विकसित भारत 2047 : करुणा, सह-अस्तित्व और पर्यावरणीय नैतिकता का नया घोष

Developed India 2047: A New Call for Compassion, Coexistence, and Environmental Ethics

भारत का विकास केवल मनुष्य के हित तक सीमित न रहे, बल्कि सभी जीवों के प्रति करुणा और नैतिक ज़िम्मेदारी को अपनाकर ही सच्चे अर्थों में “विकसित” बन सकता है।

विकसित भारत 2047 का सपना तभी साकार होगा जब विकास का अर्थ केवल आर्थिक समृद्धि तक सीमित न रहकर सभी जीवों के कल्याण, सह-अस्तित्व और पर्यावरणीय संतुलन से जुड़ा हो। पशु कल्याण को नीति और विकास के केंद्र में लाना भारत की प्राचीन करुणामय परंपरा और संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप है। करुणा, संवेदना और स्थायित्व पर आधारित यह दृष्टिकोण न केवल पारिस्थितिक संतुलन को मजबूत करेगा बल्कि भारत को एक ऐसे राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठित करेगा जो “सर्वभूत हिताय” के आदर्श को जीवन में उतारता है।

डॉ प्रियंका सौरभ

भारत जब अपने स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष 2047 की ओर बढ़ रहा है, तो यह केवल आर्थिक विकास का लक्ष्य नहीं, बल्कि एक नैतिक, संतुलित और मानवीय समाज के पुनर्निर्माण का संकल्प भी है। परंतु यह संकल्प तभी सार्थक होगा जब विकास का आधार केवल मनुष्य नहीं, बल्कि संपूर्ण सृष्टि के कल्याण पर टिका हो। आज जब “विकसित भारत” की बात होती है, तो उसका दायरा उद्योग, प्रौद्योगिकी, अवसंरचना और आय वृद्धि तक सीमित दिखाई देता है। परंतु एक सच्चा विकसित राष्ट्र वह होगा, जहाँ करुणा, सह-अस्तित्व और दया जैसे मानवीय गुण नीतियों और योजनाओं की आत्मा बनें।

भारत का संविधान इस दृष्टि का पथप्रदर्शक है। अनुच्छेद 48(क) राज्य को पर्यावरण और वन्य जीवों की रक्षा करने का निर्देश देता है, जबकि अनुच्छेद 51(क)(छ) प्रत्येक नागरिक का यह मूल कर्तव्य बताता है कि वह जीवित प्राणियों के प्रति करुणा रखे। ये प्रावधान केवल क़ानूनी नियम नहीं, बल्कि उस सभ्यतागत विचारधारा की पहचान हैं जो अहिंसा, दया और “वसुधैव कुटुम्बकम्” के सिद्धांतों पर आधारित है। भारत की संस्कृति सदियों से यह सिखाती आई है कि सृष्टि में हर जीव का अपना सम्मान, उद्देश्य और अधिकार है।

फिर भी, आधुनिक विकास की दौड़ में पशु कल्याण का स्थान कहीं पीछे छूट गया है। औद्योगिकीकरण, नगरीकरण और अंधाधुंध उपभोग की होड़ ने न केवल प्राकृतिक संसाधनों को प्रभावित किया है, बल्कि असंख्य पशु प्रजातियों के अस्तित्व को भी संकट में डाल दिया है। गिद्धों की घटती संख्या, हाथियों और तेंदुओं के आवासों का सिकुड़ना, समुद्री जीवों पर प्रदूषण का प्रभाव — ये सब इस असंतुलन के द्योतक हैं। जब किसी पारिस्थितिकी तंत्र से एक भी प्रजाति विलुप्त होती है, तो उसका प्रभाव पूरे पर्यावरण और मानव जीवन पर पड़ता है।

विकास के नाम पर जब हम जंगलों को काटते हैं, नदियों को प्रदूषित करते हैं और जानवरों के प्राकृतिक निवास को नष्ट करते हैं, तो यह केवल प्रकृति का नुकसान नहीं बल्कि स्वयं मानवता की जड़ों को कमजोर करना है। इसलिए आवश्यक है कि भारत का “विकसित भारत 2047” का दृष्टिकोण केवल मनुष्य की भौतिक समृद्धि पर न टिके, बल्कि सभी प्राणियों के कल्याण को अपना मूल ध्येय बनाए।

पशु कल्याण को भारत के विकास दृष्टिकोण में शामिल करना केवल संवेदनशीलता का प्रश्न नहीं है, बल्कि यह स्थायी विकास की शर्त है। भारत के ग्रामीण जीवन में पशुधन अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। करोड़ों परिवार पशुओं से प्राप्त दूध, ऊन, अंडे और अन्य उत्पादों पर निर्भर हैं। यदि इन पशुओं की देखभाल, आहार, स्वास्थ्य और व्यवहारिक सम्मान का ध्यान रखा जाए, तो उत्पादकता बढ़ेगी और ग्रामीण आय में स्थायित्व आएगा।
मानवीय पशुपालन और संसाधनों के संतुलित उपयोग से भूमि की उर्वरता, जल की गुणवत्ता और पर्यावरण की स्थिरता को भी लाभ होता है।

इसके साथ ही, पशु कल्याण का संबंध जनस्वास्थ्य से भी प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है। कोविड महामारी और निपाह वायरस जैसी घटनाओं ने यह प्रमाणित किया है कि पशु स्वास्थ्य, मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण — ये तीनों एक दूसरे से गहराई से जुड़े हैं। यदि किसी एक क्षेत्र में असंतुलन होता है, तो उसका प्रभाव बाकी दोनों पर पड़ता है। इसीलिए आवश्यक है कि पर्यावरण, कृषि और स्वास्थ्य मंत्रालय मिलकर “एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण” की भावना को नीति स्तर पर लागू करें।

पशु कल्याण के दृष्टिकोण को शिक्षा, शहरी नियोजन, और उद्योग में भी स्थान मिलना चाहिए। विद्यालयों के पाठ्यक्रम में यदि सभी जीवों के प्रति करुणा और सह-अस्तित्व के मूल्य सिखाए जाएँ, तो आने वाली पीढ़ियाँ स्वभावतः संवेदनशील बनेंगी। शहरी योजनाओं में वन्यजीव गलियारे, सड़कों पर पशु-पार मार्ग और आवारा पशुओं के लिए मानवीय व्यवस्था शामिल की जानी चाहिए। दिल्ली-मुंबई राजमार्ग पर वन्यजीवों के लिए बनाए गए मार्ग इस दिशा में प्रेरक उदाहरण हैं।

भारत को अपने पुराने पशु संरक्षण कानूनों को भी अद्यतन करना चाहिए। “पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960” को समयानुकूल संशोधन की आवश्यकता है ताकि दंडात्मक प्रावधान कठोर हों और उनका प्रभाव वास्तविक रूप से दिखाई दे। इसके अतिरिक्त, पशु चिकित्सा सेवाओं का विस्तार और वैज्ञानिक देखरेख से पशुधन की गुणवत्ता में सुधार संभव है।

तकनीकी नवाचार भी इस क्षेत्र में सहायक हो सकते हैं। कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित निगरानी, उपग्रह मानचित्रण और इलेक्ट्रॉनिक सुरक्षा प्रणालियाँ वन्यजीव संरक्षण में क्रांतिकारी भूमिका निभा रही हैं। काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में ई-निगरानी प्रणाली ने शिकार की घटनाओं में उल्लेखनीय कमी की है। यह इस बात का प्रमाण है कि विज्ञान और करुणा का संयोजन हमारे पर्यावरण और जीवों के संरक्षण में सबसे प्रभावी उपाय बन सकता है।

पशु आधारित उद्योगों — जैसे दुग्ध, चमड़ा और वस्त्र — में “क्रूरता रहित उत्पादन” को बढ़ावा देने से न केवल नैतिक व्यापार को प्रोत्साहन मिलेगा बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी। उपभोक्ताओं के बीच भी यह जागरूकता फैलानी होगी कि नैतिक उत्पादों का चयन एक सामाजिक उत्तरदायित्व है।

भारतीय दर्शन “अहिंसा परमो धर्मः” और “सर्वे भवन्तु सुखिनः” केवल धार्मिक वाक्य नहीं हैं, बल्कि स्थायी जीवन का सूत्र हैं। “मिशन जीवनशैली” (जो पर्यावरण-अनुकूल जीवन अपनाने पर बल देता है) के साथ यदि पशु कल्याण को भी जोड़ा जाए, तो भारत एक ऐसे राष्ट्र के रूप में उभरेगा जो विकास को करुणा के साथ जोड़ता है।

विकसित भारत का अर्थ तब ही सार्थक होगा जब विकास के पैमाने में केवल उत्पादन या आय नहीं, बल्कि नैतिकता, संवेदनशीलता और सह-अस्तित्व भी शामिल हों। हमें यह स्वीकार करना होगा कि इस पृथ्वी पर मनुष्य अकेला स्वामी नहीं है। हर जीव, चाहे छोटा हो या बड़ा, जीवन की शृंखला का एक आवश्यक हिस्सा है।

“सर्व भूत हित” की भावना — अर्थात् सभी प्राणियों के कल्याण की भावना — भारत की आत्मा में सदैव विद्यमान रही है। इसी भावना को आधुनिक नीति, प्रौद्योगिकी और शिक्षा में एकीकृत करने की आवश्यकता है।

जब भारत इस दिशा में आगे बढ़ेगा, तभी वह न केवल समृद्ध, बल्कि सच्चे अर्थों में सभ्य और संवेदनशील राष्ट्र कहलाएगा। विकसित भारत 2047 का वास्तविक अर्थ यही होगा — एक ऐसा भारत जो प्रगति के साथ करुणा को, विज्ञान के साथ संवेदना को, और विकास के साथ नैतिकता को लेकर चले। यही होगा उस स्वर्णिम युग का आरंभ, जहाँ हर प्राणी सुरक्षित, सम्मानित और सुखी होगा।

विकसित भारत का स्वप्न तभी साकार होगा जब हम यह समझेंगे कि विकास का असली पैमाना करुणा और नैतिकता है। जब भारत अपने विकास के पथ पर सभी प्राणियों को साथ लेकर चलेगा, तभी वह “विश्वगुरु” कहलाने का अधिकार पाएगा।