विजय गर्ग
भारत आज विश्व की सबसे अधिक युवा आबादी वाला देश है। स्वाधीनता के अमृत काल में देश के विकास में योगदान देने वाली इस युवा शक्ति को ‘अमृत पीढ़ी’ कहा गया है। इस पीढ़ी में मुख्य रूप से वे सभी भारतीय युवा शामिल हैं जिनकी आयु पैंतीस वर्ष से कम है। इनकी संख्या देश की कुल आबादी का लगभग पैंसठ प्रतिशत है। यही वह शक्ति है जो भारत के वर्तमान को गति और भविष्य को आकार दे रही है।
प्रधानमंत्री का कहना है कि अमृत पीढ़ी के सभी सपनों को साकार करना, उनके लिए अनगिनत अवसर पैदा करना और उनके मार्ग में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करना सरकार का संकल्प है। इस दिशा में सरकार ने अपने बजट और अन्य योजनाओं के माध्यम से कई प्रयास किए हैं।
केंद्रीय बजट 2023–24 में अमृत पीढ़ी को प्राथमिकता के रूप में रेखांकित किया गया। बजट में शिक्षा प्रणाली को अधिक व्यावहारिक और उद्योग-उन्मुख बनाने के लिए उसके पुनरुद्धार पर ध्यान केंद्रित किया गया है। व्यावसायिक और कौशल प्रशिक्षण पर भी विशेष बल दिया गया है। भारत के लिए यह दृष्टिकोण एक मजबूत सार्वजनिक वित्तीय व्यवस्था और सुदृढ़ वित्तीय क्षेत्र पर आधारित है, जिसमें प्रौद्योगिकी-संचालित और ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था की परिकल्पना की गई है। ‘सबका साथ, सबका प्रयास’ के माध्यम से जनभागीदारी इसमें अहम भूमिका निभा सकती है।
इस दृष्टिकोण को साकार करने का आर्थिक एजेंडा मुख्य रूप से तीन बातों पर केंद्रित है— नागरिकों, विशेषकर युवाओं को अपनी आकांक्षाएँ पूरी करने के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान करना, विकास एवं रोजगार सृजन को प्रोत्साहित करना और व्यापक आर्थिक स्थिरता को मजबूत करना।
पिछले एक दशक में देश ने विद्यालयों से लेकर विश्वविद्यालयों तक अपनी शिक्षा प्रणाली को मजबूत करने में उल्लेखनीय प्रगति की है। आइआइटी, आइआइएम और एम्स जैसे संस्थानों में सुधार और विस्तार के साथ सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण और भविष्य उन्मुख शिक्षा प्रदान करने के प्रयास किए गए हैं। इन प्रयासों से उच्च शिक्षा संस्थानों की संख्या में 13.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वर्ष 2014–15 में इनकी संख्या 51,534 थी, जो मई 2025 तक बढ़कर 70,683 हो गई है। इसमें विश्वविद्यालय, महाविद्यालय, प्रधानमंत्री विद्यालक्ष्मी और अनुसंधान एवं विकास संस्थान शामिल हैं। आंकड़ों के अनुसार विश्वविद्यालयों की संख्या वर्ष 2014–15 में 760 थी, जो मई 2025 तक बढ़कर 1,334 हो गई। उच्च शिक्षा की बढ़ती मांग को पूरा करते हुए कॉलेजों की संख्या भी वर्ष 2014–15 में 38,498 से बढ़कर मई 2025 तक 51,959 हो गई है।
वर्ष 2014 में देश में सोलह भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान थे, जिनकी संख्या मई 2025 तक बढ़कर तेईस हो गई है। इसी तरह वर्ष 2014 में तेरह भारतीय प्रबंधन संस्थान थे, जिनकी संख्या मई 2025 तक इक्कीस तक पहुँच गई है। वर्ष 2014 तक एम्स की संख्या सात थी, जो अब बढ़कर तेईस हो गई है। सरकार का मानना है कि ये सभी संस्थान युवा पीढ़ी के सपनों को साकार करने की दिशा में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
बजट 2023–24 के अंतर्गत अगले तीन वर्षों में लाखों युवाओं को कौशल प्रदान करने के लिए प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना 4.0 शुरू की गई है। इसमें नौकरी के लिए प्रशिक्षण, उद्योग की साझेदारी और उद्योग की जरूरतों के अनुसार पाठ्यक्रमों के निर्माण पर जोर दिया गया है। इस योजना के तहत नए युग के तमाम कौशलों को पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाएगा।
इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत सबसे अधिक युवा आबादी वाले देशों में से एक है। मगर इसका अधिकतम लाभ उठाने के लिए यह आवश्यक है कि युवाओं को उद्योग की जरूरतों के अनुरूप कौशल में प्रशिक्षित किया जाए। इन्हीं प्रयासों के अंतर्गत प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना 2015 में अब तक 1.63 करोड़ युवाओं को विविध कौशल क्षेत्रों में प्रशिक्षित किया जा चुका है। यह योजना देश के युवाओं को लघु अवधि के प्रशिक्षण और पूर्व शिक्षण के माध्यम से कौशल प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी। वर्ष 2020–21 में 7.37 लाख युवाओं को प्रशिक्षित किया गया।
अमृत पीढ़ी को अनेक प्रकार की समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा है। आवास, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की लागत निरंतर बढ़ने के कारण इस पीढ़ी के सामने आर्थिक सुरक्षा की चुनौतियाँ हैं। पारंपरिक रोजगार असुरक्षित और कम पगार वाले होते जा रहे हैं, जिससे वित्तीय स्थिरता में कमी आ रही है। ऋण की सीमित उपलब्धता और स्थिर वेतन की कमी के कारण युवाओं को परिवार चलाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। कई युवाओं को उनकी योग्यता के अनुसार रोजगार नहीं मिल पाता, नतीजतन उन्हें कम स्तर की नौकरियों में काम करना पड़ता है।
युवाओं में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएँ—जैसे चिंता, तनाव और अवसाद—भी एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आ रही हैं, जिससे उनकी उत्पादकता प्रभावित होती है। कई युवाओं को भ्रमित करने वाले माहौल का सामना करना पड़ता है, जहाँ उन्हें सही मार्गदर्शन नहीं मिल पाता और वे नशाखोरी तथा अपराध जैसे गलत रास्तों पर चले जाते हैं। इंटरनेट पर उपलब्ध कुछ भ्रामक सामग्री भी युवाओं को भटकाव की ओर ले जाती है, जिससे उनके पारिवारिक रिश्तों पर असर पड़ता है और वे अपने लक्ष्यों से दूर हो जाते हैं।
देश की युवा पीढ़ी के सामने खड़ी इन समस्याओं का समाधान करना अत्यंत आवश्यक है। युवाओं के लिए स्थिर और गुणवत्तापूर्ण रोजगार, आवास, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को अधिक समृद्ध और किफायती बनाना जरूरी है। इसके लिए व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा पर विशेष जोर दिया जाना चाहिए, ताकि उद्योग और व्यवसाय की आवश्यकताओं के अनुरूप युवा अपने कौशल का विकास कर सकें और आधुनिक अर्थव्यवस्था में योगदान दे सकें। युवाओं को अवसाद और अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने के लिए सहायता और परामर्श सेवाएँ उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
आज की युवा पीढ़ी में नशे की समस्या विकराल रूप लेती जा रही है। इससे करोड़ों युवाओं का भविष्य खतरे में है। यह प्रश्न उठता है कि नशे के फैलते दायरे में उलझ रही अमृत पीढ़ी से कैसे अपेक्षा की जा सकती है कि वह देश का उज्ज्वल भविष्य बनाए? इसलिए यह आवश्यक है कि मादक पदार्थों की बिक्री पर सख्ती से रोक लगाई जाए और नशे के दुष्परिणामों के बारे में युवाओं को जागरूक किया जाए। इसके साथ ही युवाओं में नैतिक मूल्यों का संवर्धन किया जाना चाहिए और उन्हें जीवन की कठिन परिस्थितियों का साहसपूर्वक सामना करना सिखाना चाहिए।
इस कार्य में प्रेरणादायक व्यक्तियों, सामाजिक संस्थाओं और रोजगार-स्वरोजगार में मार्गदर्शन देने वाले संगठनों की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। माता-पिता को अपने बच्चों के साथ अधिक गुणवत्तापूर्ण समय बिताना चाहिए और उन्हें शारीरिक तथा मानसिक रूप से मजबूत बनाने का प्रयास करना चाहिए। सरकार को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में निवेश बढ़ाना चाहिए तथा युवाओं की समस्याओं के समाधान के लिए व्यापक नीतियाँ बनाकर उनका प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करना चाहिए।
भारत की अमृत पीढ़ी देश की सबसे बड़ी पूँजी है। यदि इस विशाल युवा शक्ति को सही दिशा, अवसर और संसाधन मिलें, तो भारत न केवल विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है, बल्कि एक नैतिक, आत्मनिर्भर और समृद्ध राष्ट्र के रूप में भी उभर सकता है। अमृत पीढ़ी की ऊर्जा, नवाचार और साहस ही वह अमृत तत्व हैं जो भारत के भविष्य को उज्ज्वल बना सकते हैं, बशर्ते उन्हें उचित मार्गदर्शन और अवसर प्राप्त हों।





