्षण प्रदान करता है, जो इसे सांस्कृतिक और पर्यावरण-पर्यटन, दोनों के लिए एक प्रमुख गंतव्य बनाता है। आज पीढ़ियां स्वछंदता का जीवन जी रही हैं, इसके पीछे सरदार पटेल जैसी महान आत्माओ ने बलिदान देते हुए सर्वस्य न्यौछावर कर दिया था l हम सभी की जिम्मेदारी है कि उनके सपनों का भारत बनाने में हम सब अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करें देश के महान नेता सरदार पटेल को यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी l





